गिरीश मालवीय
2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2022 के लिए जो सबसे बड़ा लक्ष्य निर्धारित किया था वह था 2022 तक देशभर में चौबीस घंटे सातों दिन बिजली उपलब्ध कराना..2022 आने में अब मात्र ढाई महीने बचे हैं और पूरा देश भयानक बिजली संकट झेल रहा है. शहरों में रहने वालों को वास्तविकता का अंदाजा नहीं है लेकिन देश भर के ग्रामीण क्षेत्रों में भारी बिजली कटौती शुरू हो गई है.
यह सरकार इतनी बेशर्म है कि संकट को संकट मानती ही नहीं है, जैसे कोरोना काल में इन्होंने ऑक्सीजन की कमी को नहीं माना, चाहे हजारों मौतें उसकी वजह से हुई, वैसे ही अब भी नहीं मान रही है. ऊर्जा मंत्री आर. के. सिंह साफ पलट गए बोले – ‘कोई बिजली संकट नहीं है.’
पंजाब में तीन, राजस्थान में दो और महाराष्ट्र में 13 थर्मल पावर स्टेशन बंद हो चुके हैं. सभी कोयले की कमी के कारण बंद हुए हैं. उत्तर भारत ही नहीं बल्कि केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिण भारत के राज्य भी इस समस्या से परेशानी झेल रहे हैं
2015 में जम्मू के रामबन में मोदी ने कहा था कि ‘2022 में जब देश आजादी के 75 साल मना रहा होगा, तब देश के हर घर को 24 घंटे बिजली मिलेगी. मेरा लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि वर्ष 2022 तक पूरे देश में चौबीसों घंटे बिजली उपलब्ध हो.’
2016 में सबको चौबीस घंटे किफायती बिजली उपलब्ध कराने के नाम पर ही मोदी सरकार ने विद्युत दर नीति 2006 में व्यापक संशोधन किया था, जिसका परिणाम यह है कि 2014 की अपेक्षा 2021 में बिजली के दाम अत्यधिक बढ़ गए हैं.
2014 में जब मोदी सरकार बनी थी तब केंद्रीय ऊर्जा राज्य मंत्री पियूष गोयल ने दावा किया था – आने वाले पांच सालों में हर घर में बिजली होगी. वर्ष 2019 तक देश को बिजली अधिक्य वाला देश बनाने की कोशिश की जा रही हैं.’
2019 में तो बकायदा सरकार की तरफ से घोषणा की गयी थी कि देश में एक अप्रैल से चौबीस घंटे बिजली दी जाएगी. उपभोक्ताओं को चौबीस घंटे बिजली देने की तैयारी विद्युत मंत्रालय की ओर से कर ली गई है.
2019 में बिजली से जुड़े कानून में संशोधन का विधेयक लाया गया. इसके अंदर प्रावधान किया गया कि 24 घंटे बिजली का वादा पूरा न करने वाली कंपनियों पर जुर्माना लगाया जाएगा. केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर. के. सिंह ने उस वक्त कहा था कि तकनीकी खामी या प्राकृतिक आपदा जैसी स्थितियों को छोड़कर बिजली कटौती की अनुमति नहीं होगी. इसका उल्लंघन करने वाली कंपनियों पर जुर्माना लगेगा.
अब आज 2021 की स्थिति देख लीजिए क्या हाल है. कोरोना काल में सरकार ने बिजली का कोई भी बिल चाहे वह घरेलू हो या कमर्शियल माफ नहीं किया. उद्योगपतियों ने, व्यापारियों ने बन्द पड़ी फैक्ट्री और व्यापारिक प्रतिष्ठान का पूरा बिल भरा है.
देश की अधिकांश इण्डस्ट्रीज बिजली ओरिएंटेटड इण्डस्ट्रीज हैं – जैसे आयरन, स्टील, पीवीसी , फार्मास्युटिकल, एग्रो बेस इण्डस्टीज सब बिजली से चलती है. एक बार बिजली बंद होती है तो इनका लाखों-करोडों का नुकसान होता है.
फार्मास्युटिकल्स इण्डस्ट्रीज बैच वाइस चलती है. अगर ट्रिपिंग से एक बैच खराब हुआ तो 1 से 3 लाख रुपया तक का बैच खराब हो जाता है. स्टील इंडस्ट्री में लोहा पिघाला जाता है और यदि बिजली चली जाती है तो उसमें मशीन पर काफी ट्रिपिंग होती है और उसके कारण जो लोहा पिघलाने के लिए गर्मी उत्पन्न होती है वह 700 डिग्री तापमान से घटकर 300 डिग्री पर आ जाती है. इससे उद्योगपतियों को लाखों रुपए का नुकसान हो जाता है.
बिजली कंपनी एक रुपये की रियायत नहीं देती. अगर बिजली का बिल लेट हो तो बिजली काट दी जाती है. ऐसे में बिजली कंपनी खुद सर्विस नहीं दे पाती है तो क्या किया जाए ? बिजली कंपनी को भी आप क्या रोओगे क्योंकि सरकार ही उसे कोयला उपलब्ध नहीं करवा पा रही है.
इतना सारा नुकसान सिर्फ़ और सिर्फ मोदी सरकार के मिस मैनेजमेंट से हो रहा है. क्या कोई मीडिया चैनल और अखबार राष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार की नाकामी के बारे में बात भी कर रहा है ?
मोदी जी कह रहे हैं कि राज्य सरप्लस बिजली ऊंचे दामों में न बेचे. एक बात बताइये महाराज. बिजली के क्षेत्र में पूर्ण निजीकरण के भस्मासुर को तो आपने ही जन्म दिया है न ! दिल्ली के ऊर्जा मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा, ‘दिल्ली वालों को 5 रुपये की चीज ₹25 में खरीदनी पड़ रही है. दिल्ली वाले ₹25 यूनिट बिजली कितने दिन तक खरीद पाएंगे ?
एक बात बताइये यह बिजली खरीद कहां से रहे हैं ? क्या विदेशी पॉवर प्लांट से बिजली खरीद रहे हैं ? नहीं ! ये उस मार्केट से बिजली खरीद रहे हैं जिसे आपने यानी मोदी सरकार ने ही बनाया है.
आप भूल गए हैं जून 2020 मे आपकी सरकार ने ही इंडियन एनर्जी एक्सचेंज बनाया था जिसके अंतर्गत बिजली कंपनियां अपनी जरूरत के अनुसार केवल एक घंटे पहले बिजली की खरीद-बिक्री कर सकती है. यहां मांग-आपूर्ति के हिसाब से बिजली का दाम तय होता है, यानी इसके दामों में बढ़ोतरी और गिरावट होती रहती है.
इंडियन एनर्जी एक्सचेंज में आधे-आधे घंटे पर नीलामी के जरिये बिजली का कारोबार किये जाने की व्यवस्था की गई है. बोली सत्र समाप्त होने के एक घंटे के भीतर बिजली की डिलिवरी देने की बात की गई है. यह रियल टाइम मार्केट आपके कर कमलों से ही तो शुरू हुआ था. आपकी तो सांसे एक साल में ही फूल गयी !
इतिहास से पता चलता है कि जिस भी क्षेत्र में इस तरह का मार्केट ओपन किया जाता है वहां बाजार की ताकतें अपनी मनमानी कर कीमतों को ऊपर ले जाती है और आज यही हो रहा है. संकट है नहीं बल्कि पैदा किया जा रहा है ताकि घरेलू बिजली के दाम ऊपर ले जाए जा सके.
कुछ ही महीने पहले अगस्त 2021 में ऐसी भी मीडिया रिपोर्ट्स आयी थी जिसके अनुसार सरकार की ओर से टाटा पावर और अडानी पावर को एक्सचेंज पर राज्यों को और बिजली बेचने का निर्देश दिया है. भारत की कुल बिजली उत्पादन क्षमता करीब 3.9 लाख मेगावाट है. लेकिन बिजली की अधिकतम मांग अब तक 2 लाख मेगावाट से ज्यादा नहीं रही है.
पिछले साल अप्रैल से सितंबर के बीच छह महीनों में कोयले का उत्पादन 28.2 करोड़ टन था. इस साल यह 31.5 करोड़ टन रहा है. यानी इसमें 12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. ऐसे में बिजली संकट क्यों पैदा किया जा रहा है ?
साफ है कि निजी क्षेत्र के खिलाड़ियों को जिसमें सबसे प्रमुख खिलाड़ी अडानी है, उसे ही फायदा देने के लिए यह सब कुचक्र रचे जा रहे हैं.
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