अगर सरकार को यह कानून चाहिए ही, तो कम से कम इसका नाम कुछ और कर लें. यह नाम तो राष्ट्र के लिए अपमानजनक है. एक निरीह आदमी जिस राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता हो, वो राष्ट्र अपने को कैसे महान और ताकतवर समझ सकता है ?
जिस राष्ट्र के पास राफेल जैसे आधुनिक जहाज है, परमाणु बम है, जां-बाज फौज है, ढेर सारी पुलिस है, इतने सारे हथियार हैं, देशभक्त संगठन है, अपार बहुमत से चुना हुआ एक वीर नायक है, जिससे चीन थर्राता है और पाकिस्तान कांपता है, उस ताकतवर राष्ट्र की सुरक्षा को किसी ऐसे आदमी से क्या खतरा हो सकता है, जिसके पास कोई हथियार तो छोड़िये, हथियार का लायसेंस तक नहीं है ? अपने ही देश का कोई निहत्था नागरिक राष्ट्र की सुरक्षा के लिए कैसे खतरा हो सकता है ?
मगर सरकारों को अपार शक्ति चाहिए, किसी और के खिलाफ नहीं, अपने ही नागरिकों के खिलाफ. गैरकानूनी ताकत. राष्ट्र की सुरक्षा का नाम तो झांसा देने के लिए है. अगर वाकई कोई आदमी राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा है, तो उसके खिलाफ बहुत से कानून पहले से हैं. अगर कोई आदमी हथियार जमा कर रहा है, तो उस पर बिना लायसेंस हथियार जमा करने का मुकदमा लगाया जा सकता है. अगर कोई आदमी राष्ट्र के खिलाफ जासूसी कर रहा है, तो उसे जासूसी के आरोप में धरा जा सकता है.
अगर कोई आदमी राष्ट्र के खिलाफ लोगों को भड़का रहा हो, तो राष्ट्रद्रोह का मुकदमा लगाया जा सकता है. सच तो यह है कि राज्य की ताकत के खिलाफ एक अकेले आदमी की कोई बिसात ही नहीं है. मगर फिर भी सरकार को ऐसा कानून चाहिए जिसमें वो किसी भी नागरिक को जब चाहे बंद कर दे और याद रहे कि ऐसा कानून अंग्रेजों की सरकार को नहीं चाहिए, हमारी ही सरकार को चाहिए, हमारे ही खिलाफ.
ऐसा कानून अगर अंग्रेज हमारे खिलाफ लाए होते तो क्या होता ? हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने लड़ाई की होती. ऐसे कितने ही काले कानूनों के खिलाफ हमारे वीर नायकों ने संघर्ष किया है. भगत सिंह ने असेंबली में बम ट्रेड डिस्पयूट बिल के खिलाफ फोड़ा था, जिसके तहत गोरों की सरकार ने मजदूरों से हड़ताल का हक छीन लिया था. राष्ट्रीय सुरक्षा कानून हैरतअंगेज तरीके से उस रौलेट एक्ट से मिलता है, जिसके खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों से संघर्ष किया था, गिरफ्तारियां दी थीं. जलियांवाला बाग हत्याकांड इसी रौलेट एक्ट के कारण हुआ था. देशप्रेमी लोग इस कानून के खिलाफ जलियावाला बाग में इकट्ठे हुए थे.
राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1980) के बारे में लिखा गया है – ‘यह देश की सुरक्षा के लिए सरकार को अधिक शक्ति देने से जुड़ा एक कानून है.’ गिरफ्तारी के बाद अधिकारी को राज्य सरकार को बताना पड़ता है कि किस आधार पर गिरफ्तारी की गई है. मगर रासुका के तहत किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी आरोप के एक साल तक जेल में रखा जा सकता है. अब रौलेट एक्ट पर भी एक नज़र डाल लेते हैं.
सिडनी रौलेट की अध्यक्षता वाली सेडिशन समिति की सिफारिशों पर बनाए गए जिस कानून को रौलेट एक्ट कहा गया, उसमें ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार प्राप्त हो गया कि वो किसी भारतीय को बिना मुकदमे जेल में बंद रख सके. इस कानून के तहत संदिग्ध अपराधी को उसे गिरफ्तार करने वाले अधिकारी का नाम तक जानने का अधिकार नहीं दिया गया. क्रांतिकारियों को कुचलने के लिए अंग्रेजों को ऐसे कानून की ज़रूरत थी. मगर हम भारतीयों को सन 1980 में इस कानून की क्या ज़रूरत थी ?
हम भारतीयों ने अंग्रेजों द्वारा बनाए गए एक काले कानून का विरोध किया और खुद ही अपने लिए एक ऐसा कानून बना लिया जो हू-ब-हू रोलेट एक्ट जैसा ही है. और इस कानून का दुरुपयोग कहां कहां हुआ, कैसे हुआ यह सब अलग से बताने की ज़रूरत नहीं. राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का सबसे ज्यादा दुरूपयोग राजनीतिक विरोधियों को जेल में डालने के लिए हो रहा है. डॉ. कफील खान इसका उदाहरण हैं. कफील खान के जिस भाषण को आधार बना कर उनके खिलाफ रासुका लगाई गई थी, उसे अदालत ने देश की एकता और अखंडता बढ़ाने वाला करार दिया.
मौजूदा समय में रासुका का दुरुपयोग कोरोना के मामलों में हो रहा है, जो दु:खद है. जिस किसी के भी खिलाफ मीडिया हल्ला मचा दे, उसे उठाकर रासुका के तहत अंदर कर दिया जाता है. कोरोना के मामले में तो मीडिया ट्रायल के जरिये बहुत लोगों पर रासुका लगी है. महामारी के इस खास समय में लापरवाही करना और जानबूझकर कोरोना संबंधित हिदायतों को नज़रअंदाज़ करना वाकई खतरनाक और गलत है, मगर राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा कुछ और चीज़ है.
हमारे कानून में महामारी से संबंधित धाराएं भी हैं. अठारह सौ पिचानवे में जब भारत में प्लेग फैला था, तब महामारी फैलाने वालों और लापरवाही करने वालों के खिलाफ कानून बनाया गया था. धारा 269-270 लापरवाही से महामारी फैलाने पर लगती है. सज़ा है दो साल की कैद और जुर्माना. पिछले दिनों इंदौर में उन पर रासुका लगाई गई, जिन्होंने स्वास्थ्य कर्मियों के साथ बदसलूकी की, जबकि इन पर धारा 269-270 और धारा 188 के तहत कार्रवाई होनी थी. खजराना में जुलूस निकालने वाले लोगों पर भी इन्हीं धाराओं के तहत केस बनना चाहिए था.
अव्वल तो राष्ट्रीय सुरक्षा कानून अपने आप में ताकत का दुरुपयोग है. फिर हर चलते फिरते पर रासुका लगा देना तो इसका घोरतम दुरुपयोग ही है. राष्ट्र की सुरक्षा के लिए देश के नागरिक खतरा हों ना हों, लोकतंत्र के लिए ऐसे कानून ज़रूर खतरा होते हैं. पिछले दिनों योगी सरकार ने भी इस कानून का दुरुपयोग कोरोना के प्रति लापरवाही बरतने वालों के खिलाफ किया. ऐसा ही दुरुपयोग दूसरी जगहों पर भी हो रहा है.
जिन लोगों को रासुका के तहत बंद किया गया, ये नासमझ लोग हो सकते हैं, मगर उस राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा नहीं हो सकते, जिसकी आबादी 130 करोड़ है और जो हर तरह से सक्षम है. अगर सरकार को यह कानून चाहिए ही, तो कम से कम इसका नाम कुछ और कर लें. यह नाम तो राष्ट्र के लिए अपमानजनक है. एक निरीह आदमी जिस राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता हो, वो राष्ट्र अपने को कैसे महान और ताकतवर समझ सकता है ?
- दीपक असीम
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