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राजनीति : दूसरों पर आरोप लगाने के बजाय अपनी कमियां सुधारे

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राजनीति : दूसरों पर आरोप लगाने के बजाय अपनी कमियां सुधारे

हिमांशु कुमार, सामाजिक कार्यकर्त्ताहिमांशु कुमार, गांधीवादी कार्यकर्ता

मेरा जन्म एक सवर्ण हिन्दू परिवार में पुरुष के रूप में हुआ है इसलिए मेरा दायित्व है कि मैं सवर्णों हिन्दुओं और पुरुषों की समस्या पर सबसे पहले ध्यान दूं. जैसे जातिवाद सवर्णों की समस्या है, दलितों की समस्या नहीं है. जैसे पुरुषवाद और पितृसत्ता पुरुषों की समस्या है, स्त्रियों की समस्या नहीं है. जैसे भारत में हिंदुत्व विचारधारा का आतंकवाद और बहुसंख्य्वाद हिन्दुओं की समस्या है, अल्पसंख्यकों की समस्या नहीं है लेकिन हमें बचपन से गलत तरीके से सोचना सिखाया जाता है.

हम अपने द्वारा निर्मित सारी समस्या के लिए पीड़ित समुदाय को ही दोषी घोषित कर देते हैं. जैसे हम कहते हैं कि अपनी बुरी हालत के लिए दलित खुद ही ज़िम्मेदार हैं या हमें सिखाया जाता है कि आरक्षण के कारण समाज में भेदभाव है लेकिन यह नहीं बताया जाता कि आरक्षण से पहले तो और भी भयानक जातिवाद था.

हमें यह भी सिखाया जाता है कि औरतों को आज़ादी देने से वह बिगड़ जाती हैं या हमें सिखाया जाता है कि औरत ही औरत की दुश्मन है और मर्द तो औरतों को बराबरी और अधिकार देना चाहते हैं. इसी तरह हमें सिखाया जाता है कि मुसलमान कट्टर होते हैं और वे हमेशा लड़ाई-झगड़े करते रहते हैं और हिन्दू तो बड़े उदार और धर्मनिरपेक्ष होते हैं.
हमें यह नहीं बताया जाता कि कैसे हिन्दू ही दलितों के जनसंहार करते हैं. इस तरह की सोच का फायदा राजनीति उठाती है.

राजनीति कहती है आप बहुसंख्यकों का धर्म सबसे अच्छा है इसलिए आप हमें सत्ता सौंप दीजिये, फिर हम आपके धर्म की बातों को कानून बना देंगे. जैसे हम गाय खाने वालों को मारेंगे और जेल में डाल देंगे. लड़कियों के साथ घूमने-फिरने वालों को एंटी रोमियो स्क्वाड बना कर पीटेंगे. इस तरह की राजनीति बहुसंख्यकों का सबसे बड़ा नुकसान करती है और ऐसा नहीं है इस तरह की चालाकी भारत में ही की जाती है. पाकिस्तान में तो बहुसंख्यक मुसलमान हैं लेकिन पाकिस्तान में सबसे ज़्यादा इस्लाम खतरे में का हव्वा खड़ा करके सत्ता प्राप्त करी जाती रही है.

साम्प्रदायिकता अपने ही समुदाय का सबसे ज़्यादा नुक्सान करती है. मुसलमानों की साम्प्रदायिकता मुसलमानों को कट्टर, ज़ाहिल, गरीब और पिछड़ा बनाती है. इसी तरह भारत में हिन्दुओं की साप्रदायिकता भारत के हिन्दू किसानों, औरतों, छात्रों-नौजवानों, दलितों और आदिवासियों का नुक्सान और दमन कर रही है इसलिए मेरा फ़र्ज़ यह है कि मैं अपने समुदाय को इस साम्प्रदायिकता जातिवाद पुरुषवाद से आज़ाद कराऊँ ताकि हमारा समुदाय कट्टरता, क्रूरता, जातिवाद और मूर्खता से बाहर निकल सके.

अगर मैं मुसलमानों, दलितों या औरतों की कमियां ही खोजता रहूँगा तो खुद में सुधार कैसे करूंगा ? लेकिन जब मैं हिंदुत्व के आतंकवाद या जातिवाद पर लिखता हूँ तो मूर्ख हिन्दू आकर कहते हैं कि तेरे में दम है तो मुसलमानों के बारे में लिख कर दिखा. अरे भले लोगों, मैं लिख भी दूंगा तो क्या मुसलमान बदल जायेंगे ? उलटे मेरा नाम देख मुसलमान और भड़क जायेंगे और कहेंगे कि जा पहले अपना घर ठीक कर. जैसे अगर कोई मुसलमान, हिन्दुओं की कुरीतियों के बारे में लिखे तो कोई हिन्दू उसे गंभीरता से नहीं लेगा.

इसी तरह नक्सलवाद और सरकारी हिंसा के मामले में होता है. जब हम सरकारी हिंसा या सैनिकों द्वारा बलात्कारों के खिलाफ लिखते हैं और सरकार चिढ़ कर कहती है कि ये मानवाधिकार कार्यकर्ता कभी नक्सलियों की हिंसा के खिलाफ नहीं बोलते, बस सरकार की आलोचना करते रहते हैं. हमारा कहना है कि हम नक्सली होते तो नक्सलियों की कमियों पर बोलते लेकिन हम तो सरकार का हिस्सा हैं इसलिए सरकार गलत ना करे ये देखना हमारी ज़िम्मेदारी है.

सरकार हमारे टैक्स से चलती है. सिपाही की बंदूक गोली तनख्वाह हमारे पैसे से खरीदी जाती है इसलिए वह सिपाही जब बलात्कार करता है या निर्दोषों की ह्त्या करता है तो उसके लिए हम भी ज़िम्मेदार हैं. अगर हम अपने सिपाही के बलात्कार करने के खिलाफ नहीं बोलते तो इसका मतलब हम बलात्कार का समर्थन कर रहे हैं.

इसके उलट अगर नक्सली कोई गलती करते हैं तो उन्हें रोकने के लिए पुलिस, कोर्ट सब मौजूद हैं. नक्सलियों को रोकने के लिए हमारे बयानों की कोई ज़रुरत नहीं है. उन्हें रोकने में तो पूरी सरकार लगी हुई है लेकिन सैनिकों के अपराधों पर ना तो सरकार कोई कार्रवाई करती है, उलटे सरकार सिपाहियों के अपराध छिपाने में लग जाती है. ना हमारी अदालतें सैनिकों द्वारा किये गए मानवाधिकार हनन के अपराधों पर ध्यान देती हैं.
इसलिए यह हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपनी सरकार अपने सिपाहियों अपनी पूरी व्यवस्था को न्यायकारी, सही, जनहितकारी और संवैधानिक बनाये रखने की कोशिश करे इसलिए जब हम संविधान और मानवाधिकार की बात उठाते हैं तो सरकार डर जाती है और हमें चुप कराने की कोशिश में लग जाती है.

मोदी सरकार ने तो कई सारे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और गरीबों के मुकदमें लड़ने वाले वकीलों को जेल में ही बंद कर दिया है जैसे सुधा भारद्वाज, गाडलिंग, जीएन साईबाबा, शोमा सेन, सुधीर धवले, अरुण फरेरा और भी बहुत सारे लोग. तो मुसलमानों का फर्ज़ है वो अपने मज़हब में मौजूद बुराइयों को दूर करने की कोशिश करें. हिन्दुओं का फर्ज़ है वो अपनी कमियां दूर करें. सरकार का फर्ज़ है वो अपनी कमियां दूर करे
और अगर कोई आपकी कमियों पर ध्यान दिलाता है तो बदले में यह मत कहिये कि फलाने के खिलाफ बोल कर दिखाओ.

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ROHIT SHARMA

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