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पुलिसिया उत्पीड़न से त्रस्त आम जन

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सत्ता संभालते ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने प्रदेश की पुलिस को फर्जी-एनकाउंटर का एक हथियार सौंपा है. कारण बताया गया कि इससे गुण्डागर्दी बन्द होगी और अपराधी डर से अपराध का रास्ता छोड़ देंगे. पर इसके जो परिणाम निकले हैं, इसकी सच्चाई को बताने के लिए सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही एक आॅडियो ही काफी है. इस आॅडियो ने उत्तर प्रदेश में एनकाउंटर के नाम पर चल रहे खेल को बेनकाब कर दिया है. एक हिस्ट्रीशीटर और पुलिस अधिकारी के बीच की बातचीत के आॅडियो से खाकी और गुण्डों के बीच की सांठगांठ का पर्दाफाश हो गया है.

अभी से कुछ दिन पहले की बात है. झांसी में लेखराज नामक हिस्ट्रीशीटर और पुलिस के बीच मुठभेड़ हुई थी. करीब आधे घंटे तक फायरिंग हुई थी, जिसमें लेखराज अपने साथियों और बेटों के साथ सुरक्षित भाग निकला था. इस एनकाउंटर के बाद हिस्ट्रीशीटर लेखराज और माऊरानीपुर थाना प्रभारी सुजीत कुमार की बातचीत ने यह बता दिया कि इस एनकाउंटर के हथियार के बल पर पुलिस की गुण्डागर्दी और वसूली किस प्रकार चैगुनी हो गई है.

ऐसे लाखों उदाहरण सप्रमाण भरे पड़े हैं, जिसमें पुलिस खुद ही अपराधियों से सांठगांठ कर लूट, हत्या, डकैती, किसी का घर-गृहस्थी लूटवाना, अवैध कब्जा करवाना, अवैध खनन आदि जैसे काम करती और करवाती है. साथ ही अपराधियों-बाहुबलियों की जी-हुजूरी कर असली अपराधी को खुले आम अपराध करने की छूट देती है और निर्दोषों को हाजत में उत्पीड़ित कर जेल भेज देती है. इस एनकाउंटर वाले हथियार ने तो उसे इस कदर बेलगाम कर दिया है कि वह जिसे चाहे उसे ठिकाने लगा रही है और जिसे चाहे उसे साफ बचा ले रही है.

उन्नाव बलात्कार कांड में पुलिस के कुकर्मों का उदाहरण देखिए. कानून के मुताबिक बलात्कार का आरोप लगने पर पुलिस को एक एफ.आई.आर. तुरन्त लिखना चाहिए, पर उन्नाव में बलात्कार पीड़ित लड़की ने आरोपियों के खिलाफ शिकायत की, पर पुलिस ने रिपोर्ट लिखने और आरोपियों को गिरफ्तार करने के बजाय साजिश के तहत् उसके पिता की ही हत्या नृशंश तरीके से पीट-पीट कर करा दी. जब कानून कहता है कि नाबालिग से बलात्कार के आरोप पर पास्को लगता है, तो यह धारा संज्ञान में आते ही लग जाना चाहिए था. परन्तु पुलिसिया बेशर्मी यह कि आरोपी विधायक पर यह धारा तब लगा जब पीड़ित के पिता की मौत के बाद मीडिया में हाय-तौबा मचा और इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने स्वतःसंज्ञान लेकर कार्रवाई करने का निर्देश दिया.

ऐसा होने पर एफआईआर तो हुई पर तब तक इस केस को सीबीआई के हवाले करके तकनीकि आड़ में विधायक की गिरफ्तारी नहीं होने दी. तब तक विधायक सबूतों को मिटाने के लिए अपने पद और दबंगई का बखूबी इस्तेमाल करने के लिए आजाद और हंसता हुआ बेपरवाह घूमता रहा.

उत्तर प्रदेश सरकार ने विधायक सेंगेर को बचाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया. पुलिस ने जांच-पड़ताल और कारवाई को ठंढें बस्ते में डाल दिया. पीड़ित लड़की चीख-चीख कर बोलती रही, मुख्यमंत्री से भी गुहार लगाई किन्तु उसकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई. उल्टे लड़की पर लगातार दवाब बनाया जाता रहा कि वह अपना मुकदमा वापस ले लें लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं हुई. फिर विधायक के भाई लड़की के पिता को उठा कर ले गया और उसकी इतनी निर्मम पिटाई की कि वह मर गया.

सवाल उठता है कि यही आरोप किसी आम आदमी पर लगा होता तब भी क्या सरकार की पुलिस इसी तरह गिरफ्तार नहीं करने का तर्क गढ़ती ?

इसी बीच एक वीडियो भी सामने आया जिसमें पुलिस बिना उक्त पीड़ित लड़की के पिता को दिखाये सादे कागज पर अंगूठे का निशान ले रही थी. आम जनता पर पुलिसिया कहर और दबंगों के सागिर्द बनने के कई अन्य मामलों में यह हाल का एक सनसनीखेज प्रकरण है.

नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यूरों के आंकड़े बताते हैं कि 2014 से 2016 के बीच बच्चों के खिलाफ अपराधों में 19.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. केस नेचर्स के तराजू में तौला जाता है. रिकार्ड के अनुसार 2014 में बच्चों के साथ 89 हजार से ज्यादा अपराध हुए और 2016 में एक लाख से अधिक. कई बार तो उन्हें बचाने के लिए आन्दोलन, जुलूस भी निकालते हैं. कुछ पर तो साम्प्रदायिक, धर्म, जाति का मुलम्मा भी चढ़ जाता है.

योगी सरकार एंटी रोमियो स्काॅयड लेकर आयी थी. बलात्कार और महिलाओं के साथ छेड़खानी को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया था लेकिन खुद की पार्टी के विधायक पर जब बलात्कार का आरोप लगा तो सारे नियम-कानून उल्टे पड़ गये. डीजी पुलिस विधायक को ‘माननीय’ विधायक कह रहे हैं और विधायक जी टेलीविजन के कैमरों के आगे मुस्कुराते हुए कहते हैं कि उन्हें झूठा फंसाया जा रहा है. सत्ता और शासन की हनन में यह सोचते हैं कि ‘कोई उनका क्या बिगाड़ लेगा ?’

हालात बता रहे हैं कि सच के आक्रोश को बाहर निकालने के लिए चीखना बेहद जरूरी है. जब यह चीख – आक्रोश – शासन के कानों को चुभती है, तभी नतीजा निकलता है.

– संजय श्याम

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