प्रहसन देख कर लौटते हुए सभी खुश थे
किसी ने राजा में विदूषक देखा था
किसी ने विदूषक में हत्यारा
किसी ने हत्यारे में मसीहा
किसी ने मसीहा में जड़ बुद्धि आलोचक
किसी ने आलोचक में रचयिता
प्रहसन देख कर लौटते हुए लोगों में
मैं भी शामिल था
मुझे, लौटते हुए लोगों में थकान दिखी
और ऊब
एक पखवाड़े के गरिष्ठ भोजन के बाद
व्यंजनों के घ्राण से ऊब
सभी
अपनी अपनी हंसी में
उबकाई कर रहे थे
अपनी अपनी ऊब
कुछ खेतों में लौट गए
कुछ कारख़ानों, दफ़्तरों, दुकानों में
जो बेरोज़गार थे
चाय की गुमटियों पर अड्डा जमा दिए
या, पीपल के नीचे बिछा लिए बिसात
अगले प्रहसन की ज़िम्मेदारी मिलने तक
काठ का उल्लु
दिन भर बच्चे को डराता रहा
और , रात में ग़ायब हो गया
मैंने देखा
एक गंदी दीवार पर गंदे इश्तेहार की तरह
आदमी को उभरते हुए
निर्विकार और मृत.
- सुब्रतो चटर्जी
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