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रोजगार: मोदी सरकार के तीन साल

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जुमलों, लुभावनी नारे और झूठे आंकड़ों के सहारे तीन साल बीता देने का जश्न मनाते मोदी सरकार ने देश के युवाओं को एक अंध कुंआ में धकेलने का काम बखूबी किया है. 24 नवम्बर, 2013 के आगरा में आयोजित भारतीय जनता पार्टी के चुनावी सभा में प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी ने प्रतिवर्ष 1 करोड़ रोजगार पैदा करने की जुमलों और झूठे वादों ने देश में अब तक की सबसे भयानक तस्वीर पेश की है. वहीं बेरोजगारी के भयानक दंश को छिपाने के लिए आंकड़ों से खिलबाड़ करते हुए 5 मार्च, 2017 को भारतीय जनता पार्टी ने अपने अधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर दावा किया है कि ‘देश में बेरोजगारी घटी है’. इसमें स्टेट बैंक के ‘इको फ्लैश’ के सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा गया है कि अगस्त, 2016 में बेरोजगारी की दर 9.5 प्रतिशत थी, जो फरवरी, 2017 में घटकर 4.8 प्रतिशत हो गई लेकिन भारत सरकार के श्रम मंत्रालय के ‘लेबर ब्यूरो’ के आंकड़ों की बात करें तो नए रोजगार पैदा होने में 84 प्रतिशत की गिरावट आई है.

आंकड़े बताते हैं कि जहां 2009-10 में 8 लाख 70 हजार नये लोगों को रोजगार मिला था, वहीं 2016 ई. में सिर्फ 1 लाख 35 हजार नये लोगों को रोजगार मिला. आंकड़ों की ही बात की जाये तो 2010 के मुकाबले आज उसका महज 7वां हिस्सा ही रोजगार उपलब्ध रह गया है. आॅर्गेनाईजेशन आॅफ इकोनाॅमिक काॅआॅपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) के इसी साल के एक सर्वेक्षण के अनुसार 15 से 29 साल के युवाओं में 30 प्रतिशत ऐसे हैं, जिनके पास केाई रोजगार नहीं है और ना ही उनको किसी भी प्रकार की ट्रेनिंग ही है कि उन्हें रोजगार मिल सके. इंडिया स्पेंड के 2016 के आंकडे के मुताबिक पिछले 30 सालों में भारत में सिर्फ 70 लाख नए रोजगार सृजित की गई जबकि जरूरत ढ़ाई करोड़ नये रोजगार की थी.

नये रोजगार पैदा करने की हालत तो यह है हीं, इसके उलट स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि रोजगार प्राप्त लोगों को भी छंटनी के नाम पर नौकरी से निकाला जा रहा है. नोटबंदी जैसे भयानक घोटालों के बाद तो संगठित और असंगठित दोनों ही क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर लोगों का रोजगार छीना गया. हजारों की संख्या में उद्योग-धंधे बंद हुए. लोग बदहाल हो गये. अभी हाल के एक आंकड़े बताते हैं कि आईटी क्षेत्र की जो 5 से 6 कम्पनियां हैं, उन्होंने
पिछले कुछ महीनों में 56 हजार कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है. जबकि आईटी क्षेत्र के व्यापार समूह ‘नैसकाॅम’ का कहना है कि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद आईटी ही एक ऐसा क्षेत्र था जहां सबसे ज्यादा रोजगार का सृजन हो रहा था. ‘नैसकाॅम’ के अध्यक्ष आर. चद्रशेखर के अनुसार केवल वर्ष 2016-17 में इस क्षेत्र ने 1.7 लाख नई नौकरियां दी थी. पर अब छंटनी ने इस क्षेत्र में भी रोजगार की नई संभावना तो खैर जाने दीजिए, पुराने रोजगार प्राप्त लोगों के बेरोजगार होने की नौबत आ गई है.

आर्थिक मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार एम. के. वेणु का मानना है कि भाजपा की सरकार के आने के बाद सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में भारी गिरावट आई है. यूपीए के शासनकाल में विकास की यह दर 8.5 प्रतिशत थी. फिर भी विकास की यह दर कम रोजगार पैदा कर रही थी पर अब मोदी राज में तो 7 प्रतिशत के विकास दर का दावा किया जा रहा है. मगर हालात बता रहे हैं कि वास्तविक विकास दर 6 प्रतिशत से भी कम होगी. औद्यौगिक उत्पादन में भी एक प्रतिशत की कमी देखी जा रही है. यूपीए के शासन काल में औद्यौगिक उत्पादन दर 3 से 3.5 प्रतिशत के आसपास थी, जो अब 2 से 2.5 से आसपास रह गई है.

मोदी सरकार के तीन साल ने देश में केवल एक राष्ट्रवाद और हिदुत्व के नाम पर एक नकली माहौल पैदा कर देश के महज चंद काॅरपोरेट घरानों की सेवा में खुद को समर्पित कर दिया है. भारत में रोजगार को बड़े पैमाने पर सृजित करने वाले परम्परागत क्षेत्र कृषि ही रहा है, जिस पर मोदी सरकार कतई ध्यान नहीं दे रही है, उल्टे किसानों के आत्महत्या में भारी ईजाफा ने रोजगार के नये संकट को पैदा कर दिया है. आईटी क्षेत्र छंटनी की तेज प्रक्रिया से गुजर रहा है. सरकारी उपक्रमों रेलवे सहित को निजी हाथों में सौंपा जा रहा है. रक्षा क्षेत्र में उत्पादन होने वाले 273 वस्तुओं में से 148 वस्तुओं के उत्पादन को ‘आऊट-सोर्स’ यानी निजी हाथों में सौंपा जा रहा है. जिन निजी हाथों में इसके उत्पादन को सौंपा जा रहा है उन्हें इसके उत्पादन का कोई अनुभव नहीं है. इसका परिणाम कुछ इस प्रकार होगा कि इसके उत्पादन के लिए आखिरकार विदेशी कंपनियों पर निर्भर रहना होगा तब तक अपने निजी उत्पादन की क्षमता देश खो चुकी होगी.

केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार का तीन सालाना जश्न देश को बेरोजगारी के एक ऐसे अंधे कूप में ले जा चुकी है जिससे निकलने का फिलहाल कोई उपाय नजर नहीं आता है. मोदी सरकार आंकड़ों की बाजीगरी कर रहा है और देश भयानक मंदी के दौर से गुजरने को तैयार है जहां हजारों और लाखों जानें मौत के कागार पर दिखे तो किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

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