Home कविताएं मरम्मत से काम बनता नहीं

मरम्मत से काम बनता नहीं

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आपके साथ जो हुआ वह
निश्चित ही अन्याय है पर,
आपके बेटे की क्या गलती
जो बेशक बहुत अव्वल नहीं
लेकिन जिसके लिए किसी विद्यालय में
पढ़ने का अवसर नहीं

आपके भाई का गुस्सा एक दम वाजिब है
वर्षों से जमी जिसकी दुकान को
म्यूनिस्पैलिटी के ड्रोजरों ने
सड़क चौड़ाकरण अभियान में
पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया

आपकी बहन को भी गलत तो नहीं कहा जा सकता
नर्स की नौकरी ने जिसे इस कदर पेशेवर बना दिया
रात-बे-रात आना जिसके लिए बहुत मामूली बात हुआ
और उसका ही फायदा उठा
कम्बख्त हवस के अंधेरेपन ने लपेट लिया

आप खुद जानते हैं जनाब
आपके साथ जो घटा,
उसके लिए कसूरवार कौन ?
वैसे जल्द ढूंढ न पायेंगे

मैं तो एक पेंटर हूं
पेशे के तजुर्बे से कहूं तो
कसूरवार बहुत अदृश्य भी नहीं है

खैर, बहुत खराब पड़ी चीज को
नयी नकोर बनाना आसान नहीं
और आप हैं कि मरम्मत से भी कांप जाते हैं
मेरा क्या,
मैं तो रंग रोगन कर पकड़ा दूंगा
लेकिन मात्र रगड़-पट्टी और
ठोका-पीटी से काम बनता नहीं
पायेंगे कि जो पहले कुछ दबा ढका था
सब उघाड़ दिया मैंने

मैं तो एक साधारण दस्तकार हूं
आप चाहेंगे जैसा, कर दूंगा

पर तजुर्बे की बात है यह,
पुरानी-धुरानी, जो बेहद बेकार हो जाती ही चीजें

मरम्मत भर से भी,
कुछ काम बनता नहीं.

  • विजय गौड़

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