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रोहिणी अंगदान करके कितने ही परिवारों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गई हैं

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रोहिणी अंगदान करके कितने ही परिवारों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गई हैं
रोहिणी अंगदान करके कितने ही परिवारों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गई हैं
रविश कुमार

आज रोहिणी आचार्य पर लिखने का मन कर रहा है. एक बेटी ने अपने पिता के लिए किडनी दी है. वैसे तो सभी संतानें देने से पीछे नहीं हट रही थी मगर जिस तरह से रोहिणी आचार्य ने अपने पिता लालू प्रसाद यादव के लिए किडनी दी है, वह अनुकरणीय है. लालू जी का परिवार राजनीतिक रहा है. जितना मैंने रोहिणी के ट्वीट फोलो किए हैं, उससे लगता है कि इस बेटी के लिए लालू जी केवल पापा हैं.

मैं रोहिणी से कभी मिला नहीं जबकि रिपोर्टिंग के दौरान लालू जी के घर जाने के कई अवसर मिले हैं. तेजस्वी तो राजनेता हैं, उनसे मुलाक़ात है लेकिन जिस तरह से रोहिणी ने ट्विटर पर अपने पिता के प्रति स्नेह का इज़हार किया है, वह काफ़ी अलग है. उसमें आत्मप्रचार नहीं है.

उसका कोई राजनीति महत्व नहीं है, उसमें केवल बाप और बेटी का रिश्ता है. अपने पिता के प्रति इस प्यार को देख मैंने ट्विटर पर रोहिणी को फ़ॉलो कर लिया. मुझे नहीं पता कि रोहिणी उम्र में हमसे बड़ी हैं या छोटी, अगर छोटी हैं तो मेरी तरफ़ से ख़ूब सारा प्यार. हम पिता-पुत्री के स्वस्थ होने की कामना करते हैं.

रोहिणी केवल अपने पिता के प्रति प्रेम का इज़हार नहीं कर रही हैं बल्कि अंगदान करके कितने ही परिवारों के लिए प्रेरणा बन रही हैं. अंगदान को लेकर कितने बुरे ख़्याल समाज में फैले हैं. जिस तरह से रोहिणी ने अपने किडनी देने की जानकारी दी है, सामान्य पिता की तरह सिंगापुर में स्वागत किया है, उसके कारण समाज के बड़े हिस्से में किडनी देने को लेकर कुछ झिझक टूटी होगी.

किडनी देने का फ़ैसला किसी के लिए आसान नहीं होता. इसे लेकर किसी के बारे में राय बनाना मुश्किल है. आप सीधे नहीं कह सकते कि इंकार करने वाला ग़लत ही है. इसके कई कारण होते हैं. अस्पताल, डॉक्टर का भरोसा कम होता है, पैसा नहीं होता है. और भी चीज़ें हैं. कई बार किडनी देने के नाम पर घर बिखर जाता है. मरीज़ अस्पताल में पड़ा हुआ है और बाकी सदस्यों में झगड़ा चल रहा होता है. इसके अलावा भारत में अंगदान को लेकर कई क़ानूनी समस्याएं भी हैं.

सिंगापुर में ज़रूर बेहतर व्यवस्था होगी जिसके कारण लोग वहां ट्रांसप्लांट के लिए जाते हैं. भारत में भी होता ही है और यहां के डॉक्टर कम काबिल नहीं है लेकिन वहां के डॉक्टर से ही कोई क्यों कराने जाता है, इसकी जानकारी मुझे नहीं. लेकिन अगर वहां कोई चीज़ अच्छी है तो उसकी नक़ल भारत में भी होनी चाहिए ताकि बाक़ी लोगों को भी लाभ मिले.

फ़िलहाल रोहिणी आचार्य ने दिल जीत लिया है. ईश्वर उन्हें और उनके प्यारे पिता को जल्दी स्वस्थ करे और मज़बूत रखे. समाज में अंगदान को लेकर जागरूकता का सिलसिला बढ़ता रहे. सबमें हौसला आए.

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