राम भरोसे आई सरकार, हाईकोर्ट द्वारा राम भरोसे कह देने पर आहत हो गयी. हुआ यूं कि 17 मई को हाईकोर्ट इलाहाबाद ने कोरोना संक्रमण के संदर्भ में सरकार की बदइंतजामी पर सुनवाई करते हुए कह दिया कि, ‘उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था राम भरोसे है.’ इसका आशय यह था कि सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था को संभाल पाने में सक्षम नहीं है. राम भरोसे टिप्पणी के साथ-साथ हाईकोर्ट ने सरकार को हर गांव में दो एम्बुलेंस रखने और सभी निजी अस्पतालों में ऑक्सीजन आपूर्ति की व्यवस्था करने का निर्देश दिया.
उत्तर प्रदेश सरकार इस आदेश के खिलाफ तीन बिन्दुओं पर सुप्रीम कोर्ट चली गयी :
- हर गांव में दो-दो एम्बुलेंस की व्यवस्था संसाधनों के अभाव में नहीं की जा सकती है.
- हर निजी अस्पताल में ऑक्सीजन की व्यवस्था करना संभव नहीं है.
- राम भरोसे टिप्पणी हताश करने वाली है.
सुप्रीम कोर्ट ने पहले दो बिन्दुओं पर हाईकोर्ट के आदेश को स्थगित कर दिया और यह भी कह दिया कि ‘ऐसे आदेश न पारित किए जाएं जिनका व्यवहारिक रूप से पालन करना संभव नहीं है. ‘राम भरोसे’ शब्द पर सुप्रीम कोर्ट ने कुछ नहीं कहा. अब अगली सुनवाई 22 मई को होगी. यह भी विडंबना है कि राम पर एकाधिकार जताने वाली पार्टी की सरकार, राम के भरोसे है, शब्द से आहत हो गयी. भईया राम भरोसा भारी, यह तो हम बचपन से सुनते आए हैं, कभी बुरा नहीं लगा.
कल प्रधानमंत्री जी रूबरू हुए और उनके सम्बोधन का अंदाज़ अलग था. घबराए घबराए से, सहमे सहमे से नज़र आ रहे थे. बिल्कुल ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई छात्र परीक्षा की तैयारी के समय मस्ती और दिखावा करता रहा हो और अचानक उसके सामने ऐसा पेपर सामने आ गया हो, जिसके बारे में उसने कुछ पढ़ा ही न हो. प्रधानमंत्री की देश भाषा और चक्षु भंगिमा से हमें तो ऐसा ही लगा. आत्मविश्वास का अभाव, पराजय की पहली पहचान है.
अब एक प्रसंग पढ़ें. सन 1962 की जंग, हारी जा चुकी थी. नेहरू की लोकप्रियता पर ग्रहण लग चुका था. कभी डार्लिंग ऑफ मासेज कहे जाने वाले पंडित नेहरू चीन के हाथों शर्मनाक पराजय और सेना के प्रति अपने दृष्टिकोण के कारण तीखी आलोचना झेल रहे थे. उसी समय एक आयोजन में, लाल किले पर कविवर प्रदीप के लिखे अमर गीत, ‘ऐ मेरे वतन के लोगों,’ का गायन लता मंगेशकर के स्वर में होना प्रस्तावित था. यह कालजयी गीत लाल किले से गूंजा और लोगों की आंखें नम हो गयीं. खबर दूसरे दिन छपी कि, नेहरु वह गीत सुन कर रो पड़े थे.
किसी भी व्यक्ति का रोना अस्वाभाविक नहीं होता है. हम सब कभी न कभी, कहीं न कहीं, किसी न किसी अवसर पर रोते भी हैं. यह दुःख की इंटेंसिटी पर निर्भर करता है. नेहरू भी उस भावुक गीत पर खुद को रोक नहीं सके होंगे, रो पड़े होंगे. वे भावुक और कल्पनाजीवी तो थे ही.
महान समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया तब जीवित थे. वे नेहरू की नीतियों के कट्टर आलोचक थे. 17 खंडों में डॉ कृष्णनाथ द्वारा संपादित पुस्तक ‘लोकसभा में लोहिया’, को पढ़ कर संसदीय प्रणाली का अध्ययन करने वाले मित्र अपनी ज्ञान वृद्धि कर सकते हैं कि सदन में सरकार की कैसे तर्कपूर्ण आलोचना की जाती है. डॉ. लोहिया भी उसी आयोजन में उपस्थित थे. नेहरू द्वारा रोने की बात पर लोहिया ने कहा था –
यह रुदन सरकार की कमज़ोरी का रुदन है. सरकार इस पराजय के अपराध को आंसुओं से नहीं धो सकती है. सरकार को अपनी गलतियां, जिनकी वजह से हम जंग हारे हैं, स्वीकार कर के उनका परिमार्जन करना चाहिए, न कि सार्वजनिक स्थल पर इस प्रकार की कमज़ोरी दिखाना. यह अशोभनीय हो या न हो कमज़ोरी का प्रदर्शन है.
1962 की शर्मनाक पराजय के बाद ही सेना का महत्व बढ़ा. नए नए हथियार बनने शुरू हुए और ठीक तीन साल बाद 1965 के भारत पाक युद्ध में सेना ने जो कमाल कर दिखाया, वह दुनिया की मिलिट्री हिस्ट्री का एक गौरवपूर्ण पृष्ठ है. उस समय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे, जिन्होंने गज़ब की दृढ़ता और इच्छाशक्ति दिखाई.
आज पीएम का भावुक चेहरा, भरभराती आवाज़, कुछ को भावुक बना सकती है और कुछ, अतीत की अक्षमता को इन भावों में बहा देना भी चाहेंगे. पर जब प्रधानमंत्री जी द्वारा अतीत में किये गए प्रशासनिक निर्णयों की समीक्षा आप करेंगे तो –
- चाहे 2016 में लिया गया नोटबन्दी का निर्णय और तत्समय की गई प्रशासनिक भूले हों या,
- लॉक डाउन 2020 में किया गया हाहाकारी कुप्रबंधन हो,
- चाहे एक कर्नल सहित 20 सैनिकों की शहादत के बाद भी चीन की घुसपैठ और उसके हमले को सिरे से नकार देना और यह कहना कि, न कोई घुसा था न घुसा है, का हैरानी भरा सम्बोधन हो,
- या महामारी की इस दूसरी लहर में जब हम एक दिन में संक्रमण से मरने वालों की संख्या में दुनिया में शीर्ष पर आ गए हों,
- अच्छे अस्पतालों में भी ऑक्सीजन की कमी से मरीज पटापट मर रहे हों तो,
ऐसे अवसर पर पीएम द्वारा एक बार भी सामने न आकर कोरोना आपदा प्रबंधन के बारे में जनता से रूबरू होना, न ही कोई ट्वीट करना, और न ही जनता को आश्वस्त करना कि हम इस आपदा से निपटने के लिये क्या-क्या कर रहे हैं, आज की भावुकता को हास्यास्पद और अभिनय ही बना देती है.
भारत जैसे एक महान देश के प्रधानमंत्री का इस प्रकार भावुक हो जाना चिंता का कारण भी है और अवचेतन में बसी कुछ-कुछ अक्षमता का प्रदर्शन भी. यह बेबसी भी है और एक प्रकार की मजबूरी भी यह दिखती है. सरकार कहती है कि –
- उसने 20 लाख करोड़ का कोरोना राहत पैकेज 2020 में दिया.
- 35 हज़ार करोड़ रुपये टीकाकरण के लिये दिए.
- पीएम केयर्स फ़ंड से वेंटिलेटर के लिये पैसे दिए गए.
फिर लोग क्यों इलाज की बदइंतजामी से मर रहे हैं ?
क्या यह सवाल उस भावुक मन में भी कभी कौंधा था कि इतने धन के बाद भी कोरोना से लड़ने में कहा चूक हो गई ? अगर कौंधा था तो क्या इसके बारे में सरकार ने कोई पड़ताल की कि, इतने व्यय के बाद भी आज गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 10 लाख लोग कैसे मर गए हैं और यह क्रम अब भी क्यों जारी है ? गंगा का विस्तीर्ण पाट एक सामूहिक कब्रिस्तान बन गया है. लकड़ियां कम पड़ गयीं पर मौत नहीं रुक रही है.
शायद ही कोई मित्र हो जिसके घर परिवार, बंधु, बांधव, रिश्तेदारी में कोई कोरोना जन्य मौत न हुयी हो. इसे सरकारी आंकड़ों में मत ढूंढिए, इसे अपने इर्द-गिर्द पता लगाइए. आज सरकार को अगर उसका मन और आचरण इन आंसुओं से निर्मल हो गया हो तो, उसे हम सब को आश्वस्त करना होगा कि –
- पिछले एक साल में उसने इस महामारी को नियंत्रण में लाने के लिये क्या क्या कदम उठाए.
- दवाओं और ऑक्सीजन की उपलब्धता के लिये क्या क्या योजनाएं बनीं और उनमें से कितनी लागू हुयी और जो लागू नहीं हुयीं तो किसकी गलती थी ?
- टीकाकरण के लिये 35 हज़ार करोड़ की राशि तय होने के बाद भी अब अचानक यह फैसला क्यों ले लिया गया कि राज्य खुद खरीदेंगे ?
- क्या राज्यों से यह फीडबैक लिया गया कि उनके पास टीका के लिये कितना धन है ?
- केंद्र ही क्यों नहीं एक साथ खरीद कर जनसंख्या के अनुपात में राज्यों को टीका दे दे रहा है ?
और भी बहुत से सवाल हैं जब इन पर गम्भीरता से सोचा जाएगा तो वे खुद ब खुद सामने आएंगे. पर यह सारे सवाल महज भर्राई हुयी आवाज़, नम आंखें, और पश्चाताप प्रदर्शन के पीछे छुपाए नहीं जा सकते क्योंकि लोगों के घर मे मौतें हो रही हैं, बच्चे अनाथ हो रहे हैं. कमाने वाले पुरूष और महिलाएं मर रही हैं. और यह संख्या कम नहीं है, दिल दहला देने वाली है. आर्थिकी पर आगे क्या होगा, यह लोग अभी सोच नहीं पा रहे हैं.
महामारी के प्रति सरकार की चिंता और संवेदनशीलता का स्तर क्या रहा, इस पर कुछ प्रमुख केंद्रीय मंत्रियों के ट्वीट के विषयों का अध्ययन दैनिक भास्कर ने किया और जो नतीजे निकाले वे बेहद दिलचस्प हैं. द वायर ने इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट छापी है. दैनिक भास्कर ने नरेंद्र मोदी सरकार के कैबिनेट के दस मंत्रियों के ग्यारह सौ से अधिक ट्वीट्स का विश्लेषण किया है, जिसके अनुसार कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान इन मंत्रियों ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल के ज़रिये एक भी कोविड पीड़ित को ऑक्सीजन सिलेंडर या अस्पताल बेड दिलाने में मदद नहीं की. इस रिपोर्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट के 10 मंत्रियों के 1,110 ट्वीट्स का विश्लेषण किया जो कोविड-19 संक्रमण की दूसरी और तेज लहर के दौरान 1 मई से 14 मई तक किए गए थे.
रिपोर्ट से पता चला कि –
- किसी भी मंत्री ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल के माध्यम से एक भी कोविड-19 पीड़ित को ऑक्सीजन सिलेंडर या अस्पताल का बिस्तर खोजने में मदद नहीं की, जबकि लोग ऑक्सीजन और वेंटिलेटर बेड पाने के लिए बेहद परेशान हो रहे थे.
- गृह मंत्री अमित शाह ने 1 मई से 14 मई के बीच कोरोना वायरस से निपटने की तैयारियों से जुड़ा सिर्फ एक ट्वीट किया शाह की ट्विटर टाइमलाइन में चुनाव, जन्मदिन और पुण्यतिथि और शोक से संबंधित अधिक पोस्ट पाए गए और इसे देखकर ऐसा लगता ही नहीं है कि भारत महामारी की दूसरी लहर के दौर से गुजर रहा था.
- जब महामारी से निपटने को लेकर देश से विदेश तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा था तब एक भाजपा नेता द्वारा उनके बचाव में लिखे गए एक लेख को साझा करने के लिए कई मंत्री सामने आए और उस लेख को साझा किया.
- इसी अवधि के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कोविड-19 की तैयारियों से संबंधित केवल पांच ट्वीट किए, जिसमें सेना के प्रयास और उनकी लखनऊ यात्रा शामिल से जुड़े ट्वीट शामिल हैं. उन्होंने मोदी के कुछ ट्वीट्स को रीट्वीट भी किया है.
- विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने 1-14 मई के बीच कोविड-19 की तैयारी से संबंधित 37 ट्वीट किए. इनमें से अधिकांश ट्वीट्स ने भारत को कोविड -19 संबंधित चिकित्सा आपूर्ति के लिए अन्य देशों के प्रतिनिधियों को धन्यवाद दिया और इसमें जी-7 शिखर सम्मेलन के अपडेट शामिल थे.
- जी-7 शिखर सम्मेलन में कुछ भारतीय प्रतिनिधियों के पॉजिटिव पाए जाने के बाद जयशंकर ने वर्चुअल बैठकें आयोजित करने के बारे में ट्वीट किया. कोविड-19 पॉजिटिव पाए जाने वाले कुछ लोगों के संपर्क में आने के कुछ दिनों बाद 8 मई को उन्होंने ट्वीट किया कि उन्हें कोविड-19 नहीं है.
- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कुल 48 ट्वीट किए, जिनमें से 22 कोविड-19 से संबंधित थे. उनका एक ट्वीट टीकों पर जीएसटी से जुड़ा था. अन्य ट्वीट में पीएम-किसान, आवास योजनाओं आदि की बात की गई. उन्होंने भी प्रधानमंत्री मोदी के कई ट्वीट्स को रीट्वीट किया.
- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने इस दौरान 247 बार ट्वीट किया. उनके अधिकांश ट्वीट कोविड-19 से संबंधित थे, जिनमें मामलों के आंकड़े, टीकों के बारे में जानकारी और उनके द्वारा किए गए अस्पताल के दौरे और सरकार के प्रयास शामिल थे. कई ट्वीट्स में उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और केंद्र सरकार का बचाव किया क्योंकि उन्हें कुप्रबंधन के सवालों का सामना करना पड़ा था.
- केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल ने ज्यादातर ‘ऑक्सीजन एक्सप्रेस’ को लेकर ट्वीट किया. उनके कुछ ट्वीट्स ने देश में वायरस के प्रसार को रोकने के लिए केंद्र सरकार के प्रयासों का भी बचाव किया.
- 1 से 14 मई तक केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की ट्विटर टाइमलाइन में टीकों पर अपडेट और सरकार के प्रयासों की प्रशंसा की गई है. उन्होंने मोदी, भाजपा और पीआईबी के ट्विटर हैंडल के कई ट्वीट्स को रीट्वीट भी किया है.
- शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने 285 ट्वीट किए. इनमें से 83 ट्वीट्स कोविड-19 से संबंधित थे, जिनमें टीकों पर संदेश और वायरस के प्रति जागरूकता शामिल है. रिपोर्ट के मुताबिक कम से कम 24 ट्वीट में प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ की गई.
- केंद्रीय सड़क और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के 32 ट्वीट कोविड-19 से संबंधित थे, जिनमें आधिकारिक बैठकों के अपडेट, नागपुर में टीकाकरण अभियान और रेमेडिसविर के उत्पादन की निगरानी के लिए वर्धा में जेनेटिक लाइफ साइंसेज की यात्रा करना शामिल है.
- नितिन गडकरी के ट्वीट में उन्होंने अपने कई सहयोगियों के विपरीत, अपने किसी भी ट्वीट में प्रधानमंत्री मोदी का उल्लेख नहीं किया है.
पूरी की पूरी कैबिनेट ही बस एक ही एजेंडे पर काम कर रही है कि प्रधानमंत्री की निजी छवि कैसे बचायी जाय. आज दुनियाभर के अखबार देश में कोरोना से हुयी मौतों की भयावह कहानियां, फ़ोटो और वीडियो प्रसारित और प्रकाशित कर रहे हैं. सीएनएन का अनुमान है कि दूसरी लहर कम से कम 30 लाख लोगों की जान लेगी. अस्पताल, बेड, दवाओं और ऑक्सीजन की कमी की समस्या से जूझ रहे हैं. हेल्थकेयर स्टाफ और डॉक्टर भी इस तबाही से मर रहे हैं. आईएमए का कहना है कि 270 डॉक्टरों की मौत हो चुकी है, इनमें युवा डॉक्टर अधिक हैं. कुछ तो बेहद काबिल विशेषज्ञ डॉक्टर भी हैं.
पर इन सब तबाही भरे हालात के बीच भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता एक फर्जी लेटरहेड पर अपनी राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता के लिये कांग्रेस पर यह इल्जाम लगा रहे हैं कि वह प्रधानमंत्री की छवि को खराब करने की कोशिश कर रही है. संबित पात्रा का यह कदम भी एक फरेब और फ्रॉड साबित हुआ. खुद ट्विटर ने इसे मैनिपुलेटेड डॉक्यूमेंट कहा और इसे उसने ट्विटर पर घोषित भी किया. प्रधानमंत्री का भावुक हो जाना एक ड्रामे से अधिक कुछ नहीं है और अक्सर ऐसी भावुकता तब ओढ़ी जाती है जब अपनी अक्षमता उजागर होने लगती है.
- विजय शंकर सिंह
रिटायर्ड आईपीएस
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