Home लघुकथा राजा का आदेश और देशद्रोही बूढ़ा

राजा का आदेश और देशद्रोही बूढ़ा

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सर्वप्रिय राजा ने प्रजा से कहा- ‘पुनर्निर्माण के लिए सारे गांव के पुराने भवनों को आग लगाना पड़ेगा.’

गांववाले : ‘महाराज की जय हो ! महाराज की जय हो !’

एक बूढ़े ने पूछा – ‘मगर तब तक गांववाले आखिर रहेंगें कहां ?’

गांव वालों ने बूढ़े को जिज्ञासा और राजा ने क्रोधित दृष्टि से देखा. तभी राजा ने मुस्कुराते हुए प्रजा की जिज्ञासा पर प्रहार किया और कहा – ‘भाइयो बहनों, आप लोग तो मेरे हृदय में रहेंगे !’

प्रजा : महाराज की जय हो ! महाराज की जय हो !

बूढ़े ने फिर कहा – ‘अरे पर हम रहेंगे कहां ?

इस बार भीड़ में से किसी ने कहा : ‘धरती मेरी माता, पिता आसमान.’ बस हो गया काम !

अगले दिन लोगों की बस्तियां जल रहीं थी. लोग पुनर्निर्माण के स्वप्न में खुशी से जयकारे लगा रहे थे.

वहीं दूसरी ओर राजद्रोह के आरोप में सुबह हरे भरे सुंदर पेड़ पर एक बूढ़े की लाश लटक रही थी !

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