राहुल 24 हारने को तैयार हैं ! जी हां, भाजपा ने तैयारी शुरू कर दी है, जो (हालांकि 2019 की शपथ से लगातार जारी है) कुछ बानगी इस तरह है. 38 दल साथ आ चुके. इससे फर्क नहीं पड़ता कि 30 को चुनाव आयोग से मान्यता ही नहीं है. पीएम संसद सत्र के लिए संसद नहीं जाते, पर उसी भवन के दूसरे कमरों में क्षेत्रवार, राज्यवार सांसदों से मिल रहे हैं.
वे बूथ की मजबूती को प्रथम महत्व देते हैं इसलिए पार्टी कार्यकर्ताओं का सम्मेलन कर रहे हैं. वे अपने लोगो का उत्साह बढा रहे हैं. चुनाव को लेकर इतने मसरूफ हैं कि इतिहास में पहली बार एक प्रधानमंत्री संसद में अपनी सरकार पर आये अविश्वास पर, विश्वास मांगने का वक्त नही निकाल पा रहा.
वे हर भाषण में, चाहे सड़क का उद्घाटन हो, एयरपोर्ट लाउंज खोलना हो, हैंडपंप खोदना हो, या शौचालय का शिलान्यास हो. सामने खड़े श्रोता सैनिक हों, कर्मचारी हो, पायलट हो, वैज्ञानिक हो, या हग्गे का मग्गा लिए पेट पकड़ा बन्दा…कतई मायने नहीं रखता. वे कैमरे में देखकर विपक्ष को गरिया रहे हैं.
मगर असली खेला, असली मास्टरस्ट्रोक, सच्ची तैयारी तो है, मणिपुर और मेवात. कल मुम्बई की ट्रेन भी एक कार्यकर्ता चुनाव प्रचार करते पकड़ा गया. विपक्ष के 4 वोट खराब कर दिए उसने. तो तीन राज्य तो झांकी है, 27 अभी बाकी है. अगले 10 माह में आपका इलाका भी इस टाइम टेबल में शामिल है. और कांग्रेस कहां है ?
हमारे जमाने में शिक्षक पढाता था, हम पढ़ते थे और परीक्षा देते थे. हां, एग्जाम के एक हफ्ते पहले पढ़ाई के थोड़े बहुत घण्टे बढ़ा देते थे. आज जमाना अलग है. स्कूल बेमानी है. अब कोचिंग चाहिए. 10 किताबों के ऑब्जेक्टिव और 20 सालों में हुए एग्जाम के सवाल बनाने होते हैं. मंथली, वीकली, डेली, टेस्ट होता है.
ऑनलाइन, ऑफलाइन, ओरल, प्रोजेक्ट, क्युरिकुलर को क्युरिकुलर, सब्जेक्ट एनरिचमेंट एक्टिविटी, प्रोड्क्टविटी, स्ट्रेसमैनेजमेंट, कॉग्निटिव और थिंकिंग एबिलिटी, पावरपॉइंट और कोडिंग करनी पड़ती है.
ठीक उसी अंदाज में भाजपा घर से लेकर पन्ना, पन्ने से लेकर बूथ, बूथ से मण्डल, मण्डल से जिला, जिला से राज्य, राज्य से दिल्ली और दिल्ली से नागपुर तक सब कुछ टाइम टेबल के हिसाब से कोटा स्टाइल में चलती है.
मिनट टू मिनट, मैन टू मैन मार्किंग. कौन से सवाल हल करने हैं, कौन से नहीं, पहले से पता है. तो वह इंडियंस में से हिन्दू हल करती है. उसमें भी सिकुलरों को छोड़कर ब्राह्मण, बनिया और मैतेई हल करती है.
वो पिछड़े में अति पिछड़ा, यादव में जाटव, दलित में सुपर दलित, मुसलमानों से अहमदिया हल करती है. वो कांग्रेस से ज्योतिरादित्य, शिवसेना से शिंदे, एनसीपी से अजीत को हल करती है. बाकी 65% थोथा छोड़ देती है. उसे कटऑफ मार्क्स से मलतब है. राहुल, कांग्रेस इस होल एबी स्क्वेयर वाले आइनस्टोनियन-न्यूटोनियन फ्रेमवर्क में पासंग नहीं ठहरते.
दरअसल राहुल को लगता है कि गांधी ने तो कभी बूथ मजबूत न किये. कार्यकर्ता सम्मेलन न किये, बनिया दलित न किया. दंगे न भड़काए, एजेंसियों का सपोर्ट न लिया, आईटी फार्वर्ड न किये. समाज को समाज समझा, देश को देश. बिना क्वांटम मैकेनिक्स के फार्मूले लगाए, हर जगह कांग्रेस झंडा लहराती रही.
सोचिये भला कि जिन्ना को मानहानि या हेट स्पीच में जेल भिजवाना कौन सा कठिन काम था. टैक्स के छापे डालकर एफआईआर ही करा देते. संपत्ति जप्त, रोज के मुकदमें. जिन्ना कांग्रेस जॉइन करके नेहरू के डिप्टी बन जाते.
कांग्रेस ने यह सब न किया. गांधी ने यह नहीं किया. वे बस चलते थे चुपचाप. जनता के बीच जाते. सबको गले लगाते, प्रेम सद्भाव, शांति, स्वराज, सुराज की बात करते. इकहरी धोती में घूमते.
तो राहुल इकहरी टीशर्ट में घूम रहे हैं. वही काम कर रहे हैं. गांधी के खड़ाऊं में पैर डाल रहे हैं. अडानी के स्पोर्टिंग शू डाले धावक से उनका कोई मुकाबला कहां सम्भव है !
मगर जनता उसका भला चाहती है. वो चाहती है, उनका राहुल फाइट करे. वही करे जो पड़ोसी का बच्चा करता है. ऑनलाइन, ऑफलाइन, बूथ, कार्यकर्ता, मैसेजिंग, ब्रांडिंग, ओरल, प्रोजेक्ट, क्युरिकुलर, को क्युरिकुलर, सब्जेक्ट एनरिचमेंट एक्टिविटी, प्रोड्क्टविटी, स्ट्रेसमैनेजमेंट, कॉग्निटिव और थिंकिंग एबिलिटी, पाई चार्ट, बार चार्ट, पावरपॉइंट, कोडिंग .. उफ्फ !!!
राहुल करता क्यों नहीं ?? जो न करे तो उस राहुल को कैसे पसन्द करें ? अरे, वोट कैसे करें ?? राहुल को भाजपा जैसे कुछ सीरियस करके दिखाना चाहिए.
और राहुल दांत निपोरे पोरबंदर की तरफ बढ़ रहा है. मोहब्बत की दुकान जैसे ‘किताबी जुमले’ बोल रहा है. यहां कांग्रेस खत्म होने वाली है, 55 सीट पे आ गयी, ये हंस रहा है, बेफिक्र है.
अरे, हम किसी को चुनाव ऐसे नहीं जितवाते. ऐसे करोगे तो हम एक्को वोट नहीं देंगे. फेल कर देंगे, यह बात घर घर बैठे चिंतित एग्जामिनर खुद ही बता रहे हैं. मगर राहुल है कि मानता नहीं. इसलिए साफ है…राहुल 24 हारने को तैयार हैं !!
- मनीष सिंह
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