यह लेख ‘आरएसएस – देश का सबसे बड़ा आतंकवादी संगठन’ नामक पुस्तक का एक हिस्सा है. यह पुस्तक मूल रुप में 2015 में ‘मराठी भाषा में ‘देश बचाव अगरी, पुणे द्वारा प्रकाशित किया गया था, जिसका हिन्दी अनुवाद 2016 में प्रकाशित हुआ है. इस पुस्तक के लेखक एस. एम. मुशरिफ, महाराष्ट्र पुलिस में आईजी पद पर रहे हैं. हिन्दी में इस पुस्तक को प्रकाशित करते हुए जस्टिस बी. जी. कोलसे पाटिल इसकी भूमिका लिखते हैं – सम्पादक
इस पुस्तिका के लेखक एस. एम. मुशरिफ़ ने बहुत गहराई के साथ अध्ययन करके अत्यंत संक्षिप्त मगर व्यापक शब्दों में एक बेहद ख़तरनाक, मक्कार और आतंकवादी संगठन का असली चेहरा देश के सामने पेश किया है. आरएसएस की अनुमति के बिना भारत में पक्षी भी पर नहीं मार सकता. बेहद शक्तिशाली और प्रभावशाली पकड़ रखने वाला यह संगठन देश के सभी प्रमुख संस्थानों पर क़ब्ज़ा जमाए बैठा है.
इसके परिणामस्वरूप देश के हर व्यवसाय में इसका दख़ल दिन रात जारी रहता है. हमारा वैश्विक अध्ययन हमें यह बताता है कि उसकी अनुमति के बिना देश में कोई भी बड़ी लेकिन बुरी घटना घटित नहीं हो सकती. हमारी यह सभी बातें पाठकों को शायद अतिशयोक्ति लगें लेकिन इस तथ्य को स्वीकार आरएसएस वाले भी निजी तौर पर करते हैं और हम जैसों को उनकी राह का रोड़ा नहीं बनने की अधिसूचना और ढकी-छुपी धमकी भी देते हैं.
आख़िर सबाल यह है कि हम इस संगठन की शक्ति का पूरा अनुमान होने के बावजूद यह क़दम उठाकर आत्महत्या तो नहीं कर रहे हैं ? लेकिन इस प्यारे वतन के सदियों के इतिहास का बारीकी से अध्ययन करें तो पता चलता है कि हमारे कई सुधारकों को इसी कठिन मार्ग से गुज़रना पड़ा है.
दरअसल आरएसएस की स्थापना तो केवल स्वतंत्रता संघर्ष का विरोध करने के लिए की गयी थी. वर्तमान में आरएसएस और इससे पहले आर्यभट्ट ब्राह्मणवादियों ने बहुसंख्यक समुदाय को लूटने पर ही संतोष नहीं किया बल्कि ऐसी प्रणाली स्थापित की है कि देश में अराजकता का यह दौर-दौरा हमेशा बरक़रार रहे. इसीलिए हम इस पुस्तिका को पूरी ज़िम्मेदारी के साथ और जान हथेली पर रखकर पाठकों के हवाले कर रहे हैं.
अध्याय – 1
करकरे के आने से संघ का पर्दाफाश हो गया
आर एस एस, यह ब्राह्मणवादियों का, ब्राह्मणवादियों के हित के लिए और ब्राह्मणवादियों द्वारा चलाया जानेवाला एक साम्प्रदायिक संगठन है. ब्राह्मणवादियों का झूठा प्रचार है कि यह सांस्कृतिक, सामाजिक, राष्ट्रवादी की संगठन है. बहुजन और दलित युवाओं को संघ के साथ जोड़ने के लिए यह झूठा प्रचार किया जाता है. पिछले कई सालों से चली आ रही विषमवादी जाति-व्यवस्था को बनाए रखना और सभी जातियों पर ब्राह्मणवादी वर्चस्व बनाए रखना यही इस संगठन का मुख्य उद्देश्य है. इसके लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं और परिस्थिति के अनुसार अलग-अलग षड्यंत्रों का उपयोग करते हैं.
पूर्वनियोजित हिंदू-मुस्लिम दंगे करवाना ब्राह्मणवादियों का 20वीं सदी का सबसे बडा षड्यंत्र था. आज भी वे उसका उपयोग करते रहते हैं. लेकिन 21वीं सदी में आरएसएस ने अपने कुछ कार्यों में बदलाव किया है. हिंदू-मुस्लिम दंगे करवाने के अलावा मुस्लिम आतंकवाद का डर लोगों के दिलों-दिमाग में भर देने का काम आरएसएस और अन्य ब्राह्मणवादी संगठन कर रहे हैं. इस कार्य में गोपनीय एजेंसियां भी इन ब्राह्मणवादियों को सहयोग दे रही हैं. इसके अलावा अपने उद्देश्य को पूर्णतः: की ओर ले जाने के लिए कट्टरवादी ब्राह्मणवादियों ने अभिनव भारत” के नाम से और एक संगठन बनाया है.
21वीं सदी की शुरुआत में, विशेषकर 2002 से 2008 के अन्तराल में देश में कई जगहों पर जो बड़े-बड़े बम धमाके हुए, वे सारे आरएसएस के कृत्य हैं. सच कहें तो ऐसे बम धमाके होने के बाद उसकी जांच की एक परंपरा ही बन गई थी. जैसे ही कोई घटना हुई, आई बी (Inteligence Bureau) उसी दिन किसी मुस्लिम संगठन थे को दोष देकर उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करती थी। अगले 2-3 दिनों में देश के अलग-अलग स्थानों से मुस्लिम युवाओं को गिरफ्तार किया जाता था और मीडिया इन ख़बरों को बड़े ज़ोर-शोर से प्रकाशित करती थी. इसके बाद टीवी पर प्राइम टाइम चर्चा-सत्र, समाचार पत्रों में लेख-आलेख आदि में यह एक चर्चा का विषय बना रहता था. उस घटना को इससे पहले कि आप लोग भूलते तब तक और एक नई घटना हो जाती. उसकी भी इसी प्रकार जांच की जाती और फिर मीडिया में नया विषय बना रहता. पिछले 5-6 सालों से इसी प्रकार इस देश में चल रहा था.
इन कार्यकलापों में थोड़ी-सी रुकावट उस समय आयी थी, जब 2006 में नांदेड़ बम धमाका हुआ. आरएसएस व बजरंग दल के आतंकी जब बम बना रहे थे उसी समय धमाका हुआ और घटना में 2 की मौत हुई और 4 घायल हो गए. लेकिन मीडिया ने इस घटना का ज़्यादा प्रसारण नहीं किया, परिणामतः लोग उसे जल्दी ही भूल गये. कुछ समय पश्चात् फिर से पहले जैसे बड़े बम धमाके होने शुरू हुए. साथ ही शुरू हुआ इन घटनाओं का आरोप मुस्लिम संगठनों पर लगाना एवं एटीएस जैसी राज्य स्तरीय पुलिस एजेंसियों द्वारा मुस्लिम युवाओं को गिरफ़्तार करना. मीडिया ने भी पहले की तरह इन्हीं ख़बरों को अधिक प्रकाशित करना शुरू किया. इस तरह मुस्लिम आतंकवाद का झूठा माहौल फैलाने में आरएसएस धीरे-धीरे कामयाब होने लगा.
लेकिन हेमंत करकरे, इस पुलिस अधिकारी ने आरएसएस की सारी योजनाओं पर पानी फेर दिया. सितंबर 2008 में मालेगांव में हुए बम धमाके की जांच करते समय उन्हें ऐसे कुछ सुबूत मिले, जिससे स्पष्ट हुआ कि सिर्फ मालेगांव 2008 ही नहीं बल्कि इसके पूर्व जो भी बम धमाके हुए थे, उनमें से ज़्यादातर धमाकों के लिए आरएसएस, अभिनव भारत और उनसे जुड़े अन्य ब्राह्मणवादी संगठन जिम्मेदार हैं. साथ ही, कुछ घटनाओं में बम रखते समय या तैयार करते समय धमाके हुए और उनमें भी आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों के आतंकवादी बेनकाब हुए. मेरी जानकारी के अनुसार वर्तमान में संघ परिवार के ख़िलाफ लगभग 18 मामले लंबित है. उसमें से 14 सिर्फ आरएसएस के ख़िलाफ हैं और भी क॒छ बाकी घटनाओं की पुनः जांच इसमें बढ़ोतरी हो सकती है.
स्पष्ट है कि पिछले 90 साल से जो संगठन कथित रूप से देश में सामाजिक, सांस्कृतिक, देशप्रेम की भावना जगाने का कार्य कर रहा है, वह हकीकत में देश में आतंक फैलानेवाला एक आंतकवादी संगठन है और वह एक देशव्यापी देशद्रोही साजिश का सूत्रसंचालन कर रहा है.
अध्याय 2
मालेगांव 2008 बम धमाका : आतंकवादी बम धमाके की पहली सच्ची जांच
29 सितंबर 2008 को मालेगांव के भिकू चौक में बड़ा धमाका हुआ, जिसमें 6 लोगों की घटनास्थल पर मौत हो गई और 100 से अधिक लोग घायल हुए. हमेशा की तरह आईबी इस खुफिया एजेंसी ने ‘सिमी’, इंडियन मुजाहिदीन, हुजी’ जैसी मुस्लिम संगठनों पर शक किया और इसे मीडिया ने ख़बर बनाकर लोगों के सामने पेश किया. लेकिन तीन माह पूर्व ही महाराष्ट्र एसटीएस का पदभार ग्रहण किए हेमंत करकरे ने सिर्फ शक की बुनियाद पर किसी को गिरफ़्तार करना उचित न समझा. उन्होंने किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह में न रहते हुए आपराधिक कानून व पुलिस नियम (Manual)) के तहत जांच करना शुरू किया.
हेमंत करकरे ने सब से पहले घटनास्थल पर ध्यान केन्द्रित किया. वहां पर उन्हें एक मोटर बाइक मिली. उस पर लदी हुई आरडीएक्स जैसी ख़तरनाक विस्फोटक सामग्री की सहायता से घटना करवाने की बात सामने आई. जब इस बाइक के मालिक का पता लगाना शुरू हुआ तो पता चला कि यह बाइक साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की है. वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP), अभिनव भारत, विहिप की दुर्गा वाहिनी आदि संगठनों से जुड़ी थी. उन्हें तत्काल गिरफ्तार किया गया और उनसे कड़ी पूछताछ की गयी, जिसमें दो नाम सामने आए, एक शामलाल साहू और दूसरा शिवनारायण कालसंगरा. इन दोनों को भी पुलिस ने हिरासत में ले लिया. ये दोनों आरएसएस और भाजपा से जुड़े हुए थे.
इन तीनों से पुलिस ने कड़ी पूछताछ करने पर घटना में शामिल ले. कर्नल प्रसाद पुरोहित, मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय, जम्बू स्थित शारदा पीठ के महंत दयानंद पांडे, समीर कुलकर्णी आदि के नाम सामने आए. घटना में शामिल कुल 11 लोगों को पुलिस हिरासत में लिया गया और इन सभी से कड़ी पूछताछ की गई.
इस दौरान हेमंत करकरे ने घटना में शामिल ले. कर्नल प्रसाद पुरोहित के पास से एक और दयानंद पांडे के पास से दो लैपटॉप जब्त किए. इस लैपटॉप में जो जानकारी थी वह एक तरह से ‘हिंदू राष्ट्र’ की बल्यू प्रिंट ही थी. लैपटॉप में ‘अभिनव भारत’ संगठन की जानकारी व उनकी सभी मीटिंगें के ऑडियो और वीडियो भी थे, जिससे निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती थी –
- 2002-2003 के दौरान कट्टरवादी ब्राह्मणवादियों ने ‘अभिनव भारत’ नाम के एक संगठन की स्थापना की थी.
- उनका मुख्य उद्देश्य भारतीय लोकतंत्र को तोड़ डालना, लोकतंत्र के अनुसार स्थापित वर्तमान सरकार को निरस्त करना और वहां पर मनुस्मृति और वेदों पर आधारित आर्यावर्त हिंदू राष्ट्र का निर्माण करना था.
- वे इस कार्य में नेपाल व इस्राईल जैसे देशों की व नागा उग्रवादियों की मदद ले रहे थे.
- देश में अराजकता फैलाने के दृष्टिकोण से वे देश में बम धमाके करवाते थे और उसका आरोप मुसलमानों पर लगाते थे.
- आरएसएस व भाजपा इन दोनों के बीच गहरे संबंध थे. असल में ‘अभिनव भारत’ यह आरएसएस के कट्टर ब्राह्मणवादियों का ही एक संगठन था.
(अभिनव भारत की फरीदाबाद में जनवरी 2008 में हुई मीटिंग की वीडियो रिकार्डिंग का शब्दों में अनुवाद करके मालेगांव 2008 की चार्जशीट के साथ जोड़ दिया गया है. उसमें से कुछ महत्वपूर्ण बातें परिशिष्ट ‘अ’ में दी गई हैं.)
इस घटना की जांच हेमंत करकरे ने लगभग 26 नवंबर 2008 के पहले ही (जब वे ज़िंदा थे) पूर्ण की थी, लेकिन अभी तक उसकी चार्जशीट कोर्ट में नहीं भेजी थी. उनकी मृत्यु के बाद जनवरी 2009 में चार्जशीट भेजी गई. गिरफ़्तार किए गए 11 आतंकी एवं फरार तीन आतंकी ऐसे कुल 14 आरोपी घटना में शामिल थे, उनके नाम इस प्रकार है –
- साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर
- शामलाल साहू
- शिवनारायण कालसंगरा
- ले. कर्नल प्रसाद पुरोहित
- मेजर (सेवानिवृत) रमेश उपाध्याय
- महंत दयानंद पांडे / सुधाकर धर द्विवेदी
- समीर कुलकर्णी
- अजय राहीरकर
- राकेश धावड़े
- जगदीश महात्रे
- सुधाकर चतुर्वेदी
- रामजी कालसंगरा (फरार)
- संदीप डांगे (फरार)
- प्रवीण मुतालिक (फरार) (बाद में गिरफ्तार किया गया |)
ये सभी आतंकी अभिनव भारत के सदस्य थे और आर एस एस से संबंधित थे.
मालेगांव 2008 की जांच में ले. कर्नल पुरोहित व साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की नार्को टेस्ट व ब्रेन मैंपींग टेस्ट हआ था. उससे स्पष्ट हुआ था कि मालेगांव घटना के पहले जो धमाके हुए थे, जैसे- समझौता एक्सप्रेस, मालेगांव 2006, अजमेर शरीफ, मक्का मस्जिद (हैदराबाद) ये सभी धमाके अभिनव भारत के आतंकियों ने अन्य कुछ संगठनों की मदद से किये थे. लेकिन इन घटनाओं की पुन: जांच कई साल तक नहीं की गई.
हेमंत करकरे ने जिन तीन लैपटॉप को जब्त किया था, उनमें से एक लैपटॉप में अभिनव भारत संगठन की पूरी जानकारी थी. दूसरे दो लैपटॉप में अभिनव भारत की देशभर में हुई मीटिंगों के 48 आडियो व वीडियो क्लिप्स थे. हेमंत करकरे जब तक ज़िंदा थे तब तक उन्होंने 3 वीडियो और 2 ऑडियो क्लिप्स को शब्दों में अनूदित करके उनकी जांच की थी. बाकी 43 क्लिप्स को शब्दों में अनूदित करने और उनसे संबंधित घटनाओं की जांच करने का काम अधूरा था.
हेमंत करकरे की हत्या के दो माह बाद जनवरी 2009 में भेजी गई चार्ज शीट की पृष्ठ संख्या 69 में लिखा है कि ‘ज़ब्त किए गए लैपटॉप के बाकी क्लिप्स, कुछ मोबाइल फोन की रेकॉर्ड की गयी बातचीत, पेन ड्राइव में रेकॉर्ड की गयी जानकारी एवं अन्य दस्तावेज़ आदि फोरेंसिक साइंस लेबॉरेटरी से प्राप्त हुई हैं और उनकी जांच करना ज़रूरी है. अन्य कुछ ऑडियो व वीडियो को शब्दों में अनूदित करने का कार्य जारी है.’ (चार्जशीट की पृष्ठ संख्या 69 की एक प्रतिलिपि परिशिष्ट ‘ब’ में लगाई गई है.) चार्जशीट भेजकर अब 7 साल हो गए, लेकिन अभी तक आगे की जांच नहीं की गई. इससे स्पष्ट होता है कि सरकार ब्राह्मणवादियों के कारनामों को वहीं पर दबाकर रखना चाहती है.
मोडासा (गुजरात) में एक धमाका हुआ था, उसमें एक की मौत हुई थी और कई घायल हुए थे. मृतकों की संख्या छोड़ दें तो मालेगांव बम धमाका और मोडासा धमाका ये दोनों घटनाएं समान दिखाई देती थी. उदाहरणार्थ- दोनों धमाके एक ही दिन और लगभग एक ही समय पर हुए थे. दोनों धमाकों में आरडीएक्स का उपयोग किया गया था. बम रखने के लिए दोनों घटनाओं में दो पहिया वाहन (बाइक) का उपयोग किया गया था लेकिन जिस तरह हेमंत करकरे के नेतृत्व में महाराष्ट्र एटीएस ने मालेगांव बम धमाके की कड़ी जांच की उस तरह मोडासा घटना की जांच नहीं की गई. आगे चलकर एनआईए को जांच की जिम्मेदारी दी गई लेकिन अभी तक जांच पूरी नहीं हुई.
अध्याय 3 : पुन: जांच से पलटा पांसा
अजमेर शरीफ व मक्का मस्जिद (हैदराबाद) बम धमाका
अजमेर शरीफ दरगाह (राजस्थान) में 11 अक्तूबर 2007 को बम धमाका हुआ था, उसमें 2 लोगों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी और 15 लोग घायल हुए थे. उससे दो माह पूर्व मतलब 18 अगस्त 2007 को मक्का मस्जिद (हैदराबाद) में भी इसी तरह का धमाका हुआ था, जिसमें 9 लोगों को मौत हुई थी और कई लोग घायल हुए थे. इन दोनों बम धमाकों के बाद आईबी व केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शक जताया कि इन घटनाओं के पीछे लश्कर-ए-तोयबा, हुजी, जैशे मुहम्मद, सिमी आदि मुस्लिम संगठन हैं और किसी भी प्रकार की जांच या छानबीन न करते हुए मीडिया ने उसे ज़्यादा से ज़्यादा प्रसारित किया.
हकीकत में इन दोनों घटनाओं में जिन मोबाइल फोनों से बम डिटोनेट किए गए थे, उनके सिमकार्ड एक सप्ताह के अंदर ही स्थानीय पुलिस को मिले थे. बम धमाके की जांच में सिमकार्ड का मिलना पुलिस के लिए एक महत्वपूर्ण बात होती है, मानो घटना की पूरी पोल ही खुल गयी हो. लेकिन खुफिया एजेंसियों के दबाव के चलते दोनों मामलो में स्थानीय पुलिस ने जान-बूझकर इन सुबुतों को नज़रअंदाज़ किया और उनकी पूरी जांच नहीं की. बल्कि इन दोनों घटनाओं के पीछे मुस्लिम संगठन ही होने की बात को बढ़ावा देते रहे और मीडिया भी इस तरह की बेबुनियाद ख़बरों को प्रकाशित करती रही. इस तरह 2007 से 2010 तक तीन साल झूठे सुबुतों के आधार पर कई मुस्लिम युवाओं को पुलिस गिरफ़्तार करती रही.
लेकिन मालेगांव 2008 की जांच करते समय जब नवंबर 2008 में ले. कर्नल पुरोहित का नार्को (टेस्ट) किया गया, तब उन्होंने स्वीकार किया कि अजमेर शरीफ बम धमाके के लिए आरडीएक्स उन्होंने ही पहुंचाए थे. साध्वी प्रज्ञा सिंह व अजय राहीरकर ने भी यह बात स्वीकार की. इसके अलावा हेमंत करकरे ने जिन लैपटॉप को जब्त किया था, उनमें से एक में रेकॉर्ड किए हुए एक मीटिंग के अनूदित भाग से यह स्पष्ट होता है कि अभिनव भारत इस प्रकार के बम धमाकों में शामिल था.
उपर्युक्त सभी बातों से बम धमाके की पुनः जांच करने को लेकर सरकार पर जनता का दबाव बढ़ता गया, जिससे राजस्थान सरकार जनता के आगे झुक गई और उसने अजमेर शरीफ बम धमाके की पुनः जांच करने के लिए 2010 में विशेष जांच दल (एसआईटी) की स्थापना की. एसआईटी ने घटना की कड़ी जांच की, और इस घटना के पीछे आरएसएस, अभिनव भारत व जय वंदे मातरम् ये संगठन होने की बात सामने लाई. एसआईटी ने इन तीनों संगठनों के खिलाफ सुबूत एकत्रित किए और उनके खिलाफ चार्जशीट कोर्ट में भेज दी. एसआईटी की चार्जशीट में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि सभी आरोपी आरएसएस के सदस्य थे और उनमें से कुछ संगठन में महत्वपूर्ण पदों पर थे.
आगे एनआईए ने 2011 को अजमेर शरीफ बम धमाके की पुनः जांच की. उन्होंने राजस्थान एसआईटी की ओर से की गई जांच पर भी सहमति दर्शायी और उससे मिलती-जुलती चार्जशीट तैयार करके कोर्ट में भेज दी. साथ ही एनआईए ने मक्का मस्जिद (हैदराबाद) घटना की- भी जांच की. इसमें भी आरएसएस, अभिनव भारत व जय वंदे मातेरम् जैसे संगठनों ही के शामिल होने की बात सामने आई. इन दोनों घटनाओं के आरोपी मिलते-जुलते हैं. उनके नाम और वे आरएसएस और अन्य संगठन में कौन से पद पर कार्यरत थे, उसकी जानकारी निम्नलिखित है –
- सुनील जोशी : आरएसएस के महू (मध्यप्रदेश) के ज़िला प्रचारक
- संदीप डांगे : शाजापुर (मध्यप्रदेश) जिले के आरएसएस के पूर्व जिला प्रचारक (2005-2008)
- देवेंद्र गुप्ता : जामताड़ा (झारखंड) जिले के आरएसएस के जिला प्रचारक
- चन्द्रशेखर लेवे : शाजापुर (मध्यप्रदेश) जिले के आरएसएस के पूर्व जिला प्रचारक
- रामजी कालसंगरा : आरएसएस व अभिनव भारत के कट्टर कार्यकर्ता
- लोकेश शर्मा : जय वंदे मातरम् और आरएसएस कट्टर कार्यकर्ता के कट्टर
- शिवम धाकड़ : जय वंदे मातरम् और आरएसएस के कट्टर कार्यकर्ता
- समंदर : जय वंदे मातरम् और आरएसएस के कट्टर कार्यकर्ता
- प्रज्ञा सिंह ठाकुर : जय वंदे मातरम’ और ‘अभिनव भारत’ के बीच की कड़ी
- स्वामी असीमानंद : आरएसएस के वरिष्ठ नेता व मुख्य मार्गदर्शक
समझौता एक्सप्रेस बम धमाका 2007
भारत एवं पाकिस्तान के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने के उद्देश्य से चलाई जानेवाली समझौता एक्सप्रेस रेलगाड़ी में 19 फरवरी 2007 को धमाका हुआ. तब ट्रेन हरियाणा राज्य के पानीपत से गुज़र रही थी. उसमें 68 लोगों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई और कई घायल हुए. वैसे देखा जाए तो इस धमाके से जुड़े सुबूत एक महीने के अंदर यानी मार्च 2007 में ही सामने आये थे लेकिन आईबी के दबाव के चलते अगले चार साल तक घटना की जांच नहीं हो पाई. इस संबंध में अतिरिक्त जानकारी नीचे दी गई है –
मार्च 2007 में हरियाणा पुलिस को घटना के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण सुबूत मिले थे और वे अधिक जांच के लिए इंदौर (म.प्र.) गए थे लेकिन किसी कारणवश मध्य प्रदेश पुलिस ने उनका सहयोग करने से इनकार कर दिया. जिस कारण हरियाणा पुलिस वापस लौटी. उसके बाद नवंबर 2008 में मालेगांव 2008 घटना के आरोपी ले. कर्नल पुरोहित के नार्को टेस्ट करने के बाद उनके समझौता एक्सप्रेस में शामिल होने की बात सामने आई लेकिन आईबी ने विश्व में भारत की बदनामी हो जायेगी, यह कारण देकर महाराष्ट्र ए.टीएस को आगे जांच करने से रोक दिया.
हेमंत करकरे द्वारा की हुई मालेगांव 2008 धमाके की जांच में और उसी जांच के तहत की गई कुछ और धमाकों की जांच में आरएसएस, अभिनव भारत और अन्य ब्राह्मणवादी संघटनों के एक देशव्यापी, देशद्रोही साजिश में शामिल होने की बात सामने आयी. इसलिए समझौता एक्सप्रेस धमाके की जांच भी एक स्वतंत्र और निष्पक्ष पद एजेंसी द्वारा होने की मांग ने ज़ोर पकड़ा. इसी कारण 2010 में इस घटना की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को दी गई. जैसे कि पहले बताया गया है, हरियाणा पुलिस ने घटना से संबंधित कुछ पक्के सुबूत इकट्ठा किए थे. एनआईए ने उसी के आधार पर आगे जांच करना शुरू किया.
इसी दौरान अजमेर शरीफ व मक्का मस्जिद घटनाओं में गिरफ्तार आरोपी इसी दौरान आरोपी आरएसएस के वरिष्ठ नेता स्वामी असीमानंद ने कोर्ट के समक्ष दिसंबर 2010 को मक्का मस्जिद केस में व जनवरी 2011 में अजमेर शरीफ केस में अपना इकबालिया जवाब (Confession) दे दिया. उसमें उन्होंने इन दो धमाकों के अलावा मालेगांव 2006 व समझौता एक्सप्रेस 2007 के धमाके भी आरएसएस, अभिनव भारत व जय वंदे मातरम् इन ब्राह्मणवादी संगठनों ने ही किए थे, यह बात कोर्ट को बता दी. इसके अलावा उन्होंने स्वीकार किया कि –
- उनके (असीमानंद के) अभिनव भारत व जय वंदे मातरम् इन आतंकवादी संगठनों से संबंध थे.
- जिस मीटिंग में बम धमाके करने की योजना तैयार की गयी थी, उस मीटिंग में वे उपस्थित थे.
- उन्होंने आतंकवादी संगठनों को आर्थिक सहायता दी थी.
- उन्होंने बम धमाके करवानेवाले आरोपियों को आश्रय भी दिया था, आदि.
हरियाणा पुलिस ने इस घटना में एकत्रित किए सुबूत व स्वामी असीमानंद द्वारा दिया हुआ इकबालिया जवाब, इनके आधार पर एनआईए ने जांच पूरी की और आरएसएस, अभिनव भारत व जय वंदे मातरम् इन संगठनों के आरोपियों के ख़िलाफ 2011 में चार्जशीट कोर्ट को भेज दी. आरोपियों में –
- सुनील जोशी
- स्वामी असीमानंद
- संदीप डांगे
- लोकंश शर्मा
- रामजी कालसंगरा
- देवेंद्र गुप्ता आदि शामिल थे.
अध्याय 4
मालेगांव 2006 की पुन: जांच, बेगुनाह मुस्लिम पांच साल बाद रिहा
8 सितंबर 2006 को दोपहर 4.50 बजे मालेगांव में चार बम धमाके हुए थे. उसमें से हमीदिया मस्जिद व बड़ा कब्रिस्तान परिसर में तीन और मुशावरत चौक में एक धमाका हुआ था. शुरु में स्थानीय पुलिस सही दिशा में जांच कर रही थी. उन्हें घटना से संबंधित कुछ सुबूत भी मिले थे. नाशिक विभाग के आई.जी. ने जल्द ही आरोपी तक पहुंचने की संभावना दर्शायी थी लेकिन अगले दो दिनों में जांच में आईं.बी. का हस्तक्षेप होने लगा और आई.बी. की कठपुतली महाराष्ट्र एटीएस के तत्कालीन प्रमुख के. पी. रघुवंशी की सहायता से जांच की दिशा ही बदल दी गई. एटीएस ने बिना सुबूत के मुस्लिम युवाओं को हिरासत में लेना शुरू किया और कुछ ही दिनों में घटना की झूठी जांच करके 13 आरोपियों के ख़िलाफ चार्जशीट कोर्ट में भेज दी. उनमें से 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया और 4 फरार दिखाये गये. चार्जशीट में आरोपियों के ख़िलाफ जो सुबूत दिखाए गये थे, उनका विवरण नीचे दिया गया है –
- 4 आरोपियों की स्वीकृति (जिसका बाद में इनकार किया गया)
- जिनके नाम का उल्लेख नहीं, ऐसे दो गोपनीय गवाह के जवाब
- एक आरोपी के गरेज के मिट्टी का सैम्पल और धमाके के बाद बरामद हुए एक नकली बम के बारूद का सैंपल मिले-जुले होने की फोरेंसिक जांच रिपोर्ट
आरोपियों के ख़िलाफ़ बताए गए उपर्युक्त सुबूत हास्यास्पद एवं झूठी बुनियाद पर थे, जिसकी सच्चाई धीरे-धीरे सामने आने लगी. उदाहरणार्थ-
- एटीएस की चार्जशीट में बताया था कि मुहम्मद जाहिद अंसारी नाम के आरोपी ने दिनांक 8 सितंबर को मुशावरत चौक में बम रखा था, लेकिन एन.आई.ए. की जांच में खुलासा हुआ कि उस समय अंसारी मालेगांव से 700 किमी की दूरी पर स्थित ऐवतमहल ज़िले के फूलसंगवी गांव में नमाज़ अदा कर रहा था. उस गांव के सभी मुस्लिम लोगों ने इस बात पर शपथ-पत्र दिया है.
- एटीएस की चार्जशीट में मालेगांव बम धमाके के मुख्य सूत्रधार के रूप में जिस शब्बीर मसीहुल्लाह का उल्लेख किया गया था, मुंबई पुलिस ने पिछले दो माह से अन्य किसी मामले में गिरफ्तार किया था और वह तब से जेल में ही था.
- नुरुल हुदा, यह आरोपी बम धमाके के कई दिन पहले से पुलिस की कड़ी निगरानी में था.
इस प्रकार एटीएस के झूठे बयान धीरे-धीरे सामने आने लगे. एटीएस को झटका तब लगा जब अजमेर शरीफ व मक्का मस्जिद बम धमाके के मामले में गिरफ़्तार आरोपी स्वामी असीमानंद ने दिसंबर 2010 में स्वीकार किया कि मालेगांव बम धमाका भी वंदे मातरम, अभिनव भारत व आरएसएस के आतंकियों ने ही किया था और उसमें वे खुद भी शामिल थे. साथ ही उन्होंने बताया कि इस मामले में गिरफ्तार मुस्लिम युवा बेकुसूर हैं.
उसके बाद इस घटना की पुनः स्वतंत्र रूप से जांच करने की मांग होने लगी. आख़िरकार मार्च 2009 में केंद्र सरकार ने एक आदेश निकाला और जांच का कार्य राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एन.आई.ए.) को सौंप दिया. उस समय आरोपी जेल में ही थे, क्योंकि उनकी जमानत के सारे अपील-पत्र हाईकोर्ट ने भी नामंजूर किए थे. मामले की पुनः जांच एन.आई.ए. के द्वारा होने लगी. स्वामी असीमानंद के बयान के बाद जांच की दिशा ही बदल गई थी. एन.आई.ए. को उनकी जांच में गिरफ़्तार आयोपियों के ख़िलाफु कोई भी सुबूत नहीं मिले इसलिए 5 नवंबर 2011 को यानी पूरे पाँच साल के बाद इन आरोपियों को जमानत मिली.
आगे एन.आई.ए. की जांच में सामने आया कि गिरफ्तार किए हुए सभी मुस्लिम युवक बेकुसूर थे और आरएसएस, जय वंदे मातरम, व अभिनव भारत के निम्नलिखित आरोपियों ने मालेगांव 2006 के बम धमाके करवाए थे-
- सुनील जोशी
- संदीप डांगे
- लोकेश शर्मा
- रामचन्द्र कालसंगरा
- रमेश व्यंकट महालकर
- मनोहर नरवारिया
- राजेंद्र उर्फ लक्ष्मणराव महाराज
- धनसिंह शिवसिंह उर्फ राम लखनदास महाराज
उपर्युक्त आरोपियों में से 3, 6, 7 और 8 को गिरफ़्तार किया गया है, सुनील जोशी की हत्या हुई है और बाकी तीन फरार हैं.
जांच में स्पष्ट हुआ कि आरोपियों ने 2006 में बगली (मध्यप्रदेश) में ट्रेनिंग कैम्प लिया था और उसमें सुनील जोशी व लोकेश शर्मा ने बम बनाने की एवं अन्य ट्रेनिंग दी थी. उसके बाद जून, जुलाई 2006 में
इंदौर के एक मकान में वे एकत्रित हुए थे. उस मकान में रामचंद्र कालसंगरा और रमेश महालकर ने पहले से ही बम तैयार करने की सामग्री रखी थी. उस मकान में संदीप डांगे के मार्गदर्शन में बम बनाए गए. कुछ आरोपियों ने मालेगांव में जाकर बम रखने के लिए जगह निश्चित की और 8 सितंबर 2006 को मुस्लिम पर्व शबे-बरात के दिन रामचंद्र कालसंगरा, धनसिंह शिवसिंह व मनोहर नरवारिया ने पूर्व निश्चित स्थान पर बम रखे, जो पूर्व निर्धारित समय पर फट गये.
इस तरह जांच पूरी करके मई 2013 में एन.आई.ए. ने ऊपर निर्देशित आठ आरोपियों के ख़िलाफ चार्जशीट भेज दी. लेकिन अभी तक इन पहले गिरफ़्तार किए गए 9 बेकुसूर मुस्लिम युवाओं को बाहर निकालने के लिए कोर्ट में कोई भी रिपोर्ट नहीं भेजी गई है.
ब्राह्मणवादियों की साजिश के प्रति मीडिया की हमदर्दी
एन.आई.ए. की पुनःजांच में और एक महत्वपूर्ण घटना सामने आई. वह यह कि, बम धमाका होने के बाद उन्हीं के एक सदस्य लोकेश शर्मा ने पूर्व नियोजन के अनुसार दिल्ली के पहाड़गंज परिसर में स्थित एसटीडी बूथ से फोन करके मीडिया को बताया था कि इस घटना की जिम्मेदारी ‘धर्मसेना’ स्वीकार कर रही है. यह बात चार्जशीट में भी दर्ज है. लेकिन एक भी प्रसारण माध्यम ने उसका नोटिस नहीं लिया और किसी ने भी यह सनसनीखेज ख़बर प्रकाशित नहीं की. इससे स्पष्ट होता है कि मीडिया में बैठे हुए ब्राह्मणवादी किस तरह ब्राह्मणवादी संगठनों के आतंकियों की मदद करते हैं. इससे यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि आर एस एस और अभिनव भारत की जो देशव्यापी, देशद्रोही साजिश चल रही थी उसे मीडिया के ब्राह्मणवादियों को पूरी हमदर्दी हासिल थी.
अध्याय 5
अपने आप प्रकाश में आए बम धमाके
1 नांदेड बम धमाका
5 अप्रैल 2006 की रात नांदेड़ के पी.डब्लूडी के सेवानिवृत्त कार्यकारी अभियंता श्री.लक्ष्मण राजकोंडवार के घर पर आर एस एस व बजरंग दल के कुछ आतंकी आर डी एक्स का बम तैयार करने में लगे थे, उसी दौरान धमाका हुआ और इस हादसे में लक्ष्मण राजकोंडवार का लड़का नरेश राजकोंडवार और हिमांशु पानसे की मृत्यु हुई. वहीं योगेश देशपांडे, राहुल पांडे, मारुती वाघ व युवराज तुप्तेवार घायल हुए. ये सभी आर एस एस व बजरंग दल के सदस्य थे और अभिनव भारत के संपर्क में थे.
घायलों में से राहुल पांडे व अन्य एक आरोपी संजय चौधरी का नार्को टेस्ट लिया गया और उनके बयान दर्ज किए गए. इन दोनों आयोपियों ने अपने बयान में बताया कि वे दोनों आरएसएस व बजरंग दल के सदस्य है. दोनों ने स्वीकार किया कि परभणी (2003), जालना (2004), पूर्णा (2004) की मस्जिदों पर इन्ही के ग्रुप ने बम फेंके थे और जिस बम को बनाते समय ही धमाका हुआ वह शक्तिशाली बम वे ईद के दिन औरंगाबाद की सबसे बड़ी मस्जिद पर फेंकने वाले थे. उन्होंने यह भी बताया कि वे पुणे और अन्य जगहों पर आर एस एस और अभिनव भारत द्वारा आयोजित आतंकी ट्रेनिंग कैंप में शामिल थे.
उक्त बातों के आधार पर पुलिस ने जांच पूरी की और निम्न आरोपियों के ख़िलाफ़ आरोप पत्र भेज दिया –
- राहुल पांडे
- डॉ.उमेश देशपांडे
- संजय चौधरी
- हिमांशु पानसे (मृत)
- लक्ष्मण राजकॉंडवार
- रामदास मुलांगे
- नरेश राजकोंडवार (मृत)
- योगेश विदुलकर
- मारुती वाघ
- युवराज तुप्तेवार
- मिलिंद एकदाते
इनके अलावा भी अन्य व्यक्ति एवं संस्था के खिलाफ सुबूत थे, लेकिन उन पर कोई कारवाई नहीं की गई, जैसे कि, मुख्य. आरोपी हिमांशु पानसे जिससे सतत संपर्क में था वो मुंबई के बालाजी पाखरे, पुणे के आकांक्षा रेसार्ट’ में आयोजित कैंप में बम बनाने का प्रशिक्षण देनेवाले पुणे के दो प्रोफेसर शरद कांटे व प्रा. देव, और नागपुर में आयोजित कैप में निशानेबाजी का प्रशिक्षण देनेवाले आई बी के पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी (महाराष्ट्र के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी).
साथ ही ट्रेनिंग कैंप का आयोजन करके आतंकियों को शब्त्र एवं बम धनाकों का प्रशिक्षण देनेवाली संस्था नागपुर स्थित भोंसले मिलिटरी स्कूल पर भी कोई कारवाई नहीं की गई. बल्कि आज भी यह संस्था युवाओं के शारीरिक, मानसिक एवं सांस्कृतिक आदि विकास के लिए कैंप का आयोजन कर रही है और इसके लिए वेबसाइट पर भी विज्ञापन दे रही है. कहा जाता है कि ऐसे कैंप में ‘योग्य’ युवाओं का चयन किया जाता है. आतंकियों को प्रशिक्षण देनेवाली इन संस्थाओं को हमेशा के लिए बंद करना आवश्यक है.
2. परभणी (नवंबर 2003)
3. जालना (अगस्त 2004)
4. पूर्णा (अगस्त 2004)
नांदेड़ (2006) के बम धमाके की जांच में सामने आया कि नवंबर 2003 में परभणी की मुहम्मदिया मस्जिद, अगस्त 2004 में जालना की कादरिया मस्जिद और पूर्णा के मेराजुल उलूम मदरसा में
धमाके हुए थे वो सभी नांदेड़ घटना के आरोपियों ने ही किए हैं.
5. कानपुर (उ.प्र) अगस्त 2008
24 अगस्त 2008 को कानपुर (उ.प्र.) में बजरंग दल के राजीव मिश्रा और भूपिंदर सिंह ये दोनों आतंकी बम तैयार कर रहे थे, उसी दौरान धमाका हुआ जिसमें दोनों मारे गए. जांच में सामने आया कि दोनों मृत आरोपी किसी बड़ी घटना को अंजाम देने वाले थे. कानपुर विभाग के डी आई जी ने बताया कि राजीव मिश्रा के घर से बड़े पैमाने पर विस्फोटक सामग्री ज़ब्त की गई, जिसमें गुजरात एवं बेंगलोर जैसा बड़ा हादसा करने की क्षमता थी. पुलिस को विस्फोटक सामग्री के साथ-साथ एक डायरी और फैज़ाबाद की मुस्लिम बस्ती का नक्शा भी मिला.
इस मामले की जांच कर रहे उत्तर प्रदेश के स्पेशल टास्क फोर्स
(एस.टी.एफ.) को मृत आतंकियों के सेलफोन मिले. इन सेलफोन से हमला होने के पूर्व दो माह में कई बार मुंबई के दो सेल फोन पर
संपर्क किया गया था. जांच में खुलासा हुआ कि मुंबई के दो सेलफोन के लिए फर्जी नाम पर सिमकार्ड लिये गये थे. इन दोनों सेलफोन के
कॉल रिकार्ड की पूरी जांच करने के बाद पता चल सकता था कि
मुंबई के वे दो मुखिया कौन थे जिनसे कानपुर के दोनों आतंकियों की
बातचीत होती थी. लेकिन जान-बूझकर इस मामले की सूक्ष्म जांच नहीं की गई.
6. कुन्नूर (केरल) नवंबर 2008
10 नवंबर 2008 को केरल राज्य के कुन्नूर जिले में बम तैयार करते
समय धमाका हुआ और उसमें आरएसएस के दो आतंकियों की मौत
हो गयी. दूसरे दिन जब परिसर की जांच की गई तब घटना स्थल
से 200 मीटर की दूरी पर भाजपा के नेता श्री प्रकाशन के घर में 18 क्रूड बम बरामद किए गए. पुलिस ने इस पर चार्जशीट तैयार करके कोर्ट में भेजी है.
7. मडगांव (गोवा) अक्तूबर 2009
16 अक्तूबर 2009 को दीपावली की पूर्व संध्या पर गोवा के मडगांव में, जहां दीपावली मनाने के लिए हिंदू बड़ी संख्या में एकत्रित होते हैं, सनातन संस्था के आतंकियों ने बम धमाका करने की कोशिश की. लेकिन भारत के लिए सौभाग्य की बात रही कि जब बम रखा जा रहा था उसी समय धमाका हुआ और उसमें मलगोंडा पाटिल व योगेश नाईक इन दो सनातन संस्था के आतंकियों की मौत हो गई. घटना के बाद पुलिस ने दो बम निष्क्रिय कर दिये.
आतंकियों की मंशा थी कि योजना सफल होने पर उसका इल्जाम
मुसलमानों पर आए. घटनास्थल पर एक शॉपिंग बैग मिला, उस पर
उर्दू में ‘ख़ान मार्केट’ लिखा हुआ था. साथ ही बैग में मुस्लिम जिस प्रकार के इत्र का उपयोग करते हैं, उस प्रकार के इत्र की बोतल थी.अगर बम रखते समय धमाका न होते हुए षड़यंत्रकर्ताओं के समयानुसार होता तो, आई बी और ब्राह्मणवादी बर्चस्व के मीडिया
मुसलमानों की ओर इशारा करना शुरू कर देते. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
इस मामले की जांच गोवा पुलिस ने की, जिसमें सनातन संस्था और अभिनव भारत के आतंकी ले. कर्नल पुरोहित व प्रज्ञा सिंह ठाकुर
के बीच संबंध होने की बात सामने आई.
इस मामले की जांच के बाद पुलिस ने निम्न 11 आरोपियों के
ख़िलाफ चार्जशीट दर्ज की –
- मलगोंडा पाटिल (बम ले जाते समय मृत्यु)
- योगेश नाईक (बम ले जाते समय मृत्यु)
- विनय तलेकर
- विनायक पाटिल
- धनंजय केशव अष्टेकर
- दिलीप मडगांवकर
- प्रशांत अष्टेकर
- सारंग कुलकर्णी (फरार)
- जयप्रकाश / अन्ना (फरार)
- रुद्र पाटिल (फरार)
- प्रशांत जुवेकर
धनंजय अष्टेकर ने पुणे में 12 बम बनाए थे उसमें से 5 का मडगांव में उपयोग किया था. बाकी बम कहां उपयोग में लाए गए, इसकी जांच नहीं की गई.
अध्याय 6
अन्य बम /बम धमाके
1. लांबा खेरा (मोपाल, म.प्र.)
दिसंबर 2003 में भोपाल के लांबा खेरा परिसर में पुलिस ने दो शक्तिशाली बम बरामद किये. जांच में पता चला कि ‘तबलीगी जमाअत’ (मुसलमानों का एक धार्मिक संगठन) के इज्तिमा (सम्मेलन), जिसमें पांच लाख से अधिक मुस्लिम एकत्रित होने जा रहे थे, उस पर हमला करने के लिए इन दो बमों का उपयोग करने की योजना थी. इस योजना के मुख्य षड्यंत्रकर्ता रामनारायण कालसंगरा व सुनील जोशी थे. ये दोनों आरएसएस और अभिनव भारत से संबंधित थे. बाद में सुनील जोशी की हत्या हो गई और रामनारायण कालसंगरा करार हो गया. जांच में आरएसएस, अभिनव भारत और बजरंग दल से संबंधित अन्य व्यक्तियों से भी पूछताछ की गई. लेकिन आगे इस केस का क्या हुआ, इसका अभी तक पता नहीं चल पाया है.
2. तेनकाशी (तमिलनाडु)
24 जनवरी 2008 को तमिलनाडु के तिरुनेलवेदी जिले के तेनकाशी (दक्षिण काशी) के आरएसएस कार्यालय में बम धमाका हुआ था. शुरू नें मुस्लिम संगठन पर शक किया गया लेकिन बाद में तमिलनाडु पुलिस ने सूक्ष्म जांच की और इस मामले में संघ से जुड़े 8 लोगों को गिरफ़्तार किया. जांच में पता चला कि घटना की साजिश जुलाई 2007 से ही शुरू थी और उन्होंने इस प्रकार के 8 बम बनाए थे.
पुलिस ने बम तैयार करने की सामग्री और कुछ बम जब्त किए. आरोपियों ने स्वीकार किया कि जातीय भेदभाव फैलाने की दृष्टि से उन्होंने यह घटना करवाई थी. पुलिस ने जांच पूरी करके कोर्ट में चार्जशीट भेजी.
3) पनवेल
फरवरी 2008 को मुंबई से 50 किमी के दूरी पर स्थित पनवेल सिनेराज टाकीज़ में ‘जोधा अकबर” फिल्म लगी हुई थी. उसी समय बम धमाका हुआ. हेमंत करकरे के नेतृत्व में महाराष्ट्र एटीएस घटना की जांच की. इसमें पता चला कि टाकीज़ में बम सनातन संस्था के आतंकियों ने रखे थे. इससे संबंधित आरोपियों को गिरफ़्तार करके चार्जशीट कोर्ट में भेजी गई.
4) वाशी (नवी मुंबई)
31 मई 2008 में वाशी, नवी मुंबई स्थित एक सिनेमाघर में प्लास्टिक के बैग में कुछ बम मिले थे. समय पर पता चलने से बम डिटेक्शन डिस्पोज़ल स्कॉड की मदद से बम निष्क्रिय करने में पुलिस सफल हो गयी. जांच में पता चला कि बम सनातन संस्था के आतंकियों ने रखे थे. आरोपियों को गिरफ्तार करके फाइल कोर्ट में भेजी गई. इस केस में विक्रम भावे व रमेश गडकरी इन दो सनातन संस्था के प्रत्येक आतंकियों को 10 साल की सज़ा सुनाई गई.
5. ठाणे
4 जून 2008 को ठाणे के ‘गडकरी रंगायतन’ नाट्यगृह में ‘आम्ही ‘पाचपूते’ मराठी नाटक की शुरुआत होने से पहले बम धमाका हुआ. इसमें 7 लोग गंभीर रूप में घायत्र हो गए. एटीएस ने घटना की जांच की. इस दौरान स्पष्ट हुआ कि घटना के पीछे सनातन संस्था, हिंदू जागरण समिति आदि ब्राह्मणवादी संगठन था. इस केस में गिरफ़्तार किए कुछ आरोपियों के बयान पर पेण व सतारा से भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री ज़ब्त की गई. पुलिस ने जांच के बाद चार्जशीट कोर्ट में भेजी. कोर्ट ने इस केस में विक्रम भावे व रमेश गडकरी इन दोनों आरोपियों को दोषी करार देते हुए प्रत्येक को 10 साल की सज़ा सुनाई.
अध्याय 7
‘धमाके के बदले धमाका’ – झूठा प्रचार
2006 से 2011 इन पांच सालों में तीन महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं : पहली नांदेड़ (महाराष्ट्र) 2000 की जब आरएसएस व बजरंग दल के आतंकी बम तैयार करते समय धमाका होने से मारे गये; दूसरी जब हेमंत करकरे द्वारा मालेगांव 2008 धमाके की जांच के दौरान देशभर में बम धमाके करने में आरएसएस व ‘अभिनव भारत’ सक्रिय होने की बात प्रकाश में आई और तीसरी, अजेमर शरीफ, मक्का मस्जिद व समझौता एक्सप्रेस. इन धमाकों की पुनः जांच में पता चला कि आरएसएस के मुख्य पदाधिकारियों ने जय वंदे मातरम् व अभिनव भारत इन संगठनों की सहायता से ये धमाके करवाए थे. इन तीनों महत्वपूर्ण जानकारियों के बाद आरएसएस की छवि ख़तरे में पड़ सकती थी. इसलिए धीरे-घीरे ऐसी बात फैलायी गयी कि हिंदू मंदिरों पर जो कुछ हमले हुए थे, उनके प्र॒त्युत्तर में आरएसएस ने धमाके किए और आगे चलकर बड़े पैमाने पर इसी अफवाह का प्रचार किया गया. ऐसा करने के पीछे आरएसएस का मुख्य उद्देश्य स्वयं के आतंकी कार्यों पर पर्दा डालना और साथ में जनता की सहानुभूति बटोरना था. लेकिन उनका प्रचार किस तरह झूठा साबित हुआ, यह निम्नलिखित उदाहरणों से स्पष्टता है –
1) अक्षरधाम मंदिर बम धमाका 2002
अक्षरधाम मंदिर पर 2002 में हुए जिस हमले का आर एस एस ने खुद के द्वारा किये हुए बम धमाकों को उचित ठहराकर ज़्यादा से ज़्यादा लाभ लिया है, उसी अक्षरधाम मंदिर के मामले का सुप्रीम कोर्ट ने 16 मई 2011 को अंतिम निर्णय दिया, जिसमें 6 मुस्लिम आरोपियों को निर्दोष करार दिया गया. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ए. के. पटनायक व वी.गोपाल गौड़ा ने अपने फैसले में कहा कि ‘देश की एकता एवं सुरक्षा की दृष्टि से अत्यन्त संवेदनशील ऐसी इस घटना की जांच बहुत ग़लत ढंग से की गई है, यह हम भारी अंतःकरण से निवेदन करना चाहते हैं. कई बेकुसूर लोगों की लाशें बिछानेवाले आरोपियों को पकड़ने की बजाय पुलिस ने इस मामले में बेकसूर लोगों को फंसाया है और उन पर गंभीर आरोप भी लगाए हैं. (बोल्ड की हुई लाइन लेखक ने स्वयं बोल्ड की है).
सुप्रीम कोर्ट का फैसला अत्यंत स्पष्ट है. लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि इस घटना से जुड़े वास्तविक आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए क्या इस घटना की पुनः जांच होगी ?
मंदिरों में खुद ही बम धमाके करके उसका आरोप मुसलमानों पर लगाने की ब्राह्मणवादियों की चाल पुरानी ही है. नीचे दिये उदाहरणों से यह बात स्पष्ट होती है.
2. मीनाक्षी मंदिर बम धमाका 1996
मई 1996 में तमिलनाडु के मदुरई स्थित मीनाक्षी मंदिर में बम धमाका हुआ था. उसमें कुछ मुस्लिम युवाओं को गिरफ्तार करके उनके ख़िलाफ झूठे सुबूत एकत्रित किए गए थे. लेकिन आगे स्पष्ट हुआ कि यह घटना कट्टरवादी ब्राह्मणवादियों ने करवाई थी. फरवरी 2010 में मद्रास हाईकोर्ट ने इस घटना का निर्णय देते समय आदेश दिया कि, जिन पुलिस अधिकारियों ने झूठे सुबूतों के आधार पर मुस्लिम युवाओं को गिरफ़्तार किया था, उनके ख़िलाफ कार्रवाई की जाए.
अन्य कुछ ऐसे मामलों में भी गिरफ्तार किए गये मुस्लिम युवा कोर्ट में निर्दोष साबित हुए हैं.
3. सूरत बम धमाका, 1993
सन् 1993 में सूरत (गुजरात) में बम धमाका हुआ था. इसमें सुप्रीम कोर्ट ने 18 जुलाई, 2014 को अंतिम निर्णय देकर गिरफ्तार किए हुए 11 मुस्लिम युवाओं को निर्दोष करार दिया. न्यायाधीश जे. एस. ठाकुर की अध्यक्षता में बेंच ने निर्णय देते समय कहा कि ‘आरोपियों के ख़िलाफ कोई भी विश्वसनीय सुबूत नहीं है.’ दुर्भाग्य की बात है कि बिना किसी कुसूर के 11 मुस्लिम युवाओं को 20 साल जेल में सड़ना पड़ा.
4. कालूपुर (अहमदाबाद) बम धमाका 2006
फरवरी 2006 में कालूपुर (अहमदाबाद) रेलवे स्टेशन पर हुआ था. इसमें अफरोज़ पठान, बिलाल ख़तीब, मुस्तफा सैयद इन तीनों को गिरफ्तार किया गया था. मीडिया ने भी इस घटना को जोर-शोर से प्रकाशित किया था. लेकिन 8 साल बाद 2014 में पुलिस ने कोर्ट को रिपोर्ट दी कि इन आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं है, इसलिए इन्हें बेकुसूर करार दिया जाए. उसी के अनुसार 17 नवम्बर, 2014 को अहमदाबाद मेट्रोपोलिटन कोर्ट ने उन्हें दोषमुक्त करार दिया. लेकिन 8 सालों तक मानसिक एवं शारीरिक रूप से प्रताड़ित हुए या उन्हें प्रताड़ित किया गया, उसका क्या ?
5. मडगांव (गोवा) 2009 बम धमाका
अध्याय 5 में दी गई जानकारी से स्पष्ट होता है कि मडगांव (गोवा) में बम धमाका सनातन संस्था के आतंकियों ने किया था. अगर बम ले जाते समय धमाका नहीं हुआ होता और पूर्व नियोजित स्थान पर योजना के अनुसार धमाका होता तो कई हिन्दू लोग इस घटना में मारे जाते और इसका इल्जाम मुसलमानों पर लगाया जाता. इस तरह का इल्जाम लगाने की साजिश पहले से ही की गई थी, उदाहरणार्थ –
- दीपावली त्योहार की पूर्व संध्या को मडगांव में जिस स्थान पर हजारों की संख्या में हिन्दू एकत्रित होते हैं, वहां पर बम धमाका करवाने की योजना बनायी गई थी.
- घटना-स्थल के पास एक बैग मिला था, जिस पर उर्दू में ‘खान मार्केट’ लिखा गया था.
- उस बैग में मुस्लिम जिस तरह इत्र (सुगंधी पदार्थ) का उपयोग करते हैं, उसकी बोतलें रखी गई थी.
अगर षड्यंत्रकर्त्ताओं की योजना के अनुसार बम धमाका हुआ होता तो उसमें कई बेकसूर हिन्दू मारे जाते एवं कई घायल होते. पुलिस हमेशा की तरह मुसलमानों पर शक करके उन्हें गिरफ्तार करती और झूठे सबूतों के आधार पर फाइल बनाकर कोर्ट भेजती. इस पर मीडिया में भी बहुत सारी खबरें प्रकाशित होती. 15-20 साल के बाद कोर्ट इस घटना में क्या निर्णय देती यह मुद्दा यहां महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि बम धमाका और उसमें गिरफ्तार किए गये लोग, इतना ही आम जनता के स्मरण में रहता है. कोर्ट का अंतिम फैसला क्या हुआ इस पर अधिकतर लोग ध्यान नहीं देते.
इस तरह पुलिस, गोपनीय एजेंसी और मीडिया के ब्राह्मणवादी लोगों की मदद से खुद ही घटना को अंजाम देना और इसका इल्जाम मुसलमानों पर लगाना यह संघ की पुरानी परंपरा रही है. लेकिन अब धीरे-धीरे इस पर पर्दा उठने लगा है. जिस घटना का सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसला आ चुका है वह अक्षरधाम मंदिर का हमला और जिनका परिणाम अभी नहीं आया है, ऐसे अन्य मंदिरों की घटनाएं इनकी पूरी जांच करें तो उनके पीछे आर एस एस, अभिनव भारत, गोपनीय एजेंसियां, इन तीनों में से कोई एक या दो या तीनों के होने की संभावना है.
अध्याय – 8
संघ के आतंकी प्रशिक्षण केन्द्र
1. जिलेटिन विस्फोटक प्रशिक्षण केन्द्र, पुणे (मार्च 2000)
जिलेटिन का उपयोग करके विस्फोटक तैयार करने के प्रशिक्षण के लिए पुर्ण में बंजरंग दल की ओर से राज्य स्तर पर एक शिविर का आयोजन किया गया था. शिविर में 40-50 आतंकियों ने भाग लिया था. अप्रैल 2006 नांदेड़ में बम तैयार करते समय जिसकी मौत हो गयी, वह हिमांशु पानसे प्रशिक्षणार्थी आतंकियों का गुट प्रमुख था. बजरंग दल के अखिल भारतीय शारीरिक शिक्षा विभाग का प्रमुख मिलिंद परांडे ने शिविर का अयोजन किया था.
2. हथियार चलाने एवं बम बनाने का प्रशिक्षण, नागपुर (2001)
नागपुर स्थित भोंसले मिलिट्री स्कूल परिसर में आर एस एस व बजरंग दल की ओर से प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया था. 40 दिनों तक चले इस शिविर में महाराष्ट्र के 54 आतंकियों के साथ देश के 115 आतंकियों को प्रशिक्षण दिया गया। शिविर में हथियार चलाना, बम बनाना, उनसे धमाके करना आदि का प्रशिक्षण दिया गया.
3. आरडीएक्स के बम बनाने का प्रशिक्षण, आकांक्षा रिसोर्ट, पुणे (2003)
पुणे के समीप सिंहगढ़ रोड पर स्थित आकांक्षा रिसोर्ट में प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया था. शिविर में आरडीएक्स के बम बनाने एवं बम धमाका करवाने का प्रशिक्षण दिया गया. इसमें 58 युवकों ने प्रशिक्षण लिया. शिविर में ‘मिथुन चक्रवर्ती’ नाम से पहचान बतानेवाले प्रशिक्षण प्रमुख ने सिर्फ आतंकियों को प्रशिक्षण ही नहीं दिया बल्कि अंतिम दिन प्रशिक्षणार्थियों को बड़े पैमाने पर विस्फोटक भी दिए गए. अन्य प्रशिक्षकों में सेवानिवृत अधिकारी और प्रो. शरद कुंटै व डॉ. देव थे. ये दो पुणे के रसायनशास्त्र के प्राध्यापक हैं.
4. ‘हिन्दू राष्ट्र’ के लिए देश में एक ही समय में 71 स्थानों पर प्रशिक्षण (मई 2002)
संघ परिवार के 15 से 45 उम्र तक के सदस्य हिन्दू राष्ट्र के इस ओरिएंटेशन शिविर के लिए उपस्थित थे. शिविर 21 दिनों तक चला था. शिविर में हथियार, लाठी चलाने के साथ-साथ खेल एवं संस्कृत भाषा का भी प्रशिक्षण दिया गया. देश के अलग-अलग 71 स्थानों पर एक ही समय में शिविरों का आयोजन किया गया था.
इसके अलावा 45-60 उम्र तक के सदस्यों के लिए इसी प्रकार के शिविर देशभर में आयोजित किया गया था.
5. बजरंग दल का हथियार चलाने का प्रशिक्षण, भोपाल (मई 2002)
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में बजरंग दल की ओर से एक हफ्ते के प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया था. शिविर में दल के 150 आतंकियों को हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया गया था.
6. विहिप का महिलाओं के लिए कराटे प्रशिक्षण, मुम्बई (मई 2003)
विश्व हिन्दू परिषद् महिला कार्यकर्त्ताओं को जूडो-कराटे एवं तलवार चलाने का प्रशिक्षण देने के लिए मुम्बई में 17 मई, 2003 से एक शिविर आयोजित किया गया था.
7. आर एस एस की ओर से महिलाओं के लिए देश में 73 स्थानों पर प्रशिक्षण शिविर (मई 2003)
आर एस एस की ओर से महिलाओं को प्रशिक्षण देने के लिए देश में एक साथ 73 स्थानों पर शिविर का आयोजन किया गया था. ऐसा एक स्थान कानपुर था, जिसमें 25 मई को सेवानिवृत अधिकारियों ने लगभग 70 महिलाओं को रायफल लोड करना, निशाना लगाना एवं उसे चलाने का प्रशिक्षण दिया. जूडो प्रशिक्षकों ने मार्शल आर्ट्स का प्रशिक्षण दिया.
8. आर एस एस, अभिनव भारत, जय वंदे मातरम् के आतंकियों को प्रशिक्षण, बगली (म.प्र.) (2006)
मालेगांव 2006, अजमेर शरीफ, मक्का मस्जिद, समझौता एक्सप्रेस आदि जगहों पर बम धमाके करने के लिए आर एस एस, अभिनव भारत, जय वंदे मातरम् के आतंकियों को बगली (म.प्र.) के प्रशिक्षण शिविर में आतंकी प्रशिक्षण दिया गया. शिविर में सुनील जोशी व लोकेश शर्मा ने आतंकियों को हथियार चलाने एवं आरडीएक्स से बम बनाने का प्रशिक्षण दिया.
9. आर एस एस व अभिनव भारत का हथियार चलाने एवं बम बनाने का प्रशिक्षण, पंचमढ़ी (म.प्र.) (2007/2008)
ले. कर्नल पुरोहित के मार्गदर्शन में 2007 व 2008 में आरएसएस व अभिनव भारत के आतंकियों को आरडीएक्स के बम बनाने एवं हथियार चलाने का प्रशिक्षण देने के लिए पंचमढ़ी में कई शिविरों का आयोजन किया गया था. ले. कर्नल पुरोहित ने प्रतिभागियों को ‘हिन्दू राष्ट्र’ पर सम्बोधित भी किया था. उससे बरामद किये गये लैपटॉप में ये सब जानकारी है.
अध्याय 9
आरएसएस के आतंकवादी कारनामे
अध्याय नं. 2 से 6 तक की जानकारी में ब्राह्मणवादी संगठन की ओर से देश में जितने भी बम धमाके किये गये, उन सभी की सूची बनाने के बाद निम्नलिखित चित्र उभरकर सामने आता है –
- आरएसएस, अभिनव भारत व जय वंदे मातरम्
- अजमेर शरीफ, (राजस्थान), 2007 – आरोप-पत्र
- मक्का मस्जिद (हैदराबाद), 2007 – आरोप-पत्र
- समझौता एक्सप्रेस (हरियाणा), 2007 – आरोप-पत्र
- मालेगांव (महाराष्ट्र), 2006 – आरोप-पत्र
- मालेगांव (महाराष्ट्र), 2008 – आरोप-पत्र
- मोडासा (गुजरात), 2008 – जांच जारी
- आरएसएस एवं बजरंग दल
- नांदेड़ (महाराष्ट्र), 2006 – आरोप-पत्र
- परभणी (महाराष्ट्र), 2003 – आरोप-पत्र
- जालना (महाराष्ट्र), 2004 – आरोप-पत्र
- पूर्णा (महाराष्ट्र), 2004 – आरोप-पत्र
- लांबा खेरा भोपाल (म.प्र.), 2003 – जांच कार्य किस चरण में इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है.
- कानपुर (उ.प्र.), 2008 – जांच कार्य किस चरण में इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है.
- आरएसएस
- कुन्नूर (केरल), 2008 – आरोप-पत्र
- तेनकाशी (तमिलनाडु), 2008 – आरोप-पत्र
- सनातन संस्था
- पनवेल (महाराष्ट्र), 2008 – आरोप-पत्र
- ठाणे (महाराष्ट्र), 2008 – इन मामलों में कोर्ट का फैसला हुआ है, जिसमें सनातन संस्था के विक्रम भावे व रमेश गडकरी इन दोनों को 10-10 साल की सजा हुई है.
- वाशी (महाराष्ट्र), 2008 – इन मामलों में कोर्ट का फैसला हुआ है, जिसमें सनातन संस्था के विक्रम भावे व रमेश गडकरी इन दोनों को 10-10 साल की सजा हुई है.
- मडगांव (गोवा), 2009 – इस मामले में विस्फोटक वस्तु / पदार्थ कानून की धारा लगाने पर आरोप-पत्र भेजने के पूर्व जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति नहीं ली गई. इस तकनीकी कारण से आरोपी को छोड़ दिया गया है. इस पर सरकार से अपील की जा सकती है. इसके अलावे इस मामले में 4 मुख्य आरोपी अभी तक फरार हैं इसलिए मामले की जांच अधूरी है.
उपर्युक्त टेबल से पता चलता है कि बम धमाके करवाने में आरएसएस सबसे आगे है. लेकिन आरएसएस को देखने से पहले हम सनातन संस्था की ओर थोड़ी नजर घुमाएंगे. इस संस्था का चार आतंकी घटनाओं में सहभाग रहा है. उसमें से दो में आतंकियों को सजा दी गई है और दो मामले कोर्ट में विचाराधीन है. भले ही मडगांव (गोवा) धमाके के मामले में गिरफ्तार आरोपी को निर्दोष करार दिया गया है, लेकिन उसका कारण तकनीकी है. इसके अलावा इस मामले के कुछ प्रमुख आरोपी फरार हैं और मामले की जांच पूरी नहीं हुई है. इसलिए यह मामला जांच पर प्रलंबित ही समझना चाहिए.
उसी तरह सितम्बर 2015 में कॉमरेड गोविंदराव पानसारे की हत्या के मामले में पुलिस ने सनातन संस्था के एक आरोपी को गिरफ्तार किया है और उससे सनातन संस्था की बहुत सी जानकारी भी मिली है. अभी जांच जारी है. हो सकता है कि अन्य घटनाओं तथा हत्या के मामलों का भी यहीं से खुलासा हो.
सनातन संस्था को तत्काल बंद किये जाने की आवश्वकता, लेकिन…
जैसा कि उपर बताया गया है, सनातन संस्था के खिलाफ दाखिल आतंकी मामलों में से 2 आतंकवादी घटनाओं में आरोपियों को सजा दी गई, दो मामले कोर्ट में प्रलंबित हैं और एक में पुलिस जांच जारी है. इसके बावजूद सरकार इस संस्था को बंद करने के लिए तैयार नहीं है. वरिष्ठ अधिकारी और मंत्रीगण ‘सबूत मिलने के बाद बंद करेंगे’ ऐसा बहाना बनाकर कारवाई टाल रहे हैं और जनता को गुमराह कर रहे हैं. उन्हें और कितने सबूत चाहिए यह कृपया वे स्पष्ट करें. ऐसा लगता है कि सनातन संस्था को आसानी से बंद करने की उनकी इच्छा नहीं है. इसलिए इस संस्था को बंद करवाने के लिए सरकार पर दबाव बनाना जरूरी है.
हो सकता है कि आगे चलकर जनता के दबाव में आकर सरकार इस संस्था को बंद करवाए. लेकिन हमें सिर्फ इसी पर संतुष्ट नहीं रहना है. यह सरकार की एक चाल हो सकती है. क्योंकि सनातन संस्था प्रतिबंध के नाम पर उससे कई गुना अधिक खतरनाक आरएसएस संगठन को बचाने की यह सरकारी की साजिश हो सकती है इसलिए हमें सतर्क रहना बहुत जरूरी है.
देश का नं. 1 आतंकवादी संगठन आरएसएस
आरएसएस के खाते में देश में कम से कम 14 बड़े बम धमाके जमा है. विशेषतः उन सभी में आरडीएक्स जैसे शक्तिशाली विस्फोटों का उपयोग किया गया है. उन 14 में से सिर्फ मोडासा (गुजरात) घटना अभी जांच पर है. कानपुर (उ.प्र.) व लांबा खेरा (म.प्र.) इन धमाकों की जांच की जानकारी उपलब्ध नहीं है. लेकिन बांकी 11 घटनाओं की जांच पूरी होकर कोर्ट चार्जशीट भेजी गयी है और इन सबमें विश्वसनीय सबूत उपलब्ध है.
इन 11 में से नांदेड़, जालना, पूर्णा, परभणी (सभी महाराष्ट्र), कानपुर (उ.प्र.) व कुन्नूर (केरल) इन छह घटनाओं में बम तैयार करते समय ही धमाका होने के कारण उनका अपने आप ही खुलासा हुआ है. मानो घटना में शामिल आरोपियों को पुलिस ने रंगे हाथ गिरफ्तार किया है.
बांकी पांच घटनाओं में जो सबूत चार्जशीट के साथ जोड़ दिए गये हैं, वे अत्यन्त विश्वसनीय है. उदाहरणार्थ –
- जिस मोबाइल फोन से बम डिटोनेट किए गए थे, उन मोबाईल के सिमकार्ड आरोपियों ने फर्जी नाम पर लेने के सबूत (मोबाईल कंपनी का रिकार्ड, हस्ताक्षर विशेषज्ञ की रिपोर्ट, कंपनी के कर्मचारियों के जवाब आदि).
- आरोपी घटनाके समय घटनास्थल पर उपस्थित थे, ये दर्शानेवाले उनके मोबाईल फोन के कॉल-रिकार्ड
- पुलिस की निगरानी में रखे गए आरोपी के फोन की रिकार्डिंग
- आरोपी एवं गवाह का नार्को टेस्ट
- स्वामी असीमानंद द्वारा दो बार कार्ट के समक्ष दिया गया इकबालिया बयान
- ले. कर्नल प्रसाद पुरोहित व महंत दयानन्द पांडे के पास से जब्त किए गए लैपटॉप में मिले पक्के सबूत.
इस तरह देश में हुए बम धमाके की घटनाओं में आरएसएस के खिलाफ ढेरों सबूत हैं. आरएसएस के अलावा अन्य किसी संगठन के खिलाफ आरडीएक्स का उपयोग करके बम धमाके करने के इतने सारे मामले दाखिल नहीं हैं. और कुछ घटनाओं की पुनः जांच करने पर आरएसएस के आतंकी गुनाहों की संख्या 8 से 10 तक बढ़ सकती है. इसके अलावा अध्याय 8 में दी गई जानकारी के अनुसार आरएसएस व उनसे सम्बन्धित संगठन सन् 2000 से आतंकी प्रशिक्षण शिविर देश में आयोजित करने के सबूत भी उपलब्ध हैं. विशेष बात यह है कि बम तैयार करने, बम धमाके करने एवं आतंकी प्रशिक्षण देने का उनका कार्य देश के किसी एक भाग तक सीमित नहीं था, बल्कि पूरे देश भर में चला था. इन सभी बातों पर गौर करें तो देश में दहशत फैलानेवाले संगठनों में प्रथम स्थान पर आरएसएस ही दिखाई देता है.
विश्व में चल रहे सभी प्रकार के आतंकवादी संगठनों का अध्ययन करके उस पर कड़ी नजर रखने वाले तथा जनता को इन संगठनों से सतर्क करने वाले अमेरिका के ‘टेरोरिज्म वॉच एंड वार्निंग’ (Terrorism, Watch and Warning) संगठन ने अपनी www.terrorism.com साइट पर 24.04.2014 को की गई पोस्ट के अनुसार दुनिया में आतंक फैलानेवाले संगठनों की सूची में आरएसएस का नाम शामिल किया है. अब हमारी बारी है. अब समाज के सभी क्षेत्रों के लोगों को मिलकर आरएसएस जैसे खतरनाक संगठन का विरोध करना चाहिए एवं उसे हमेशा के लिए बंद करने की मांग करनी चाहिए.
अब महत्वपूर्ण सवाल है कि क्या समाज के सभी सेक्युलर लोग इसकी मांग करेंगे ? कितने शक्तिशाली ढंग से यह मांग करेंगे ? और उसका कितने जोर से पीछा करेंगे ? इन सभी सवालों के जवाब भविष्य ही दे सकता है. अगर यह मांग सभी क्षेत्रों से बड़े पैमाने पर नहीं हुई तो उसके लिए भी आरएसएस का बांकी क्षेत्रों में विशेषतः मीडिरू में जो आतंक है, वही जिम्मेदार है, ऐसी संभावना स्वीकार करनी होगी. यह बात आरएसएस देश का सबसे बड़ा आतंकवादी संगठन है, इस बात को और भी पुष्ट देती है.
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