राम अयोध्या सिंह
धर्म वास्तव में सारे मानवीय अवगुणों का समुच्चय है, जिसका औचित्य साबित करने के लिए भी ईश्वर की न सिर्फ परिकल्पना की गई, बल्कि उसे स्थायित्व प्रदान करने के लिए उसका मानकीकरण और संस्थानीकीकरण किया गया, पर कभी भी उसका मानवीकरण नहीं किया गया. उल्टे उसका दैवीकरण किया गया और राजसत्ता के माध्यम से उसे संरक्षित और सुरक्षित रखा गया.
ईश्वर की परिकल्पना और खोज मूलतः हमारी कमजोरियों, शारीरिक और मानसिक अक्षमताओं, दुर्बलताओं, मूर्खता, अज्ञानता और असमर्थता का परिणाम और प्रतिबिंब है. हमारी इन्हीं कमजोरियों और अक्षमताओं को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए धर्म और धार्मिक स्थलों, संस्थाओं, पूजापाठ, पाखंडों और कर्मकांडों का जन्म हुआ.
यह सब कुछ जमीन पर सबसे पहले अपना दावा करने वाले क्षुद्र और धूर्त लोगों ने किया ताकि बहुसंख्यक मेहनतकश अवाम के श्रम का फल हम बैठकर खायें, और उन्हें उनके श्रम का उचित पारिश्रमिक भी न दें. मनुष्य द्वारा मनुष्य की गुलामी को बनाने और बनाये रखने में आर्थिक कारणों से भी ज्यादा धार्मिक संस्थाओं का योगदान रहा है. इसीलिए सबसे पहले धार्मिक संस्थाओं को ही सर्वव्यापी बनाया गया.
सामान्य लोगों के बीच यह भ्रम फैलाया गया कि भगवान सर्वव्यापी, सर्वश्रेष्ठ, सर्वशक्तिमान, न्यायप्रिय, दीनदयाल, दीनानाथ, गरीबों का मसीहा, परवरदिगार और न जाने क्या-क्या है. पर आज तक दुनिया में कहीं भी और कभी भी ईश्वर ने किसी भूखे को रोटी नहीं दी, गरीब को धन नहीं दिया, गरीबों के शोषण, दमन, उत्पीड़न और हासियाकरण के खिलाफ संघर्ष करने की तो बात ही छोड़िये, बचाने के लिए कभी प्रयास भी नहीं किया. क्या सर्वशक्तिमान ईश्वर का यही स्वरूप लोगों को बतलाया गया था, और क्या ईश्वर से यही अपेक्षित था ?
आखिर क्या कारण है कि ईश्वर हमेशा ही शोषकों, हत्यारों, अत्याचारियों, अपराधियों और भ्रष्टाचारियों को ही सुरक्षा देता रहा. अगर वह सिर्फ शोषकों और अत्याचारियों के लिए ही है, तो फिर वह ईश्वर कैसा ? ईश्वर की सत्ता को कायम रखने के लिए ही आज तक दुनिया की बहुसंख्यक मेहनतकश आबादी को शिक्षा से वंचित रखा गया है, ताकि वे ईश्वर, धर्म और धार्मिक संस्थाओं की असलियत न समझ जायें.
दुनिया में संपत्ति की लूट के लिए अनगिनत युद्ध हुए, अनगिनत लोग मारे गए, और अनगिनत औरतें विधवा होने के साथ ही बलात्कार का शिकार भी बनी. लेकिन, कभी भी धनलोलुप धनपशुओं के खिलाफ खड़ा नहीं हुआ. महिलाओं को बलात्कारियों से बचाने नहीं आया, मासूम और यतीम बच्चों की हिफाजत के लिए नहीं आया, क्या ऐसा ही परवरदिगार या दीनदयाल होता है ?
सच्चाई तो यही है कि धरती पर इन्हीं नराधम, धनपशुओं, अत्याचारी राजाओं, लूटेरों, शोषकों और बलात्कारियों को ईश्वर या भगवान के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है, और साथ ही इन्हें तर्क और बुद्धि के दायरे से बाहर रख, सिर्फ आस्था का विषय बनाया गया है. जब किसी परिकल्पना, सिद्धांत, मान्यता या खोज के बारे में जानने के लिए तर्क और बुद्धि का प्रवेश ही वर्जित कर दिया गया, तो फिर हम उसकी असलियत को समझेंगे कैसे ?
बहुसंख्यक मेहनतकश अवाम को न सिर्फ शारीरिक शोषण का शिकार होना पड़ा, बल्कि उन्हें ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला, दर्शन, इतिहास, राजनीति, धर्म और संस्कृति के संबंध में होने वाली बौद्धिक बहसों और उनके संबंध में रचनात्मक गतिविधियों से भी वंचित कर दिया गया. इसे यूं कहा जा सकता है कि बहुसंख्यक मेहनतकश अवाम को पशु की तरह ही हमेशा के लिए गुलाम बना दिया गया.
यही कारण है कि ईश्वर ने कभी भी मनुष्य का मनुष्य द्वारा गुलाम बनाये जाने के खिलाफ अपने मुंह से एक शब्द भी नहीं निकाला, वहां ईश्वर गूंगा बन जाता है. सच तो यही है कि ईश्वर गरीबों, मेहनतकशों, मजलूमों और लाचारों के लिए हमेशा ही अंधा, गूंगा, लंगड़ा, लुल्हा और माटी का माधो ही रहा, और ईश्वर का यही स्वरूप यथार्थ है, न कि धर्माचार्यों द्वारा ईश्वर के संबंध में फैलाया गया भ्रम.
ईश्वर न तो यूरोपियनों के जुल्म, अत्याचार, शोषण और हत्या से न तो रेड इंडियंस, भारतीयों, अस्ट्रेलिया के मूल निवासियों, लैटिन अमेरिकी देशों के निवासियों और न ही अफ्रीकी महाद्वीप के काले लोगों को ही बचाने आया, और न ही इन यूरोपीय लूटेरों और शोषकों को कोई सजा ही दी.
इतिहास गवाह है कि ये सभी भगवान सदैव ही लूटेरों, अत्याचारियों, बलात्कारियों, शोषकों में शामिल राजाओं, बादशाहों, सुल्तानों, महाराजाओं, पोपों, शंकराचार्यो, महंतों, नबियों, पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों, नेताओं, नौकरशाहों, दलालों, तस्करों, ठेकेदारों और माफियाओं के साथ ही खड़ा रहा.
ईश्वर दुनिया का सबसे बड़ा लूटेरा है. हजारों साल से वह सामान्य लोगों से चढ़ावा, भेंट और उपहार के रूप में अरबों-खरबों लेता रहा, पर अपने खजाने से एक धेला भी किसी असहाय को आज तक कभी दिया हो, ऐसा कभी सुनने में भी नहीं आया.
दुनिया का इतिहास इस बात का भी गवाह है कि जिन लोगों ने ईश्वर और ईश्वरीय सत्ता को चुनौती देकर ज्ञान-विज्ञान के साथ ही अनुसंधान और आविष्कार का सहारा लिया, वे ही आज दुनिया में सबसे आगे हैं. ईश्वर की सत्ता को चुनौती देने वाले को आखिर ईश्वर ने सजा क्यों नहीं दी ? यूरोपीय राज्यों ने ज्ञान-विज्ञान के सहारे दुनिया पर शासन किया, और आज वही काम अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस जैसे देश कर रहे हैं.
दूसरी ओर एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देश आज भी धर्म की जंजीरों में न सिर्फ जकड़े हुए हैं, बल्कि वे उसका आनंद भी उठा रहे हैं. आज की दुनिया में भारतीय उपमहाद्वीप, मध्यपूर्व, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देश के लोग ही धर्म की गुलामी का न सिर्फ जश्न मना रहे हैं, बल्कि अपनी धर्मपरायणता साबित करने के लिए बढ़-चढ़ कर भाग भी ले रहे हैं. और, इस क्रम में अमेरिका और यूरोप की लात भी खा रहे हैं, उनकी ही मर्जी से काम भी कर रहे हैं, और उनके ही हथियारों से एक-दूसरे को मार भी रहे हैं. पर आज भी वे अपने नागरिकों को आधुनिक, सार्वजनिक, सार्वभौमिक, सुगम, मुफ्त और वैज्ञानिक शिक्षा से वंचित रखे हुए हैं.
दुनिया में सबसे अधिक जलालत, जुल्म, फजीहत, गरीबी, भूखमरी, रोगग्रस्त और पिछड़ेपन का शिकार भी ऐसे ही लोग हैं, और अपने को ऐसी स्थिति में रखने वाले की जयजयकार भी कर रहे हैं. सच में, धार्मिकता का मोह इन्हें आत्महंता गिरोह के रूप में तब्दील कर दिया है. जो कौम अपनी जिंदगी नहीं बचा सकती, वह सर्वशक्तिमान भगवान को बचाने में लगी हुई है. यह दुःखद भी है, और आश्चर्यजनक भी है.
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धर्म और भगवान की उत्पत्ति
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