कार्ल मार्क्स
समाज की फ्रांसीसी आलोचना में, आंशिक ही सही कम से कम एक बहुत बड़ी खूबी यह है कि इसने आधुनिक जीवन के अन्तविर्रोधों और अस्वाभाविकताओं को केवल विशेष वर्गों के आपसी सम्बन्धों में ही नहीं बल्कि आधुनिक सामाजिक संसर्ग के तमाम दायरों और रूपों में भी उद्घाटित किया है. किसी दूसरे राष्ट्र में व्यर्थ में इन्हें तलाश करने की जगह उसने अपने समाज का लेखा-जोखा लेते हुए यह काम किया और प्रमाण के रूप में खुद जीवन की गर्मी, विचारों के खुलेपन, शिष्ट चालाकी और आत्मा की बहादुरी भरी मौलिकता को रखा. फ्रांसीसी आलोचना की इस श्रेष्ठता का अन्दाजा लगाने के लिए उदाहरण के तौर पर फूरिए और ओवने की उन आलोचनात्मक लेखों की तुलना की जा सकती है, जिनमें वे जीवन के रिश्तों के बारे में लिखते हैं. सामाजिक परिस्थितियों की आलोचनात्मक प्रस्तुति की बात सिर्फ फ्रांसीसी ‘समाजवादी’ लेखकों की परम्परा तक ही सीमित नहीं है बल्कि साहित्य के हर क्षेत्र में, खासतौर से उपन्यासों और संस्मरणों में इसे देखा जा सकता है. आत्महत्या के बारे में जैक पुचेट की किताब ‘—’ से कुछ उद्धरण देते हुए मैं इस फ्रांसीसी आलोचना का एक उदाहरण पेश करूंंगा. और साथ ही उन आधारों को भी स्पष्ट करने का प्रयास करूंंगा जिनके कारण बुर्जुआ मानवतावादी यह सोचता है कि यहांं समस्या सिर्फ सर्वहारा के लिए थोड़ी सी रोटी और थोड़ी सी शिक्षा का इन्तजाम करने की ही है और समाज की वर्तमान दशाएंं सिर्फ मेहतनकश के विकास को ही अवरुद्ध करती हैं अन्यथा वर्तमान दुनिया सभी सम्भव दुनियाओं में सबसे अच्छी है.
उन बहुत से फ्रांसीसी पुराने पेशेवर लोगों की तरह जो अब खत्म होते जा रहे हैं और जिन्होंने 1789 के बाद से हुए तमाम विप्लवों को जिया है और जो बहुत सारी निराशाओं, उत्साहों, संविधानों, शासकों, हारों और जीतों, मौजूदा सम्पत्ति, परिवार और दूसरे व्यक्तिगत सम्बन्धों की आलोचना एक शब्द में निजी जिन्दगी की आलोचना के प्रत्यक्षदर्शी हैं, जैक पुचेट के लिए यह आलोचना अपने राजनीतिक अनुभवों का अनिवार्य परिणाम प्रतीत होती है.
जैक पुचेट (1760 में जन्म) ललित साहित्य से शुरू करके आयुर्विज्ञान से कानून तक और फिर कानून से प्रशासन और पुलिस तक पहुंंच जाते हैं. फ्रांसीसी क्रान्ति फूटने से पहले तक वह एबे मोरलेट के साथ ‘वाणिज्य के शब्दकोश’ पर काम कर रहे थे जिसका केवल प्रोस्पेटस् ही किसी तरह छप सका. उस समय वे मुख्य रूप से राजनीतिक अर्थशास्त्रा और प्रशासन के गहन अध्ययन में व्यस्त थे. फ्रांसीसी क्रान्ति से पुचेट बहुत थोड़े समय के लिए जुड़े. शीघ्र ही वे राजतन्त्रवादी पार्टी में चले गए. कुछ समय फ्रांसीसी गजट के सम्पादक रहे और मैलेट डूपान से राजतन्त्र समर्थक बदनाम मरक्यूरे के सम्पादन का चार्ज लिया. इस सबके बावजूद उन्होंने बड़ी चतुराई से क्रान्ति के बीच से अपना रास्ता बनाया-कभी सताये गये तो कभी प्रशासन और पुलिस विभाग में भी काम किया. 1800 में छपे ‘वाणिज्य का भूगोल’ के 5 खण्डों ने प्रथम वाणिज्यिक दूत बोनापार्ट का ध्यान उनकी ओर खींचा और उन्हें वाणिज्यिक समिति का सदस्य नियुक्त कर दिया गया. बाद में फ्रेंकोइस डी नैफचेट के मन्त्रालय में उन्होंने उच्च प्रशासनिक पद पर काम किया. 1814 में हुई राजतन्त्र की पुनस्र्थापना में वह सेन्सर नियुत्त किए गए. ‘100 दिनों’ के दौरान उन्हें हटना पड़ा. बूर्बों राजवंश की पुनस्र्थापना के बाद उन्हें पेरिस के पुलिस प्रशासक के कार्यालय में आर्काइवस् के रखरखाव का काम मिला, जिस पर वह 1827 तक रहे. एक लेखक के रूप में और सीधे भी उनका प्रभाव-संविधान सभी के स्पीकर्स, कन्वेन्शन, ट्रिब्यूनेट और राजतन्त्र की पुनस्र्थापना के बाद सभासदों-सभी पर रहा. उनकी बहुत सारी किताबों में से, पूर्ववर्णित ‘वाणिज्य का भूगोल’ के अलावा, ‘फ्रांस की सांख्यिकी’ (1807) प्रमुख है.
पुचेट ने आंशिक रूप से पेरिस पुलिस के आर्काइवस् से और अंशतः पुलिस और प्रशासन के अपने लम्बे व्यावहारिक अनुभवों से एकत्र की गयी सामग्री के आधार पर एक ‘बूढ़े आदमी’ की तरह अपने संस्मरण लिखे और उन्हें अपनी मृत्यु के बाद ही छपने दिया ताकि उन्हें उन ‘उतावले’ समाजवादियों और कम्युनिस्टों में न गिना जा सके जो हमारे लेखकों, अफसरों और पेशेवर नागरिकों की सामान्य परम्परा के बारे में बहुत कम और उथली समझ रखने के लिए जाने जाते थे.
आइए, हम अपने पेरिस पुलिस प्रशासनिक कार्यालय के आर्काइन रक्षक की आत्महत्या के बारे में कही गयी बातों पर गौर करें !
‘आत्महत्या की सामान्य और बार-बार घटने वाली घटनाओं को जिनकी वार्षिक संख्या पहले जैसी ही है, हमारे सामाजिक संगठन के दोषपूर्ण लक्षण के रूप में समझा जाना चाहिए क्योंकि जब उद्योग ठप्प और संकटग्रस्त होते हैं, मंहगे भोजन और जाड़े के उन दिनों में यह लक्षण और भी ज्यादा सुस्पष्ट होकर सामने आता है और महामारी का रूप ग्रहण कर लेता है. वेश्यावृत्ति और चोरी भी उसी अनुपात में बढ़ जाते हैं. यद्यपि गरीबी आत्महत्या का प्रमुख स्रोत है पर हम अन्य वर्गों, निकम्मे धनी लोगों, यहांं तक कि कलाकारों और राजनीतिज्ञों में भी इसे देख सकते हैं आत्महत्या के विभिन्न प्रकार के कारण नैतिकतावादियों की संवेदनाहीन और एकरस भत्र्सनाओं का मजाक उड़ाते से प्रतीत होते हैं.
‘ज्यादातर मामलों में दोस्ती में विश्वासघात, छला गया प्रेम, कुण्ठित महत्वाकांक्षाएंं, पारिवारिक विपत्तियांं, दमित प्रतिद्वन्द्विता, एकरस जीवन की ऊब, दमित उत्साह जैसी विनाशकारी बीमारियांं जिनके प्रति आज का विज्ञान उदासीन और निष्फल है, असंदिग्ध रूप से ‘आत्महत्या की कारण है.’ प्रायः व्यत्तित्व की ऊर्जावान प्रेरक शक्ति खुद जिन्दगी से प्यार ही, ऐसे घृणित असहृय रूप से अस्तित्व के अन्त की ओर ले जाती है.
‘मैडम डी स्टाईल, जिनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि उन्होंने सामान्य स्थानों का भी एक विलक्षण अन्दाज में वर्णन किया है, उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की है कि आत्महत्या प्रकृति के विरुकृत्य है और इसे एक साहसिक कार्य के रूप में सम्मान नहीं दिया जा सकताऋ खासतौर से वे यह दावा करती हैं कि निराशा के सामने हार मान लेने की अपेक्षा उससे संघर्ष करना ज्यादा योग्यता का काम है। इस तरह के तर्क उन आत्माओं को बहुत कम प्रभावित करते हैं जो जबरदस्त दुर्भाग्य की शिकार हैं। यदि वे धार्मिक हैं तो वे मरने के बाद एक बेहतर दुनिया के बारे में सोचते हैं और इसके विपरीत यदि वे किसी चीज में विश्वास नहीं करते तो वे शून्य में शान्ति की तलाश करते हैं. दार्शनिकों के लम्बे और उबाउफ भाषण उनकी तकलीपफों से बचाने के लिए बहुत ही तुच्छ शरणस्थान होते हैं इसलिए उनकी नजरों में इनकी कोई कीमत नहीं होती। इस बात पर अड़े रहना सबसे ज्यादा जायका खराब करने वाली बात है कि एक इतना अक्सर होने वाला काम प्रकृति के विरु( है। आत्महत्या किसी भी तरह से प्रकृति के विरु( नहीं है क्योंकि हम रोज ही इसे होते देखते हैं। जो प्रकृति के विरु( होता है वह होता ही नहीं। इसके विपरीत बहुत सारी आत्महत्याओं को जन्म देना हमारे समाज की प्रकृति में है। जबकि तातार अपने को खुद खत्म नहीं करते। इस तरह, सभी समाजों के उत्पाद समान नहीं होते। यह बात हमें खुद को बतानी चाहिए ताकि समाज के सुधार के लिए काम किया जा सके और उसे एक उच्चतर अवस्था तक उठाया जा सके। जहाँ तक साहस की बात है तो यदि यु( के विस्तृत और खुले प्रकाशयुत्तफ मैदानों में हर तरह की उत्तेजना के प्रभाव में मौत को ललकारने को साहस का काम माना जाता है तो ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके आधार पर अन्धेरे-एकान्त में अपने लिए मौत का वरण करने वालों में साहस की कमी सि( की जा सके। यह एक ऐसा विवादास्पद प्रश्न है जिससे मृत व्यत्तिफ का अपमान करके पिण्ड नहीं छुड़ाया जा सकता.
‘आत्महत्या के खिलापफ कही गयी हर बात विचारों के इसी दायरें में गोल-गोल घूमती है। लोग इसके खिलाफ विधाता के विधान का हवाला देते हैं लेकिन आत्महत्या का होना स्वयं में ही उस विधाता के दुर्बोध विधानों के खिलापफ एक खुला विरोध है। वे हमसे हमारे समाज के प्रति कत्र्तव्यों के बारे में बातें करते हैं और समाज से हमारी खुद की जो अपेक्षाएँ हैं उनकी व्याख्या करने या उन्हें कार्यान्वित करने से बचते हैं और अन्त में वे कष्टों के समक्ष झुक जाने के बजाय उस पर काबू पाने के पफायदों को 1000 गुना चढ़ा कर बताते हैं, हर पफायदा, जितनी सम्भावनाएँ उससे खुलती हैं, उतना ही दुखदायी होता है। संक्षेप में, वे आत्महत्या को एक कायरतापूर्ण कृत्य बतो हैं, एक ऐसा अपराध, जो कानून, समाज’ और मर्यादा के खिलाफ है.
‘ऐसा क्यों होता है कि इतने धर्म-बहिष्कारों के बावजूद लोग खुद को मार डालते हैं? क्योंकि निराशा के क्षणों में आदमी का खून उसकी नसों में उसी तरह से नहीं दौड़ता जैसी कि ठण्डे लोगों में होता है जिसके कारण उन्हें इन निरर्थक वाक्यांशों को खोज निकालने का समय मिल जाता है। आदमी आदमी के लिए एक रहस्य बन गया प्रतीत होता है हर फायदा, जितनी सम्भावनाएँ उससे खुलती हैं, उतना ही दुखदायी होता है। संक्षेप में, वे आत्महत्या को एक कायरतापूर्ण कृत्य बताते हैं, एक ऐसा अपराध, जो कानून, समाज’ और मर्यादा के खिलाफ है।
‘ऐसा क्यों होता है कि इतने धर्म-बहिष्कारों के बावजूद लोग खुद को मार डालते हैं? क्योंकि निराशा के क्षणों में आदमी का खून उसकी नसों में उसी तरह से नहीं दौड़ता जैसी कि ठण्डे लोगों में होता है जिसके कारण उन्हें इन निरर्थक वाक्यांशों को खोज निकालने का समय मिल जाता है। आदमी, आदमी के लिए एक रहस्य बन गया प्रतीत होता है उसे सिपर्फ दोष दिया जाता है, उसे जाना नहीं जाता।
जब हम देखते हैं कि कितने हल्के ढंग से, वे संस्थाएँ जिनके अधीन यूरोप रह रहा है, राष्ट्रों के खून और उनकी जिन्दगियों का सौदा कर डालती हैं और सभ्य न्याय अपने असुरक्षित पफैसलों का पालन करवाने के लिए कितने पिफजूलखर्ची के अन्दाज मंे अपने को जेलों, सुधारगृहों और मौत के उपकरणों से घेर लेता है, जब हम ऐसे वर्गों की अति विशाल संख्या को देखते हैं जिन्हें हर तरपफ से दुख भोगने के लिए छोड़ दिया गया है और उन समाज बहिष्कृत लोगों को देखते हैं जो उन निर्दयी अभिधारणाओं द्वारा तोड़ दिए गए हैं जो शायद उन्हें इस दारिद्रय से बाहर निकालने की परेशनी से बचने के लिए रक्षात्मक इरादे से गढ़ी गयी हैं, जब हम यह सब कुछ देखते हैं तो हम यह समझने में असमर्थ होते हैं कि हमें क्या अधिकार है कि अपने उस जीवन का सम्मान करने का उन व्यत्तिफयों को आदेश दें जिसे हमारी परम्पराएँ, हमारे पूर्वाग्रह, हमारे कानून और हमारी नैतिक मान्यताएँ सामान्यतः अपने पैरों तले कुचल रहे हैं।
‘यह सोचा गया कि प्रतिष्ठा कम करने वाले दण्ड देने और अभियुत्तफ की स्मृति पर बदनामी का कलंक लगा देने से आत्महत्या को रोकना सम्भव हो सकेगा। उन लोगों पर निकम्मेपन से कलंक लगाने के बारे में कोई क्या कह सकता है जो अब अपना केस लड़ने के लिए हमारे बीच नहीं रहे? संयोगवश, उन अभागों को इसकी कोई खास परवाह नहीं। यदि आत्महत्या किसी को दोषी ठहराती है तो सबसे पहले वे लोग दोषी ठहरते हैं जो बचे रह गए क्योंकि इस बहुसंख्या में एक भी ऐसा नहीं है जो इस बात की योग्यता रखता हो कि कोई उसके लिए जिन्दा रहे। क्या ईजाद किए गए इन बचकाने और निर्दयी साधनों से निराशा की पुफसपफुसाहट के खिलापफ जीत हासिल हो चुकी है? जो दुनिया को छोड़कर भागना चाहता है उसको उस अपमान की क्या चिन्ता जिसको करने का दुनिया ने उसकी लाश से वायदा किया है? वह उसे जीने के लिए किए गए एक और कायरतापूर्ण कृत्य के रूप में देखता है। वास्तव में, यह किस तरह का समाज है जिसमें लाखों लोगों के बीच में रहते हुए भी एक आदमी अपने को गहनतम एकान्त में पाता है, जहाँ कोई अपने को मार डालने की दुर्दमनीय इच्छा से भर जाता है और किसी को इसके बारे में पता तक नहीं चलता? यह समाज, समाज नहीं है, यह, जैसा कि रूसो कहता है, एक रेगिस्तान है जिसमें जंगली जानवर रहते हैं। पुलिस प्रशासन में इस पर पर रहते हुए आत्महत्याओं के बारे में रिकार्ड रखना मंरी जिम्मेदारी का हिस्सा था। मैं जानना चाहता था कि आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाले कारणों में से क्या किसी एक की भी रोकथाम की जा सकती है। मैंने इस पर गहरा अध्ययन किया।’’ मैंने पाया कि समाज की वर्तमान अवस्था में आमूल परिवर्तन से निचले दर्जे का कोई भी प्रयास व्यर्थ होगा।
‘निराशा के उन कारणों में जो अधीर, शीघ्र उत्तेजित हो जाने वाले और भावप्रवण लोगों को मौत की तलाश की गहरी ीाावना से भर देते हैं, मैंने दुर्भावनापूर्ण व्यवहार, अन्याय और उन गोपनीय दण्डों को प्रमुख कारण के रूप में पाया जो सख्त अभिभावक और वरिष्ठ लोग अपने पर निर्भर लोगों को देते हैं। क्रान्ति ने सब निरंकुशताओं को उखाड़कर नहीं पफेंका है, वे बुराइयाँ जिनके लिए निरंकुश सत्ता को दोषी ठहराया जाता था, परिवार में अभी भी बनी हुई हैं, वहाँ वे वैसा ही संकट पैदा कर रही हैं जैसा उन क्रान्तियों के समय पैदा हुआ था.
‘पहले हमंे उन्हीं आधारों पर स्वार्थों और स्वभावों के बीच, व्यत्तिफ और व्यत्तिफ के बीच के सच्चे सम्बन्धों को अपने बीच पैदा करना होगा। आत्महत्या तो उस सार्वभौम सामाजिक संघर्ष के उन एक हजार एक लक्षणों में से सिपर्फ एक है जो हमेशा ही नए कामों को प्रेरित करता है जिससे बहुत सारे लड़ाके सिपर्फ इसलिए अलग हो जाते हैं क्योंकि वे शिकारों में अपनी गिनती करवाते हुए थक गए होते हैं या वे पिफर यह जल्लादों में सम्मानित स्थान प्राप्त करने के विचार के खिलापफ उनकी बगावत होती है। आपको कुछ उदाहरणों की जरूरत है, मैंने प्रामाणिक अधिकारिक विवरणों में से इन्हें चुना है।
‘1816 के जुलाई महीने में एक दर्जी की लड़की की सगाई एक माँस विक्रेता से हुई जो उच्च आदर्शोंवाला, मितव्ययी और कठोर परिश्रम करने वाला नौजवान था। अपनी सुन्दर वधू के प्रति वह बहुत अधिक समर्पित था और वह खुद भी उसे बहुत प्यार करती थी। नवयुवती एक दर्जिन थी। वह उन सबसे बहुत सम्मान पाती थी जो उसे जानते थे। दूल्हे के माँ-बाप भी उसे बहहुत चाहते थे। इन अच्छे लोगों ने उसे अपनी बहू बनाने के दिन को जल्दी से जल्दी लाने का कोई अवसर नहीं गँवाया। उन्होंने दावते दीं जिनमें वह एक रानी और देवी की तरह प्रतिष्ठित थी।
‘शादी का समय नजदीक आ गया, दोनों परिवारों के बीच सारी व्यवस्थाएँ कर ली गर्यी और अनुबन्ध को अन्तिम रूप दे दिया गया। रजिस्ट्रार के पास जाने के लिए नियत दिन की पूर्व सन्ध्या पर युवती और उसके माँ-बाप को दूल्हे के माँ-बाप के साथ रात को भोजन करना था। एक महत्वहीन घटना ने अप्रत्याशित तरीके से इसमें बाधा उत्पÂ कर दी। धनी ग्राहकों द्वारा दिए गए आर्डर को समय पर देने की मजबूरी के चलते दर्जी और उसकी पत्नी को घर में रहना पड़ा। उन्होंने अपनी क्षमायाचना भेजी लेकिन लड़के की माँ खुद दुल्हन को ले जाने के लिए आयी तो उसे उसके साथ जाने की आज्ञा मिल गयी। उन्होंने शराब पी, गाने गाये और भविष्य के बारे में बातें कीं। एक अच्छी शादी के सुखों के बारे में उत्सुकतापूर्वक चर्चा की गयी। वे देर रात तक मेज पर बैठे रहे। एक आसानी से समझ में आने वाले अनुग्रह के चलते लड़के के माँ-बाप ने युवा जोड़े के बीच हुई मौन सहमति पर अपनी आँखें मूँद लीं। उनक हाथ एक-दूसरे को खोजने लगे।प्यार और अन्तरंगता का नशा उनके सिर पर सवार हो गया। शादी पूरी मान ली गयी थी और ये दोनों नौजवान एक-दूसरे से कापफी लम्बे समय से मिलजुल रहे थे पर उन्होंने, इसके अलावा कभी भी, बदनामी करने का थोड़ा सा भी बहाना नहीं दिया था। उस प्रगतिशील घण्टे में, दूल्हे के माँ-बाप की भावनाएँ, परस्पर को पाने की उनकी तीव्र लालसा जिसे अपने बु(िमान अभिभावकों के अनुग्रह के कारण छूट मिल गयी थी, ऐसे मौकों पर प्रायः रहने वाला अप्रतिबन्धित उल्लास और दिमाग में उपफान पैदा कर रही शराब, इस मुस्कुराते हुए अवसर पर ये सब मिल गये और हर चीज ने उस परिणाम को लाने में मदद की जिसकी कल्पना की जा सकती है। जब बत्तियाँ बुझ गयीं, प्रेमी अन्धेरे में पिफर मिले। हरेक ने बहाना किया जैसे उसे कुछ पता नहीं, सन्देह करने के लिए कुछ नहीं था। यहाँ उनकी प्रसÂता से ईष्र्या करने वाला कोई नहीं था, सब दोस्त थे।
‘नवयुवती अगले दिन सुबह ही अपने माँ-बाप के पास लौट सकी। वह खुद को कितना कम दोषी समझती थी, यह इसी से साबित होता है कि वह अकेली घर लौटी। वह अपने कमरे में चली गयी और अपनी पोशाक ठीक करने लगी। लेकिन जैसे ही उसके माँ-बाप को उसके आने का पता चला, उन्होंने गुस्से में अपनी बेटी पर सबसे अधिक शर्मनाक लांछनों और गालियों की बौछार कर दी। पड़ोसियों ने भी देखा। काण्ड खुल गया था। उस आघात की कल्पना कीजिए जो इस अपमानजनक तरीके से अपनी मर्यादा का अतिक्रमण किए जाने और अपने राज के सबके बीच खोल दिये जाने के कारण इस छोटी सी बच्ची को लगा होगा। किंकत्र्तव्यविमूढ़ सी लड़की ने अपने माँ-बाप को समझाने की कोशिश की कि वे खुद ही उसे बदनाम कर रहे हैं, कि वह अपनी गलती, अपनी मूर्खता, अपनी अवज्ञा को स्वीकार करती है लेकिन वह हर चीज दुबार ठीक की जा सकती है। पर व्यर्थ, उसके तर्क और उसका दुख दोनों दर्जी माँ-बाप को शान्त करने में असपफल रहे.’
सबसे कायर और प्रतिरोधविहीन लोग अपनी निरंकुश पितृ-सत्ता के उपयोग का मौका मिलते ही कठोर हो गये। बुर्जुआ समाज में तमाम तरह की निर्भरताओं और दब्बूपने के जिस स्तर तक वे अनिच्छापूर्वक खुद को गिरा लेते हैं, पहले की तरह ही इस अधिकार का दुरुपयोग उसके लिए एक भौंड़े मुआवजे का काम करता है।
‘दूसरों के मामलों में रूचि लेने वाले पुरुष और स्त्रियाँ दौड़ते हुए आये और इस गुल-गपाड़े में शामिल हो गये। इस घृणित दृश्य से पैदा हुई शर्म की भावना ने बच्ची को इस निर्णय पर पहुँचा दिया कि वह खुद अपनी जान ले ले। निन्दा करती और गालियाँ बकती पड़ौसियों की भीड़ के बीच से वह सीढ़ियों पर नीचे भागी। उसकी आँखें पागलपन से भरी थीं।’’ वह सीन नदी की ओर दौड़ी ‘‘और नदी में कूद गयी। नाविकों ने उसे पानी से बाहर निकाला। वह मर चुकी थी। वह अब भी शादी के जोड़े में थी। कहना व्यर्थ है कि वे लोग जो पहले बेटी पर चिल्ला रहे थे एकदम उसके माँ-बाप के खिलापफ हो गये, इस विभीषिका ने उनकी खाली रूहों में दशहत भर दी थी। कुछ दिनों के बाद माँ-बाप पुलिस के पास उस सोने की चेन की माँग करने के लिए आये जिसे बच्ची अपने गले में पहने हुये थी और जो भावी ससुर की ओर से दिया गया एक उपहार था। इसके अलावा एक चाँदी की घड़ी और बहुत सारी दूसरी छोटी-छोटी श्रृंगार की चीजें थीं जो सब पुलिस के पास जमा हो चुकी थीं। इन लोगों की मूर्खता और बर्बरता के लिए उन्हें खूब शर्मिन्दा करना मैं नहीं भूला। उनके अहंकारी पूर्वाग्रहों और विलक्षण किस्म की धार्मिकता के कारण, जो निम्न-व्यापारिक वर्गों मंे पायी जाती है, उन पागल लोगों से यह कहना कि उन्हें भगवान को हिसाब देना पड़ेगा उन पर बहुत कम प्रभाव छोड़ सका।
‘दो या तीन निशानियाँ रखने की इच्छा नहीं बल्कि लालच उन्हें मेरे पास लाया था। मैंने सोचा कि मैं उनकी हवस के लिए उन्हें दण्ड देता। वे अपनी बेटी के गहनों की माँग कर रहे थे। मैंने उनहें देने से मना कर दिया। मैंने वे सर्टिपिफकेट, जिनकी इन सामानों को लेने के लिए उनको जरूरत पड़ती, उस आपिफस से लेकर रख लिए जहाँ रिवाज के हिसाब से वे जमा किये गये थे। जब तक मैं इस पद पर रहा उनके दावे व्यर्थ जाते रहे। उनके अपमान की परवाह न करके मुझे सुख मिलता था.
‘उसी वर्ष मेरे आपिफस में मार्टिनिक के एक धनी परिवार का एक आकर्षक क्रिओल नौजवान आया। उसने बहुत ही जोरदार तरीके से एक नौजवान औरत की लाश, जो उसकी भाभी थी, उसके दावेदार, उसके पति और उसके अपने भाई को दिये जाने का विरोध किया। वह खुद डूबी थी। इस तरह की आत्महत्या बहुत आम है। लाश को खोजने में लगे अधिकारियों को उसकी लाश ग्रेव-डी-अर्जेन्टीना के पास ही मिली थी। मर्यादित आचरण की सर्वविदित सहजवृत्ति, जो अन्धी निराशा के समय भी महिलाओं में पायी जाती है, के कारण डूबने वाली महिला ने स्कर्ट के किनारों को अपने पैरों के चारों ओर लपेटा हुआ था। यह मर्यादित सावधानी यह साबित करती थी कि उसने आत्महत्या ही की है। लाश बरामद होने के बाद उसे मुर्दाघर में ले जाया गया। उसकी सुन्दरता, उसकी जवानी और उसकी भव्य पोशाक ने इस विभीषिका के कारणें के बारे में हजारों तरह की अटकलबाजी लगाने के प्रेरित किया। उसके पति की निराशा, जो उसको पहचानने वाला पहला आदमी था, असीमित थी। उसकी विपत्ति की थाह नहीं थी, कम से कम मुझे ऐसा ही बताया गया था। मैंने खुद उसे पहले कभी नहीं देखा था। मैंने क्रिओल को बताया कि पति का दावा सबसे उफपर होता है। वह पहले ही अपनी अभागी पत्नी के लिए एक शानदार संगमरमर की समाधि बनवा चुका है। ‘उसकी हत्या करने बाद, राक्षस कहीं का!’ कमरे में इधर से उधर दौड़ता हुआ क्रिओल चिल्लाया.
‘इस नौजवान की उत्तेजना और निराशा, प्रार्थना स्वीकार कर लेने के उसके अनुनयपूर्ण आग्रह और उसके आँसुओं से मैं इस नतीजे पर पहुँचा कि वह उसे प्यार करता था और मैंने यह बात उसे बता दी। उसने अपने प्यार को स्वीकार तो किया लेकिन इन प्रबल आश्वासनों के साथ कि उसकी भाभी कभी इस बात को नहीं जान पायी। उसने यह बात कसम खाकर कही। केवल अपनी भाभी की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए जिसकी आत्महत्या के लिए जमाना, हमेशा की तरह, उसके गुप्त प्रेम को जिम्मेदार ठहरा देगा, वह अपने भाई की बर्बरताओं को सामने लाना चाहता था, भले ही इसके लिए उसे खुद कटघरे में खड़े होना पड़े। उसने मुझसे मदद के लिए प्रार्थना की। जो कुछ मैं उसके बिखरे-बिखरे और भाव-प्रवण वत्तफव्यों से इकट्ठा कर सका, वह यह थाμ‘‘उसके भाई मानसेर-डी-एम ने, जो धनी, कला पारखी, ऐÕयाश और उच्चवर्गों में दोस्ती रखने वाला था, एक वर्ष पहले इस नौजवान लड़की से, एक-दूसरे के प्रति स्पष्ट झुकाव के कारण शादी की थी। यह उन सब से सुन्दर जोड़ा था जो आप देख सकते हैं। शादी के बाद नौजवाना की शरीर रचना में अचानक और तेजी से एक खून की खराबी प्रकट हुई जो शायद अनुवांशिक थी। अपनी मनोहारी शरीर रचना और सुन्दरता पर गर्व करने वाला तथा रूप की एक शानदार और अद्वितीय पूर्णता वाला यह आदमी अचानक एक ऐसी अज्ञात विपत्ति का शिकार हो गया जिसके विध्वंस के सामने विज्ञान भी शत्तिफहीन थाा, सर से पैर तक वह बहुत ही भयानक तरीके से विरूपित हो गया। उसके सारे बाल गायब हो गये, उसकी रीढ़ झुक गयी। दिन पर दिन बढ़ती दुर्बलता और झुर्रियों ने, कम से कम दूसरों के लिए, उसे बहुत ही चैंकाने वाले तरीके से बदल डाला था, क्योंकि अपने आत्मप्रेम के चलते वह खुद ही सुस्पष्ट चीज को स्वीकारने से इन्कार करता रहा। तो भी इस सबके चलते वह बिस्तर पर नहीं पड़ा। एक लौह शत्तिफ इस अज्ञात विपत्ति के आक्रमणों पर विजय पाती प्रतीत हुई। वह अपनी पूरी जीवनी शत्तिफ के साथ अपनी बरबादी को झेलता रहा। उसका शरीर बरबाद हो गया पर उसकी आत्मा उल्लसित रही। वह दावतें देता रहा, शिकारी दलों का नेतृत्व करता रहा, और जीवन के वैभवपूर्ण और शानदार रास्ते पर चलता रहा, जो उसके चरित्रा और उसके स्वभाव का नियम प्रतीत होता था। लेकिन अपमानों, अड़ियलपने, घोड़े की सैर के लिए ले जाते समय स्कूली लड़कों और गली के शैतान बच्चों द्वारा की जाने वाली छींटाकशी, उनकी निर्दयी और मजाक उड़ाती हुई हँसी और दोस्तों की उन अनगिनत अवसरों पर दी गयी विनम्र चेतावनियों ने, जब रसिक अन्दाज से औरतों के पीछे पड़कर वह खुद को मजाक का पात्रा बना देता था, इस सबने अन्ततः उसके भ्रम को समाप्त कर दिया और उसे अपने बारे में सावधान कर दिया। जैसे ही उसने अपनी कुरूपता और विरूपताओं को खुद भी स्वीकार किया, जैसे ही वह इसके प्रति सचेत हुआ, उसके चरित्रा में कटुता आ गयी। उसका दिल टूट गया। अब वह अपनी पत्नी को बाॅल नृत्य, कन्सर्ट्स, संगीत-सभाओं और पर्टियों में ले जाने के बारे में बहुत कम उत्साहित प्रतीत होता। वह अपने गाँव वाले घर पर चला गया। उसने सभी निमन्त्राणों का अन्त कर दिया, हजारों बहाने बनाकर लोगों को टालने लगा। उसके दोस्तों द्वारा की जाने वाली उसकी पत्नी की तारीपफों ने, जिन्हें वह तब तक बर्दाश्त करता रहा था जब तक उसके अहंकार ने उसे उसकी श्रेष्ठता का विश्वास दिलाये रखा, उसे ईष्र्यालु, शक्की और हिंसक बना दिया। उन सबमें जिन्होंने उससे मिलते रहने पर जोर दिया था उसने अपनी उस पत्नी का, जो उसका अन्तिम अभिमान और अन्तिम दिलासा था, दिल जीतने के दृढ़ संकल्प को ढूँढ निकाला। इसी समय पर क्रिओल नौजवना अपने उस व्यवसाय के साथ मर्टिनीक से आया जिसकी सपफलता बूर्बों के प्रफाँस की राजगद्दी पर पिफर से बैठने से जुड़ी हुई प्रतीत होती थी। उसकी भाभी ने उसका हार्दिक स्वागत किया और अनगिनत नष्ट हो रहे सम्बन्धों के भग्नपोत में, जिन्हें उसने खुद ही संकुचित कर दिया था, नवागंतुक का स्थान सुरक्षित हो गया क्योंकि मोसियर-डी-एम के साथ भाई के रिश्ते के कारण बिल्कुल सहज तरीके से उसे एक लाभ मिला हुआ था। क्रिओल ने दो तरीकों से, उसके भाई के अपने दोस्तों के साथ होने वाले सीधे झगड़ों और हजारों अप्रत्यक्ष घटनाओं से जिन्होंने मिलते वालों को हतोत्साहित किया था और उन्हें इससे दूर ले गयी थीं, उस अकेलेपेन का पूर्वानुमान कर लिया जो उस घर को घेरने वाला था। प्रेम के उन प्रयोजनों के बारे में स्पष्ट रूप से जाने बिना ही जिन्होंने उसे भी ईष्र्यालु बना दिया था, क्रिओल ने अपने को काट लेने के इन प्रयासों का अनुमोदन किया और अपनी सलाहों से उन्हें और प्रोत्साहित किया। मौसियर-डी-एम ने अपने सामाजिक जीवन का अन्त कर लिया और पैसी में एक सुन्दर मकान में खुद को पूरी तरह से काटकर रहने लगा। थोड़े ही समय वह घर वीरान हो गया। ईष्र्या छोटी से छोटी बातों से खुराक ग्रहण करती है। जब उसे इल्जाम लगाने के लिए कोई नहीं मिलता तो यह अपने ही खिलापफ मुड़ जाती और खोजी हो जाती है। हर चीज उसे जिलाए रखने में मदद करती है. शायद नौजवान औरत अपनी उम्र के अनुसार खुशियों की आकांक्षा रखती थी। दीवारों ने पड़ोसी घरों के दृश्यों को भी बाधित कर दिया था, सुबह से शाम तक शटर बन्द रहते थे।’’
अभागी पत्नी को सबसे ज्यादा असह्य दासता की सजा दी गयी थी, और यह दासता केवल मौसियर-डी-एम द्वारा सिविल कोड और अपने सम्पत्ति के अधिकार और उन सामाजिक दशाओं के आधार पर थोपी गयी थी जो प्यार को प्रेमियों की मुक्त भावनाओं से अलग कर देती है और ईष्र्यालु पति को इसकी आज्ञा देती है कि वह अपनी पत्नी को तालों में उसी तरह कैद कर दे जैसे कंजूस अपनी तिजोरी को करता है, क्योंकि वह उसके माल के स्टाक का एक हिस्सा मात्र होती है।
‘रात को मौसियर-डी-एम हथियारबन्द होकर और कुत्ते को साथ लेकर घर के चारों ओर शिकार की खोज में घूमता रहता था। एक दिन जब एक माली को सीढ़ी को हटा रहा था, उसे लगा कि उसने रेत में पैरों के निशान देखे हैं और विचित्र सन्देह से भर गया। निषेध की भावना अपने असंयम की कोई सीमा नहीं जानती, यह वाहियात होने की हद तक लाती है। भाई जो इस सबमें निर्दोष सहअपराधी था अन्ततः समझ गया कि वह उस नवयौवना के दुर्भाग्य के निर्माण में सहायता कर रहा था जिसे रोज-ब-रोज सुरक्षा में रखा जा रहा था, अपमानित किया जा रहा था और उस हर चीज से वंचित किया जा रहा था जो एक वैभवशाली और खुशनुमा कल्पना शत्तिफ को दिशा दे सकती थी। वह उतनी ही उदास और चिड़चिड़ी हो गयी थी जिनती कि कभी उन्मुत्तफ और प्रसÂ रहा करती थी। वह रोती थी और अपने आँसू छिपाती थी पर उनके चिर् दिखायी दे जाते थे। क्रिओल का सद्विवेक उसको सताने लगा। उसने अपनी गलतियों की भरपाई करने और उन्हें खोलकर अपनी भाभी के सामने रखने का दृढ़ निश्चय कर लिया जो निश्चित रूप से उसके प्यार के गुप्त भावों के कारण पैदा हुआ था। एक सुबह चुपचाप वह उस छोटे और वृक्षों से ढँके खुशनुमा बगीचे में दाखिल हो गया जहाँ कैदी ताजी हवा लने और अपने पफूलों की देखभाल करने के लिए समय-समय पर जाया करती थी। हमें यह पता होना चाहिए कि इस बहुत सीमित आजादी का उपभोग करते समय भी नवयुवती यह जानती थी कि वह अपने पति की ईष्र्यालु नजरों में ही रहती है इसलिए पहली बार एकदम अप्रत्याशित तरीके से अपने देवर को सामने देखकर वह बहुत डर गयी। वह अपने हाथ मलने लगी। ‘भगवान के नाम पर यहाँ से चले जाओ’ वह डर से उसके उफपर चिल्लायी, ‘चल जाओ यहाँ से!’
‘और वास्तव में, वह अभी मुश्किल से पौधघर में छिपा ही था कि मौसियर-डी-एम अचानक प्रकट हो गया। क्रिओल ने चीखें सुनी। उसने ध्यान से सुनने का प्रयास किया पर उसके दिल की धड़कनों ने उसे स्पष्टीकरण का एक शब्द भी नहीं सुनने दिया क्योंकि अगर पति उसकी छुपने की जगह खोज लेता तो इसके बहुत खेदजनक परिणाम हो सकते थे। इस घटना ने देवर को प्रेरित कर दिया था इसलिए उसने एक पीड़ित व्यत्तिफ का रक्षक बनने की जरूरत महसूस की। उसने अपने प्यार के रास्ते की सभी बाधाओं को हटाने का संकल्प लिया। रक्षा के अपने अधिकार को छोड़कर प्यार बाकी हर चीज कुर्बान कर सकता है। इसके लिए अन्तिम बलिदान एक कायर का ही होना था। वह अपने भाई के पास जाता रहा, उससे खुलकर बात करने, अपने को उसके सामने खोलने और उसे हर बात बताने के लिए तैयार हो गया। मौसियर-डी-एम को अभी तक अपने भाई पर कोई सन्देह नहीं था पर उसके भाई के आग्रह ने इसे जमा दिया। उसकी इस दिलचस्पी के कारणों के बारे में पूरी तरह जाने बिना ही, यह अनुमान लगाते हुए कि यह मामला कहाँ तक जा सकता है, मौसियर-डी-एम उन पर अविश्वास करने लगा। क्रिओल जल्दी ही जान गया कि उसका भाई हमेशा घर से अनुपस्थित नहीं रहता था हालाँकि बेकार मंे उसके पैसी के पर की घण्टी बजाकर लौट जाने वालों को बाद में वह यही बताया करता था। एक ताला बनाने वाले के शार्गिद ने उसके लिए उन माॅडलस् के आधार पर चाभी बना दी जिनसे उसके उस्ताद ने मौसियर-डी-एम के लिए बतायी थी।
10 दिन के बाद क्रिओल एक रात को डर से भरा हुआ और पागलपन से भरी कल्पनाओं से उद्वेलित होता हुआ दीवार पर चढ़ा, मुख्य अहाते की एक रेलिंग को तोड़कर एक सीढ़ी की सहायता से छत पर जा पहुँचा और ड्रेन पाइप के सहारे पिफसलकर एक स्टोर रूम की खिड़की के नीचे आ गया। तेज चीखों के शोर में वह काँच के एक दरवाजे से बिना किसी का ध्यान आकर्षित किये गुजर गया। उसने जो देखा उससे उसका हृदय विदीर्ण हो उठा। कमरे में एक लैम्प का प्रकाश दिखायी दिया। बिस्तर के पर्दों के पीछे बाल बिखेरे और क्रोध से चेहरा लाल किए हुए मौसियर-डी-एम बिस्तर पर अधनंगा अपनी पत्नी के पास झुका हुआ था। हालाँकि वह खुद को उससे अलग करने के लिए बराबरी से खींचतान कर रही थी वह बिस्तर छोड़ने की हिम्मत उसमें नहीं थी। वह उसपर सबसे ज्यादा पीड़ादायी तोहमतें लगा रहा था और एक ऐसे चीते के रूप में लग रहा था जो उसके टुकड़े-टुकड़े करने वाला हो। ‘हाँ’ उसने उससे कहा, ‘‘मैं बदसूरत हूँ, राक्षस हूँ और मैं इसे बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ, मैं तुम्हारे भीतर दहशत पैदा कर दूँगा। तुम मुझसे छुटकारा पाना चाहती हो ताकि मेरे दर्शन तुम्हारे उफपर और अधिक बोझ न बने। तुम्हें उस क्षण का बेसब्री से इन्तजार है जब तुम मुत्तफ होगी। और मुझे उल्टा मत बताओ, तुम्हारे डर और तुम्हारे प्रतिरोध से मैं तुम्हारे विचारों का अन्दाज कर सकता हूँ। मेरे अयोग्यतापूर्ण ठहाकों पर तुम शर्मसार हो जाती हो। तुम भीतर-भीतर मेरे खिलापफ विद्रोह करती हो, इसमें सन्देह नहीं कि तुम एक-एक मिनट गिनकर उस समय का इन्तजार कर रही हो जब अपनी कमजोरियों और अपनी उपस्थिति के साथ और लम्बे समय तक तुम्हारा घेरा डालने के लिए मैं नहीं रहूँगा। रुक जाओ! मैं भयानक इच्छाओं का शिकार हूँ, तुम्हें अपनी ही तरह का बना देने की, विरूपित कर देने की उन्मत्त इच्छा ताकि मुझे जानने के अपने दुर्भाग्य के बावजूद अपने प्रेमियों के चलते तुम्हें जो ढाढस मिलता है, उसकी भी आशा तुम और अधिक समय तक न कर सको। मैं इस घर के सारे शीशे तोड़ दूँगा जिससे वे मेरे उफपर इस विरोधाभास को प्रकट न कर सकें और तुम्हारे घमण्ड को और खुराक न मिल सके। शायद मुझे पिफर से तुम्हें दुनिया में ले जाना चाहिए, या तुम्हें चले जाने देना चाहिए ताकि यह देख सकूँ कि मुझसे घृणा करने के लिए हर कोई तुम्हें कैसे उकसाता है।’ नहीं, नहीं, तुम इस घर को नहीं छोड़ोगी जब तक तुम मुझे मार नहीं देती। मुझे मार दो, वह करने के लिए पहले से ही तैयार रहो जिसके लिए मैं तुम्हें रोज ललचाता हूँ।’’ और वह जंगली पशु जोर-जोर से रोता हुए, दाँत पीसते हुए, मुँह से झाग छोड़ते हुए, पागलपन के हजारों लक्षणों के साथ गुस्से में अपने को पीटता हुआ इस अभागी औरत के पास बिस्तर पर लोटने लगा जो उसपर अपनी सबसे करुण अनुनय-विनय और सबसे सुकुमार चुम्बनों को बरबाद कर रही थी। अन्ततः उसने उसे शान्त कर दिया। कोई शक नहीं है कि प्यार को दया ने स्थानापÂ कर दिया था लेकिन यह इस आदमी के लिए कापफी नहीं था जो देखने में इतना भयानक लग रहा था और जिसके दुव्र्यसनों ने इतनी उफर्जा को रोका हुआ था। इस दृश्य के बाद निराशा का एक लम्बा दौर आया जिससे क्रिओल सÂ रह गया। वह काँपा और यह नहीं समझ पाया कि इस अभागी महिला को इस घातक प्राणोत्सर्ग से बचाने के लिए
किसके पास जाये। यह दृश्य लगभग उसी तरह रोज दुहराया जाता था। बाद में होने वाली एंेठन को शान्त करने के लिए मैडम-डी-एम के पास दवा की कुछ बोतलें थीं जो उसको सताने वाले को थोड़ी शान्ति देने के लिए तैयार की गयी थी।
‘क्रिओल उस समय मौसियर-डी-एम के परिवार का पेरिस में अकेला प्रतिनिधि था। सबसे ज्यादा ऐसे ही मामलों में न्यायिक प्रक्रिया की सुस्त रफ्रतार और कानूनों की निष्ठुरता को कोसने की इच्छा होती है जिनके रहते कुछ भी अपने लिए सूक्ष्मता से निर्धारित की गयी लीक से नहीं हट सकता, खासतौर से तब जबकि यह एक महिला का मामला हो जो ऐ ऐसा प्राणी है जिसे कानून न्यूनतम गारण्टी देता है। एक गिरफ्रतारी वारण्ट या ऐसा कोई सख्त कदम ही उस बरबादी को रोक सकता था जिसका पागलपन के प्रत्यक्षदर्शी ने बहुत अच्छी तरह अनुमान लगा लिया था। यहाँ तक कि उसने हर चीज को दाँव पर लगाने का निश्चय किया, और सारे परिणामों को अपने उफपर लेने के लिए तैयार हो गया क्योंकि अपनी सम्पत्ति के कारण वह किसी भी सम्भावित खतरे की जिम्मेदारी से न डरने और बहुत बड़ा त्याग करने में समर्थ था। उसके दोस्तों में से कई डाॅक्टर पहले से ही तैयार थे, वे उसी की तरह दृढ़ निश्चय के साथ मौसियर-डी-एम के घर में घुसने की तैयारी में थे ताकि इन पागलपन के दौरों की जाँच की जा सके और दोनों विवाहितों को बलपूर्वक एक-इूसरे से अलग किया जा सके। तभी घटी आत्महत्या की इस घटना ने इन देर से की गयी तैयारियों को उचित ठहराते हुए इस समस्या का अन्त कर दिया।
‘निश्चित रूप से, हर उस आदमी के लिए जो शब्दों की आत्मा को उसके लिखित अक्षरों तक ही सीमित नहीं करता, यह आत्महत्या पति द्वारा किया गया एक विश्वासघाती कत्ल था लेकिन साथ ही यह ईष्र्या के असामान्य दौरे का परिणाम भी था। ईष्र्यालु आदमी को एक गुलाम की जरूरत होती है, ईष्र्यालु आदमी प्यार कर सकता है पर वह प्यार को ईष्र्या का केवल एक ऐÕयाशी भरा पूरक समझता है। ईष्र्यालु व्यत्तिफ, आखिर एक निजी सम्पत्ति का मालिक ही तो होता है।’ मैंने क्रिओल को एक व्यर्थ और घातक काण्ड करने से रोका, जो उसकी प्रियतमा की स्मृतियों के लिए ही सबसे ज्यादा घातक होता क्योंकि तब निष्ठुर जमाने ने उस शिकार हुई महिला को अपने पति के भाई के साथ अवैध सम्बन्ध रखने का दोषी ठहरा दिया होता। मैं जनाजे में शामिल हुआ। मेरे और उस भाई के अलावा कोई सच नहीं जानता था। अपने चारों ओर मैंने अपकीर्तिकर पफुसपफुसाहट सुनी लेकिन मैंने उसकी उपेक्षा कर दी। आदमी लोकनिन्दा से जरूर लज्जित होता है जब वह अपनी कायरतापूर्ण कटुता और गन्दे आक्षेपों के साथ उसे एकदम नजदीक होते पाता है। पर लोगों के इतने अलगाव में रहने, इतने अज्ञानी बने रहने, इतने भ्रष्ट होने के कारण उनकी राय बहुत बँटी हुई होती है क्योंकि हर कोई स्वयं के लिए अजनबी है और सब एक-दूसरे के लिए अजनबी हैं.’
‘संयोग से, कुछ हफ्रते गुजर गए और मेरे सामने इसी तरह के और रहस्योद्घाटन नहीं हुए। उसी साल मैंने एक जार प्रेम सम्बन्ध रजिस्टर किया जो माँ-बाप द्वारा स्वीकृति न दिए जाने के कारण पैदा हुआ था और पिस्तौल के दो फायरों के साथ खत्म।
‘मैंने दुनिया के उन लोगों की आत्महत्याएँ दर्ज कीं जिन्हें आनन्द के दुरूपयोग ने कभी न खत्म होने वाली निराशा से भर दिया था, जो अपने खिलने के दिनों में ही नपुंसकता के शिकार हो गए थे।
‘बहुत से लोग, नुकसानदायक नुस्खों के चलते लम्बी और व्यर्थ की यन्त्राणा झेलने के बाद अपने दिनों का अन्त कर लेते हैं क्योंकि यह विश्वास उनके उफपर हावी हो जाता है कि दवाई उनके कष्टों से उनको मुत्तिफ दिलाने में असमर्थ है।
‘एक शानदार संकलन तैयार किया जा सकता है जिसमें प्रसि( लेखकों के उ(रण हों और उन निराश लोगों द्वारा लिखी गई कविताएँ हों जिनकी अपनी मृत्यु की तैयारी पक्के तौर पर दिखाई देती हो। मरने का पफैसला कर लेने के बाद आने वाले अद्भुत रूप से निष्ठुर क्षणों में इन रूहों से एक तरह का संक्रामक उत्साह उच्छवसित होता है और कागजों पर बहने लगता है, यहाँ तक कि उन वर्गों में भी जो हर तरह की शिक्षा से वंचित कर दिए गए हैं। जब वे खुद को बलिदान के लिए प्रकृतिस्थ कर रहे होते हैं और उसकी गहराइयों में विचरण कर रहे होते हैं तो उनकी तमाम शत्तिफ केन्द्रित होकर गर्मजोश और लाक्षणिक अभिव्यत्तिफ के रूप में फूट निकलती है।
‘इनमें से कुछ कविताएँ जो आर्काइवस् में दपफन हैं, उत्कृष्ट रचनाएँ हैं। एक थुलथुल बुर्जुवा जो अपनी आत्मा को अपने व्यापार में लगाता है और अपने परमात्मा को वाणिज्य में, वह इसमें बहुत रूमानियत खोज सकता है और इन परेशानियों और कष्टों को अपनी तिरस्कारपूर्ण हँसी के जरिए नकार सकता है क्योंकि वह इन्हें समझता ही नहीं। उसका यह तिरस्कार हमें आश्चर्यचकित नहीं करता.’
इन तीन प्रतिशत वालों से कोई और क्या आशा कर सकता है जिन्हें इस बात का जरा सा भी संदेह नहीं होता कि हर रोज, हर घण्टे, रेशा-रेशा वे खुद को मार रहे हैं, अपने मानव स्वभाव का अन्त कर रहे हैं!
‘लेकिन उन अच्छे लोगों के बारे में क्या कहा जाए जो इन धर्मपरायण शिक्षित लोगों के लिए बलिदान हो रहे हैं और जो इस गंदगी की अनुगूँज हैं। इसमें कोई शक नहीं है और यह बहुत महत्वपूर्ण है कि केवल दुनिया के सुविधाजीवी वर्गों के हित के लिए ये बेचारे गरीब लोग बने रहने चाहिए, इन बकवास लोगों की बहहुप्रचलित आत्महत्याओं से यह सुरक्षा नष्ट हो सकती है। क्या इस वर्ग के अस्तित्व को सहृय बनाने का अपमान करने, तिरस्कार करने और तीखे शब्दों से छलनी करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं? इसके अतिरिक्त् इन कमबख्त लोगों में एक महान आत्मा का निवास भी होना चाहिए जो उस समय जब वे मरने के लिए कृत संकल्प हों, खुद उनका सर्वनाश कर दे और उन्हें पफाँसी के तख्ते के घुमावदार रास्ते से आत्महत्या की ओर जाने से रोके। यह सही है कि जितना ही अधिक हमारे वाणिज्यिक युग का विस्तार होता जाता है दुर्दशा के कारण होने वाली ये उत्तम किस्म की आत्महत्याएँ उतनी ही कम होती जाती हैं। एक सचेत शत्राुता उनका स्थान ले लेती है और दुर्दशा का शिकार व्यत्तिफ बेमुरव्वत होकर चोरी और हत्या करने का खतरा मोल लेने लग जाता है क्योंकि काम पाने से मृत्युदण्ड पाना ज्यादा आसान होता है.
‘पुलिस आर्काइवस् की छानबीन के दौरान आत्महत्याओं की सूची से मुझे सिर्फ एक कायरतापूर्ण आत्महत्या का केस मिला। वह एक अमरीकी नौजवान विलप्रिफड रामसे का मामला था जिसने द्वन्द्वयु( से बचने के लिए खुद को मारा था।
‘आत्महत्या के विभिÂ कारणों का वर्गीकरण हमारे समाज के दोषों का ही वर्गीकरण्ण होगा। एक आदमी ने खुद को इसलिए मारा क्योंकि जब लम्बे वैज्ञानिक अनुसंधानों में खुद को डुबा देने के कारण वह बहुत गरीब हो गया और इस हालत में भी नहीं रहा कि अपनी खोज का पेटेन्ट खरीद सके, ठीक उसी अवसर पर षड़यन्त्राकारियों ने उसकी खोज को उससे हथिया लिया। दूसरे ने उस प्रतिष्ठा कम करने वाली और खर्चीली अदालती बहस से खुद को बचाने के लिए आत्महत्या की थी जो उन सामान्य सी आर्थिक उलझनों के लिए हो रही थी जिसके लिए जनसाधारण आमतौर पर कुछ खास चिन्ता नहीं करते और सामान्य से लाभ के लिए अपना पैसा किसी को भी विश्वासपूर्वक सौंप देते हैं। एक और ने अपने को इसलिए मार डाला क्योंकि लम्बे समय तक हमारे ही बीच के उन लोगों , जो कामों के निरंकुश वितरक हैं, दिए गए अपमानों और उनकी कंजूसी के चलते अत्याचार सहते रहने के बावजूद उसे काम नहीं मिल सका।
‘एक दिन एक डाक्टर मुझसे एक मौत के बारे में सलाह लेने के लिए आया, जिसके लिए वह खुद को ही दोषी ठहरा रहा था.
‘एक शाम अपने घर वैलीविलि को लौटते हुए, एक पर्दानशीं औरत ने उसे एक संकरी गली में, जो उसके घर से एक तरफ पड़ती थी, अन्धेरे में रोका। उसने काँपती हुई आवाज में उससे उसकी बात सुनने की प्रार्थना की। कुछ ही दूरी पर एक आदमी जिसके नाकनक्श का वह अँधेरे में अन्दाजा नहीं लगा सका, इधर से उधर चहलकदमी कर रहा था। एक आदमी उस पर नजर रखे हुए था। ‘श्रीमान’ उसने डाक्टर से कहा, ‘‘मैं गर्भवती हूँ और जब इसका पता चलेगा मैं बदनाम हो जाउफँगी। मेरा परिवार जनमत और प्रतिष्ठित लोग मुझे निश्चित रूप से मापफ नहीं करेंगे। वह औरत जिसके विश्वास को मैंने धोखा दिया है, अपना विवेक खो देगी और बिलाशक अपने पति को तलाक दे देगी। मैं अपना बचाव नहीं कर रही हूँ। मैं एक ऐसे काण्ड का केन्द्र हूँ जिसे मेरी मौत ही प्रकट होने से रोक सकती है। मैं खूद को मार डालना चाहती थी लेकिन लोग चाहते हैं कि मैं जिन्दा रहूँ। मुझे बताया गया है कि तुम्हारे भीतर दया है और इसने मुझे विश्वास दिलाया कि तुम एक बच्चे की हत्या के भागी नहीं बनना चाहोगे, इसके बावजूद कि यह बच्चा अभी तक इस दुनिया में नहीं आया है। आप समझ सकते हैं कि यह एक बच्चा गिराने का मामला है। इस अपराध को, जिसे मैं सबसे धिक्कार्य अपराध मानती हूँ, कम करवाने का प्रयास करके मैं खुद को और नीचे नहीं गिराउफँगी। मैं दूसरों की दलीलों के सामने झुक गई तभी मैंने तुम्हें ये सब बातंे कही हैं, अन्यथा मैं जानती हूँ कि कैसे मरते हैं। मैं खुद ही अपनी मौत का आ“वान करूँगी, मुझे इसके लिए किसी की जरूरत नहीं है। कोई यह बहाना कर सकता है कि बगीचे में पानी देने से सुख मिलता है, वह इसके लिए लकड़ी के खड़ाउफ पहनना चाहेगा और पिफर एक पिफसलन भरी जगह का चुनाव करेगा लिसे रोज पानी दिया जाता है और इस तरह वह कुँए की गहराइयों को खोजने की व्यवस्था कर लगा और लोग कहेंगे कि यह महज एक दुर्घटना थी। श्रीमान मैंने हर चीज पहले ही सोच रखी है। मेरी इच्छा है कि बाद में किसी सुबह को मैं अपने पूरे दिल के साथ कूच करूँ। हर चीज तैयार है ताकि यह ठीक उसी तरह हो। मुझे यह आपको बताने के लिए कहा गया और
मैंने वैसा ही किया है। अब तुम्हें यह तय करना है कि एक मौत होगी या दो मौतें। अपनी कायरता के कारण मैं शपथ खाती हूँ कि मैं बिना किसी असंतोष के तुम्हारे निर्णय का पालन करूँगी। तय कीजिए !’
‘‘इस चुनाव ने’ डाक्टर कहता रहा, ‘मुझे भयाक्रान्त कर दिया। इस महिला की आवाज शु( और कर्णप्रिय थी, उसका हाथ जिसे मैंने अपने हाथ में लिया था, बहुत सुन्दर और नाजुक था, उसकी स्पष्ट और दृढ़ निराशा जनित अभिव्यत्तिफ ने एक शानदार आत्मा का आभास कराया। लेकिन जो मुद्दा विचारणीय था उसने वास्तव में मेरे रोंगटे खड़े कर दिए थे, हालाँकि हजारों मामलों में, उदाहरण के लिए प्रसव के मुश्किल केसों में जबकि सर्जन को ही तय करना होता है कि बच्चे को बचाए या उसकी माँ को तब या तो राजनीति या इंसानियत के आधार पर वह अपनी मर्जी से, बिना झिझके खुद ही तय करता है.
‘‘विदेश भाग जाओ,’ मैंने कहा. ‘असम्भव’ उसने उत्तर दिया, ‘इस पर विचार नहीं किया जा सकता।’
‘‘उचित सावधानियाँ रखो।’
‘‘मैं नहीं रख सकती। मैं उसी कमरे में सोती हूँ जिसमें वह औरत जिसकी दोस्ती के साथ मैंने दगा की है।’ ‘वह तुम्हारी रिश्तेदार है ?’ ‘मुझे कुछ और नहीं बताना चाहिए।’
‘‘इस महिला को अपराध या आत्महत्या से बचाने के लिए’ डाक्टर कहता रहा, ‘मैंने अपने दिल का खून दे दिया होता या कि वह मेरी मदद के बिना ही इस मानसिक अन्र्तद्वन्द्व से निकल सकती थी। मैंने खुद पर बर्बरता का आरोप लगाया क्योंकि एक हत्या में सहयोगी बनने से बचने के लिए मैं पीछे हटा था। मेरे भीतर भयानक संघर्ष चल रहा था। तभी शैतान मेरे कान में पुफसपफुसाया कि कोई खुद को इसीलिए नहीं मार सकता कि वह मरना चाहता है, कि समझौता परस्त लोगों पर अपने दोषों को त्यागने के लिए तभी दबाव डाला जा सकता है यदि उनकी दुष्कर्म करने की शत्तिफ को ही छीन लिया जाए। मैंने उस कसीदाकारी को देखकर जिससे उसकी उँगलियाँ खेल रही थीं, उसकी विलासिता का अन्दाजा लगाया, और उसके भाषण की परिष्कृत शैली से उसकी आय के स्रोतों का अनुमान किया. निश्चित रूप से, हममें अमीरों के प्रति बहुत कम सहाुनभूति होती है। लेकिन मेरे आत्मसम्मान ने सोने के लालच के विचार के खिलाफ विद्रोह किया। हालाँकि अब तक इस मामले पर बात नहीं की गई थी और यह शालीनता का एक और लक्षण होने के साथ इस बात का प्रमाण भी था कि मेरे चरित्रा का सम्मान किया जा रहा था। मैंने ‘इन्कार’ कर दिया, महिला जल्दी से दूर हट गई, एक घोड़ागाड़ी की आवाज ने मुझ विश्वास दिला दिया कि जो हो चुका था उसको मैं अब ठीक नहीं कर सकूँगा।
‘‘15 दिन बाद एक अखबार से इस रहस्य का हल हुआ। पेरिस के एक ‘बैंकर’ की जवान भतीजी जो अधिक से अधिक 18 साल की थी, अपनी चाची की प्रिय, जिसने लड़की की माँ की मौत के बाद से उसे कभी अपनी नजरों से दूर नहीं होने दिया था, अपने अभिभावकों की विलेमोमबल स्थित जागीर पर पिफसलकर नाले में गिर गई और डूबकर मर गई। उसके अभिभावकों को दिल टूट गया था। उस कायर शीलभंग करने वाले ने चाचा की हैसियत से ही दुनिया के सामने दुख व्यत्तफ किया।’
‘निष्कर्ष यह है कि निजी जिन्दगी के दुर्भाग्य से बचने और कुछ बेहतर की तलाश में आत्महत्या अन्तिम रास्ता होता है।
‘अक्सर मैंने दफ्रतर से बर्खास्त किया जाना, काम से हटा दिया जाना, या अचानक तनख्वाहों में कमी को आत्महत्या के कारणों के रूप में पाया क्योंकि इसके परिणामस्वरूप परिवार अब जीविका के साधन जुटाने में असमर्थ हो जाते हैं और क्योंकि उनमें जो ज्यादातर पहले ही बड़ी कठिनाई से गुजारा कर रहे होते हैं।
‘उस समय जब शाही महल के गार्ड कम किए जा रहे थे, औरों की तरह ही बिना किसी हलचल के एक भला आदमी भी बर्खास्त किया गया था। उसकी उम्र और प्रभाव की कमी ने उसके लिए असम्भव बना दिया कि वह पिफर पफौज में अपने को स्थान दिला सके. उसने प्रशासनिक सेवा में घुसने का प्रयास किया पर हर जगह की तरह यहाँ भी बहुत अधिक प्रतियोगी उसके रास्ते में खड़े थे। वह गहरी निराशा से भर उठा और खुद को खत्म कर लिया। उसकी जेब में एक चिट्ठी और उसकी परिस्थितियों के बारे में जानकारी मिली। उसकी पत्नी एक गरीब दर्जिन थी, उनकी दो लड़कियाँ 16 साल और 18 साल की थीं, जो उसके साथ काम करती थीं। हमारे आत्महत्या करने वाले ‘टारनाड’ के अपने पीछे जो कागज छोड़े थे उनमें उसने कहा था कि, ‘क्योंकि वह अपने परिवार के लिए अब और उपयोगी नहीं रह गया था और इस बात के लिए बाध्य कर दिया दिया गया था कि अपनी पत्नी और बच्चों पर बोझ बने, उसने अपनी जान लेना अपना कत्र्तव्य समझा ताकि उन लोगों को इस अतिरिक्त बोझ से मुक्त कर सके। उसने एनगाडलेमे की डचेस से अपने बच्चों की सिपफारिश की थी, उसे आशा थी कि अपनी अच्छाइ्र्र के कारण यह राजकुमारी इतने सारे कष्टों से द्रवित हो जाएगी।’ मैंने एंगेलस के पुलिस प्रशासक के यहाँ रिपोर्ट दर्ज कर दी और जब सब जरूरी औपचारिकताएँ पूरी हो गईं तो डचेस के पास टारनाड के अभागे परिवार को भेजने के लिए 600 प्रफाँक थे।
‘‘इतने बड़े नुकसान के बाद यह वास्तव में बहुत ही खेदजनक सहायता थी। लेकिन एक परिवार कैसे सारे अभागों की सहायता कर सकता था क्योंकि अगर हर चीज ध्यान में रखी जाए तो पूरा प्रफाँस भी अपनी मौजूदा हालत में उन सबका पोषण नहीं कर सकता। धनियों की उदारता से ही काम नहीं चलेगा तब थी यदि हमारा पूरा राष्ट्र ही धार्मिक हो जाए जो इस मामले से बहुत दूर की बात है। आत्महत्या सबसे बुरी मुश्किल को तो हल कर देती है पर बाकी को पफाँसी के तख्ते पर पहुँचा देती है। आमदनी के और साधनों और वास्तविक सम्पत्ति की केवल तभी उम्मीद की जा सकती है जब हमारी खेती और कारखानों की आम व्यवस्था को एक नये साँचे में ढाला जाये। हर नागरिक को शिक्षा, काम और सबसे उफपर जीविकोपार्जन के कुछ न्यूनतम साधनों की उसके लिए व्यवस्था जैसी संवैधानिक घोषणाएँ कागजों पर करना आसान है। लेकिन उन उदार इच्छाओं को कागज पर लिख देना ही कापफी नहीं है, सही काम यह होगा कि इन उदार विचारों को भौतिक साधनों और बु(िमान सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से व्यवहार में उतारा जाए। पुरानी कापिफर दुनिया, ‘शानदार रचनाओं’ को जमीन पर पफेंक चुकी है क्या आधुनि आजादी अपने प्रतिद्वन्द्वी से पीछे रह जाएगी ? शक्ति के इन दो शानदार घटकों को कौन एक में वेल्ड करेगा ?
***
पिचेट की बात यहीं तक है।
निष्कर्ष के तौर पर हम पेरिस में वार्षिक आत्महत्याओं के बारे में उनकी एक तालिका दे रहे हैं. पुचेट द्वारा दी गई अन्य तालिकाओं से हमें पता चलता है कि 1817 से 1824 के बीच 2808 आत्महत्याएँ पेरिस में हुईं. दरअसल, वास्तविक संख्या इससे बहुत बड़ी थी। खासतौर से डूबे हुए लोगों के बारे में, जिनकी लाशें मुर्दाघर में रखी गई हैं, यह बहुत ही कम मामलों में पता चल पाता है कि वह आत्महत्या थी या नहीं।
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तालिका : 1824 में पेरिस में आत्महत्याएँ
संख्या
कुल
पहली छमाही
दूसरी छमाही
198
173
371
जिन्हें आत्महत्या के प्रयास के बाद बचा लिया गया
जिन्हें नहीं बचाया जा सका
पुरूष
महिलाएँ
अविवाहित
विवाहित
125
246
239
132
207
164
मृत्यु का तरीकाः
उफँचाई से कूदना
गला घोंटकर
धारदार हथियार से
आग्नेय अस्त्रों से
कोयले के धुँए से दम घुटने से
पानी में डूबकर
47
38
40
42
61
115
उद्देश्यः
भावप्रवण प्रेम, पारिवारिक झगड़े, संताप
बीमारी, जीवन से उफब, थकान, अस्वस्थ दिमाग
दुव्र्यवहार, जुआ खेलना, लाटरी, दण्ड/आक्षेपों का डर
दरिद्रता, गरीबी, पद से हटाया जाना, नौकरी से हटाया जाना
अज्ञात
71
128
53
59
60
(1845 के उत्तरार्ध में कार्ल मार्क्स )
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