‘कामरेड’ को हर चीज शुद्ध चाहिए
चाहे वह चाय हो या क्रांति
थोड़ी चीनी ज्यादा होने पर
‘कामरेड’ कप को दूर सरका देते हैं
बड़ी विनम्रता से
उस वक़्त उनकी मुस्कुराहट भी शुद्ध होती है
न ज्यादा न कम
एकदम मोनालिसा सी
हर आंदोलन को उनका पूर्ण समर्थन होता है
लेकिन कुछ शर्तों के साथ
शर्त यह कि आन्दोलन शुद्ध होना चाहिए
अहिंसावादियों के साथ बहस में
वे अगिया बैताल हो जाते हैं
मेज ठोक कर कहते हैं कि
इतिहास हिंसा से ही आगे बढ़ा है
लेकिन मेज को इतना ही ठोकते हैं
कि उनकी शुद्ध चाय छलक न जाय
अहिंसावादी को धराशायी करने के बाद
वे लंबी सांस लेते हैं
और धीमी मगर सधी आवाज में कहते हैं-
‘मगर हिंसा का समय अभी नहीं आया है
यह विपर्यय का दौर है
अभी तो शुद्ध खतरे को
शुद्ध तरीके से पहचानने का वक़्त है’
इसके लिए वे शुद्ध कविताओं की
श्रृंखला लिख डालते हैं
वे कहते हैं-
‘अभी जनता को जगाने का वक़्त है’
लेकिन यह चेतावनी भी देते हैं कि
जनता को ज्यादा नहीं जगाना है,
ज्यादा जागने पर वह अशुद्ध हो सकती है
और हमारे नियंत्रण से बाहर हो सकती है
फिर शुद्धता का क्या होगा ?
उनकी शुद्धता के कई दीवाने हैं
यहां तक कि सरकार भी
वे दो बजे रात शुद्ध चाय के साथ
अपने कार्यकर्ताओं को समझाते हैं
धैर्य से शुद्ध तरीके से
अपनी शुद्ध लाइन लागू करनी है
एक दिन निश्चित ही
सुबह भोर में इस देश की विशाल जनता
हमारे शेल्टरों की कुंडी खटखटाएगी
और कहेगी- ‘हम तैयार हैं, शुद्ध क्रांति के लिये
शुद्ध ‘कामरेड’ ने शुद्ध शून्य में
ताकते हुए शुद्ध मुस्कान के साथ कहा-
‘वह दिन कितना ऐतिहासिक दिन होगा न…’
- मनीष आजाद
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