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प्रधानमंत्री के नाम खुला ख़त

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प्रधानमंत्री के नाम खुला ख़त

आदरणीय प्रधानमंत्री जी,

सादर नमस्कार !

आप विश्व के महान नेता हैं, यह मैं मानता हूंं लेकिन आज जब मैं यह खुला ख़त आपको लिख रहा हूंं तो दो तस्वीरों ने मेरे ज़ेहन में खलबली मचा रखी है.

पहली तस्वीर में आप कड़क कलफ़ वाला कुर्ता और शानदार जैकेट पहने हुए देश को कोरोना वायरस से बचाने के लिए 21 दिन के टोटल ‘लॉक डाउन’ का ऐलान कर रहे हैं. आप कह रहे हैं कि अगर देश को बचाना है तो सम्पूर्ण लॉक डाउन करना ज़रूरी है।

दूसरी तस्वीर है, महानगरों से अपने-अपने गांव घरों की ओर भूखे प्यासे, सैकड़ों मील पैदल भागते उन लोगों की, जिनके लिए आपके कोरोना लॉक डाउन में भूख और बेरोज़गारी की चिंता ने आपके तथाकथित आभिजात्य सभ्य समाज की ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ और ‘महामारी’ के डर को ख़त्म कर दिया है.

मैं जानना चाहता हूंं आदरणीय प्रधानमंत्री जी कि क्या आपका देश को बचाने का मतलब इन्हें बचाना नहीं था ? भूख से बिलखते बच्चों, बूढ़ों और महिलाओं की चिंता किसे करनी चाहिए ? पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ाकर अपना खज़ाना सिर्फ़ पब्लिसिटी कैंपेन के लिए भरना, सरकारें गिराने तक हवाई सेवाएं चलाना, विधायकों को पांच तारा रेसॉर्ट में करोड़ों खर्च कर ठहराना, क्या सरकार के लिए इन सर्वहारा लोगों से ज़्यादा ज़रूरी था ?

समय रहते इनके लिए व्यवस्था क्यों नहीं की गई ? विदेशों में फंसे करोड़पतियों को तो आपने विशेष हवाई जहाज भेज-भेजकर वापस बुलवा लिया लेकिन इन मज़दूर और मजबूर लोगों की वापसी के लिए रेलगाड़ियों और बसों की व्यवस्था बन्द कर दी ?

आप टीवी पर बड़े नेता के रूप में छाए हुए हैं, रेडियो पर मन की बात कर रहे हैं, लेकिन ‘जन की बात’ को कौन सुनेगा ? अभी तक सुना था कि कानून अंधा होता है लेकिन आज देख भी लिया कि सरकारें तो अंधी, गूंगी और बहरी भी होती हैं.

एक बात जो ऐसे वक़्त में चुभने वाली है वह यह कि आपने कल कोरोना रिलीफ़ फंड स्थापित किया, जिसका नाम रखा ‘पी एम केयर्स.’ प्रधानमंत्री जी क्या यह ज़्यादा अच्छा नहीं होता अगर इस फंड का नाम ‘इंडिया केयर्स’ रखा जाता ? आख़िर इसमें दानदाता तो सम्पूर्ण भारत के लोग होंगे. हम सब मिलकर इन सबको बचाएंगे, सिर्फ़ आप नहीं.

अब कुछ आंकड़ों की चर्चा करना भी ज़रूरी है – 24 मार्च को जब आप मुल्क को सम्बोधित कर रहे थे, तब आपने कहा था कि 65 या 67 दिनों में इस वायरस से एक लाख लोग ग्रसित हुए. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक WHO के मुताबिक बीमार होने वाले लोगों की संख्या पांच लाख से ऊपर हो गयी है. मतलब चौबीस घंटों में ही और एक लाख लोग और मरीज बन गए. यह सचमुच बहुत खतरनाक है. आपसे ही पूछा जाना चाहिए कि आपकी सरकार इतनी देर से क्यों जागी ?

WHO ने तो आपको लगातार सूचनाएंं दी होंगी ? आपकी अपनी एजेंसियां भी शायद काम कर रही होंगी. फिर इस बिषाणु महामारी से मुकाबले के इंतज़ाम में आप इतने पिछड़ कैसे गए ?

दुनियाभर के अनेक देश न सिर्फ़ तत्काल राहत पैकेज से लेकर मेडीकल इक्विपमेंट, आइसोलेशन वार्ड, पीपीई, मास्क आदि की तैयारियों में 24 घण्टे जुटे रहे, बल्कि इस बीमारी को काबू करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और हमने 22 मार्च तक एक दिन का ‘जनता कर्फ़्यू’ और ताली थाली बजाने में अपना बेहद कीमती समय गंवा दिया ?

क्या आपको मालूम है प्रधानमंत्री जी, कि 24 मार्च को जब आप देश में संपूर्ण लॉक डाउन की घोषणा कर रहे थे, तब भी भारत से मास्क, वेंटिलेटर और अन्य मेडीकल इक्विपमेंट के निर्यात पर रोक नहीं लगी थी ? इसके लिए आप और आपकी सरकार नहीं तो कौन ज़िम्मेदारी लेगा ?

जो लोग ऐसा आपराधिक कृत्य कर रहे थे, उनमें से किसी को दंडित किया गया हो, ऐसी जानकारी तो आपके मीडिया ने अभी तक नहीं बताई है. इस साल के आम बजट आते तक यह वैश्विक बीमारी साफ़ दिखाई देने लगी थी लेकिन फ़िर भी आपने इस बजट में स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च क्यों घटाया ?

बड़े अस्पतालों का आवंटन भी कम कर दिया गया और एम्स के लिए मात्र 0.1% की वृध्दि दी गयी. सबसे बड़ी गिरावट राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के आवंटन में रही जिसे 156 करोड़ रुपये से घटाकर 29 करोड़ रुपये कर दिया गया ? आयुष्मान भारत का बजट भी बढ़ाया नहीं गया ?

संक्रामक बीमारियों के मुकाबले के लिए रखे गए बजट को भी आश्चर्यजनक रूप से अपरिवर्तनीय – 2178 करोड़ रुपये – ही रखा गया ? ऐसा क्यों ? स्वास्थ्य गत खर्चों में आपकी सरकार की इन आपराधिक कटौतियों ने भारत को और असुरक्षित बना दिया.

भारत के पास कोरोना महामारी से बचने और उससे मुकाबले की तैयारी के लिए ढाई महीने का समय था, मगर आप और आपकी सरकार सोती रही ? ढाई महीने के लंबे समय में हमने कितने नए अस्पताल खड़े किए, कितने आइसोलेशन बेड बढ़ाए, कितने नए वेंटिलेटर, पीपीई, मास्क खरीदे ? क्या हम मास्क, सेनेटाइजर, अनाज आदि ज़रूरी चीज़ों की कालाबाज़ारी पर रोक लगा पाए ?

आज आपके इस विदेशी स्टाइल सम्पूर्ण लॉक डाउन के बीच सिर पर गरीबी की गठरियांं उठाकर भूखे प्यासे, बदहवास भागते लोगों का रेला है, इस आपराधिक चूक के लिए क्या आप ज़िम्मेदार नहीं हैं ? इनके बीमार न होने की ज़िम्मेदारी कौन लेगा ? जिस एक लाख सैंतीस हज़ार करोड़ के आपदा रिलीफ़ फंड की घोषणा आपने की है, वह क्या इन लोगों के लिए नहीं था ?

आपकी सरकार ने कहा कि हर ग़रीब के जन धन खाते में पैसा डाला जाएगा ? ज़रा बताइए कि अधिकांश जन धन ख़ातादारों के पास तो न चेकबुक है और न ही एटीएम कार्ड, फ़िर यह पैसा वह कैसे निकालेगा ?

अभी तो सम्पूर्ण लॉक डाउन है, बैंक भी आधे दिन ही काम कर रहे हैं ? उसे पैसा निकालने की लाईन में लगने सिर्फ़ अपनी बैंक ब्रांच में जाना होगा जबकि वह तो अभी अपने गांव की तरफ़ भाग रहा है ?

आप कह रहे हैं कि सबको अपनी जगह पर ही थम जाना चाहिए तो वहां कौन उन्हें पैसा, दवाई, खाना मुहैया करवाएगा ? क्या इसकी व्यवस्था सम्पूर्ण लॉक डाउन से पहले नहीं की जानी थी ?

क्या इसी आपराधिक अव्यवस्था के कारण न सिर्फ़ सम्पूर्ण लॉक डाउन का मज़ाक बन गया, बल्कि हज़ारों हज़ार लोगों की जान जोखिम में पड़ गई ?

ऐ हुक़ूमत ये तुम्हारी चूक से मर जायेंगे,
कोरोना से गर बच गये तो भूख से मर जायेंगे.

  • रवि वर्मा, पत्रकार, रायपुर

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ROHIT SHARMA

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