बाप अकेला रहता था. बेटे उससे दूर एक शहर में रहते थे, अचानक एक दिन बाप के घर के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी. देखा तो सामने एक बेटा खड़ा था. पांवों में छाले पड़े हुए थे. हाल बेहाल था. बुरी तरह से थका हुआ था. कंधे पर एक पोटली टंगी हुई थी.
बाप हैरान परेशान. बेटे से पूछा – कोई एक्सीडेंट हो गया क्या ? किसी ने लूट लिया क्या ? तुम्हारी ऐसी हालत कैसे हो गई ?
बेटे ने कहा – ऐसा कुछ नहीं हुआ. मैं आपसे मिलने के और आपका खाना लेकर आया हूं.
बाप ने कहा – लेकिन खाना तो मेरे पास है. मैं रोज खाता हूं. तुम एक दिन खाना ले आये तो उससे मेरा क्या होगा. मुझको तो रोज ही बनाकर खाना है.
बेटे ने खीझकर कहा – कर दिया दिमाग खराब. मैं इतनी दूर से पैदल चलकर आपके लिए खाना लेकर आया हूं और आप कह रहे हो कि एक दिन तुम खाना दे दोगे तो उससे क्या होगा ?
बाप ने कहा – मूर्ख तुम्हारे पास गाड़ी हैं, फिर तुम पैदल क्यों आये ? माना तेल महंगा हो गया है तो किराए से भी आ सकते थे, फिर भी तुम सैंकड़ों किमी पैदल चलकर आये हो ?
बेटे ने कहा – मैं आपको खुश करने के लिए इतनी दूर पैदल चलकर आया हूं और आप मेरी श्रद्धा का अपमान कर रहे हो ?
बाप ने कहा – मूर्ख तुम्हारे पैदल चलने से मुझको कौन सा लाभ होगा ? तुम्हारे पैरों में जख्म देखकर मैं कैसे खुश हो सकता हूं ? कोई भी पिता सन्तान को कष्ट में देखकर कैसे खुश हो सकता है ? तुम अपनी मूर्खता को मुझ पर थोपना चाहते हो ? ठीक है तुम मेरे बेटे हो लेकिन मैं ऐसी मूर्खता को स्वीकार नहीं कर सकता. फौरन मेरे घर से बाहर निकल जाओ और फिर दोबारा कभी इस तरह से मेरे घर मत आना.
- सुधीर कुमार जाटव
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