Home कविताएं समझाना

समझाना

0 second read
0
0
187

समझाना

मैं समझा नहीं पाया
मेरे द्वारा लाये गए क़ानून जनहित में हैं
जनता नहीं मानी
भड़का दिया विरोधियों ने जनता को.

जनता को सेना की बूटें नहीं समझा पाईं
रास्ते में तनी सीमेंटेड कीलें भी नहीं, मौंतें भी नहीं.
तमाम आतंक ने नहीं समझा पाया जनता को

हमारे दल जनता में गए उसे समझाने
लेकिन जनता ने उन्हें भगा दिया
हमारे लोगों ने समझ लिया
जनता समझ गई है कि वो नहीं समझेगी
हमारा समझाना.

हम ने जनता को विरोधियों के फैलाये भ्रम से
बहुत निकालना चाहा, पर विफल रहा.
हमने बड़े बड़े गोडाम, बड़े बड़े डिटेंशन सेंटर
बना के रख लिये थे
लेकिन जनता ने वहाँ पनाह लेना नहीं चाहा.

हमने फ़िलहाल जनता के भ्रम के सामने हार मान ली
वापस ले लिये वो क़ानून
जिसे वो काले कहे पडी है.

जनता मेरे पेंदे के नीचे की धधकती आग हो गई है
हमारा जनता को समझाना जारी है…

  • वासुकि प्रसाद ‘उन्मत्त’

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • शातिर हत्यारे

    हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…
  • प्रहसन

    प्रहसन देख कर लौटते हुए सभी खुश थे किसी ने राजा में विदूषक देखा था किसी ने विदूषक में हत्य…
  • पार्वती योनि

    ऐसा क्या किया था शिव तुमने ? रची थी कौन-सी लीला ? ? ? जो इतना विख्यात हो गया तुम्हारा लिंग…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…