महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने ‘वोल्गा से गंगा’ नाम के अपने बहुचर्चित कथा संग्रह की 11वीं कहानी ‘प्रभा’ शीर्षक से लिखी है तथा इस कहानी का काल 50वीं ईसवी बताया है. राहुल की ‘वोल्गा से गंगा’ में कही गयी 20 कहानियां सिर्फ कथाएं ही नहीं हैं बल्कि 6 हजार वर्ष ईसवीं पूर्व के प्रागैतिहासिक काल से लेकर 1942 ईस्वी तक का भारतीय उपमहाद्वीप का समूचा इतिहास अपने में समेटे हुए है.
राहुल की ये कहानियां कल्पना की उड़ान नहीं हैं. इन कहानियों को लिखने के लिये उन्होंने ऋग्वेद, उपनिषदों, ब्राह्मण, पुराणों, महाभारत तथा बौद्ध ग्रन्थों को आधार बनाया है. प्रथम पैरा में जिस कहानी ‘प्रभा’ का उल्लेख किया गया है, उसमें राहुल ने अयोध्या तथा रामायण की रचना के बारे में विस्तार से लिखा है.
राहुल लिखते हैं – ‘साकेत (अयोध्या) कभी किसी राजा की प्रधान राजधानी नहीं बना. बुद्ध के समकालीन कोसलराज प्रसेनजित का एक राजमहल जरूर था; किंतु राजधानी थी श्रावस्ती (सहेटमहेट), वहां से छै योजन दूर.’
आगे वे लिखते हैं – ‘मौर्य वंश ध्वंसक सेनापति पुष्यमित्र (शुंग) ने पहले पहल साकेत (अयोध्या) को राजधानी का पद प्रदान किया; किंतु शायद पाटलिपुत्र की प्रधानता को नष्ट करके नहीं. वाल्मीकि ने अयोध्या नाम का प्रचार किया, जब उन्होंने अपनी रामायण को पुष्यमित्र या उसके शुंग वंश के शासनकाल में लिखा.’
‘इसमें तो शक नहीं कि अश्वघोष (बौद्ध दार्शनिक) ने वाल्मीकि के मधुर काव्य का रसास्वादन किया था. कोई ताज्जुब नहीं यदि वाल्मीकि शुंग वंश के आश्रित कवि रहे हों, जैसे कालिदास चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के और शुंग वंश की राजधानी की महिमा को बढ़ाने ही के लिये उन्होंने जातकों (बौद्ध ग्रन्थ) के दशरथ की राजधानी वाराणसी से बदलकर साकेत या अयोध्या कर दी और राम के रूप में शुंग सम्राट पुष्यमित्र या अग्निमित्र की प्रशंसा की – वैसे ही, जैसे कालिदास ने ‘रघुवंश’ के रघु और ‘कुमारसम्भव’ के कुमार के नाम से पिता-पुत्र चंद्रगुप्त विक्रमादित्य और कुमारगुप्त की.’
राहुल ने इसी कथा में आगे लिखा है कि ‘पंजाब के यवन राजा मिनांदर (मिनेण्डर) ने साकेत (अयोध्या) पर आक्रमण किया था. पुष्यमित्र शुंग के ब्राह्मण पुरोहित पतंजलि (जिन्होंने योग पर विषद ग्रन्थ लिखा है) ने इस आक्रमण के बारे में लिखा है. पतंजलि और पुष्यमित्र के समय में अयोध्या नहीं, साकेत ही इस नगर का नाम था.’
राहुल ने ऋग्वेद से लेकर पुराणों तक और उपलब्ध समस्त बौद्ध साहित्य का गहन अध्ययन किया था. उनकी विद्वता को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है. उन्हें ‘महापंडित’ यों ही नहीं कहा जाता है.
राहुल के अनुसार वाल्मीकि रामायण में जो कथा कही गयी है वह पुष्यमित्र शुंग के आश्रित कवि वाल्मीकि द्वारा सम्राट पुष्यमित्र शुंग की महिमा का बखान करने के लिये ही कही गयी थी. यह उस काल में सामान्य था. यही काम कवि कालिदास ने अपने महाकाव्य ‘रघुवंश’ और ‘कुमारसम्भव’ में किया है.
अयोध्या का प्राचीन नाम साकेत था और उसका राजा दशरथ तथा उनके पुत्र राम से कोई सम्बन्ध नहीं था. राजा दशरथ की कथा ‘जातकों’ में कही गयी है और वे अयोध्या के नहीं, वाराणसी के राजा थे. यह सर्वविदित है कि पुष्यमित्र शुंग कट्टर ब्राह्मण था और बौद्ध धर्म का उतना ही विरोधी बल्कि शत्रु था. यह सम्भव है कि साकेत बौद्ध धर्म का कोई बड़ा केंद्र रहा होगा क्योंकि बुद्ध के समकालीन कौसल राज प्रसेनजित ने स्वयं बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था.
पुष्यमित्र शुंग ने अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या करने के बाद साकेत को अपनी राजधानी बनाया. इस बात की बहुत संभावना है कि पुष्यमित्र शुंग ने साकेत के बौद्ध मठों का विध्वंस कर वहां किसी मंदिर का निर्माण किया हो, जिसे बाद में मुगल हमलावरों ने नष्ट कर वहां मस्जिद बना दी हो. हिंदुओं की मान्यता/आस्था के अनुसार वही राम का जन्म स्थान है.
सच क्या है यह तो तभी सामने आएगा जब भारतीय पुरातत्व विभाग (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) द्वारा बाबरी विध्वंस के बाद वहां जो खुदाई की थी, उसकी पूरी रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए. खुदाई में जो अवशेष प्राप्त हुए हैं वे किसी बौद्ध मठ के हैं या किसी वैष्णव हिन्दू मन्दिर के हैं ? यह सच्चाई तभी सामने आएगी जब पूर्णतः निष्पक्ष और पारदर्शी जानकारी सार्वजनिक हो.
- प्रवीण मल्होत्रा
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