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राजपक्षे को तो मुक्ति मिल गई लेकिन श्रीलंका की जनता को क्या मिला ?

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राजपक्षे को तो मुक्ति मिल गई लेकिन श्रीलंका की जनता को क्या मिला ?
राजपक्षे को तो मुक्ति मिल गई लेकिन श्रीलंका की जनता को क्या मिला ?

राजपक्षे को मुक्ति मिल गई. पूर्व राष्ट्रपति अपनी दौलत के साथ आराम से सिंगापुर मे जी लेंगे. उनके परीवार की दौलत भी उनके पास ही है.क्षसाथ देने वाले उद्योगपति, ठेकेदार, नेता … सभी अपनी जिदगियां आराम से जियेगें, देश में रहें या विदेश में, क्या फर्क पड़ता है. लेकिन जनता को श्रीलंका में रहना है, उसे वो सारा कर्ज पटाना हैं जो उसने लिया नहीं, जिसे लेने से पहले उससे पूछा नहीं गया.

आराम से जो काम बैलेट के माध्यम से हो सकता था, उसे लुटने पिटने के बाद सड़कों पर उतर कर हासिल किया गया. वोट देते समय तो दिमाग में सिहली गर्व और अल्पसंख्यकों के प्रति नफरत थी. जब देश के पोर्ट, हवाई अड्डे और तमाम परिसंपत्तियां दिन के उजाले में विदेशियों के हाथ लुटाए जा रहे थे, जनता ने देखने से इंकार कर दिया. संपत्ति तो सार्वजनिक थीस नफरत निजी थी तो निजी आनंद बड़ा था.

इस आनंद की कीमत अब सारी जिंदगी चुकानी है. कर्ज पहले ही देश के तमाम उत्पादन से ज्यादा हो चुका है. आगे देश चलाने के लिए नई सरकार और भी कर्ज लेगी. इस कर्ज से लंका खड़ा होगा, जिदगी चलेगी तो टैक्स फिर से आना शुरू होगा. इस टैक्स का ज्यादातर हिस्सा कर्ज चुकाने में जाएगा. दरसअल, आने वाले कुछ दशकों का टैक्स, यानी नेशनल इनकम, कर्ज की किस्तों के रूप में विदेश जाएगा, जो पंद्रह साल तक राजपक्षे राज चुनने का भुगतान होगा.

टैक्स लेने का मोटिव जनसुविधाऐं उपलब्ध कराना होता है. सरकार आपको अमीर नहीं बना सकती पर वह अपने हिस्से की लूट कम कर सकती है. वह अपना खर्च भी इस तरह से डिजाइन कर सकती है कि आपके खर्च घट जाऐं. मसलन अच्छे स्कूल कालेज और अच्छे अस्पताल बनाकर आपका ढेर सारे पैसे वह बचा सकती है, जो आप इलाज या शिक्षा पर खर्च करते. आपकी सैलरी, पेंशन बढा सकती थी, आपको अफोर्डेबल मकान बनाकर लीज पर दे सकती है.

लेकिन श्रीलंका की आने वाली दो दशकों की सरकार के पास वैसा मौका नहीं होगा. जनता की कमाई का ज्यादातर हिस्सा लूटकर वह विदेश भेजेगी. यह लंकाइयों के लिए एक्सट्रीम पावर्टी (बेइंतहा दरिद्रता) की राह है. यह सजा भुगतनी ही है इसलिए कि उसने राजपक्षे से प्यार किया था, उसकी बांटी अफीम खाई थी.

सच्चाई यह है कि भारत के अगले बजट में कमाई का साठ प्रतिशत हिस्सा कर्जों के भुगतान में जाएगा. 70 साल में जो विदेशी कर्ज 52 लाख करोड जमा हुआ था, वह आठ साल मे 125 लाख करोड जा चुका है लेकिन खर्च बेतहाशें है. एयरपोर्ट और एक्सप्रेस वे बन रहे हैं, दाल, चावल, दही लूटा जा रहा है. आपके लंच की चार रोटियों में से 2 सरकार खा रही है. यह आपकी नफरत की कीमत है.

इस चमकदार नफरत में आपने दिन दहाड़े डाके को देखने से इन्कार कर दिया. बैंकों को डूबते देखा, रिजर्व बैंक का सरप्लस लुटते देखा, डिफाल्टर्स को भागते देखा, नौकरियां छूटती देखी, स्कूल, अस्पताल, पेंशन पर डाका देखा, इस पर बात करने वालों पर एजेंसियों के छापे देखे लेकिन आप खुश रहे क्योकि मुसलमानों की चूड़ी टाइट हो रही है.

सजा श्रीलंका की ही तरह भुगतनी है. आखिर हमने भी तो ठीक वही किया है. मौत के सौदागरों की बांटी अफीम खाई है, हत्यारों से प्यार किया है. होश आने के बाद बची जिंदगी इस नशे की किस्तों का भुगतान करना है.

सवाल यह आज मौजूं है कि श्रीलंका को क्या मिला लेकिन जब आप इस रेजीम से छुटकारा पाऐंगे, अपने घावों और धंसे पेट को सहलाते हुए खुद को यह सवाल करते पाऐंगे कि भारत को क्या मिला ?

  • विशाल जार्ज

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