‘मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है’
मां होगी तुम्हारी
मेरी तो नहीं है
पहले भी नहीं थी
हो भी नहीं सकती.
कैसे धारण कर सकती है कोई मां
एक दो नहीं सैकड़ों लाशें
अपनी कोख में.
अब तो तुम्हारे किनारे भी
भर गए हैं लाशों से.
और तुम ख़मोश बहे जा रही हो.
क्योंकि बहना ही तुम्हारी नियति है.
क्योंकि तुम एक नदी हो.
बेशक जीवनदायिनी रही हो तुम
सभ्यताओं की.
लेकिन बस उतना ही.
तुम एक ख़ालिस नदी हो
मां नहीं…
कैसे हो सकती हो मां
जब तुम्हारी आंखों के सामने ही होते रहे हैं
अत्याचार बेशुमार…
याद है
पॉल रॉबसन ने भी
की थी शिकायत
मिसिसिपी रिवर से
गनीमत है उन्होंने नदी को मां नहीं कहा.
उन्होंने नदी को ‘ओल्ड मैन’ कहा जो
सदियों से बहता रहा
बहता ही रहा
न जाने कितने काले लोगों का
खून पसीना और आंसू
घुलते रहे इसके पानी में.
न जाने कितने अत्याचार का गवाह
बना वह बूढ़ा जो
बहता रहा
बहता ही रहा.
और फिर वह मन भावन गीत
‘ओ गंगा तुम बहती हो क्यों’
बहुत गाया सुना गया
पर तुम बहती रही निर्बाध.
आज जब बह बह के लाशें
जमा हो रही हैं तुम्हारी कोख में
तब भी बहे जा रही हो तुम चुपचाप !
मां हो तुम तो कैसे बर्दाश्त करती हो यह दुःख ?
बुक्का फाड़ के रोती क्यों नहीं
जैसे रो रहे हैं वे तमाम सारे लोग
मारे गए हैं जिनके दिल के टुकड़े.
मां हो, देवी हो तो
आगे बढ़ कर क्यों नहीं देती श्राप
उन सबको जिन्होंने कर दी है तुम्हारी ये दशा.
वरना कर दो ये घोषणा के
नहीं हो तुम कोई मां वां.
तुम एक नदी हो नदी
सिर्फ़ नदी.
अपनी राह पर बहती
चुपचाप !
- अमिता शीरीन
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