अपनी आज़ादी बचाये रखने के लिए हमें हमेशा उसकी कीमत चुकाने को तैयार रहना चाहिए
– जवाहर लाल नेहरू
कृष्ण कांत
मुजफ्फरनगर में गांधी के हत्यारे की तस्वीर लगाकर तिरंगा यात्रा निकाली गई. तिरंगे का इससे ज्यादा अपमान क्या हो सकता है कि वह राष्ट्रपिता के हत्यारे के सम्मान में फहराया जा रहा है. कट्टरपंथी हिंदू सवाल उठाते हैं कि गांधी को राष्ट्रपिता क्यों माना जाए ? यह सवाल तुमको नेताजी सुभाष चंद्र बोस से पूछना चाहिए था. जब तुम्हारे देवता अंग्रेजों से पेंशन ले रहे थे, क्रांतिकारियों के खिलाफ जासूसी कर रहे थे, तब वह बूढ़े महात्मा का ही करिश्मा था जिसने 30 बरस तक समस्त हिंदुस्तान को एक तिरंगे के नीचे एकजुट रखा.
आरएसएस, हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग यानी कट्टर हिन्दू और कट्टर मुसलमान दोनों अंग्रेजों के साथ थे. जब भारत छोड़ो आंदोलन में पूरा भारत अंग्रेजों के दमन का शिकार हो रहा था, तब हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग मिलकर बंगाल में सरकार चला रहे थे और आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजी सरकार को मदद करने का भरोसा दे रहे थे. ये अंग्रेजी गुलाम तब भी गांधी के विरोध में खड़े थे. इन्हीं के षड्यंत्र से उस सनकी ने गांधी की हत्या की. आज यही लोग उस हत्यारे की जय बोल रहे हैं.
इस देश में कौन लोग हैं जो हमारे सबसे तेजस्वी महापुरुष की हत्या करने वाले की पूजा करना चाहते हैं ? कौन लोग यह चाहते हैं कि गांधी की हत्या करने के पीछे हत्यारे के तर्कों को सुना जाए और उसे वैधता प्रदान की जाए ? क्या 140 करोड़ लोगों को हत्या के उसी तर्क का इस्तेमाल करने की छूट मिलेगी ? क्या हर व्यक्ति अपने विरोधी की हत्या करके तर्क पेश कर सकता है कि वह बड़ा देशभक्त है ? किसी देशभक्ति ? पूरे संघी कुनबे ने पिछले 75 साल में हत्या, हिंसा के अलावा और क्या हासिल किया ? महात्मा गांधी – जो बुद्ध के बाद हिंदुस्तान का अकेला विश्वपुरूष है – उसकी हत्या के अलावा इस देश के निर्माण में इन हिंसक प्राणियों का क्या योगदान है ?
जो कुछ चल रहा है, यह तिरंगा फहराने का जश्न नहीं है, यह तिरंगे की आड़ में उस तिरंगे और उसकी शान के लिए कुर्बानी देने वाले महापुरुषों को बेदखल करने का षडयंत्र है. वरना जब हर हाथ में तिरंगा दिया जा रहा है, क्या कारण है कि इंडिया गेट पर हमेशा लहराने वाला तिरंगा उतार दिया गया ? क्या कारण है कि चौराहों पर लगी रेलिंगों पर तिरंगा लपेटा गया है ? नोट कर लीजिए कि तिरंगे के साथ 90 साल से षड्यंत्र करने वालों ने न उसके लिए माफी मांगी है, न उन्होंने तिरंगे की जगह भगवा लहराने का विचार त्यागा है. यह अज़ादी का अमृत महोत्सव नहीं है, यह भारतीय लोकतंत्र और भारत के विचार के साथ रचा जा रहा एक जहरीला षडयंत्र है.
बापू ने 32 साल लड़ाई लड़ी तो उनको भूल करने का हक है. उन्होंने छह साल जेल में बिताया और देश की आज़ादी के लिए संघी पिल्ले के हाथों अपने प्राण गंवाए. नेहरू परिवार का हर शख्स, आदमी-औरत सब जेल गए. सारी संपत्ति देश को दान की और उनकी तीन पीढियां आंदोलन में खप गईं. उनको गलती करने का हक है. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लड़ाई का नेतृत्व किया तो उसे गलती करने का हक है. लेकिन जिन्होंने अंग्रेजों की दलाली की, हमारे क्रांतिकारियों से गद्दारी की, उन्हें सवाल उठाने का हक नहीं है.
बापू ने भूल की, नेहरू ने गलती की, कांग्रेस ने गड़बड़ किया तो गोलवलकर और सावरकर क्या घुइया छील रहे थे ? उन्होंने इस भूल-सुधार को ठीक करने के लिए क्या किया ? अंग्रेजों से पेंशन ली ? शहीदों का मजाक उड़ाया ? संघियों ये निकृष्ट नाटक मत करो. यह तथ्य नहीं बदलेगा कि तुम भारत के उस आज़ादी आंदोलन के खलनायक हो, जिसके लाखों नायक हैं। जब मजदूर-किसान और लाखों गुमनाम जान दे रहे थे, तब तुम जासूसी के बदले पेंशन ले रहे थे. नोट कर लो, जितना गंदा अभियान चलाओगे, उतने नंगे होओगे.
संगी कुनबे की गुमनाम नायिका मीनाक्षी लेखी कह रही है हैं – ‘दे दी हमें आजादी बिना खडक बिना ढाल’ से मैं सहमत नहीं हूं, क्योंकि आजादी की लड़ाई में लाखों लोगों ने जान की कुर्बानी दी थी.’ तुम्हारी सहमति या असहमति मांगा कौन है ? तुम तो बस सफाई दो कि आरएसएस अंग्रेजों का दलाल नहीं था. तुमको तो अपनी डीपी में तिरंगा लगाने में 75 साल लग गए !
भारत की आजादी और भारतीय लोकतंत्र के बारे में मैं तो इस बात से सहमत नहीं हूं कि गांधी को, नेहरू को, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को या इस देश के किसी भी एक नागरिक को आरएसएस से कोई सर्टिफिकेट चाहिए. तुम खुद संदिग्ध हो. तुमसे गांधी को सर्टिफिकेट नहीं चाहिए. संघ परिवारियों का यह ऐसा प्रलाप है जो वे 100 सालों से कर रहे हैं. ‘दे दी हमें आजादी बिना खडक बिना ढाल’ अगर सच नहीं है तो क्या अंग्रेजों की दलाली, जासूसी और भारतीय क्रांतिकारियों के साथ गद्दारी सच है ?
यह ऐतिहासिक तथ्य है कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत सारे गुट थे, बहुत सारी विचारधाराएं थीं, उनमें आपस में मतभेद थे, लेकिन वे सब मिलकर भारत की आजादी के लिए लड़े. यह ऐतिहासिक तथ्य है या कहें यह ब्रह्म सत्य है कि आरएसएस ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के साथ गद्दारी की. एमएस गोलवलकर ने बाकायदा कार्यशाला लगाकर अपने स्वयंसेवकों को शिक्षा दी कि आजादी के आंदोलन में शामिल नहीं होना है. उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन स्वैच्छिक है. कोई स्वयंसेवक चाहे तो भाग ले सकता है लेकिन आरएसएस इसमें भाग नहीं लेगा और यह बात उन्होंने बाकायदा लिखित में अंग्रेज सरकार को दी थी. इसके लिए अंग्रेज सरकार ने उनकी तारीफ भी की थी.
यहां तक कि जब भगत सिंह को फांसी हुई तो गोलवलकर अपने मुखपत्र में लेख लिखकर भगत सिंह और उनके साथियों का मजाक उड़ा रहे थे कि ताकतवर से लड़ाई मोल लेना समझदारी नहीं है. दूसरे शब्दों में गोलवलकर कहना चाह रहे थे कि अंग्रेजों की दलाली करो और मस्त रहो. आरएसएस भारत के उस कलंक का नाम है जो अंग्रेजों की दलाली करते हुए हिंदू राष्ट्र-मुस्लिम राष्ट्र और दुनिया की सबसे घटिया चीजों का आकांक्षी था.
यह ऐतिहासिक तथ्य है कि जिस समय भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी गई उस समय अंग्रेजी राज्य दुनिया का सबसे सशक्त राज्य था. यह भी तथ्य है कि मुख्य लड़ाई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस लड़ रही थी, जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी कर रहे थे, इसका यह मतलब नहीं है कि बाकी सारी कुर्बानियों का मोल कम है. अगर बिना खड़क बिना ढाल की बात सच नहीं है तो आरएसएस के लोग बताएं कि गांधी ने अपने जीवन में कितने लोगों को एक थप्पड़ मारा ? वे बताएं कि गांधी ने किस व्यक्ति को कभी गाली दी ? वे बताएं कि गांधी के जीवन में कहीं भी हिंसा का कहां स्थान था ? वे बताएं कि आंदोलन की दो मुख्य धाराओं- नरम दल और गरम दल में वे कहां थे ?
आरएसएस को बताना चाहिए कि आज़ादी आंदोलन में वह क्या कर रहा था ? ले-देकर एक सावरकर इसमें शामिल हुए, काला पानी की सजा हुई, लेकिन माफी मांग कर लौट आये. और लौटे तो अंग्रेजों के पेंशनखोर बनकर ! उन्होंने अपने जीवन में दो उदाहरण प्रस्तुत किए – एक क्रांतिकारी बनने का और दूसरा अंग्रेजों का दलाल बनने का.
जेल से छूटने के बाद सावरकर 1966 तक जिंदा रहे और उस पूरी जिंदगी में एक प्रमाण नहीं मिलता है कि उन्होंने कभी अंग्रेजों का विरोध किया हो बल्कि आरएसएस ने, सावरकर ने, हिंदू महासभा ने और गोलवलकर ने – इस पूरे कुनबे ने मिलकर भारतीय संविधान का विरोध किया, तिरंगे का विरोध किया, आजादी का विरोध किया. इन्होंने हर उस चीज का विरोध किया जिसने आज भारत को एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में खड़ा किया है. आजादी हिंसा से मिली या अहिंसा से, आजादी आंदोलन से मिली या समझौते से, जो भी हुआ, जैसे भी हुआ, लेकिन उसमें अंग्रेजी पेंशनखोरों, अंग्रेजों के दलालों और अंग्रेजी जासूसों का कोई योगदान नहीं है. मीनाक्षी लेखी को अब यह बात गांठ बांध लेनी चाहिए.
जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि ‘कोई बात आपको प्रिय न हो तो इससे तथ्य नहीं बदल जाते.’ कोई बात आज आपको प्रिय नहीं है इसलिए भारत का इतिहास नहीं बदल जाएगा. जिसको भी असहमति है वह गांठ बांध लें और जो लोग गांधी, नेहरू, सुभाष, पटेल, भगत सिंह, अंबेडकर या दूसरे लोगों को कमतर आंकने की कोशिश करते हैं, उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं, वे आसमान पर थूक रहे हैं. उनका यह प्रयास अपने मुंह पर थूकने जैसा है.
महात्मा गांधी को महात्मा किसने कहा ? गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने. महात्मा गांधी को फादर ऑफ नेशन किसने कहा ? नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने. विनायक दामोदर सावरकर को वीर किसने कहा ? खुद सावरकर ने. तो हुआ यूं कि जब सात माफीनामे के बाद सावरकर जेल से छूटे तो उसके 2 साल बाद उनकी एक जीवनी छपी- ‘बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर का जीवन.’ इस किताब में ही पहली बार उनको ‘स्वातंत्र्य वीर’ कहा गया.
इसके बाद सावरकर ‘वीर’ बने रहे. किसी ने सवाल नहीं उठाया. यहां तक कि जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंडियन नेशनल आर्मी बनाकर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ने की घोषणा कर रहे थे, जब पूरी कांग्रेस और पूरे आंदोलन के नेता लोग जेल में थे, तब सावरकर अंग्रेजों से पेंशन ले रहे थे और अंग्रेजी सेना के लिए भारतीय युवाओं की भर्ती के लिए कैंप लगवा रहे थे. फिर भी वे ‘वीर’ बने रहे.
1986 में इस किताब को फिर से प्रकाशित करवाया गया और तब इस किताब की प्रस्तावना लिखने वाले डॉक्टर रवींद्र वामन रामदास ने किताब के कुछ हिस्से के हवाले से यह रहस्योद्घाटन किया कि चित्रगुप्त और कोई नहीं खुद सावरकर थे. इस दावे का खंडन आज तक नहीं हुआ है कि कोई चित्रगुप्त नाम का लेखक, उसका कोई चेला या उसका कोई परिवार इस दावे का खंडन करे कि नहीं चित्रगुप्त सावरकर खुद नहीं थे. चित्रगुप्त नाम का कोई व्यक्ति इस दुनिया में मौजूद था जिसने वीर सावरकर को ‘वीर’ और ‘जन्मजात नायक’ घोषित किया था.
अब आरएसएस वाले चाहते हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के फादर आफ नेशन और गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर के महात्मा को उनकी पदवियों से बेदखल कर दिया जाए, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के 30 साल के नेतृत्व को नकार दिया जाए और माफी मांग कर जेल से छूटकर अंग्रेजों से पेंशन लेने वाले, अंग्रेजों का साथ देने वाले और भारतीय क्रांतिकारियों से गद्दारी करने वाले सावरकर को इस देश का सबसे महान क्रांतिकारी घोषित कर दिया जाए. यही नहीं, वे ये भी चाहते हैं कि गांधी के हत्यारे की भी पूजा की जाए. आप ही बताइए क्या यह संभव है ?
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