कृष्ण कांत
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दावा है कि एक विदेशी ने गांधी जी पर फिल्म बनाई और तब जाकर दुनिया को गांधी जी की महानता के बारे में पता चला. हमारे प्रधानमंत्री सौ साल पहले आंध्र प्रदेश के आदिवासी नायक अल्लूरी सीताराम राजू से भी बहुत पीछे चल रहे हैं.
अल्लूरी सीताराम राजू की कहानी उस अंग्रेजी अत्याचार से शुरू होती है, जिसके चलते भारतीय किसानों, मजदूरों, आदिवासियों और आम जनता को कुचला जाता था. खेती, पशु चराने, वन अधिकारों पर नियंत्रण, वन विभाग के दमनकारी कानून आदि वजहों से आदिवासियों में असंतोष था. इसके अलावा एक बास्टियन नाम के एक अंग्रेज तहसीलदार ने आदिवासियों को सड़क निर्माण में लगाया और मजदूरी नहीं दी. आदिवासी भड़क गए और उनका नेतृत्व किया अल्लूरी सीताराम राजू ने.
इतिहासकार सुमित सरकार के मुताबिक, 1915 में आंध्र के गोदावरी के उत्तर में स्थित रंपा क्षेत्र में एक बाहरी आदमी कहीं से आकर आदिवासियों के बीच बस गया था – नाम था अल्लूरी सीताराम राजू. वह ज्योतिष जानने और रोगों को दूर करने की शक्ति रखने का दावा भी करता था. अल्लूरी का दावा था कि गोलियों का उन पर कोई असर नहीं पड़ता है. विद्रोहियों की एक घोषणा में यह भी कहा गया कि भगवान कल्कि का अवतार होने वाला है. चूंकि अल्लूरी ‘गांधी के बहुत बड़े प्रशंसक’ थे इसलिए कुछ लोग उनके इन विश्वासों को गांधी जी से जोड़ते हैं.
अल्लूरी ने गांधी जी के बारे में सुना था और उनसे बहुत प्रभावित थे. इतने प्रभावित कि असहयोग आंदोलन से प्रेरणा लेते हुए ग्राम पंचायतों की स्थापना कर डाली और शराब के विरुद्ध आंदोलन चला दिया. सुमित सरकार लिखते हैं कि इस आंदोलन में बड़े आकर्षक ढंग से उन तत्वों का मेल हुआ था जिन्हें हॉब्सबाम ने आदिम विद्रोह और आधुनिक राष्ट्रवाद के तत्व कहा है.
कुछ जगहों पर जिक्र मिलता है कि अल्लूरी सीताराम राजू का जन्म विशाखापट्टनम में हुआ था. बचपन से उनमें ये भावना थी कि अंग्रेजों ने हमारे देश को गुलाम बना रखा है. कुछ समय तक गांधीवादी आंदोलन चलाने के बाद अल्लूरी सशस्त्र विद्रोह की तरफ मुड़े और अंग्रेजों को मार भगाने और आजादी हासिल करने की राह चल पड़े.
बाद में वे मानने लगे कि ‘हिंसा आवश्यक है.’ वे इस बात से दु:खी रहते थे कि गोरों के साथ भारतीय भी रहते हैं, इस वजह से वे गोरे अधिकारियों को मारने से चूक जाते हैं क्योंकि भारतीयों की हत्या नहीं करना चाहते.
अल्लूरी सीताराम राजू का आदिवासियों में बहुत प्रभाव था. उन्होंने एक विशाल संगठन बनाया और छापामार युद्ध शुरू किया. 24 सितंबर 1922 को डमरापल्ली में अल्लूरी की सेना ने छापा मारा. वहां मौजूद भारतीयों को जाने दिया और दो अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर दी. अल्लूरी की सेना में इतने कुशल लड़ाके थे कि अंग्रेज थर थर कांपते थे.
एक बार अल्लूरी के लड़ाकों ने थाने पर हमला बोला और अपने बंधक साथियों को हथियार मुहैया कराए और उन्हें सफलतापूर्वक छुड़ा ले गए. अल्लूरी का संगठन पुलिस थानों पर हमला बोलता था, हथियार लूटता था और अपने गिरफ्तार साथियों को छुड़ा ले जाता था. अंग्रेजी सेना का जब भी अल्लूरी की सेना से सामना होता, या तो उन्हें भागना पड़ता या मरना पड़ता.
तीर धनुष चलाने वाले ये विद्रोही इतने कुशल लड़ाके थे कि पानी में मछलियों की तरह रहते थे. आखिरकार इस विद्रोह से निपटने के लिए अंग्रेजी सरकार को उस जमाने में 15 लाख रुपये खर्च करने पड़े और इसके लिए मलाबार एवं असम राइफल्स की मदद लेनी पड़ी.
6 मई 1924 को अल्लूरी को गिरफ्तार किया गया और फिर रिपोर्ट आई कि ‘भागने का प्रयास करते हुए’ वे मारे गए. सुमित सरकार लिखते हैं कि यह एक अप्रिय मगर परिचित बहाना मात्र था. अल्लूरी सीताराम राजू के मारे जाने के बाद सिंतबर 1924 में यह विद्रोह खत्म हो गया.
इतिहास यह भी कहता है कि भारत जिस दमन और दबाव से गुजर रहा था, उसमें गांधी एक युगपुरुष बनकर आए. निरक्षर भारत के ज्यादातर लोगों ने गांधी के बारे में सिर्फ सुना था. कुछ प्रतिशत लोग ही ऐसे थे जिन्होंने गांधी को देखा या सुना था. जनता ने अपने अपने मन में अपने हिसाब से गांधी की छवि बना ली थी. कोई उन्हें चमत्कारी पुरुष समझता था तो कोई उन्हें भगवान का अवतार मानता था. किसानों को विश्वास था कि गांधी जी जमींदारी खत्म कर देंगे. खेत मजदूर समझते थे कि गांधी जी उन्हें जोत दिला देंगे.
इलाहाबाद में 1921 में किसान आंदोलन हुआ तो गुप्तचर विभाग की रिपोर्ट में कहा गया, ‘सुदूर गांवों में भी मिस्टर गांधी के नाम का जैसा प्रचलन हो गया है वह आश्चर्यजनक है. इनमें से कोई ठीक से नहीं जानता कि वे कौन हैं या क्या हैं, किंतु यह तय है कि जो वे कहते हैं वह सत्य माना जाता है और आदेशों का पालन अनिवार्य है. वे महात्मा हैं, साधु हैं, पंडित हैं, ब्राहमण हैं जो इलाहाबाद में रहते हैं.’
कहने का मतलब यह कि बिना फोन, तार, परिवहन और संचार वाले उस जमाने में गांधी आंध्र के आदिवासियों तक के आदर्श थे. आइंस्टीन को वे ‘हांड़ मांस का असंभव मनुष्य’ लगते थे. ब्रिटेन के कई परधानों के दांत खट्टे कर चुके थे. अफ्रीका और यूरोप से लेकर भारत तक गांधी जी अंग्रेजी साम्राज्य से लड़ रहे थे, लेकिन हमारे प्रधानमंत्री को यह सब सनीमा से पता चला, बड़े शर्म की बात है.
प्रधानमंत्री जी की तो अब उम्र हुई लेकिन उन्हें देश की जनता को वॉट्सएप यूनिवर्सिटी का एंटायर पोलिटिकल साइंस पढ़ाना बंद कर देना चाहिए. प्रधानमंत्री जी जब पैदा हुए, उसके दशकों पहले से गांधी जी विश्वपुरुष थे. उन्हें विश्वास न हो तो अपने मुंहबोले मित्र दोलांड टरम्प से ही पूछ लेना चाहिए.
अल्लूरी सीताराम राजू के साथ एक और आदिवासी नायक कोमाराम भीमा पर पर हाल ही में राजामौली ने एक फिल्म बनाई है. नाम है RRR. प्रधानमंत्री जी से अनुरोध है कि सनीमा देखकर इतिहासकार न बनाया करें, देश का बड़ा नुकसान होता है.
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]