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प्रधानमंत्री पद पर बैठा टपोरी छाप गली के गुंडे

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नरेंद्र मोदी और सनी लियोनी दोनों ही एक जैसे हैं. दोनों का ही अतीत दागदार रहा है. दोनों की सच्चाई एक जैसी है. दोनों के पास प्रतिभा नहीं है. दोनों की सामाजिक स्वीकार्यता नहीं है. दोनों प्रोपगंडा के सहारे चल रहे हैं. सोशल मीडिया में दोनों के ही फेक फालोवर ज्यादा हैं. टाइमपास और मनोरंजन के लिये दोनों ठीक हैं, पर रिश्ता बनाने के लिये. कभी नहीं क्योंकि एड्स और आरएसएस दोनों ही आम जनजीवन के लिये खतरनाक और जानलेवा है. हमेशा याद रखिये एड्स शारीरिक नुकसान से जान लेता है मगर आरएसएस मानसिक क्षति से आपकी जान लेता है – पं. किशन गोलछा जैन

प्रधानमंत्री पद पर बैठा टपोरी छाप गली के गुंडे

किसी महिला को ‘दीदी’ कहकर संबोधित करने में कोई बुराई नहीं है, पर किसी वाक्य का मूल्यांकन महज शब्दों से नहीं किया जाता. उसके लहजे, परिस्थिति, आवाज की टोन और उसके उद्देश्य से भी किया जाता है. प्रधानमंत्री जिस लहजे में ‘दीदी ओ दीदी’ कहते हैं वो न केवल एक प्रीडेटर जैसा लहजा है बल्कि ओरल हरासमेंट भी है. अगर इस लहजे में कोई कर्मचारी अपनी ऑफिस की किसी महिला को संबोधित कर दे तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित विशाखा गाइडलाइंस के तहत ऐसे आदमी पर तुरंत कार्रवाई हो जाए लेकिन दुर्भाग्य से प्रधानमंत्री ऑफिस पर इस तरह का अंकुश लगाने वाला कोई कानून नहीं है.

प्रधानमंत्री विदेशों में 135 करोड़ भारतीयों का प्रतिनिधित्व करते हैं लेकिन उनका लहजा किसी लिच्चड़ गली छाप मवाली जैसा है. मैं लिच्चड़ कहकर प्रधानमंत्री पद का अपमान नहीं कर रहा बल्कि उस लहजे में भरे मंच से संबोधन करके प्रधानमंत्री खुद प्रधानमंत्री पद को बार-बार अपमानित कर रहे हैं.
अच्छा होता कि ममता बनर्जी और उनकी पार्टी की आपत्ति के बाद प्रधानमंत्री उसी मंच से माफी मांगते जिससे उन्होंने एक राज्य की महिला मुख्यमंत्री को अपमानित करने की कोशिश की. अगर मंच से माफी नहीं मांग सकते तो ट्विटर से ही माफी मांग लेते. इतना भी नहीं कर सकते थे तो अगली बार इसे दोहराते ही नहीं. जनता इसे ही हाई मोरल ग्राउंड समझ लेती. लेकिन नहीं. प्रधानमंत्री ने अपनी बेहूदगी को वैध साबित करने के लिए दोबारा हर मंच से वही बात दोहराई. हर जगह मवालियों के लहजे में संबोधित किया ‘दीदी ओ दीदी’

राजनीतिक प्रतिद्वंदिताएं एक तरफ हैं, वैचारिक मतभेद एक तरफ हैं लेकिन इस तरह से देश के सर्वोच्च पद की गरिमा को मिट्टी में मिला देने का हक किसी को नहीं है. प्रधानमंत्री ने ये पद कोई टेस्ट पास करके नहीं कमाया, न उनके पिता ने उनके नाम किया, जो वो इसे ‘बपौती उपहार’ कहकर जितना चाहे मिट्टी में मिलाते. प्रधानमंत्री का इस देश के 135 करोड़ देशवासियों और संसद में बहुमत के सांसदों ने उन्हें सौंपा है. अगर वे इसका सम्मान नहीं बढ़ा सकते तो इसे मिट्टी में भी न मिलाएं.

ये बात केवल नरेंद्र मोदी की आलोचना की नहीं है, ये देश के प्रधानमंत्री पद की बात है. एक राज्य की महिला मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा की बात है. अगर कोई भी देश के सबसे सम्मानित पद पर बैठकर किसी राज्य की महिला मुख्यमंत्री को ‘दीदी ओ दीदी’ कहते हुए इस पद के सम्मान को किसी छिनाल टपोरी गली छाप गुंडे के बराबर लाने पर आमादा हो जाए तो देश के नागरिकों को ऐसी आवारगी करने वाले आदमी का प्रतिकार करना चाहिए.

  • श्याम मीरा सिंह

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