द्वितीय विश्व युद्ध समाप्ति के बाद दुनिया में जिस किसी राष्ट्राध्यक्ष की मौत हुई है, उसमें अमरीकी खुफिया एजेंसी सीआईए का हाथ होता आया है. यह वही सीआईए है जिसने अपने 4 राष्ट्रपतियों की हत्या को देखा और हमेशा अमरीकी सत्ताधारी पार्टी की कठपुतली बना रहा.
हालांकि सीआईए ने अपनी ढाल के लिए मोसाद को भी जासूसी के गुर जरूर सिखाए लेकिन मोसाद सिर्फ सीआईए के लिए एक इस्तेमाल की चीज है. जैसे ठीक इस समय ईरानी राष्ट्रपति रईसी को ठिकाने लगाने के बाद सीआईए, मोसाद की आड़ में लुकाछिपी खेल रहा है.
जब राजनीतिक व्यवस्था में मनुष्य प्रधान नहीं होता है तो फिर किसी भी आदमी को मारे जाने पर कोई राजनीतिक हलचल भी नहीं होती है. व्यवस्थाओं के खेवनहार लोगों को अगर प्रतिद्वंद्वियों द्वारा मार दिया जाता है, तब भी कोई मानवीय पक्ष सामने नहीं आता है, उसकी जगह पर और अधिक प्रतिबद्ध खेवनहार आदमी को बिठाकर शासकवर्ग मानवीय संवेदनाओं को झांसा देते रहता है.
दुनिया के बहुत सारे देशों में राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा सत्ता पक्ष के शीर्षस्थ नेताओं को मार दिया जाता रहा है लेकिन दिखावटी दुःख जाहिर करने के बाद सब मुनाफे की हिस्सेदारी में अपना सही हिस्सा सुनिश्चित कर किनारे हो जाते हैं.
भारतीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री को 1965 में ताशकंद सम्मेलन के दरमियान मान लिया जाता है कि उन्हें हार्ट अटैक आया था, यहां थोड़ा बहुत हो हल्ला होने के बाद सब मामला रफा-दफा. इंदिरा गांधी, राजीव गांधी की हत्या भी यही हिस्सेदारी के लिए थी, यह हिस्सेदारी अलग अलग मामलों में हो सकती है लेकिन इन हत्याओं के पीछे शांति न्याय बराबरी स्थापित करने का कोई उद्देश्य नहीं होता है.
दुनिया, तीसरे विश्व युद्ध के कगार पर खड़ी अपनी नियति ढोने को मजबूर है. महाविनाशी हथियारों की डरावनी प्रदर्शनी ने मानव जीवन के अस्तित्व और सभ्यता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है. पूंजीवादी वैश्विक नेताओं को मारने के पीछे दुनिया का ध्यान उन्नत मानवतावादी बहसों विमर्शों से हटाना रहता है.
सीधे तौर पर कहें तो पूंजीवादी व्यवस्था के लगुवे-भगुवे कभी भी रूस, चीन, उत्तर कोरिया की एक औसत मानवीय व्यवस्था के बारे में लोगों का ध्यान जाते हुए नहीं देख सकती, जबकि रूस-यूक्रेन युद्ध ने उत्तर कोरिया, ईरान, चीन, रूस को दुनिया की केंद्रीय बहस में लाकर खड़ा कर दिया है.
रूस की अर्थव्यवस्था एक ओर जहां 3 साल से यूक्रेन से युद्धरत होने के बावजूद भी दुनिया की सबसे मजबूत इकनॉमी बनी हुई है, ऐसे में यह स्वाभाविक है कि रूस में नागरिक जीवन स्तर भी कई मामलों में बेहतरीन होगा. लेकिन दूसरी तरफ ब्रिटेन और अमेरिकी अर्थव्यवस्था इतने बुरे दौर में है कि देश के अन्य नेताओं ने गृहयुद्ध भड़कने का अंदेशा जताया है.
अमरीका में हर रोज अनियंत्रित जनांदोलनों के जरिए यूक्रेन और इजरायल को हथियार व आर्थिक मदद न देने का भारी दबाव है, साथ ही अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव भी नजदीक हैं. ऐसे में अमरीका यही चाह रहा था कि राफा फिलिस्तीन में इजरायली सेना द्वारा क्रूरतम नरसंहार से दुनिया के लोगों में अमरीका के प्रति नफ़रत और खूनी देश होने का धब्बा लग रहा है, इसीलिए ईरानी राष्ट्रपति को रास्ते से हटाने के लिए सीआईए-मोसाद ने संयुक्त मिशन को अंजाम दिया.
एक ओर ईरानी ड्रोनों ने यूक्रेन में अमरीका-नाटो को लगभग वेंटीलेटर पर लिटा दिया है तो दूसरी ओर ईरानी प्रॉक्सी संगठनों ने इजरायल को खून के आंसू रुला रखा है, उस पर ईरान की ये घोषणा कि वह परमाणु बम बनाने में सफलता के नजदीक है, ऐसे में पश्चिमी देश कभी नहीं चाहेंगे कि एक तेल बेचने वाला अदना सा मुल्क परमाणु सम्पन्न देश बन जाये, हालांकि इससे ईरानी परमाणु कार्यक्रम पर कुछ खास फर्क नहीं पड़ेगा.
उधर रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने रईसी की मौत को हत्या करार देते हुए रूसी खुफिया एजेंसियों से हेलीकॉप्टर क्रैश या रईसी मर्डर मिस्ट्री सुलझाने की बात कही है. अगर मर्डर मिस्ट्री में मोसाद-सीआईए ऐंगल आता है तो फिर इजरायल के अंत की कहानी शुरू हो जायेगी और इजरायल को बचाने वाला अमरीका खुद ही अपने को बचाने के लिए तमाम तरह के टोटके करते फिर रहा होगा.
बहरहाल, यह दौर दुनिया को अमरीकी नव-नाजीवादी सोच से बचाने का दौर है. वियतनाम, क्यूबा, अफगानिस्तान, ईराक आदि में करोड़ों लोगों को मौत के घाट उतारने वाला अमरीका हरगिज नहीं बच सकता. आज जिस तरह इजरायल-फिलिस्तीन में बच्चों व स्त्रियों पर बर्बरतापूर्ण हमला कर रहा है, इससे भी जघन्यतम बर्बरता अमरीका ने वियतनाम में बरपाई थी.
इसलिए इजरायल और अमरीका को वैसे भी नेस्तनाबूद होना ही था, उस पर अगर ईरानी राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी की मौत का एंगल अमरीका से मैच करता है तो अमरीका का अंत पूरी तरह विजयोत्सव में बदल जायेगा और पुतिन की मिसाइलें अमरीका के परखच्चे उडाने के लिए कुछ इसी तरह के मुहूर्त प्रतीक्षा में जगराता कर रही हैं.
- ए. के. ब्राईट