राणा जी के 25-25 किल्लो की 6 किडनियां थी. दाएं बाएं पैर में 24-24 अंगूठे थे. पैरों के जूते सीलने के लिए 2 शेरों की खाल की जरुरत पड़ती थी. दर्जन भर लुहार मिलकर उनके नाखून काटा करते थे. उनके कटे हुए नाखूनों से खेत जोतने के हल बनाये जाते थे. वे अपने कान का किटा फावड़े से साफ किया करते थे. किटा इतना अधिक हो जाता था कि उसे उठाने के लिए मजदूर बुलाकर ट्रैक्टर ट्रॉली भरवाई जाती थी. वे जब छींकते थे तब आस-पास खड़े पेड़ गिर जाया करते थे.
एक दिन की बात है, राणा जी दो बब्बर शेरों को कोहनी में दबाए जंगल से निकल रहे थे कि उन्होंने एक हाथी की करुण पुकार सुनी. थोड़े करीब गए तो देखा एक वृद्ध हाथी सूखे कुंवे में गिरा हुआ था. कुंवा काफी गहरा था. आपने कोहनी में दबाए दोनों शेरों को झटक कर दूर फेंका और कुंवे में कूद गए. अपना गमछा उतारकर हाथी के पेट पर बांधा और गमछा बांह में लटकाकर हाथी को पीठ पर लादकर कुंवे से बाहर निकाल लाए.
इतना ही नहीं उनका घोड़ा 4800 हॉर्स पावर का था. घोड़े में विशाल आकार के गन मेटल के बुश और गियर्स लगे थे. घोड़ा इतना चमत्कारी था कि सिंगल फेस और थ्री फेस दोनों से चलता था. घोड़े के पैर स्टेनलैस स्टील की 12″-12″ डायमीटर रॉड के बने थे. घोड़े की पूंछ जब जमीन से रगड़कर चलती थी तो नालियां बन जाया करती थी. पूंछ के नीचे लड़ाकू टैंक सिस्टम था जिसमें से बारूद निकलता था. नाक के नथुने तोप का काम किया करते थे और मुंह से अंगारे बरसते थे. इतना ही नहीं घोड़ा नाश्ते में 50 किलो लोहे के चने चबाता था.
और, सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह था कि राणाजी के घोड़े के मूंह पर हाथी का सूढ़ हुआ करता था और घोड़ा इतना ऊंचा था कि टप से मात्र 6 सेकंड में अकबर के सेनापति मानसिंह के हाथी के सर पर चढ़ जाया करता था. बस यही कारण था कि राणाजी ने कभी हार का मूंह नहीं देखा.
- बसंत सिलावत
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