एक समय किसी महान दार्शनिक ने कहा था, कि जैसे जैसे रुपया गिरता है, वैसे वैसे प्रधानमंत्री की गरिमा गिरती है. तो सवाल यह है कि किस पीएम ने रुपये की गरिमा को कितना गिराया ?? आओ इसका पता लगायें.
तो जानिए कि अंग्रेज इस देश में रुपये की वैल्यु डॉलर के मुकाबले 3.31 रुपये को छोड़ गए थे. आज अगर वह 87 रुपये पर आ गिरा है, तो इसमें लगभग 82 रुपये की गिरावट आई, कुल 77 सालो में..कुल 82 रुपये की इस गिरावट को आप 100% मान लीजिए और गिनना शुरू कीजिए कि किस पीएम की कितनी हिस्सेदारी है.
बात नेहरू से ही शुरू होगी. तो नेहरू 17 साल सत्ता में रहे, और डॉलर को 4.76 रुपये पर छोड़ा. गिरावट 1.45 रुपये की, याने तमाम गिरावट का 2% नेहरू के नाम. शास्त्री ने यह दर बरकरार रखी. शून्य गिरावट के साथ उन्हें इस दौड़ से डिस्क्वालिफाई किया जाता है.
इंदिरा ने 1967 में सत्ता ली और 1977 में सत्ता से जब बाहर हुई तो आंकड़ा 8.74 पर छोड़ा. यह तमाम गिरावट का 5% होता है, जिसमें 10 साल लगे.
इसके बाद देसाई आये, दर लगभग बरकरार रही. असल में वे अकेले पीएम हैं, जिनके 3 साल में रुपया 88 पैसे मजबूत ही हुआ. फिर इंदिरा ने सन 1980 में दोबारा कमान सम्हाली, और साढ़े चार साल बाद, राजीव जब पीएम हुए, डॉलर 12 रुपये पार कर चुका था. कुल गिरावट का 6%. इस तरह दोनों कार्यकाल में कोई 16 साल मिलाकर, इंदिरा कुल गिरावट के 11% की जिम्मेदार हैं.
1989 में राजीव ने सत्ता से बाहर हुए, तब तक डॉलर 17 रुपये पार कर चुका था. वे भी लगभग 6% गिरावट के जिम्मेदार हुए. वीपी सिंह ने मात्र एक साल में ही, डॉलर को 23 रुपये के पास पहुंचाकर, गरिमा की कुल गिरावट में 6% की हिस्सेदारी ले पाने में सफल रहे.
नरसिंहराव ने रुपया 23 से सम्हाला, और लथेरते हुए 36 पार करवा दिया. करीब 14 रुपये की गिरावट के साथ, वे 5 ही साल में 17% हिस्सेदार हुए. फिर आये अटल.
हीरामंडी के पथिक ने 6 साल में रुपया 45 पार पहुंचाया, और वे कुल गिरौती में 9 रुपये याने करीब 11% का चोंगा पहन कर शाइन हो गए. असल में 2002 में तो वे रुपये को डॉलर के मुकाबले लगभग 49 रुपये तक गिरा चुके थे, मगर फिर जसवंत सिंह जैसे काबिल इंसान को वित्त मंत्रालय देकर, स्थिति को सम्हाल लिया. यह प्रशंसा की बात है.
बहरहाल, मनमोहन ने 2004 में रुपया 45 से सम्हाला, और 2005 में बेहतर करके 44 पर ले गए. 2007 में रुपया मजबूत होकर 41 रुपये तक जा चुका था.
2009 में UPA-2 आते समय पर वे 43 के आसपास बैठे थे. दरअसल 2008 के ग्लोबल क्राइसिस में जब दुनिया की करेंसीज गिर रही थी, हमारा रुपया भी महज 48 तक उतरा. फिर 2011 तक मजबूत होकर 46 पर लौट गया.
तब आता है 2012-14 का डिज़ास्टर पीरियड. इस 2 वर्ष में हर मोर्चे पर मनमोहन सिंह की सरकार असफल रही. इसी दो साल में रुपया 46 से 62 रुपये तक पहुंच गया. तो, ओवरऑल किस्सा ये कि 45 से रुपया सम्हालने के बाद, मनमोहन सिंह ने 62 पर छोड़ा. कोई सत्रह रुपये, याने कुल गिरावट के 20% हिस्सेदारी के साथ, वे गिरावट के शहंशाह के रूप में पहचाने जाने वाले थे.
लेकिन पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त. ढेंटेनेंनन !!!
और फिर महान अर्थशास्त्री, वैज्ञानिक, दार्शनिक, मौद्रिक नीति के तूफानी स्पेशलिस्ट, अंतराष्ट्रीय मामलों के बचपन से विशेषज्ञ…प्रखर वक्ता और लोकप्रिय यशस्वी नेता माननीय नरेंद्र जी मोदी ने 62 रुपये से करेंसी की कमान सम्हाली. फिर तो रुपये ने कभी पीछे मुड़कर न देखा. विद्युत की गति से 65 पार, 70 पार, 75 पार, 80 पार, 85 पार…
इकॉनमी का बाजा बजा, और चहुं ओर मधुर संगीत गूंजने लगा. लगभग 24.30 रुपये गिरकर आज वह 86.59 पर दुबका हुआ है. याने 10 साल में मोदी जी ने अकेले ही, टोटल गरिमा गिरावट की 30% हिस्सेदारी ले ली है. 50% की तरफ तेजी से अग्रसर हैं.
क्योकि इसके पुरस्कार स्वरूप, नए कार्यकाल में उनके पास साढ़े चार साल और हैं. रेस अभी जारी है. ऐसे में रुपया डॉलर के मुकाबले 120 पर न गया, तो लानत है भारत की जनता पर !
और गिरावट का शहंशाह बनने की रेस में वे मनमोहन सिंह को बड़े अंतर से पीछे कर चुके हैं. पार्टीबाजी के नजरिये से अगर देखें तो भाजपा के अटल और मोदी दौर में कुल 32 रुपये की गिरावट रही, समय लगा 6+10 = 16 साल. उधर खांग्रेसियो के 6 प्रधानमंत्री हुए, और करीब 46 रुपये की गिरावट आई. समय लगा 50 साल.
आप कह सकते हैं कि भाजपा के यशस्वी प्रधानमंत्रियों के दौर में गरिमा गिरने की दर, कांग्रेस के बदनाम प्रधानमंत्रियों की तुलना में, लगभग दुगने से ज्यादा रही है. क्योंकि जैसे जैसे रुपया गिरता है…
- मनीष सिंह
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