Home गेस्ट ब्लॉग भाजपा को औकात बताने के लिए राहुल को डीके की जरूरत है !

भाजपा को औकात बताने के लिए राहुल को डीके की जरूरत है !

2 second read
0
0
182
भाजपा को औकात बताने के लिए राहुल को डीके की जरूरत है !
भाजपा को औकात बताने के लिए राहुल को डीके की जरूरत है !

जिस कॉलेज से आप पढ़ें हो, उस कॉलेज से आपको लेक्चर देने बुलवाया जाये, इससे बड़ा सम्मान कुछ नहीं होता. इस बात को वही समझ सकता है, जिसने यह क्षण जिया हो. कॉन्वेंट और विदेश की पढ़ाई का बुरा असर यह होता है कि दिमाग अंग्रेजी में सोचता है, और जुबान उसे हिंदी में कहती है. और दो भाषाओं में शत प्रतिशत भाव, कन्वर्ट नहीं हो पाते. कई बार बराबरी का उचित शब्द नहीं मिलता, और स्पीच बाधित, कामचलाऊ ही रह जाती है.

लेकिन, फिर भी ‘दीदी ओ दीदी’ वाला कारनामा राहुल ने कभी नहीं किया. उनकी सोच की थाह लेनी हो तो मैं उनकी अंग्रेजी में किये गए कन्वर्सेशन सुनता हूं. वे बड़ा अर्टिकुलेट, रीजनिंग और कनविक्शन के साथ बोलते हैं.

भारत के इतिहास में सचमुच पढा लिखा, विचारक, दार्शनिक, बेहतरीन वक्तृत्व वाला नेता कोई हुआ तो वे जवाहरलाल थे. हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू में एक बराबर सम्प्रेषण करते. भाषाविद और सुशिक्षित तो अम्बेडकर और नरसिंहराव भी थे. आजकल प्रशांत किशोर को देखता हूं, जो हिंदी-अंग्रेजी दोनों में सहज हैं.

मनमोहन अंग्रेजी में तो अटल हिंदी में ही सहज थे. और केवल अंग्रेजी में बोलने की बात आये, तो कभी कृष्णा मेनन और, आज शशि थरूर से बढ़िया बोलने वाला हिंदुस्तानी कोई नहीं दिखा. बहरहाल, राहुल को कैम्ब्रिज में स्पीच देता देखकर अच्छा लगा. इससे, चौथी पास मूर्ख राजा की प्रजा, होने का मलाल कुछ देर के लिए मिट जाता है. जियो राहुल, जवाहरलाल बनो !

2

नो योर लिमिट्स, औकात में रहो…बीजेपी वालो ! दो दिन में दो बार, भाजपा को उसके ही खेल में, उठाकर पटकने के बाद डीके शायद यही कह रहे हैं. राज्यसभा चुनावों में चप्पल चोरी कर, इक्का दुक्का अतिरिक्त सीटें लेकर भाजपा ने अपने आपको चाणक्य, मैकीयवली, सुंग जू समझती है.

दो दिन से गोदी मीडिया भी कीर्तन में लगा है. गलती से भी जिक्र न किया कि डीके ने कर्नाटक में क्रॉस वोटिंग कराकर कांग्रेसी उम्मीदवार जितवा लिया. शाम के जश्न के लिए इतना काफी था. लेकिन अचानक संकट में फंसी हिमाचल सरकार बचाने का बुलावा आया. दुश्मन प्रदेश की सरकार ने विधायक, अपहरण पंचकूला में बंधक रखे थे. बजट सिर पर था. कट मोशन आने पर और सरकार गिरना लाज़िम था, तो विशुद्ध भजपैया टैक्टिक लगाई गई.

जिस तरह केंद्र में डेढ़ सौ सांसद, सस्पेंड कर, आधे दर्जन क़ानून पास करवा लिए गये, उसी तरह आधे भाजपा विधायको को संस्पेंड कर बजट पास करा लिया गया. हां, बिल्कुल निंदनीय कर्म है और इतनी कमीनी स्कीम सोचना, आम कांग्रेसी के बस की बात नहीं. तो मुझे यहां भी डीके की छाप दिखती है.

दक्षिण का यह शेर जिस कॉन्फिडेंस, और ठसक से राजनीति करता है, वह दर्शनीय है. डीके में टफनेस है, निर्भीकता और स्किल है. वह ‘बिलो द बेल्ट’ वार में प्रवीण, भाजपाई रणनीतिकारों का मकड़जाल तोड़ने के लिए जरूरी है.

दरअसल संघ की पैदावार, भाजपा और उसके बेसिकली कमजोर लोग हैं. ये झुकने वालों को लतियाते हैं, क्रूर और बेरहम बनते हैं. तमाम अनैतिक तरीक़े अपनाते हैं. लेकिन बड़ी ताकत देख, सहम जाते हैं. वक्त बदलते ही घुटने टेक, रहम और माफी मांगने का इनका इतिहास है.

यही वर्तमान है, और उनका भविष्य भी… मगर उनसे आंख में आंख मिलाकर लड़ने का दम, कौशल, आक्रामकता, और संगठन में उम्मीद पैदा करने का माद्दा, दिल्ली में जमे महासचिवों की क्लीव जमात में दूर दूर तक नहीं. और इक्का दुक्का छोड़, कार्यसमिति और राज्यसभाई तारामंडल में भी नहीं.

तो अभिषेक मनु सिंघवी की हार स्वागतेय है लेकिन दुःख यह कि सुक्खू कच्चे निकले. हिमाचल की सियासत, महल से बाहर निकाल लाने वाले, सुक्खू से उम्मीदें थी. पर जहां डीके पिछले 10 दिन से अपने एक एक विधायक के साथ नाश्ता, भोजन, डिनर कर थाह लेते रहे, कड़ी निगाह रखी. धीरे से भाजपाई विधायकों का शिकार भी किया. सुक्खू गच्चा खा गए. बहरहाल, डीके एक बार फिर संकट मोचक बनकर आये, मैच बचाया.

पिछले 5 सालों में हर कठिन मैच में, आखरी ओवर्स में जब स्ट्राइक करनी होती है, तो कांग्रेस डीके को याद करती है. तेलंगाना हो, या महाराष्ट्र, या एमपी.. डीके आये तो उम्मीद जग जाती है. जब तक डीके पिच पर है, हार नहीं मानी जाती. फिर इस खिलाड़ी को कर्नाटक के दायरों में क्यों बांधकर रखा गया है, समझ नहीं आता.

2009 की हार के बाद, बीजेपी ने कभी गडकरी जैसे दोयम दर्जे के लीडर को, किसी राज्य के मंत्री से सीधे उठाकर पार्टी अध्यक्ष बना दिया था. गडकरी ने कुशलता से भाजपा की सांगठनिक मूर्छा दूर की. उसे ट्रेक पर लौटा लाये. डीके तो उनसे कई गुना करिश्माई है. भरोसेमंद भी, जो कि जेल जाकर आ चुके. आईटी रेड झेल चुके. जो जेल से लौट आये, आईटी रेड से न डरे, उस कांग्रेसी को तो कोई माई का लाल डरा नहीं सकता.

और राहुल को निडर साथी चाहिए. जीत की भूख वाले नेता चाहिए. राजनीति के पैमाने, इसके रूल्स और तासीर बदल चुकी है. राहुल बने रहें अपनी गांधीवादी टेक पर, मगर दूसरे छोर पर बल्ला पकड़े एक गांधीप्रेमी चाहिए. 24 ऑवर, रियलपोलिटिक, दुश्मनों से ज्यादा अपनो को जाल में बांधकर रखने वाला, शत्रु को उसके गेम में पटकने वाला…आंख में आंख डालकर घुड़काने वाला.

क्योंकि देश थक चुका है, भारत को तोड़ने वाली विचारधारा के हाथों, जोड़ने वाली विचारधारा को मात खाता देखते. यह दौर, सुंदर मनोहारी राजनीति का नहीं रहा. राजनीति ड्राइंग रूम और, डिफेंसिव तरीकों से नहीं चलेगी. अब तो कठोर, बैटल हार्ड, स्ट्रीट फाइटर, और भाजपा को औकात बताने को आतुर नेताओं की जरूरत है. इसलिए, आज से, अभी से, इसी वक्त से…दिल्ली को डीके की जरूरत है.

  • मनीष सिंह

Read Also –

राहुल गांधी की छवि बर्बाद करने के लिए कॉरपोरेट का राष्ट्रीय अभियान
राहुल गांधी के खिलाफ न्यूज़ चैनल्स पर झूठ और नफरतों का डिबेट
राहुल गांधी का दार्शनिक जवाब और संघियों की घिनौनी निर्लज्जता 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…