डाॅ. (प्रो.) प्रमिला
प्रकृति से प्रेम करो ना
प्रकृति से प्रेम करो ना
मैं कुछ न करूं
तुम्हीं कुछ करो ना
इन जीव-जन्तुओं के लिए भी
जंगल-जमीन छोड़ों न
परिन्दों को भी उन्मुक्त गगन में
उड़ने दो ना
उन्हें अपने भोजन के लिए न मारो
पेट को श्मशान घाट न बनाओ
जमीन, जंगल, हवा, धूप, आसमां
समान रूप से प्रकृति ने सभी को दिया
उनके लिए भी उनका हक हिस्सा छोड़ो ना
प्रकृति से प्रेम करो ना
नदियों को भी कलकल बहने दो
झरना को निरंतर झरने दो
उनमें फैक्ट्रियों की गंदगी
कुड़ा-कचरा न डालो
अपने स्वार्थ के लिए
उनको सीमाओं में न बांधो
पशुओं को भी खुले चारागाहों में चरने दो
सब को बराबर का हक दो
जिओ और जीने दो ना
किसी को छोटा
किसी को बड़ा न समझो
प्रकृति से प्रेम करो ना
इन्सान हो, इन्सानियत छोड़कर
हैवान न बनो
अपने ही हाथों अपना जीवन बर्बाद न करो
कोरोना जैसी महामारी को आमंत्रण न दो
अब भी वक्त है सम्भल जाओ
पहाड़, समुद्र से न टकराओ
नहीं तो एक दिन प्रलय आ जायेगी
हवा खामोश हो जायेगी
जिन्दगी विलुप्त हो जायेगी
मानो ‘प्रमिला’ का कहना
सभी को इसी धरती पर है रहना
सभी मिलजुल कर रहो ना
प्रकृति से प्रेम करो ना
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Krishana
September 28, 2020 at 1:59 pm
prakriti h to sab kuchh h
Anita Kumari
October 2, 2020 at 3:59 am
Prakriti hi sb kuchh h. Iski raksha karna pratham kaam hona chahiye.