हिमांशु कुमार, प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकर्ता
हिन्दू होने और हिन्दुत्ववादी होने में बहुत अंतर है. पहली बात तो यह कि हिन्दू किसे कहा गया ? भारत में पहले से रहने वाले लोगों को मुसलमानों ने हिन्दू कहा. अब तो संघियों और जातिवादियों के कारनामों की वजह से बहुत सारे जैन, बौद्ध, सिख, आदिवासी, दलित खुद को गैर-हिन्दू भी कह रहे हैं, जो उनकी अपनी पहचान और अस्मिता की पहचान की राजनैतिक प्रक्रिया से निकल रहा है हांलाकि अभी भी ज्यादातर गैर इसाई गैर मुस्लिम लोग खुद को हिन्दू समझते हैं. यही भाजपा की जीत का गणित है. अब हम असली सवाल पर आते हैं.
क्या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का हिंदुत्व ही भारतीय हिन्दू विचार और संस्कृति है ? पहली बात तो यह कि जिसे आम तौर पर हिन्दू विचार कहा जाता है, वह दरअसल भारत के अनेकों विचारधाराओं, धर्म परम्पराओं और संस्कृतियों का समुन्दर है इसलिए हिन्दू की पहचान यह बता देना कि जो राम मन्दिर निर्माण के पक्ष में नहीं है, वह हिन्दू नहीं है. घोर झूठा प्रचार है.
भारत में अवतारवाद है तो अवतारवाद का विरोधी विचार भी है. मेरे परदादा आर्यसमाजी थे. आर्यसमाजी ना तो राम कृष्ण को अवतार मानते हैं, ना मन्दिर में जाकर मूर्तियों की पूजा को स्वीकार करते हैं बल्कि वे मूर्ती पूजा के खिलाफ शास्त्रार्थ करते रहे हैं. अभी तो खैर आर्यसमाजी भी संघ की गोद में बैठ गये हैं.
इसी तरह भारत में धर्म विचार में अगर ईश्वर को मानने वाला विचार है तो ईश्वर को ना मानने वाले कई विचार परम्परा हैं जैसे चार्वाक, बुद्ध, जैन और सांख्य दर्शन. भारत में वसुधैव कुटुम्बकम और विश्वमानुष का विचार है अर्थात हमें पूरे विश्व के भले का विचार करने वाला मनुष्य बनना है लेकिन संघ की पूरी राजनीति पाकिस्तान बंगलादेश के विरुद्ध घृणा फ़ैलाने वाली है.
इसी तरह भारत का विचार कहता है एकं सत विप्रा बहुधा वदन्ति अर्थात एक ही सत्य को विभिन्न विद्वान अलग-अलग तरीके से बताते हैं. अर्थात धर्म विचार मुहम्म्म्द, ईसा, नानक, बुद्ध महावीर और उपनिषद अलग-अलग ढंग से बताते हैं और हमें सब स्वीकार है. लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने संगठनों के मार्फ़त दुसरे धर्म विचार वालों के विरुद्ध घृणा फैलाता है. उन्हें देशद्रोही और मलेच्छ कहता है और उनके विरुद्ध दंगे और हिंसा करता है.
तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का जो हिंदुत्व है, वह भारत की परम्परा संस्कृति और धर्म विचार के बिलकुल विरुद्ध है.
तब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का हिंदुत्व आया कहाँ से है ?
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का यह राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का विचार जर्मनी के हिटलर और इटली के मुसोलिनी की चिन्तन पद्धति और और कार्य पद्धति की हू-ब-हू नक़ल है. उसने आपनी नस्ल की श्रेष्ठता की बात कही. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी हिन्दुओं की श्रेष्ठ्ता की बात कहता है. हिटलर ने नागरिकों के एक समूह यहूदियों के विरुद्ध घृणा पैदा की. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ मुसलमानों और ईसाइयों के विरुद्ध घृणा पैदा करता है.
आप साफ़-साफ़ देख सकते है कि भारत की जो पुरानी परम्परा है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ठीक उसके विपरीत तरीके से काम कर रहा है. भारत की आजादी की लड़ाई में उस समय के नेताओं ने भारत की इस सांस्कृतिक खूबसूरती को समझा था. इसलिए एक ऐसा देश और उसका ऐसा संविधान बनाया जिसमें सभी विचारधाराओं और परम्पराओं को बराबर सम्मान और संरक्षण मिले लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने इस संविधान की प्रतियाँ जलाई थीं.
अब आपको यह पहचानना है कि सबको शामिल करने वाला विचार ठीक है या दूसरों से नफरत करने वाला विचार आपके और आपके बच्चों के लिए ठीक है. आज विज्ञान ने इंसान के बीच की दूरियां मिटा दी हैं और विज्ञान ने इंसान के हाथ में विनाश की बड़ी ताकत भी दे दी है. अब अगर दिमाग़ में है नफरत और हाथ में है विनाश की ताकत तो इंसानी समाज का क्या अंजाम होगा.
परमाणु बम के युग में विश्वमानुष और वसुधैव कुटुम्बकम और एकं सत विप्रा बहुधा वदन्ति का विचार ही दुनिया को बचाएगा. मस्जिदें तोड़ने वाले पड़ोसी देशों से हमेशा युद्ध करने को आतुर देश के भिन्न धर्म विचार को मानने वालों से घृणा का राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का विचार भारत के विनाश का निश्चित रास्ता है. अगर भारत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विनाशकारी विचार को जल्द ही त्याग नहीं करता है तो उसका विनाश निश्चित है.
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