Home कविताएं रोटी और सरहद

रोटी और सरहद

0 second read
0
0
322

वोह नफ़रत के जो बीज बोए थे तुमने,
फ़सल आज तैयार पक के खड़ी है.
चलो बांट लो कुछ बचा के न रखना,
चुनावों में इसकी ज़रूरत बड़ी है.

न तुम हमको चाहो, न हम उसको चाहें
वफ़ा की गली अब तो वीरान पड़ी है.
यह बंटवारा तुमको बोहोत हो मुबारक,
हमें तो अभी भी वतन की पड़ी है.

वोह पैरों के छाले,
वोह मासूम चीख़ें.
वोह पटरी के तकिए,
पत्थर के बिछौने.
ज़रा मुड़ के देखो
वोह लाशें पड़ी हैं.
वोह रोटी जो बिखरी है
लाशों पे उनकी.
वोह मांगे है इंसाफ़
अदल की घड़ी है.

वोह लालों को अपने लिए कोख में,
सड़क नापती थीं कड़ी धूप में.
क़यामत सी हिजरत क़यामत से पहले
के दम तोड़ा लाखों ने मंज़िल से पहले।

तेरी राह तकती महीनों तलक,
वोह मंज़िल तेरे गम में गुमसुम खड़ी है.
वोह हिजरत, वह रस्ते,
वोह इंसां तड़पते
रहेंगे गवाह सब, जिरह की झड़ी है.

क्या कम थे वोह ज़ुल्मों के टूटे पहाड़,
सरहद बन गई जो फरेबों की आड़.
भुला तो न दोगे सरहद पर शहादत,
निहत्थे जवानों ने जो जंग लड़ी है।

  • राबिया परवीन,
    बिहार

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • शातिर हत्यारे

    हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…
  • प्रहसन

    प्रहसन देख कर लौटते हुए सभी खुश थे किसी ने राजा में विदूषक देखा था किसी ने विदूषक में हत्य…
  • पार्वती योनि

    ऐसा क्या किया था शिव तुमने ? रची थी कौन-सी लीला ? ? ? जो इतना विख्यात हो गया तुम्हारा लिंग…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…