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रात के अंधरों में सिसकती जिन्दगी

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रात के अंधरों में सिसकती जिन्दगी

Md. Belalबेलाल आलम, सामाजिक कार्यकर्त्ता, हैल्पिंग हैण्ड्स

जिन्दगी कल्पना की एक ऐसी तस्वीर है जिसे आप जिस रूप में देखना चाहे, वह वैसी ही दिखती है. हकीकत और कल्पना ये सिक्के के वे दो पहलू है जिसमें एक बार में एक तरफ ही दिखता है. हमारा समाज भी एक सिक्के की तरह है, हम वही देखते हैं जो हम देखना चाहते हैं, और जो नहीं देखना चाहते हैं, उससे मुंह फेर लेते हैं.

ये बात कड़वी है पर ये समाज की सच्चाई है. गुमनामी के अंधेरों में जी रहे हैं हम. आज की जिंदगी इतनी व्यस्त हो चुकी है कि हमें खुद के लिए वक्त नहीं मिलता तो फिर दुसरों के लिए वक्त कैसे निकलेंगे हम ? कहने को तो हमारा देश चांद पर पहुंच गया. हर चार कदम पर मॉल है. 7वें और 8वें वेतन मिल रहा है. विदेशी कंपनियां आ चुकी है. फिर भी आज हमारे देश की जिन्दगी सड़कों के किनारों पर जी रही है.

ठंड का मौसम एक ऐसा मौसम है जिसका इंतजार हम साल भर करते हैं. ये वो मौसम है जिसमें लोग अपने घरों में कंबल के अंदर जा कर टीण् वी. देखते हुए गरमा-गरम पकौड़े खाते हैं. कमरे में हीटर जला कर ठंड का मजा लेते हैं. घूमने के लिए शिमला जाते हैं. पर क्या कभी हमने सोचा है, वे लोग जो गरीबी और गुमनामी में सड़कों पर लावारिसों की तरह अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं वे एक थर्रा देने वाली ठंड में किस तरह रात गुजारते होंगे ?

ये ठंड की रात किसी कयामत से कम नहीं होती है. शरीर पर एक पतली-सी चादर ठंड से कंपकपता शरीर सोने की कोशिश के बावजूद नींद नहीं आती है. बस इंतजार होता है सुबह होने का.

हमने बहुत शिक्षा प्राप्त कर लिया मगर इंसानियत की शिक्षा से दूर होते चले गए. एक बेहतर देश की बुनियाद एक बेहतर समाज से होता है और एक बेहतर समाज तक ही बनता है, जब हम बेहतर बने. हम उन गरीबों की मदद करे जो भूखे हैं, जिनके पास पहनने को कपड़े नहीं है. शिक्षा के अभाव में जिनका शोषण हो रहा है. जिस दिन हमारे देश में हर एक इंसान अपने घरों में चैन से सोएगा, उस दिन आप समझ लें हमारा लक्ष्य पूरा हुआ.

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