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साम्राज्यवादी युद्ध का विरोध करें !

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युद्धरत ताकतों के दोनों ही दलों की ओर से वर्तमान युद्ध साम्राज्यवादी युद्ध है, यानी विश्व प्रभुत्व से प्राप्त होे वाले लाभों के बंटवारे के लिए, वित्तीय (बैंक) पूंजी के बाजारों के लिए, कमजोर जातियों को गुलाम बनाने इत्यादि के लिए उसे पूंजीपति चला रहे हैं. युद्ध का प्रत्येक दिन वित्तीय और औद्यौगिक पूंजीपति वर्ग को धनवान बनाता है और सभी युद्धरत एवं तटस्थ देशों के सर्वहारा वर्ग तथा किसान समुदाय को निर्धन और निर्बल बनाता है. इसके अतिरिक्त रूस में युद्ध के अधिक दिनों तक जारी रहने में क्रान्ति की विजयों और उसके अपार विाकस के लिए गंभीर संकट निहित है – लेनिन

साम्राज्यवादी युद्ध को जन मुक्ति युद्ध में बदल दें !

भारत में जारी अमेरिकी उकसावे पर शुरू हुए साम्राज्यवादी युद्ध के खिलाफ भारतीय नागरिकों का विरोध शुरू हो गया है. जनअभियान बिहार के तहत काम कर रहे संगठनों ने एक पर्चा प्रकाशित कर सभी साम्राज्यवादी यु़द्धों का विरोध करते हुए आम नागरिकों को इसके विरोध में खड़े होने की अपील की है. इस संगठन के तहत जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी, एम0सी0पी0आई0(यू0), कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया, नागरिक अधिकार रक्षा मंच, जनवादी लोक मंच, सर्वहारा जन मोर्चा, सी.पी.आई. (एम.एल.), सी.पी.आई. (एम.एल.) – न्यू डेमोक्रेसी कार्यरत हैं.

जनअभियान बिहार के तहत जारी पर्चा में कहा गया है कि ‘साम्राज्यवाद का मतलब युद्ध होता है’ – यूक्रेन पर रूसी हमला फिर इस बात को चरितार्थ करता है. युद्ध की विभीषिका झेल रही यूक्रेनी जनता का दर्द सरकारों और शासक वर्गों द्वारा फैलाये गये युद्धोन्माद और अंधराष्ट्रवाद के पीछे की जनविरोधी नीति को दिखाता है. अपने लूटेरे स्वार्थों को पूरा करने के लिए, बाजार के लिए और सैन्य साजोसामान की बिक्री के लिए लगातार झूठ और राष्ट्रीय विद्वेष फैलाकर पूंजीपति वर्ग और उसके संस्थान अपने आपराधिक मंसूबों को अंजाम देते है. हमारे देश में तो सैनिकों की शहादत तक पर राजनीति की जाती है और उनके नाम पर वोट मांगा जाता है.

साम्राज्यवादी महाशक्तियां इसके लिए वैचारिक पृष्ठभूमि भी बनाती हैं और अपने युयुत्सु मंसूबों को जनतंत्र की रक्षा व देशभक्ति जैसे नाम भी देती हैं लेकिन हकीकत सर चढ़ कर बोलती है. इराक, लीबिया जैसे देशों मेें जनतंत्र बहाली के नाम पर संयुक्त राज्य अमेरिका ने चढ़ाई की और दखल जमाया. आज इन देशों में अराजकता व भ्रातृघातक लड़ाइयों का माहौल है और जनता पिस रही है. हां, तेल के भंडारों से अमेरिकी तेल कम्पनियां मालोमाल हो रही हैं लेकिन अमेरिकी जनता को तो इसके लिए टैक्स भरना पड़ता है. शिक्षा और स्वास्थ्य बजट में खर्च करने में असमर्थता दिखाने वाली अमेरिकी सरकार सैन्य मद में खर्चा बढ़ाती रहती है.

दो राष्ट्र (रूस व यूक्रेन) अचानक एक दूसरे के दुश्मन कैसे हो गए ?

ऐसा क्या हो गया कि दशकों से एक साथ अमन-चैन में रहने वाले दो राष्ट्र, रूस व यूक्रेन, अचानक एक दूसरे के दुश्मन हो गए ? सोवियत संघ के विघटन की पृष्ठभूमि में हम यदि इसे देखें तो पायेंगे कि दो अतिमहाशक्तियों, सोवियत संघ व संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच विश्व वर्चस्व के लिए प्रतिस्पर्धा में संयुक्त राज्य अमेरिका को तात्कालिक रूप से सफलता मिलती है, जिसकी शह से 1991 में सोवियत संघ का विघटन कर दिया जाता है और उसके स्थान पर यूक्रेन, जॉर्जिया, कज़ाकिस्तान जैसे अलग-अलग कई देश स्थापित होते हैं. पूर्वी यूरोप के देशों में अमेरिकीपरस्त कम्युनिस्ट विरोधी शक्तियां सत्ता में आती हैं.

यह वह काल है जब अमेरिका लगभग पूरे विश्व का नम्बर 1 पॉवर रहता है. अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश पूरी हेकड़ी के साथ ऐलान करता है कि यदि आप हमारे साथ नहीं हैं तो हमारे विरोध में हैं (यानी साथ दो वरना…). वह अपनी सफलता को सुनिश्चित करने के लिए रूस को घेरना चाहता था और पश्चिमी यूरोप में स्थित अमेरिकानीत सैन्य संगठन ‘नाटो’ का विस्तार करता जाता है. सोवियत संघ के विघटन के बाद कमजोर हुआ रूस फिर से धीरे-धीरे अपनी स्थिति सुदृढ़ करता है और अमेरिकी वर्चस्व को फिर से चुनौती देने लगता है.

रूस को घेरने के लिए अमेरिका यूक्रेन में 2014 में रूसी समर्थक राष्ट्रपति की सत्ता को पलट कर वहां अपना वर्चस्व बढ़ाता है, नाटो का यूक्रेन तक विस्तार करने और वहां रूस पर निशाना कर मिसाइल लगाने का प्रयास शुरू करता है. यूक्रेन रूस का बगलगीर है और उस तरफ से रूस पर ऐतिहासिक रूप में हमला होता रहा है और इसीलिए रूस इसका तीव्र विरोध करता है.

इतना ही नहीं रूस इसे अपने प्रभाव क्षेत्र में हस्तक्षेप भी मानता है और चेतावनी देता है. इसी तनातनी के प्रतिफल के रूप में रूस यूक्रेन पर हमला कर देता है और जनता पर तबाही लाता है. चीन-रूस के शक्तिशाली होने के साथ ही वे संयुक्त राज्य अमेरिका को चुनौती पेश करने लगे हैं और फिर से विश्व के बंटवारे का प्रयास हो रहा है. इस तनातनी के बीच यूक्रेन की जनता फंस कर पिस रही है और ‘साम्राज्यवाद का मतलब युद्ध है’, इस सत्य का वह दंश झेलने को मजबूर है.

साम्राज्यवादी अमेरिका और उसके नेतृत्व वाले आपराधिक सैन्य गठबंधन नाटो की संलिप्तता

इस बंटवारे के लिए जो भी युद्ध होगा वह सर्वथा अन्यायपूर्ण और दस्युचरित्र का ही होगा और हम भारत की जनता यूक्रेन की जनता के साथ हैं. याद रहे यह साम्राज्यवादी वर्चस्व का युद्ध है और इसमें साम्राज्यवादी अमेरिका और उसके नेतृत्व वाले आपराधिक सैन्य गठबंधन नाटो की संलिप्तता भी है. नाटो अपने को राष्ट्रीय आजादी और जनतंत्र के रक्षक के रूप में पेश करता है लेकिन उसके साम्राज्यवादी कारनामों का यदि जायजा लिया जाये तो हम पायेंगे कि वह घोर मानवद्रोही संगठन है. लीबिया से लेकर अफगानिस्तान तक में इसने नागरिकों के खिलाफ आपराधिक जुर्म किए हैं. यूगोस्लाविया के टुकड़े-टुकड़े करने में न केवल इसने आपराधिक ताकतों को बढ़ावा दिया बल्कि वहां नस्लीय दंगे करवाये जिसमें भारी संख्या में लोग विस्थापित हुए व मारे गए.

नाटो के जरिए अमेरिकी साम्राज्यवाद अपना वर्चस्व क्षेत्र बढ़ाते रहता है और दुनिया के देशों को तबाह करता है. इसमें अन्य यूरोपीय साम्राज्यवादी देशों की भी संलिप्तता रहती है. यह एक आपराधिक सैन्य गिरोह है जो सुरक्षा के नाम पर साम्राज्यवादी वर्चस्व कायम रखने का उपकरण है. सोवियत संघ के विघटन के बाद इसने अपना विस्तार शुुरू किया और पूर्वी यूरोप के देशों को इसका सदस्य बनाया. इस आपराधिक सैन्य संगठन नाटो को भंग करने की हम मांग करते हैं. खुद पश्चिमी देशों का मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल मानता है कि इसने जंग के दौरान वर्जित युद्ध अपराध किया है.

खासकर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद साम्राज्यवादी शक्तियों ने शक्ति संतुलन को देखते हुए महायुद्धों की जगह पर स्थानीय युद्धों को प्रश्रय दिया. इसके अलावा प्रच्छन्न युद्ध, प्रॉक्सी वॉर आदि का सहारा लिया और आतंकवादी गिरोहों को खड़ा किया गया. इसी मुहिम के तहत संयुक्त राज्य अमेरिका यूक्रेन के माध्यम से प्रॉक्सी वॉर करना चाहता रहा है और इसके लिए रूस को उकसाता रहा है. अपने वर्चस्व के लिए इसने पुराने व नए फासीवादी हिटलरी गिरोहों को प्रोत्साहित किया है जिनका यूक्रेन में अच्छा खासा दबदबा है. ये अपने ही देश के नागरिक के खिलाफ हिटलरी सेना का साथ देनेवाले गिरोहों के अंग हैं. इन हिटलरी गिरोहों को ध्वस्त करना जरूरी है और इन्हें भंग कर सजा देने की हम मांग करते हैं.

हम क्या करें ?

हम तमाम अमनपसंद नागरिकों से अपील करते हैं कि वे साम्राज्यवादी युद्ध का विरोध करें और यूक्रेन की जनता के साथ खड़े हों. अपनी पूंजी के लिए चारागाह बनाने के लिए, विश्व में प्रभाव क्षेत्र विस्तार के लिए व प्रभाव क्षेत्रों के पुनर्विभाजन के लिए पूरी दुनिया को तरह-तरह के युद्धों में झोंकने वाली पूंजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था के खिलाफ हम क्रांतिकारी जनसंघर्ष को आगे बढ़ाने की अपील करते हैं. आज प्रत्यक्ष रूप में भी हम यूक्रेन युद्ध का नतीजा झेल रहे हैं.

यूक्रेन में पढ़ने गए भारतीय छात्रों की दुःस्थिति को हम रोज देख रहे हैं. हम मांग करते हैं कि सरकार अविलम्ब इनको निकालकर देश लाने का काम करे. हम विश्व बाजार में कच्चे तेल की दामवृद्धि के रूप में भी इस युद्ध के परिणाम को देख रहे है. आने वाले दिनों में विश्व जनता को इस युद्ध की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. हम इससे अछूते नहीं रह सकते. इस मानवद्रोही साम्राज्यवादी व्यवस्था का एक ही विकल्प है – इंकलाब !

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