Home कविताएं रोम जल रहा है

रोम जल रहा है

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रोम जल रहा है
मुरलीधरन मुरली बजा रहा है

पानी कैसे लाता
ताप कैसे महसूसता
पानी लाता
ताप महसूसता
तो हृदय की पीड़ा को
धुन की बारीकियों में कैसे पिरोता

इतिहास, इसे बक्स दो

भक्तवत्सल
देवाधिदेव, तुम
हमारे पूर्व जन्म के
पुण्य से मिले हो
तुम्हारा आशीर्वाद
हम बलात्कारियों की ताकत है

तुम्हारा इक़बाल बुलंद रहे

यह चिरायंध
नाक महसूसती है
नाक स्वस्थ है
नाक काम कर रही है
बिल्कुल नाकाम नहीं है

आग तो आग है
आग फर्क नहीं करती
साल और चंदनवन का
लपटों में आज साल है
कल चंदन होगा
इतना इतराना ठीक नहीं

बुद्ध, आप परेशान न हों
बापू, आप निश्चिंत रहें

मुरलीधरन देश में हो
या बाहर विदेश
आप का नाम जपता है
जहां जहां आप के पदचिह्न हैं
ढोंग ही सही
नतशिर होता है

  • राम प्रसाद यादव

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