Home कविताएं संभव हो तो…

संभव हो तो…

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संभव हो तो
आ जाओ
मैं वेट कर रहा हूं
मानसून के धीमे होने तक यही रुकूंगा

अपना छाता लेते आना
छोलदारी में जगह
मिले न मिले
मौसम चुना हुआ जरूर है
मगर अपना नहीं है
गफलत का आलम गहरा है

अच्छा संकेत यह है
कि चीलें उड़ रही हैं
और एक एक पर
सख्त निगरानी रखी जा रही है

कोयल गूंगी नहीं है
बस बसंत का बायकॉट कर रखी है
बीते साल बसंतोत्सव फीका रहा
हम कोशिश करेंगे कि
इस साल ऐसा कुछ न हो

एफसीआई के गोदामों में
सड़ते अनाजों के बीच
मैं अपनी कविता कहां रखूं
भूखों की चुगली उसे पसंद नहीं आई
वह सिद्धांत पर चलने वाला आदमी है
दांया ? या बांया
दंगा ? या सौहार्द
कृपया, यह मत पूछना
बता नहीं पाऊंगा

बागों की हरियाली गिरवी रख कर
पहाड़ों का अश्लील इतिहास कैसे लिखूं
व्यक्तिगत नुकसान पर भी
मैं ने कलम बिकने नहीं दी

बॉर्डर पर रुके
साइबेरियायी परिंदों का क्या हो
जो दिल्ली फतह के साथ
कन्याकुमारी पहुंचना चाहते हैं
आंगन की गोरैया पहले ही विलुप्त हो चुकी है
बस आधिकारिक घोषणा बाकी है

गिलहरियां भोली हैं
स्वार्थी तत्वों ने बस इन्हें बहका रक्खा है
आप अपना धैर्य बनाए रखें

  • राम प्रसाद यादव

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