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राम का नाम लेने के पहले

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राम का नाम लेने के पहले

Subroto Chaterjiसुब्रतो चटर्जी

हे राम ! रघुपति राघव राजा राम से लेकर जय श्री राम एक ही सांस्कृतिक बोध का नतीजा है. गांंधी का ही एक अंश गोडसे बनता है और दूसरा जिन्ना.

विपरीत गामी भावों में एक समानता होती है, इसे हम ध्रुवीय समानता कह सकते हैं. गांंधी जी का विशाल समावेशी व्यक्तित्व इन विरोधाभासों को समेट कर जिसे अखंड भारत की राह पर चला था, उसका जनाजा तो 15 अगस्त 1947 के पहले ही निकल गया था. फिर भी दिल में कुछ अरमान मचलते रहे; शायद अब और नहीं.

मैंने बार-बार कहा है, हर सांप्रदायिक दंगा, सोच, वक्तव्य, विचार, निर्णय, भारत को एक बार और बांंटता है. विस्थापन जब शारीरिक होता है, तो दिखता है इसलिए कष्टदायी होता है. जब वही विस्थापन मानसिक होता है तो दिखता नहीं है, इसलिए कष्टदायी नहीं होता.

कल तक पड़ोस में रहने वाले रहीम चाचा की हत्या पर जब राम ख़ुशी के दिये जलाता है, तब मानसिक विस्थापन का एक चक्र पूरा होता है. हम थोड़ा कम आदमी रह जाते हैं, लेकिन हमें इसका अफ़सोस नहीं, गर्व होता है.

दक्षिणपंथी राजनीति की दो धाराएंं, नरम और गरम हिंदुत्व कांग्रेस और भाजपा के रूप में मौजूद हैं. एक धारा गर्भ गृह का ताला खोलती है, दूसरी तीनों गुंबद तोड़ती है. ठीक गांंधी जी के सीने में उतरी तीन गोलियों की तरह.

ईश्वर अल्लाह तेरे नाम … कहांं चूक हो गई ?
चूक ईश्वर और अल्लाह में आस्था में है. जब भी आप किसी सर्वशक्तिमान की पूजा में लीन रहते हैं, आप थोड़ा कम हो जाते हैं, बौद्धिक और सैद्धांतिक रूप से.

फिर आदमी छोटा होते रहता है, अमीबा की तरह बंटते जाता है, जात-पात, भाषा और क्षेत्र में, देश-विदेश-महादेश में. बंटने की इस सतत प्रक्रिया में उस आदमी का चेहरा कहीं खो जाता है जो नंग-धड़ंग पैदा हुआ था, बस एक बायोलोजिकल अस्तित्व लिए. विलियम ब्लेक ने जब Songs if Innocence and Songs of Experience लिखा तब इस चारित्रिक और बौद्धिक क्षय की बात कही.

आज का दिन भारत के इतिहास में सबसे काला दिन के रूप में दर्ज़ किया जाएगा. कारण यह नहीं है कि अशुभ मुहूर्त में दूसरी बार मंदिर का शिलान्यास हो रहा है. कारण यह भी नहीं है कि एक शूद्र के हाथों यह काम हो रहा है; पहली बार भी एक शूद्र के हाथों ही हुआ था. कारण यह भी नहीं है कि यह फ़ालतू काम कोरोना काल में हो रहा है; महामारियांं आती-जाती रहती हैं. कारण यह भी नहीं है कि हम आर्थिक दृष्टि से चालीस साल पीछे चल गए हैं भारत के सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री के युग में.

कारण यह है कि आज भारत का एक और विभाजन हुआ है जो कि ऐतिहासिक है. विकृत बहुसंख्यकवाद की चेतना के साथ जुड़ कर हम आज गर्वित महसूस कर रहे हैं. कारण यह है कि आज प्रधानमंत्री के पूजा में बैठते ही संविधान ख़त्म हो गया. हर बात को कहने की ज़रूरत नहीं होती; आप असहमति जताने के लिए मीटिंग से उठ कर भी जा सकते हैं.

राम मंदिर केस पर निर्णय देने के समय जन भावनाओं का सम्मान करने के लिए भारतीय न्यायपालिका ने ख़ुदकुशी की थी, प्रधानमंत्री ने संविधान की बलि दी.

गांंधी जी को याद करने का यह सबसे माकूल समय है. कारण यह नहीं है कि उनका सर्व धर्म सम्मेलन की चेतना, जिस पर टैगोर ने लिखा, एई भारतेर महामानबेर सागर तीरे, यानि इस भारत के महा मानव सम्मेलन के समुद्र किनारे हम सब नियति द्वारा चयनित हैं, वह चेतना आज छिन्न भिन्न हो गई सदा के लिए.

गांंधी जी मुझे इसलिए याद आ रहे हैं क्योंकि आध्यात्म और राजनीति का जो घालमेल उन्होंने भारत को एक सूत्र में बांधने के लिए किया था, आज उसकी तार्किक परिणति है.

6 दिसंबर 1992 में जो प्रतीकात्मक था, वह आज वास्तविक है. समय के साथ-साथ प्रतीक और वास्तव एक दूसरे का स्थान बदलते रहते हैं. आदमी उलझ कर रह जाता है.

आज मैं उन विलीन सभ्यताओं, उनके लुप्त ईश्वर, देवी देवताओं को भी याद कर रहा हूंं. विमल मित्र के उपन्यास ‘साहब बीवी और ग़ुलाम’ के चरित्र घड़ी बाबू की तरह खुद को एक ऐसे कमरे में क़ैद पाता हूंं, जहां सैकड़ों बंद घड़ियांं हैं जिनको चालू करने का ज़िम्मा मुझ पर है. मुझे भी लगता है कि कुछ भी नहीं बचेगा, न ये महल, न ये राजे रजवाड़े.

आस्था और राजनीति के घालमेल ने भारत में क्रांति की धार को न सिर्फ़ कुंद किया है, बल्कि हमें एक ऐसे मानवेतर जीव में बदल चुका है कि हम सांंस लेने भर को ज़िंदा रहना समझ बैठे हैं.

गांंधी जी बहुत खुश होंगे आज. भारत की नव जागृत राजनीतिक चेतना में जो धर्म का ज़हर उन्होंने घोला था आज उस यज्ञ की पूर्णाहुति है. इतिहास में एक निरंतरता होती है, जिसका आधार बौद्धिक होता है.

मैं नहीं जानता कि गांंधी जी के अंतिम शब्द ‘हे राम’ थे कि नहीं, ये सुनी सुनाई बातें हैं; लेकिन मैं इतना ज़रूर जानता हूंं कि अगर आज गांंधी जी होते तो कम्युनिस्ट होते.

लाख कमियों के वावजूद गांंधी जी हमेशा सत्य के साथ प्रयोग में आजीवन रत रहे. कम से कम इतनी चारित्रिक शक्ति तो आदमी में होनी ही चाहिए गांंधी के देश में ! या फिर हम गोडसे के देश में हैं ? अगली बार राम का नाम लेने के पहले सोचिएगा ज़रूर.

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ROHIT SHARMA

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