आभा शुक्ला
सच बताऊं, यदि गलत के लिए आवाज उठाना, समानता और बराबरी की ख्वाहिश रखना, धर्मनिरपेक्ष होना, मानवता को धर्म और राजनीति से ऊपर रखना यदि रंडी होना है, तो गर्व होना चाहिए हमें खुद को रंडी कहे जाने पर…!
यकीं मानिये, अब देश और समाज को अरुंधति रॉय, स्वरा भास्कर, शेहला रशीद जैसी सो-काल्ड रंडियों की ही जरूरत है, हनीप्रीत, और राधे मां जैसी देवियों की नहीं…!
इस शब्द को ऐसी-ऐसी महिलाओं के लिए प्रयोग किया उन्होंने कि अब ये शब्द गाली न होकर सम्मानित हो गया मेरे लिए…!
जब ठेठ गोडसेवादी लोग और ये कट्टर कटहल किसी महिला को रंडी कहते हैं तो एक खुशनुमा एहसास होता है मुझे कि चलो एक महिला और जाग गई…!
यदि कभी मेरी कोई बेटी हुई तो मैं उसको अरुंधति रॉय और शेहला रशीद जैसी ही बनाऊंगी….बस उसको रंडी कह कर आशीर्वाद आप दे देना….!
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