इस बीच अमरीका में भारतीय नागरिकों व भारतीय छात्रों पर हमले बढ़ रहे हैं. अमरीकी सरकार ने एक आधिकारिक बयान में कहा है कि अमरीका में भारतीय व अन्य किसी भी देश के नागरिकों के लिए ऐसे किसी भी हमले को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा. पिछले दो तीन महीनों के दरम्यान अमरीका में डेढ़ दर्जन से अधिक भारतीय लोग नस्लीय हिंसा के चलते अपनी जान गंवा चुके हैं.
बहरहाल, भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ ही नहीं बल्कि दुनिया के सभी देशों के साथ अपनी विदेश नीति का मजाक बना बैठा है. श्रीलंका, मालदीव, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, पाकिस्तान, तिब्बत, म्यांमार सभी के साथ अपने रिश्ते या तो खट्टे कर चुका है या फिर आज के समय में हम दावे के साथ नहीं कह सकते कि कौन सा पड़ोसी देश भारत का मित्र देश है.
पिछले एक दशक के रिकार्ड पर नजर डालें तो भारत के लगभग सभी पड़ोसी देश चाइना खेमे के साथ लामबंद हुए हैं. कनाडा, ईरान, ब्रिटेन, रूस जैसे संपन्न देशों के साथ भारतीय विदेश नीति को संदेह की दृष्टि के साथ देखा जा रहा है.
दरअसल किसी भी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था हो, भूमंडलीकरण ने सभी को बेनकाब कर दिया है. लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के अंदर जिन मानवतावादी मूल्यों की वकालत की जाती है, उसकी सांसें बेलगाम शोषण पर टिकी हुई हैं. जब लूट और शोषण की परतें खुलने लगती हैं तो लोकतंत्र अपने बचाव के लिए कुछ ऐसी हड़बड़ाहट कर बैठता है कि वह हर गलती को छिपाने के लिए दूसरी गलती कर बैठता है.
यही हाल अमरीका व अन्य कथित विकसित लोकतांत्रिक देशों का है. अमरीका भी वर्तमान भारतीय राजनीति की तरह ही नस्लवादी रहा है. अमरीका में श्वेत-अश्वेतों का मसला भले ही राजनीतिक तौर पर टाल लिया गया हो लेकिन ‘श्वेत अमरीकी सामाजिक चरित्र’ में यह हमेशा टकराव की सुगबुगाहट से भरा है.
भारत में RSS बजरंग दल की तरह ही अमरीका में कैथोलिक संगठन तेजी के साथ उभर रहे हैं जो गाहे-बगाहे अपनी नस्लवादी कुंठा को दिखाते रहते हैं. हालांकि भारत में 2002 गुजरात गोधरा काण्ड के बाद नस्लवाद और भी त्रासदपूर्ण दौर में पहुंच चुका है लेकिन ऐसी वारदातें अमरीका में भी अब तेजी से बढ़ रही हैं.
इससे भी अधिक चिंता का विषय ये है कि भारत सरकार साफगोई के साथ अमरीका में भारतीयों पर हो रहे नस्लवादी हमलों का विरोध नहीं कर पा रही है या करती भी है तो इनकी बातों को अमरीका में बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता है क्योंकि वहां इस बात का ‘डंका’ जोर से बजा हुआ है कि भारत में मुसलमान ईसाई व अन्य अल्पसंख्यक समुदाय अपने ही मुल्क में दोयम दर्जे के नागरिक बनते जा रहे हैं. पिछले दिनों अमरीका की एक महिला प्रोफेसर ने ‘सभी भारतीय लोग गंदे होते हैं’ कहकर भारत के चिथराये लोकतंत्र पर तंज कसा था.
भारत सरकार को चाहिए कि विदेशों में भारतीय नागरिकों पर नस्लीय हिंसा पर पुरजोर आवाज उठाये और अपने मुल्क में मुसलमान ईसाई सहित सभी अल्पसंख्यक समुदायों को समान नागरिक का सम्मान देकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करे.
- ए. के. ब्राईट
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