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कलंक कथाः राष्ट्रभक्तों का पत्र मोदी के नाम

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मोदी जी, गुलामी के हर कलंक को मिटा दो. फिर चाहे वो इंसान हो, स्थान हो, इमारत हो कुछ भी हो, जो कलंक है, उसको भारत की धरती से – मिटाओ और हमें मिटाने दो, Do and Let Us Do.

किसी गली का नाम उस्मानपाड़ा, किसी सड़क का नाम औरंगजेब रोड, किसी स्टेशन का नाम मुगलसराय, किसी शहर का नाम औरंगाबाद आज भी क्यों है ? हम देशभक्त राष्ट्रवादियों के इन सवालों की लिस्ट तो अंत हीन है.

गुलामी के कपड़ों में लिपटा “विकास” नहीं चाहिए, विकास भगवा ही चाहिए. अच्छा किया आजकल आपने, विकास और अच्छे दिन जैसी फालतू बातें करना बन्द कर दी हैं.

मोदी जी आपने गांधी, अम्बेडकर, पटेल, भगत सिंह, कर्पूरी ठाकुर, लोहिया आदि के विचारों का रंग गेरुआ और नेहरू का काला कर के दिखा दिया. देश का विश्वास आपके ऊपर जम चुका है.

युवाओं को रोजगार नहीं मिले, किसानों का फांसी पर लटक कर मरना नहीं रुका, भ्रष्टाचार नहीं रुका, महिलाओं की अस्मत की रक्षा नहींं हो सकी, तमाम घोषित योजनाएंं सफलता से जमीन पर नहीं उतर सकीं …, इनकी लिस्ट भी बहुत लंबी है.

कोई बात नहीं, ये आकांक्षायें आज नही कल पूरी हो जाएंगी. पर इनसे भी ज्यादा जरूरी है, गुलामी के हर कलंक को मिटाना. फिर चाहे वो इंसान हो, स्थान हो, इमारत हो, कुछ भी हो. जो कलंक है, उसको भारत की धरती से मिटा दो. Do and Let Us Do. तभी हमारी हजारों साल की प्यास बुझेगी. पांच नहीं जितने साल चाहो ले लो.

सत्तर साल में कई बुजदिल सरकारें आईं और चली गईं, किसी ने कुछ नही किया. मोदीजी अब उम्मीद सिर्फ आपसे है,

हमें यह जान कर अच्छा लगा कि बाजपेयी जी के अस्थियों की राख सबसे ज्यादा स्थानों पर केवल उत्तर प्रदेश की नदियों में जगह-जगह प्रवाहित की जाएंगी. क्या देश के अन्य हिस्सों में प्रवाहित करने के राजनैतिक लाभ-हानि का आंकलन किया जा रहा है ? अटल जी के सम्मान को इस समय राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार देने का कोई राजनैतिक औचित्य हमें नहीं दीखता ? अपितु खतरा ही दिखता है. पूरे देश में भाजपा विरोधी उनके लुंज-पुंज हिंदुत्व का गुणगान करने लगेंगे ? जो आपके उद्देश्य को भारी नुकसान पहुंचा सकता है.

उनके “लुंज-पुंज हिंदुत्व” ने 2004 में बीजेपी की लुटिया ही डुबो दी थी. वर्ष 2002 में गुजरात में आपके निर्णयों की धार और कलंक मिटाने की दृढ़ता देश देख ही चुका था. वर्ष 2004 में चुनाव की कमान, मोदी जी, यदि आपके हाथों आ गयी होती तो 2014 तक हमें इंतजार न करना होता.

अचानक मेरी नींद टूट गयी, मैं पसीने-पसीने था. रात अभी आधी से ज्यादा बाकी थी. फिर नींद आयी नहीं … कलंक मिटेगा या देश ? सोचता रहा.

– विनय ओसवाल

वरिष्ठ राजनीतिक विचारक एवं विश्लेषक
सम्पर्क नं. 7017339966

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ROHIT SHARMA

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