फरीदी अल हसन तनवीर
मेरा बचपन का एक दोस्त था. सिंधी हिन्दू समुदाय से ताल्लुक था उसका. हालांकि जब हम कॉलेज में थे, तब वह अपने समाज समुदाय और परिवार से एक प्रकार का बहिष्कृत जैसा रिश्ता जी रहा था. फिर हम लोगों की दोस्ती हो गयी. गरीबी और संघर्ष के दौरान हो जाती है. बहिष्कृतों का आपसी रिश्ता बन जाता है. हम भी बहिष्कृत ही थे अपने लोगों में.
हमने दोस्ती ही नहीं परिवार भी साझा किए. मेरी मां उसकी भी मां थी…शायद अब भी हैं ! वह मेरी बहनों से राखी भी बंधवाता है…अभी भी शायद !! हालांकि उसके जयपुर माइग्रेट कर जाने और मेरे द्वारा आगे पढ़ाई और रोज़गार के लिए जगह-जगह मारे फिरने के चलते दस पंद्रह साल से अधिक समय से हम लोग दूर हो गए.
तकरीबन तभी मोदी जी का उदय हो रहा था. और उस दौरान मैंने यकायक तमाम दूसरे दोस्तों, जान पहचान वालों और परिचितों को गुजरात मॉडल को एंडोर्स करते पोस्ट्स को ठेलते देखा. मुसलमान से नफरत, इस्लामोफोबिक और दंगाई मानसिकता वाले कंटेंट बड़ी मात्रा में साझा किया जाने लगा. ये सब धीरे-धीरे इतना बढ़ा कि नग्नता की हद तक जा पहुंचा.
पहले सोनिया और मनमोहन के साथ राहुल को गालियां दी गई. फिर मुलायम, मायावती, लालू ही नहीं भाजपा का सारा विपक्ष गरियाया गया. इटावा में जो लोग कभी मुलायम के परिवार के पालतू कुत्ते के जूते तक उठाते थे, वो तक उन गरियाते पोस्ट्स को साझा करते थे. फिर मुसलमान टारगेट पर खुल्लम खुल्ला आ गये. उन्हें राष्ट्रद्रोही, देश द्रोही, आतंकी और न जाने क्या-क्या कहा जाने लगा !
मेरे साथ बैठकर सालों बीफ बिरयानी पर जीने खाने वाले मेरे दोस्त गौ रक्षक बन गए. Lynching की हिमायत करने लगे. हत्या के पक्ष में पोस्ट लिखने लगे. मेरे एक सिक्ख दोस्त ने तो मुझे प्रणव मुखर्जी का रोज़ा अफ्तार कार्यक्रम आयोजन पर एक गालियों से भरा आईटी सेल का पोस्ट भेजा. मैं क्या कर सकता था ? मुझसे उनका रिश्ता खत्म हो गया. लेकिन मेरे परिवार से उनके संपर्क बने रहे. होली-दिवाली, ईद-बक़रीद की बधाइयां चलती रही. राखियों को भेजने और बांधने का सिलसिला भी चलता रहा.
मेरी बहनों को तब बड़ी पीड़ा हुई जब उनके इस राखी बंध भाई ने 6 बरस की आसिफा नाम की कश्मीरी मुसलमान मासूम लड़की के बलात्कार और हत्या के पक्ष में जश्न मनाता और हत्यारे बलात्कारियों के पक्ष में पोस्ट एंडोर्स किये. बहस कर उसे जस्टिफाई भी किया. यह उनके सहन की अंतिम सीमा थी.
थैंक्यू मोदी जी ! आपने लोगों के चेहरे पर चढ़े नक़ाब नोंच कर फेंक दिए. अच्छे-अच्छे को इस काल में लोगों ने बदलते और नफरती जानवर में बदलते देखा है. आपके भी अपने अनुभव होंगे ऐसे हादसों के. अब कल फिर से हवा बदलने का इशारा मिलने लगा है.
मेरे वही दोस्त जो कश्मीरी लड़की के बलात्कार का JUSTIFICATION और बदले व जश्न करता पोस्ट अपनी वॉल पर डालते गौरवान्वित महसूस करता था, आज उसे मणिपुर में महिला को नग्न कर जुलूस में घुमाते पुरुषों पर आपत्ति हुई है. उसने पोस्ट डाला है आलोचना करता हुआ कि इसमें कोई भी पुरुष नहीं था.
हालांकि मैंने दसियों साल बाद उस पर कल कॉमेंट किया – ‘आपके द्वारा स्थापित हिन्दू हृदय सम्राट के फॉलोवर ही हैं. आपको तो प्रसन्न होने चाहिए.’ अभी मेरा कॉमेंट डिलीट कर दिया गया है. कोई बहस भी न की बेचारे ने. क्या सचमुच हवा बदल रही है ?
दस साल पहले सेक्युलर सोच के जो लोग एकाएक जोम्बी, राक्षस और दैत्य बन गए थे….उनके घरों के लड़के-लड़कियां अब 15 से 20-22 साल के हो रहे हैं. उन्हें अब अपने बच्चों के भविष्य को लेकर डर बैठ गया लगता है. नफरत का राजपाट एक दिन आपके घर पर भी दस्तक देने लगता है. दस्तक देने ही लगा है. अब मोह भंग हो रहा है हिंदुत्ववाद से. हिन्दू राष्ट्र से अधिक ज़रूरी अब सुरक्षा लगने लगी है.
प्राथमिकताएं बदलने लगी हैं. इसलिए हवा बदलने लगी है. दस साल तक दंगाइयों को प्रोमोट करने वालों को अब सेक्युलरिज़्म की याद आने लगी है. उन्हें अब फिर से भाजपा छोड़ कांग्रेस, सपा, बसपा, राजद या विपक्ष की सवारी गांठना है. ऐसे लोगों को पहचाने रखिये क्योंकि हवा बदलने का अंदेशा उन्हें भी हो गया है. लोग घर वापसी का मौका तलाश रहे हैं.
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