भैया ये नियोग का मतलब समझे क्या ? वो ऐसा है कि वैदिक साहित्य, शास्त्रों और धार्मिक ग्रंथों के पितृसत्तात्मक पुरुषवादी सोच के ज्ञानी पुरुष लिख गए हैं कि यदि पारिवार का मुख्य पुरुष सदस्य पुत्र उत्पन्न किये बिना मृत्यु को प्राप्त हो जाये या नपुंसक हो या अन्य किसी कारण से संतान उत्पन्न करने की क्षमता न रखता हो तो परिवार का नाम चलाने के लिए स्त्री को अपने ससुर, जेठ, देवर, दूर के मर्द रिश्तेदार, पारिवारिक मित्र, दास और नौकर तक से मैथुन (सम्भोग) कर परिवार का नाम चलाने के लिए पुत्र रत्न प्राप्ति कर लेनी चाहिए, यह स्त्री का कर्तव्य है. शास्त्रों में इस व्यवस्था को ही नियोग कहा गया है. आगे चलकर नियोग की आड़ में स्त्री से संभोग के लिए उसकी मर्ज़ी के पुरुष के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया. विधवा स्त्री पारिवारिक संपत्ति और सेक्स ऑब्जेक्ट की तरह अपने घरों में ही प्रयुक्त कर शोषित होती रही.
पुनर्जागरण काल में जब राजा राम मोहन राय, विद्यासागर, सावित्री फूले, फातिमा बीबी जैसे लोग सदियों से प्रताड़ित स्त्री को विभिन्न अधिकार और शिक्षा दिलाने के लिए जूझ रहे थे, उसी काल में हिन्दू धर्म के पुनरुत्थानकर्ता स्वामी दयानंद सरस्वती जी भी अपनी पुस्तक ’सत्यार्थ प्रकाश’ में इस नियोग व्यवस्था का पुरजोर समर्थन ही नहीं बल्कि इसकी पुनर्स्थापना भी कर रहे थे.
आधुनिक काल में ये सर्वविदित है कि भाजपा के लिए 2014 के चुनाव के तारणहार मोदी जी अपनी किसी महत्वाकांक्षा या मरदाना कमज़ोरी या संन्यास की झूठी सनक के तहत अपनी ब्याहता स्त्री को छोड़ भागे. आगे चलकर वे सन्यासी भी नहीं रहे और राजनैतिक भोग-विलास की वास्तविक दुनिया में लौट आये. उन्होंने राजनैतिक दल के रूप में भाजपा का वरण किया और 2014 में शीघ्र ही विकास को पैदा करने का चुनावी वादा किया. दुर्भाग्य से अपनी वैवाहिक ज़िन्दगी की तरह वे यहां भी असफल हुए और ढाई साल के अथक परिश्रम के फलस्वरूप विकास को पैदा न कर सके.
आगे की स्थिति को ऐसे समझने का प्रयास करें कि जो महानुभाव भाजपा और नारायण दत्त तिवारी के गठबंधन का मज़ाक उड़ा रहे हैं या आलोचना कर रहे हैं, वे अज्ञानी पुरुष हैं और शास्त्र तथा सत्यार्थ प्रकाश में वर्णित नियोग की परंपरा के ज्ञान से वंचित हैं.
दरअसल मोदी जी और भाजपा ने राष्ट्र हित एवं देश की भलाई के लिए नियोग की परंपरा का मॉडिफिकेशन कर इसे पारिवारिक क्षेत्र से अपग्रेड कर राजनैतिक क्षेत्र में भी लागू करने में सफलता पाई है.
अभी तक जो मोदी जी नहीं कर सके थे, उसे कराने का एक प्रयास एन डी तिवारी को भाजपा में लाकर किया गया था. सोचा गया था कि भाजपा और एन डी तिवारी जी के संसर्ग से वो हो सकेगा. नियोग से विकास पैदा हो सकेगा. ब्राह्मणवादी सोच से लबरेज़ पार्टी ने विकास उत्पन्न करने के लिए भी राजनैतिक लंपटता के गुरु घंटाल 91 वर्षीय ब्राह्मण का ही वरण किया था.
देश ने सोहर गीत गाने की तैयारी शुरू भी कर दी थी. हम थाली और बेलन बजाने और सड़क पर नृत्य करने को तैयार थे कि तिवारी और भाजपा के नियोग से विकास पैदा होगा और उसे मोदी जी का नाम दे दिया जाएगा, तो हम भी खुश हो लेंगे लेकिन तैयारी धरी रह गयी. विकास पैदा करवाने में सहयोग देने की जगह तिवारी जी खयड ही निकल गए थे.
मोदी जी के त्याग और तिवारी जी के 91 वर्षीय पौरुष के दम पर अब विकास पैदा होकर नही दिया गया. हालांकि तिवारी जी का रिकॉर्ड इस क्षेत्र में बहुत अच्छा था. भारत की न्यायपालिका तक इसे मानती थी.
बस सवाल ये है कि बुढ़ौती में चल रहे व्यक्ति से राजनैतिक नियोग कर भाजपा कैसा विकास पैदा कर पाती है ? क्या विकलांग विकास ? थका और लुंज पुंज विकास ? खैर वह योजना तो किसी सतिरे नहीं चढ़ी. अब प्लान बी के तहत विकास उत्पन्न जरने के लिए घर के अंदर के ही मर्द सदस्य गडकरी जी से नियोग सहायता की उम्मीद पाली जा रही है. अबकी विकास होकर ही रहेगा.
नोटबन्दी के दौरान देश भर में शादियों के लिए पैसा न होने के दौरान गडकरी जी ने अपनी बिटिया की शादी कैसै विकसित अवस्था में कर लेने में कामयाबी पायी थी, यही उनके पौरुष की पहचान है. बाकी बचे 77 दिन में विकास पैदा हो जाये तो आश्चर्य मत कीजियेगा !
- फरीदी अल हसन तनवीर
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