आज हम एक भयंकर उथल-पुथल के दौर में जी रहे है. साम्प्रदायिक फासीवादी भाजपा सरकार व संघ परिवार अपने एजेण्डा को थोपकर मेहनतकश जनता व प्रगतिशील तथा जनवादी ताकतों पर कहर बरपा रहे हैं. देश में मेहनतकश दलित आबादी और धार्मिक अल्पसंख्यक आबादी पर कट्टरपंथी-जातिवादी ताकतों के हमले आम हो चले है. साथ ही जनता में नफरत-अफवाहें फैलाकर मॉब-लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या) की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, जो साफ तौर पर संघी फासीवाद की समाज में पैठ को दर्शाती हैं. एक तरफ नरेन्द्र मोदी दलितों पर हमले पर अफसोस जताते हैं, दूसरी ओर भाजपा-संघ परिवार के लोग इन हमलों और हत्याओं में संलग्न होते हैं. असल में अपने राजनीतिक लाभ के लिए मोदी सरकार ने ऐसे फासीवादी गुण्डा-गिरोहों को खुली छूट दे रखी है, तभी ऐसी भीड़ खुलेआम अफ्राजुल के हत्यारे शम्भूलाल के पक्ष में रैली कर सकती है और उदयपुर सेशन कोर्ट के दरवाजे पर भगवा झण्डा फहरा सकती है. यह तस्वीर साफ तौर पर बता रही है कि हमारे देश में फासीवादी बर्बरता लगातार अपने पाँव पसार रही है. साथ ही, आज मोदी सरकार हर प्रकार के जन-प्रतिरोध को दबाने के लिए पूरी राज्य-मशीनरी का इस्तेमाल कर दमन, अत्याचार में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही हैं; चाहे दलित उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने वाले भीम आर्मी के संस्थापक चन्द्रशेखर ‘आजाद’ पर रासुका लगाने का मामला हो या असम में किसान नेता अखिल गोगोई का मामला हो (जो फिलहाल रिहा हैं). साथ ही योगी सरकार द्वारा यूपीकोका जैसे काले कानून बनाने की तैयारी कर जनता के जनवादी हक-अधिकारों पर सीधा हमला किया जा रहा है.
मोदी सरकार का फासीवादी शासन यानी मज़दूरों, छात्रों-युवाओं, दलितों, स्त्रियों व धार्मिक अल्पसंख्यकों के शोषण, उत्पीड़न व दमन को खुली छूट मिली हुई है.
आज पूरे देश में धार्मिक कट्टरता व जातिवादी उन्माद पैदा करने का मकसद एकदम साफ है — मेहनतकश जनता मोदी सरकार से हर साल दो करोड़ रोजगार का सवाल न पूछे; छात्र-नौजवान शिक्षा के क्षेत्र में कटौती पर सवाल न पूछें; ‘अच्छे दिन’ के वादे पर, काला धन, मंहगाई पर रोक लगाने से लेकर बेहतर दवा-इलाज के मुद्दों पर बात न हो. ऐसे में साम्प्रदायिक फासीवाद के लिए ज़रूरी है कि वह देश के मजदूरों, निम्नमध्यवर्ग और गरीब किसानों के सामने एक नकली दुश्मन खड़ा करें इसलिए आज दलित व अल्पसंख्यक आबादी को ‘‘अखण्ड राष्ट्र” और ‘‘हिन्दू संस्कृति” के लिए खतरा बताकर, मेहनतकश जनता के बीच नफरत की दीवारें खड़ी की जा रही है ताकि अम्बानी-अडानी जैसों की मुनाफे की लूट पर पर्दा डाला जा सके. ज़रा सोचिये, क्या यह सच नहीं है कि जब-जब देश में बेरोजगारी, मंहगाई, गरीबी का संकट गहराया है, तब-तब शासक वर्गों ने कभी मंदिर-मस्जिद, गौरक्षा तो कभी लव जिहाद और घर वापसी आदि जैसे नकली मुद्दे खड़े करके जनता को बांटने का काम किया है ?
आइये देखते है कि कांग्रेस की 60 साल की लूट के बदले 60 महीनों में देश की तस्वीर बदलने वाले मोदी ने शिक्षा, रोजगार और अन्य मुद्दों पर क्या किया. 2014 के चुनाव में मोदी ने यह घोषणा की थी कि सत्ता में आने पर वे हर साल 2 करोड़ युवकों को रोजगार देंगे लेकिन हम 2015-16 के रोजगार पैदा होने के आंकड़े देखे तो वे क्रमशः 1.55 लाख और 2.31 लाख तक ही पहुँचे है जबकि उल्टा सरकार ने नोटबन्दी और जीएसटी से 15 लाख से ज्यादा रोजगार छीनने का काम किया है. ये हालात तब है जब देश के सरकारी विभाग कर्मचारियों-मजदूरों की कमी से जूझ रहे हैं! अभी हाल में राज्यसभा में उठे एक सवाल के जवाब में खुद कैबिनेट राज्यमन्त्री जितेन्द प्रसाद ने माना कि कुल 4,20,547 पद तो अकेले केन्द्र में खाली पड़े हैं. देश भर में प्राइमरी, अपर-प्राइमरी अध्यापकों के करीब 10 लाख पद खाली पड़े हैं, वहीं उच्च शिक्षा संस्थानों में देश के 47 केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में 6 हजार पद रिक्त हैं. 363 राज्य विश्वविद्यालयों में 63 हजार पद रिक्त हैं. पिछले पांच साल में डेढ़ लाख सरकारी स्कूल बन्द कर दिये गए हैं, जबकि वैश्विक निगरानी जांच कमेटी 2017-18 की रिपोर्ट बता रही है कि देश में 8 करोड़ 80 लाख बच्चे स्कूली शिक्षा से बेदखल हैं. स्वास्थ्य क्षेत्र में भी 36 हजार सरकारी अस्पतालों में 2 लाख से ज्यादा डाॅक्टरों के पद खाली पड़े हैं. साथ ही जनता के जीवन पर नजर डालें तो देश में रोजाना हजारों बच्चे बिना दवा-इलाज और कुपोषण के चलते अपना दम तोड़ देते हैं. अभी हाल में झारखण्ड की 11 साल की संतोषी ‘भात-भात’ कहती हुई मर गई. ऐसी ठण्डी और निर्मम हत्या के बाद इस व्यवस्था के रहनुमाओं को चुल्लू भर पानी में डूबकर मर जाना चाहिए लेकिन हम जानते हैं ऐसी तमाम हत्याओं के बाद भी शासक वर्ग अपनी लूट-खसोट मे कोई कमी नहीं करने वाला है.
हमारा देश भूख और कुपोषण के मामले में पहले भी शर्मनाक स्थिति में था, लेकिन मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से वह चाड, सूडान आदि से प्रतिस्पर्द्धा कर रहा है. यहां तक कि नेपाल, श्रीलंका और बंग्लादेश की स्थिति इस मायने में हमारे देश से बेहतर है. देश में 5 हज़ार से ज़्यादा बच्चे रोज़ भूख और कुपोषण से मरते हैं. ऑक्सीजन की कमी से हमारे देश में नन्हे-नन्हे बच्चे अस्पतालों में दम तोड़ देते हैं. दूसरी ओर अडानी, अम्बानी जैसों की चांदी है. उन्हें अपनी लूट-मार फैलाने की पूरी छूट दे दी गयी. जनता के पैसों से उन्हें संकट के भंवर से निकाला जा रहा है. अरबों रुपये इन लुटेरों के कर्जे माफ कर दिये जा रहे हैं, जो कि जनता के खातों से ही दिये गये हैं. दूसरी तरफ, जनता के खातों से ‘कम बैलेंस’ होने के नाम पर सरकारी बैंकों ने 1800 करोड़ रुपये का जुर्माना वसूला है! यानी अमीरों की चांदी और ग़रीबों को ग़रीब होने का जुर्माना.
नोटबन्दी के जरिये सारे काले धन वालों ने अपना काला धन सफेद कर लिया; जीएसटी ने बड़ी पूंजी के एकाधिकार को बढ़ाने में मदद की. वहीं दूसरी तरफ देश आर्थिक संकट के भंवर में धंसता जा रहा है, जिसकी कीमत आम मेहनतकश जनता बेरोज़गारी, महंगाई और भुखमरी के रूप में चुका रही है.
चूंकि मोदी सरकार ने तीन वर्षों में ही देश की आम मेहनतकश जनता का जीना मुहाल कर दिया है, इसलिए अब इस जनता को धर्म और जाति के नाम पर आपस में लड़ाना ज़रूरी हो गया है. ऐसे में, साम्प्रदायिक फासीवादी संघ परिवार के निशाने पर धार्मिक अल्पसंख्यक और दलित आबादी खास तौर पर है, जैसा कि हालिया घटनाओं ने दिखलाया है.
– नौजवान भारत सभा, बिगुल मजदूर दस्ता के एक पर्चे से साभार