Home गेस्ट ब्लॉग राहत पैकेज को लेकर इतनी चुप्पी क्यों ?

राहत पैकेज को लेकर इतनी चुप्पी क्यों ?

7 second read
0
0
539

राहत पैकेज को लेकर इतनी चुप्पी क्यों ?

हेमन्त कुमार झा, एसोसिएट प्रोफेसर, पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय, पटना

हमें नहीं पता कि प्रधानमंत्री द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज के तहत कितने खोमचे वालों को 10 हजार रुपयों का लोन दिया जा चुका है ? इस तथ्य को लेकर भी कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं कि आकस्मिक आर्थिक संकट से जूझते कितने कामगारों तक राहत की बयार पहुंच चुकी है ?

दो महीने से अधिक हो चुके उस राहत पैकेज की घोषणा हुए और अब उस के फलितार्थ पर चर्चा होनी ही चाहिये. चर्चा होनी चाहिये कि लॉकडाउन में दर-बदर हो चुके लाखों लोगों के सामने अस्तित्व बनाए रखने का जो सवाल आ खड़ा हुआ था, उसमें इस राहत पैकेज का क्या योगदान रहा ?

कुर्सी के लिये लड़ते राजनेताओं और बनती-गिरती सरकारों की चर्चा में टीवी वाले अगर मगन हैं तो यह उनका रोजगार भी है, उनका टास्क भी और उनकी विवशता भी. वे चाह कर भी लोगों की जिंदगियों से जुड़े सवालों को नहीं उठा सकते.

लेकिन, चर्चा होनी चाहिये. सवाल उठने चाहिये. आखिर, हमारे देश की वित्त मंत्री अपने उप मंत्री के साथ लगातार कई दिनों तक मैराथन प्रेस कांफ्रेंस करती रहीं थी और हमें यह जताने का प्रयास करती रहीं कि विश्वव्यापी संकट के इस दौर में सरकार हमारे साथ है. फिर क्या हुआ ?

संकट से जूझते, रोजगार और आमदनी खो चुके लोगों के जीवन में इस पैकेज की क्या भूमिका रही ? उन्हें कितनी और कैसी राहत मिली ?

आश्चर्य है कि जिस राहत पैकेज की घोषणा खुद प्रधानमंत्री ने की, जिसके विवरण बताने के लिये वित्त मंत्री को कई-कई दिनों तक न जाने कितनी-कितनी देर तक बोलना पड़ा, आज उसकी कोई खास चर्चा तक नहीं हो रही.

हम देख रहे हैं, जान रहे हैं, पढ़ रहे हैं, सुन रहे हैं कि नकदी की किल्लत से नौकरी और आमदनी गंवाए अच्छे-अच्छे लोग आज कितनी बुरी हालत में पहुंच गए हैं. फिर क्यों नहीं हो रही चर्चा ? क्यों नहीं उठ रहे सवाल ? तब जरूर सवाल उठे थे जब इस राहत पैकेज के विवरण सामने आए थे. फिर, कुछ दिनों बाद…चुप्पी.

चर्चाओं में कोरोना के दैनिक बढ़ते आंकड़े, चीन की हरकतें, राजस्थान का सियासी संकट, संक्रमण के शिकार महानायक आदि-आदि छाए रहे लेकिन, चुनी हुई सरकार द्वारा इस घनघोर संकट काल में राहत पैकेज के नाम पर जनता के साथ किया गया छल अब चर्चा में नहीं.

सरकार के प्रवक्ताओं के अतिरिक्त और किसी अर्थशास्त्री को हमने इस राहत पैकेज की तारीफ करते नहीं सुना. सब एक ही बात कहते रहे कि प्रभावित लोगों के हाथों में नकदी पहुंचाने की जरूरत है और यह लोन का पैकेज थमाया जा रहा है. नतीजा, अपनी झोली में कुछ अन्न ले जाते लोगों के अलावा हमें और कोई लाभान्वित नजर नहीं आ रहा.

कहा गया कि मध्यवर्गीय लोगों के बैंक ऋणों की ईएमआई को छह महीने के लिये स्थगित कर दिया गया लेकिन, जब सच सामने आया तो सब घबराए. वे भी, जो संकट काल में भी ईएमआई दे सकते थे, वे भी, जो नहीं दे सकते थे क्योंकि लोगों को पता चला कि आज छह किस्तें स्थगित करने के एवज में बैंक अगले वर्षों में 12 से 18 किस्तें अतिरिक्त वसूलेंगे. ब्याज पर भी ब्याज.

सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर नाराजगी जताई. लेकिन, होगा वही जो सरकार चाहेगी, जो ऋणदाता बैंक चाहेंगे. आज की छह किस्तों के बदले अगले वर्षों में इनसे दुगनी-तिगुनी किस्तें भरने के लिये सबको तैयार रहना होगा. फिर, राहत है कहां आखिर ?

आत्महत्याओं की खबरों से देश मर्माहत है, रोजगार खो चुके लोग नकदी के संकट से परेशान हैं, मनोरोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है. इधर, सरकार के कर्त्ता-धर्त्ता बिहार और बंगाल के चुनावों की तैयारियों में लग चुके हैं. छल और प्रपंच के अगले अध्यायों को लेकर थिंक टैंक मंथन कर रहा है. आखिर, राहत पैकेज को लेकर इतनी चुप्पी क्यों ?

Read Also –

20 लाख करोड़ का लॉलीपॉप किसके लिए ?
निजी होती अर्थव्यवस्था की तेज रफ्तार किसके लिए ?
मोदी द्वारा 5 साल में सरकारी खजाने की लूट का एक ब्यौरा
लूटेरी काॅरपोरेट घरानों के हित में मोदी की दलाली, चापलूसी की विदेश-नीति

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…