लाल तंबू के नीचे
जब होश आया
तो मैंने अपने आजू बाज़ू
दोनों बिस्तर में पड़ी
दो लाशों को देखा
दोनों मेरे सहोदर भाई थे
हम तीनों सहोदर भाई
अपने अपने राजा के लिए लड़ते थे
राजा ने हमें समझाया था कि
उनके हरम को गर्म रखने के लिए
बीच बीच में
सैनिकों के गर्म खून की
ज़रूरत पड़ती है
और राजा ही देश है
और राजा की रक्षा ही
देश की सेवा है
आज मेरा डिस्चार्ज है
मेरे दोनों बाजू कट गए हैं
अब मैं युद्ध के काबिल नहीं रहा
वे मुझे गाड़ी में बैठा कर
अर्द्ध शहीद के सम्मान के साथ
वापस ले जाएंंगे मेरे गांंव
मैं लौटूंंगा उन्हीं ख़ूबसूरत वादियों से
जिनके फूल और पत्तों को
पेड़ पौधों को
घुमावदार, आसमान में गुम होती
घाटियों को
मैंने बेइंतहा प्यार किया था
सरहद पर आते समय
सोचता हूंं
घर पर मांं को क्या जवाब दूंंगा
जब उसकी खामोश आंंखों में सवाल होगा
‘मैंने तो तुम्हारे साथ दो और बच्चे दिये थे
कहांं छोड़ आये उनको !’
वह जानती है जवाब
इसलिए, तीन इच्छाओं वाली बुढ़िया सा
इंतज़ार करेगी अपने बेटों के कफ़न का
या
समुद्र की तरफ़ खुलती हुई
घर के दरवाज़े पर रतजगा करती हुई
समुद्र से कहेगी
हे समुद्र
मैंने तो सुना था कि
तुम जो कुछ भी लेते हो
लौटा देते हो
कुछ नहीं रखते अपने पास
फिर मेरे बेटों को लौटा क्यों नहीं देते
मैं
बाजू वाले कमरे की खिड़की से
अंधेरे में देखूंंगा
समुद्र की छाती पर एक सुनामी उठते हुए
ऐसी सुनामी तो पूर्णिमा में भी
कभी नहीं आई !!!
- सुब्रतो चटर्जी
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