Home ब्लॉग आरएसएस का बेशर्म राजनीतिक मुखौटा भाजपा और मोदी

आरएसएस का बेशर्म राजनीतिक मुखौटा भाजपा और मोदी

10 second read
0
0
1,180

आरएसएस का बेशर्म राजनीतिक मुखौटा भाजपा और मोदी

आरएसएस का राजनीतिक मुखौटा भाजपा और उसका आपराधिक सरगना नरेन्द्र मोदी झूठ बोलने, बेशर्मी से झूठ बोलने और लगातार झूठ बोलने की मशीन है. एक वक्त उसी ने कहा था कि: एके-47 की तरह धड़ाधड़ झूठ बोलो, बार-बार झूठ बोलो, बेशर्मी से झूठ बोलो, तब तक झूठ बोलो जब तक कि लोग उसे सच न मानने लगे. हलांकि नरेन्द्र मोदी यह आरोप विपक्षी दलों पर लगा रहे थे, पर यह खुद आरएसएस के एजेंट नरेन्द्र मोदी पर पूरी तरह फिट बैठता है. वह न केवल बार-बार झूठ बोलते हैं बल्कि पूरी बेहयाई से झूठ बोलते हैं. इसके पीछे आरएसएस और मोदी की राजनीतिक समझ काम करती है.

आरएसएस और उसके एजेंट नरेन्द्र मोदी यह मानता है कि भारत की बहुल जनता अशिक्षित और अनपढ़ है. उन्हें इतिहास और विज्ञान की ज्यादा जानकारी नहीं होती है. इसलिए उन्हें जो कुछ भी समझा दिया जाये, बता दिया जाये वह उसे मान लेगी. आरएसएस और भाजपा की भारतीय जनता के प्रति यह समझ बहुत ही गहरी है इसलिए जब उसने देखा कि 1947 के बाद भारतीय शासक प्रधानमंत्री नेहरू के नेतृत्व में देश की आम बहुल जनता को शिक्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर स्कूल, विश्वविद्यालय, आईआईटी आदि जैसे उच्च शिक्षण संस्थान का निर्माण कर रही है, जिससे देश की जनता शिक्षित होने लगी है, जातीय भेदभाव, धार्मिक पोंगापंथी कम होने लगे हैं, इन शिक्षण संस्थानों में सदियों से अछूते समूह शामिल होने लगे हैं, तब उसने इसे बहुत बड़ा गड्ढ़ा कहा और इस गड्ढ़े को भरने के लिए आरएसएस और भाजपा पिछले 7 सालों में भारतीय जनता को यह समझाने में कामयाब हो गया कि स्कूल-काॅलेजों और विश्वविद्यालयों ही वह गड्ढ़े हैं, जिसे भरने के बाद ही ‘हम विश्वगुरू’ बन सकते हैं.

एक बार आरएसएस-भाजपा जब भारतीय जनता को यह समझाने में कामयाब हो गया कि शिक्षण संस्थान ही वह गड्ढ़ा है जिसे कांग्रेस ने 70 सालों में खोद है, तो उसे भरना (खत्म करना) ही आरएसएस-भाजपा का मकसद है. परन्तु, बात यहीं खत्म नहीं होती क्योंकि पिछले ‘70 साल के गड्ढ़े’ ने देश की विशाल जनमानस को एक हद तक शिक्षित करन में कामयाब हो गया था, जो आरएसएस-भाजपा के रास्ते में रोड़ा बन कर खड़ हो गया. इसलिए आरएसएस-भाजपा के लिए यह जरू री हो गया कि ऐसे रोड़ों को खत्म किया जाये या बदनाम किया जाये.

इसके लिए उसने दो रास्ते अपनाये. पहला तो यह कि आम लोगों की बेहतरीन प्रतिभाओं को शिक्षण संस्थान तक पहुंचने से रोकने के लिए नोटों की बड़ी दीवारें खड़ी की जाये, यानी शिक्षा को मंहगा किया जाये ताकि देश के वंचित या कमजोर पृष्ठभूमि के छात्र यहां तक पहुंच ही न सके. दूसरा तरीका यह अपनाया कि उच्च कोटि के शिक्षण संस्थानों को बदनाम किया जाये ताकि या तो उसे बंद किया जा सके अथवा वह लोगों के घृणा का पर्याय बन जाये और बेहतरीन छात्र वहां तक पहुंचने से खुद को रोक लें. जेएनयू, जामिया, जादबपुर जैसे विश्वविद्यालयों के खिलाफ दुश्प्रचार इसी संघी सोच का परिणाम है.

शिक्षण संस्थानों को बदनाम करने और उसे बंद करने के राह में जो सबसे बड़ा रोड़ा बनकर उभरा वह था – पिछले 70 सालों में शिक्षित हुए वंचित और कमजोर पृष्ठभूमि से आये लोग. उससे निपटने के लिए आरएसएस-भाजपा और उसके सबसे बड़े एजेंट नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद का दुरूपयोग करते हुए उन शिक्षित लोगों के विशाल रोड़ों को खत्म करने का फैसला किया और उन्हें या तो गोली मार कर हत्या कर दी अथवा जेलों में डाल कर सड़ा दिया. बहाना यह बनाया कि ‘ये लोग हत्यारा और आतंकी नरेन्द्र मोदी की हत्या करना चाहते हैं.’

इस मामले में जेलों में बंद किया उच्च कोटि के विद्वान और सामाजिक कार्यकत्र्ताओं को, जिसमें लेखक और मुंबई स्थित दलित अधिकार कार्यकर्ता सुधीर धावले, नागपुर के वकील सुरेंद्र गाडलिंग, विस्थापन के मुद्दों पर काम करने वाले गढ़चिरौली के युवा कार्यकर्ता महेश राउत, जिन्हें पूर्व में प्रतिष्ठित प्रधानमंत्री रूरल डेवलपमेंट फेलोशिप भी मिल चुकी है, नागपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य विभाग की प्रमुख प्रोफेसर शोमा सेन और दिल्ली के सामाजिक कार्यकर्ता रोना विल्सन, जो राजनीतिक कैदियों की रिहाई के लिए बनी समिति (कमेटी फॉर रिलीज ऑफ पॉलिटिकल प्रिजनर्स- सीआरपीपी) की कोर कमेटी के मेंबर, आदि हैं. इसके अलावे अनेकों विद्वानों और लेखकों-पत्रकारों को गोलियों से उड़ा दिया, जिसमें पनसारे, गौरी लंकेश प्रमुख यादगार हैं.

आलम यहां तक पहुंचा दिया गया कि पढ़ना-लिखना, पुस्तकें रखना तक देशद्रोही जैसे संगीन मामलों के लिए पर्याप्त कारण बन गया. मोदी सरकार की नीचता यह पराकष्ठा ही कही जायेगी कि सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने तो विश्वविख्यात लेखक लियो टाॅल्सटाॅय लिखित पुस्तक ‘युद्ध और शांति’ को भी देशद्रोह के लिए पर्याप्त मान लिया. यह आरएसएस और भाजपा के गठजोर और गिद्ध मीडिया के शिक्षा और शिक्षण संस्थानों के खिलाफ किये गये धुंआधार दुश्प्रचार से ही संभव हो पाया है. शिक्षा के खिलाफ इसी दुश्प्रचार का परिणाम है कि देश में शिक्षा ग्रहण करना एक अपमान और मूर्खता का द्योतक बन गया, जब 30 साल तक पढ़ाई करने को जनता के पैसों को दुरूपयोग और देशद्रोह की संज्ञा से नवाजा जाने लगा.

आरएसएस और भाजपा को अपने 7 साल के दुश्प्रचार पर इतना भरोसा हो गया है कि अब वह ऐतिहासिक तथ्यों को भी झूठ के पैकिंग में परोस रहा है. मसलन, 2019 में राजस्थान के नौंवी कक्षा के प्रश्न कि गांधी ने आत्महत्या क्यों की थी ? का जवाब इस प्रकार दिया, ‘गांधी आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित थे और वे आएसएस में शामिल होना चाहते थे परन्तु जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया. नेहरू के द्वारा गांधी को रोकने से गांधी इतना निराश हुए कि उन्होंने पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली.’

ये तो एक ऐतिहासिक तथ्यों को उलटकर प्रस्तुत किया गया, अब तो विज्ञान जैसी वस्तुपरक सैद्धांतिक सवालों को भी नकारा जाने लगा है. मसलन, एक विज्ञान कांग्रेस में यह बताया गया कि कोई वस्तु उपर से नीचे गुरूत्वाकर्षण बल के कारण नहीं अपितु ‘मोदी-इफेक्ट’ के कारण गिरती है. इतना ही नहीं नाली के गैस से चाय बनाना, बादलों में रडार के काम नहीं करने आदि जैसे झूठ परोसे गये हैं. अब तो हालत यह हो गई है डार्विन को पागल, न्यूटन को चोर और आईंस्टीन को बेवकूफ बताया जाने लगा है. यही है विश्वगुरू होते भारत की संघी असलियत.

अब ताजा मामला पश्चिम बंगाल के चुनाव के दौरान का है. गुजरात को सोने का गुजरात बनाते-बनाते अब वह पश्चिम बंगाल को ‘सोनार बंगला’ बनाने के लिए और पश्चिम बंगाल में वोटों की फसल खड़ी करने के लिए निर्लज्जता की हद पार करते हुए नरेन्द्र मोदी ने कल बांग्लादेश के दौरे के पर पहुंच गये. ढाका में एक सभा को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने निर्लज्ज संघी झूठ को बेशर्मी से एक बार फिर अन्तर्राष्र्टीय पटल पर लहराते हुए बताया कि बांग्लादेश की आजादी के उस संघर्ष में शामिल होना भी मेरे जीवन के पहले आंदोलनों में से एक था. मेरी उम्र 20-22 साल रही होगी जब मैंने और मेरे साथियों ने बांग्लादेश की आजादी के लिए सत्याग्रह किया था. तब मैंने गिरफ्तारी भी दी थी और जेल जाने का अवसर भी आया था.

अपूर्व भारद्वाज सोशल मीडिया के पेज पर लिखते हैं कि –

मुद्दा यह नहीं है कि मोदी जी ने बांग्लादेश की आजादी के लिए कोई सत्याग्रह या आंदोलन किया था या नहीं ? मुद्दा यह भी नही है कि वो जेल गए कि नहीं ? मुद्दा उन लाखों मुक्ति वाहनी के शहीद सैनिकों की वीरता, त्याग और समर्पण का है, जिन्हें एक ही झटके में साहब ने हंसी का पात्र बना दिया है.

आज से पहले कोई मुझे बोलता था कि उसके पुरखों ने आजादी की लड़ाई में भाग लिया था या आजाद हिंद फौज में उनका कोई बुजुर्ग शामिल था तो यकीन मानिए मेरा सर श्रध्दा से उस आदमी के सामने झुक जाता था. यह प्रतिक्रिया बहुत ही नेचुरल होती थी क्योंकि आपको विश्वास होता था कि वो आदमी कम से कम इस बात पर तो झूठ नहीं बोलेगा.

कोई आम आदमी इतनी बड़ी बात अचानक बोलता तो आप उस को बिना सच या झूठ जाने इग्नोर कर सकते थे लेकिन यह क्या कि सबसे बड़े लोकतंत्र का प्रधानमंत्री आज तक यह बात किसी को नहीं बताता औऱ दूसरे देश में जाकर बिना कोई तथ्य के एक जुमला मार देता है, और वो भी इतने आत्मविश्वास से कि उनकी जीवनी लिखने वाले को भी अभी तक इस बात कोई जिक्र नहीं मिलता है.

अब पूरी आईटी सेल लग गई है कि कैसे भी साहब की इस बात को सच बताया जाए. तमाम किताबें खंगाली जा रही है. सारे इतिहास के पन्ने पलटे जा रहे है केवल यह बताने के लिए कि जो साहब ने कहा है वो 100 टका सही है. बात सही है या गलत वो आज नहीं तो कल पता चल जायेगा लेकिन अपने ‘मैं’ ‘मैं’ के चक्कर में साहब ने उन लाखों लोगों की शहादत का अपमान किया है जिन्होंने अपना तन, मन, धन देकर बंगलादेश को मुक्त कराया था.

मैं हमेशा से कहता हूं कि इस देश को पढे-लिखे नकली वामपंथियों, अनपढ़ दक्षिणीपंथियों से ज्यादा खतरा बड़बोले जुमलापंथियों से है. यह देश समाजवाद को छोड़कर घोर पूंजीवाद की सारी सीमाएं तोड़कर व्यक्तिवाद की पराकाष्ठा पर पहुंच चुका है. आपको अभी भी लोकतंत्र लग रहा है तो मैं कुछ नहीं कर सकता.

यह सब झूठ बोलने के लिए निश्चय ही मोदी को जरा भी झिझक न आई होगी, परन्तु अन्तर्राष्र्टीय मंच पर भारत की प्रतिष्ठा को जो आंच आयेगी, उसकी इसे जरा भी लाज नहीं आयेगी, इतना तो तय है. आखिर अनपढ़ भारत ही तो विश्वगुरू भारत का परचम लहरा सकता है.

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…