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राबिया स्कूल प्रकरण : शिक्षा के बाजारीकरण का दुष्प्रभाव

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राबिया स्कूल प्रकरण : शिक्षा के बाजारीकरण का दुष्प्रभाव

दिल्ली देश की राजधानी है, इसलिए दिल्ली में घटित किसी भी घटना का न केवल राष्ट्रीय प्रभाव पड़ता है वरन् विश्व भर में देश की छवि पर भी प्रभाव पड़ता है. ‘रेप कैपिटल’ के नाम से कुख्यात दिल्ली के एक निजी स्कूल में महज समय पर फीस जमा न करने के कारण नर्सरी और केजी के तकरीबन 16 बच्चों को बंधक बना कर पूरे 6 घंटे रखा गया. हलांकि कुछ अभिभावकों का यह भी कहना है कि उन्होंने पैसे जमा कर दिये थे, इसके बाद भी उनके बच्चे को बंधक बनाया गया. अभिभावकों का यह सवाल और स्कूल प्रबंधकों की बर्बरता का सीधा असर बच्चों की मानसिकता पर पड़ा, जिसने आगे से स्कूल जाने से साफ मना कर दिया.

उन बच्चियों के अभिभावक जब कहते हैं कि पैसे उन्होंने जमा करा दिये हैं, तो यह महज कहने की बात नहीं है वरन् सच भी है. स्कूल प्रबंधक फीस हमेशा कैश में लेता है, कभी भी चेक या अकाउंट से नहीं लेना चाहता. अभिभावक अक्सर कैश जमा कराने के बाद या तो रसीद नहीं लेते या उसे संभाल कर नहीं रख पाते. उसे स्कूल प्रबंधक पर पूरा भरोसा होता है, जिसका नाजायज फायदा स्कूल प्रबंधक उठता है और जमाराशि हड़प जाता है. हलकान अभिभावक एक बार फिर पैसे जमा कराने लाईन में जा खड़े होते हैं. यह इन निजी स्कूलों की एक काली सच्चाई है, जिससे आंख नहीं मोड़ा जा सकता.

भारत का सवर्ण तबका हमेशा से ही दलितों, आदिवासियों, महिलाओं के शिक्षा का प्रबल विरोधी रहा है. वह किसी भी हालत में इन तबकों को शिक्षित होते नहीं देखना चाहता है. यही कारण है कि शुद्रों को ज्ञान की बात सुन लेने मात्र पर उसके कान में पिघला सीसा और उच्चारण करने पर जिह्वा काटने की बर्बर घटना इस देश में घटित होती रही है. आज भी दलितों-आदिवासियों पर जातीये हमले आये दिन देखे जा रहे हैं. एक शिक्षित व्यक्ति ही सबल देश का निर्माण करता है, की अवधारणा को पैरों तले रौंदने वाला यह सवर्ण तबका देश को गुलामी की जंजीरों में जकड़ने का प्रधान कारण बना.

अंग्रेजों का दौर और उसके बाद देश की जातीय समीकरण में आये बदलाव ने सवर्ण तबको को काफी दुःखी कर दिया क्योंकि अंग्रेजों ने अपने हित खातिर ही सही पर दलितों-आदिवासियों-महिलाओं को शिक्षित करना जरूरी समझा और इसके लिए यथेष्ट कदम उठाये. अंग्रेजों के इस कदम से दुःखी आजादी के बाद भी दलितों-आदिवासियों-महिलाओं के शिक्षा का प्रबल समर्थक बनी देश के इस संविधान के खिलाफ आरएसएस शुरू से रही. दरभंगा महाराज का यह कथन कि अगर गरीब-गुरबा पढ़ लेगा तो हल कौन चलायेगा ? की अभिव्यक्ति यों ही नहीं आई है. यह देश की विशाल आबादी को शिक्षा से वंचित रखकर अपना बैठ-बेगार गुलाम बनाये रखने की साजिश है.

देश की आजादी के वक्त पूरा देश आन्दोलित हो उठा था क्योंकि मुख्यधारा के आन्दोलनकारियों – कांग्रेस – का मानना था कि पूरे देश के हर तबके को आन्दोलन में शामिल होना होगा, जिस कारण देश के तकरीबन हर तबके का राजनैतिक चेतना जागा, जिसकारण भारत की संविधान में भी हर तबके को शिक्षा देने को मलभूत मौलिक अधिकार में शामिल करना पड़ा. परन्तु जैसे-जैसे वक्त बीतता जा रहा है एक बार सत्ता प्रतिष्ठान पर काबिज सवर्ण-ब्राह्मणवादी तबका देश की विशाल आबादी – दलितों-आदिवासियों-महिलाओं सहित बंचित तबकों – को शिक्षा से दूर धकेलने के लिए एक नया साजिश रचा है और वह है शिक्षा का बाजारीकरण.

शिक्षा का बाजारीकरण करना स्पष्टतः देश के संविधान का विरोध करता है, जिसमें शिक्षा को हर नागरिक का मौलिक आधिकार माना जाता है. शिक्षा का बाजारीकरण यह मानता है कि शिक्षा उसी को मिलेगा जो थैलीशाह हैं और उच्च वर्ग से ताल्लुक रखते हैं, इसीलिए तो अब छात्रों के प्रवेश के लिए अभिभावकों का टेस्ट लिया जाता है, उसके अच्छी स्किल को मापा जाता है, जिसका मतलब है शिक्षा को उच्च वर्ग के लिए आरक्षित करना और गलती से भी अगर कोई निम्न वर्ग का आ गया तो उस बच्चे को सरेआम बेइज्जत करना और अपमानित करना, जिससे की वह बच्चा दुबारा शिक्षा के लिए न आ सके.

दिल्ली के राबिया स्कूल में 40 बच्चों को अपराधियों की बंधक बनाकर रखना, देश के सरकार की इसी शिक्षा विरोधी मानसिकता को प्रतिबिम्बित करता है. देश की राजधानी में घटित यह प्रकरण दरअसल सारे देश में हर रोज दोहराई जा रही है, पर देश की किसी भी राज्य की सरकारों को इनसे कोई ताल्लुक नहीं है. वह इस बाजारी स्कूल जिसे शिक्षा का दुकान कहना ज्यादा मुफीद है, से संबंध बस चुनावी चंदे तक खुद को सीमित रखती है.

परन्तु दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार जो देश की संविधान के अनुरूप शिक्षा को हर नागरिक का अधिकार मानती है और सरकारी व्यवस्था के तहत् मुफ्त में शिक्षा देने को खुद को प्रतिबद्ध मानती है, के द्वारा त्वरित एक्शन उच्च वर्गों के हितों की संरक्षक भाजपा की सरकार को ब्यथित कर दिया है, जिसके प्रतिफल स्वरूप भाजपा के द्वारा प्रेरित उसी स्कूल की पूर्व छात्राओं को स्कूल के प्रबंधक के इस क्रूर हरकतों के पक्ष में खड़ा कर दिया है, जो यह मानता है कि शिक्षा देश के हर नागरिक का मौलिक अधिकार नहीं, कि देश के इस संविधान को बदल डालना चाहिए, कि शिक्षा केवल उच्च वर्ग की बपौती है. कि शिक्षा पाने को आने वाले वंचित समूहों के कानों में पिघला सीसा और उच्चारण करने पर जिह्वा काट लेनी चाहिए. यह बेहद ही शर्मनाक है, और देश के संविधान का खुला विरोध है.

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