एक नंबर के दंगाई ने
दो नंबर के दंगाई को बचाया
फिर दो नंबर के दंगाई ने
एक नंबर के दंगाई को
सम्मानित किया
फिर दोनों ने एक-दूसरे को
देख कर मुस्कुराया
और इस तरह हिन्दू राष्ट्र बनाने
का जश्न मनाया
फिर तीन नंबर के दंगाई ने
दोनों के लिए ताली बजाया
दोनों का गुड़गान किया
और बदले में ढेर सारा विज्ञापन पाया
फिर चार नंबर के दंगाईयों ने
एक और दो नंबर के दंगाईयों
से प्रेरणा लिया
राम मंदिर में जा कर घंटा बजाया
और इन दोनों से भी बड़ा
दंगाई बनने का वरदान मांगा
और हाथ में तलवार और
त्रिशूल लेकर
जय श्री राम का नारा लगाते हुए
दंगा का फसल काटने निकल गया !
2
मैं कभी सत्ता के साथ
खड़ा नही हो सकता
चाहे वो सत्ता फासिस्ट की हो
या किसी और की
मैं जब भी खड़ा होऊंगा
जनता के साथ ही खड़ा होऊंगा
और जनता के ही दुख, दर्द
और खुशहाली के गीत गाऊंगा
अगर जनता के जीवन में
दुःख है तो दुःख लिखूंगा
अगर जनता के जीवन में
सुख है तो सुख लिखूंगा
पर कभी राज्य सत्ता से
अपनी कलम का सौदा नही करूंगा
मेरे लिए सिर्फ़ जनता ही महान है
और मैं हमेशा जनता को महान बताऊंगा
क्योंकि जनता ही इतिहास बनाती है
जनता ही किसी फासिस्ट को धूल में मिलाती है
मैं रोज देखता हूं
जनता को महान काम करते हुए
इस दुनिया को अपने कंधे पर ढोते हुए
जनता के साथ रहते हुएं
मैं कभी अपने को अकेला और
कमजोर महसूस नहीं करता
और जनता के कारण
इस अंधेरे में भी मुझे उजाला है दिखता
क्योंकि मेरे आंखों में जनता का सपना है पलता
जनता रहने के लिए महल नहीं
सिर्फ़ सर पर छत चाहती है
जो खाने के लिए छत्तीस पकवान नहीं
सिर्फ़ सुबह-शाम भरपेट भोजन चाहती है
और जल्दी से काम खत्म कर
इस दुनिया को जानना चाहती है !
- विनोद शंकर
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]