Home गेस्ट ब्लॉग चुनाव के उपरांत की परिस्थिति और हमारे कर्तव्य : सीपीआई (माओवादी)

चुनाव के उपरांत की परिस्थिति और हमारे कर्तव्य : सीपीआई (माओवादी)

58 second read
0
3
1,015
प्रस्तुत आलेख सीपीआई (माओवादी) के केंद्रीय कमेटी द्वारा वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद 11 जून, 2019 को पार्टी सदस्यों के नाम जारी किया गया सीसी सर्कुलर: 4/2019 है, जिसे सीपीआई (माओवादी) के केन्द्रीय सैद्धांतिक पत्रिका ‘पीपुल्सवार’ के हिन्दी संस्करण ‘लाल पताका’ के जून, 2019 के अंक में प्रकाशित किया गया था. चूंकि अब एकबार फिर 2024 में देश लोकसभा चुनाव के देहरी पर आ खड़ा हुआ है, तब इस सर्कुलर को एक बार फिर पढ़ा जाना चाहिए – सम्पादक
चुनाव के उपरांत की परिस्थिति और हमारे कर्तव्य : सीपीआई (माओवादी)
चुनाव के उपरांत की परिस्थिति और हमारे कर्तव्य : सीपीआई (माओवादी)

भारत को ‘सबसे बड़े लोकतत्र’ कहकर शासक वर्ग जो ढिंढोरा पीटते हैं, ऐसी देश में 17वीं लोकसभा के लिए एवं आंध्रप्रदेश, ओड़िशा, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश विधानसभाओं के लिए दिखावटी चुनाव 2019 के अप्रैल एवं मई महीनों में सात चरणों में संपन्न हुई. इसके लिए 80 लाख कर्मचारियों एवं दसियों लाख संख्या में सरकारी भाडे़ के सशस्त्र बलों को तैनात की गयी. सरकार एवं विभिन्न राजनीतिक पार्टियां मिलकर एक लाख करोड़ रुपये से अधिक जन धन को खर्च की. भाजपा ने फिर से सत्ता में आने के लिए चुनाव आयोग सहित तमाम सरकारी तंत्र को अपनी मनमानी से इस्तेमाल की. चुनाव आयोग ने यह कहकर इसे समर्थन किया कि ‘निष्पक्ष, पारदर्शिकता एवं स्वतंत्र से’ चुनाव कराने की उद्देश्य से ही ऐसा करना पड़ा. दरअसल इस झूठी संसदीय चुनावों के खिलाफ लोगों में बहुत आक्रोश व्याप्त है. विशेषकर, हमारी पार्टी भाकपा (माओवादी) सहित कश्मीर एवं उत्तर-पूर्व इलाकों के राष्ट्रीयमुक्ति संघर्ष एवं जनवादी संगठनों ने सार्वजनिक तौर पर ही चुनाव बहिष्कार के लिए आह्वान किया. चुनावी मौसम में शासक वर्ग के गुटों/पार्टियों के बीच अंतरविरोध/झगडे़ पहले के मुकाबले अधिक हो गयी। इस जनाक्रोश एवं झगड़ों को नियंत्रित करने के लिए ही सशस्त्र बलों को, विशेष कर जनादोलन के इलाकों में बडे़ पैमाने पर तैनात कर जनता पर एक युद्ध अभियान जैसा ही इन चनावों को पूरा कर लिया गया. इसके तहत कश्मीर में राष्ट्रीयमुक्ति आंदोलन के 90 योद्धाओं एवं जनता तथा हमारी क्रांतिकारी आंदोलन के इलाकों में 40 क्रांतिकारियों एवं जनता को कत्लेआम किये एवं सैकड़ो लोगों को जेल में डाल दिये.

पिछले पांच साल के शासन में भाजपा नेतृत्ववाली एनडीए सरकार विकास-विरोधी, जनविरोधी, देशद्रोहीपूर्ण भूमिका निभाते हुए साम्राज्यवादी भूमण्डलीकरण-परस्त नीतियों एवं शोषक-शासक वर्गों के लिए अनुकूल नीतियों को बडे़ पैमाने पर अमल की. देश के खिलाफ, उत्पीड़ित मजदूर, किसान एवं मध्यम वर्ग के जनता, उत्पीड़ित सामाजिक तबकों (महिला, दलित, आदिवासी एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों), उत्पीड़ित राष्ट्रीयताओं (कश्मीर एवं उत्तर-पूर्व राष्ट्रीयताओं) के खिलाफ एक भी ऐसा अपराध नहीं है जो भाजपा ने नहीं की. फलतः नवंबर 2018 में संपन्न पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने हार का सामना करना पड़ा. इस हार की प्रभाव न पडे़ एवं 17वीं लोकसभा चुनावों में जीत हासिल करें – इस लक्ष्य को लेकर आरएसएस-भाजपा ने साम्राज्यवादी बहुराष्ट्रीय कंपनियों, देश के कारपोरेट कंपनियों एवं सामंतियों के बल पर धनबल, बाहुबल, अधिकारबल आदि सबकुछ केंद्रित कर एवं हिंदू धर्म की भावनाओं व पाकिस्तान विरोधी भावनाओं को बहकाने की बहुत ही आक्रामक योजना बनायी. बूत प्रबंधन उनके मुख्य नीति बन गयी. इसके तहत जनता के अंदर भ्रांतियां जगाने वाली कल्याणकारी योजनाओं पर प्रचार की चिल्लाहट पैदा की, कई झूठी वादों का बजट लायी, पुलवामा घटना को दिखायी, पाकिस्तानविरोधी/मुस्लिम-विरोधी भावना, हिंदू धर्मोन्मद, अंधराष्ट्रवाद, युद्धोन्माद भड़काकर वोट पाने में उन्होंने सफल हुई. इसने पुलवामा हमले के पीछे मोदी-आरएसएस की षडयंत्र को उजागर करती है.

इसके साथ-साथ जाति एवं धर्म की लाग-लपेट को भड़काना-इस्तेमाल करने, सत्ता का दुरुपयोग कर सीबीआई जैसे केंद्रीय संस्थानों को इस्तेमाल कर विपक्षियों का नियंत्रण कर पाने, विभाजित करने व अपने तरफ खींचने की वजह से, विपक्षी पार्टियां भी लंबे समय से जनविरोधी नीतियां लागू करते हुए जनता की विश्वास खो जाने की वजह से मोदी का विकल्प दर्शाने में घोर विफलता का सामना किया. इसलिए इन चुनावों में भाजपा ने जीत हासिल कर पायी। मोदी के नेतृत्व में भाजपा-एनडीए गठजोड़ ने लोकसभा में कुल 543 सीटों में (इसमें एक सीट के लिए चुनाव नहीं हुई) अत्यधिक बहुमति के साथ भाजपा 303 सीटें एवं एनडीए 353 सीटें हासिल कर फिर से सत्ता पर कब्जा जमाया. विपक्षी पार्टियां मोदी को कुर्सी से उतारने की कई लफ्रफाजी बातें करने के बावजूद वे अपने बीच एकता कायम नहीं कर पायीं. मोदी की शासन के प्रति उत्पीड़ित वर्गों, तबकों एवं राष्ट्रीयताओं में आयी तीव्र असंतोष को इस्तेमाल करने की क्षमता कांग्रेस सहित अन्य सभी पार्टियां खो दिया. लिहाजा कांग्रेस पार्टी भ्रांतियां पैदा करने वाली ‘जनहितैशी’ चुनाव घोषणा पत्र, विशेषकर ‘न्यूनतम आय कानून’ के नाम पर ‘अब होगा न्याय’, ‘गरीब परिवार-72,000 रुपये’ कहते हुए उत्पन्न करने वाली प्रचार की चिल्लाहट ने जनता को थोडा भी प्रभावित नहीं कर पायी. फलतः कांग्रेस ने इन चुनावों में प्रधान विपक्षी ओहदा भी हासिल नहीं कर पायी.

उत्तरप्रदेश में बसपा-सपा-आरएलडी की महागठबंधन, बिहार, झारखंड, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में कांग्रेस की भागीदारी से बनायी गयी महागठबंधन एवं भाकपा, भाकपा (एम), टीडीपी, पीडीपी आदि पार्टियां भी जनता का विश्वास हासिल नहीं कर पाने की वजह से बैठ गयी. टीएमसी भी आत्मरक्षा की मुद्रे में चली गयी. टीआरएस को भी धक्का लगा. आप पार्टी की अस्तित्व ही खतरे में पड़ गयी. उत्तर-पूर्व इलाके की क्षेत्रीय संसदीय पार्टियां भाजपा की दलाल के रूप में बदलने की वजह से वहां भाजपा मजबूत हो गयी. केरल, तमिलनाड़ु, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, ओड़िशा में मोदी की लहर कुछ भी नहीं कर पायी. इस तरह इन संसदीय चुनावों के जरिए फासीवाद और मजबूत होकर सामने आयी. आंध्रप्रदेश, सिक्किम विधानसभा चुनावों में सरकार-विरोधी वोट को इस्तेमाल कर वाईएसआर कांग्रेस, सिक्किम क्रांतिकारी संगठन सत्ता मे आयीं. ओड़िया राष्ट्रीय आकांक्षाओं को भी इस्तेमाल कर नवीन पट्नायक नेतृत्ववाली बीजेडी पांचवीं बार सत्तारूढ़ होने में सक्षम हुई. अरुणाचल प्रदेश में दूसरी विकल्प नहीं होने की वजह से भाजपा फिर तेजी से निकल कर सत्ता में आयी.

इन चुनावों में 100 प्रतिशत वोट हासिल करने के लिए पहले के मुकाबले चुनाव आयोग, साम्राज्यवादी एवं भारतीय कार्पोरेट एजेंसियों ने जनवरी 2019 से ही कई चालाक विन्यासों के साथ प्रचार की दहाड मचायी. हमारे आंदोलन के इलाकों में चुनाव बहिष्कार अभियान को विफल करने के लिए चुनाव आयोग ने सरकारी सशस्त्र बलों के कूंबिंग, गश्त एवं झूठी मुठभेड़ों के सहारे ‘ऑपरेशन हिम्मत’ आदि के नाम पर वोट डालो के प्रचार तेज किया। चुनाव पार्टियों ने कार्पोरेट मीडिया को इस्तेमाल कर झूठी वादे कर बडे़ पैमाने में भ्रम एवं चुनावों के इर्दगिर्द एक लालसा पैदा किया. संसदीय व्यवस्था के प्रति आलोचनात्मक रवैया अपनाने वाली इलाकों के जनता पर भी वोट देने की दबाव बनाया. चुनाव पार्टियां जाति, धर्म एवं क्षेत्रीय दुराग्रहों को भड़काना हो, उनके द्वारा धनबल, बाहुबल, शराब एवं हिंसा-धमकियों का इस्तोमल हो – इसे चुनाव आयोग ने जनवादी प्रक्रिया के तहत ही मान लिया. तो आरएसएस-भाजपा को कोई रोक-टोक नहीं रह गयी. मतदाताओं को खरीदने के लिए चुनाव पार्टियां गैरकानूनी ढंग से बडे़ पैमाने पर वितरण करने वाली 8,000 करोड़ रुपये कीमती वाली राशि, सोना, चांदी, शराब एवं मादकपदार्थों को चुनाव आयोग जब्त करने के बावजूद, इससे कई गुणा अधिक मतदाताओं को दिये गये दसियों हजार करोड़ रुपयों का खर्च नियंत्रण करने में वह पूरी तरह विफल रही. इन चुनावों में भाजपा, कांग्रेस एवं क्षेत्रीय पार्टियां अभूतपूर्व ढंग से बडे़ पैमाने पर खर्च कीं. इसमें भाजपा सभी पार्टियों को पार किया.

इन चुनावों में यथासंभव सभी चुनावी पार्टियां अपने उम्मीदवारों के तौर पर बहुत हद तक घोटालाबाजों, बदमाशों एवं अपराधियों को ही और बार सामने लायीं. चुनावों में इस तरह की अपराधी एवं शोषक वर्ग की पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों एवं करोड़पतियों ही अधिकतर जीत हासिल किये. इन चुनावों के अवसर पर कोई भी चुनाव पार्टी व्यापक उत्पीड़ित जनसमुदायों, राष्ट्रीयताओं एवं देश से सामना करने वाली मौलिक आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक समस्याओं को गंभीरता से उठाना हो, जनता के सामने लाना हो, नहीं किया. चुनाव प्रचार के तहत मैदान में रही पार्टियां एवं उम्मीदवारों ने आपसी आरोप-प्रत्यारोपों से कौन कितना भ्रष्ट है एवं अपराधी है उजागर करने सहित सड़ी-गली सभी संसदीय परिभाषा को मनमर्जी से इस्तेमाल किया. व्यापक तौर पर एवं खुलेआम हिंसा में उतारू हो गये. जाति एवं धर्म को मनमानी से इस्तेमाल किया. यह अमीरों की विलासी खेल बन गयी. ये सब चुनावी मैदान में शामिल पार्टियों एवं उम्मीदवारों के जनविरोधी चरित्र, भाई-भतीजावाद, विकास-विरोधी एवं स्वार्थी नीतियों तथा भ्रष्टचार-घोटालों को उजागर किया. इन सभी तथ्यों ने विश्व के ‘सबसे बडे़ लोकतांत्रिक’ देश की संसदीय चुनावों की चालबाजी की पोल खोल रही है.

चुनाव आयोग ने मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए जितने भी सर्कस कलाबाज दिखाने के बावजूद आधिकारिक आंकडे़ के मुताबिक ही मतदान 63 प्रतिशत से अधिक नहीं हो पायी. यह पिछले लोकसभा चुनावों की मतदान प्रतिशत से 3 प्रतिशत कम है. बडे़ पैमाने पर धनबल, बाहुबल, अधिकारबल, सरकारी सशस्त्र बलों के दबाव से हुई धांधली की प्रतिशत को घटना से असली मतदान प्रतिशत और कम हो जाती है. जहां क्रांतिकारी एवं राष्ट्रीयमुक्ति आंदोलन मजबूत हैं, उन इलाकों में मतदान करवाना मुश्किल समझकर सैकड़ो मतदान केंद्रों को पुलिस थानों एवं अर्धसैनिक बलों के कैंपों के पास स्थानांतरित किये. ऐसे केंद्रों में बडे़ पैमाने पर हेराफेरा हुई. इसके बावजूद छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, ओड़िशा, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना आदि राज्यों के हमारी आंदोलन के मजबूत इलाकों में मतदान प्रतिशत 5.30 प्रतिशत से अधिक नहीं है. बंदूक के बल पर वोट डालवाने को रोकने एवं दुश्मन के हमलों से आत्मरक्षा के तहत हमारी पार्टी के नेतृत्व में पीएलजीए के वीर योद्धाओं ने संगठित जनता की सहयोग से दण्डकारण्य, बिहार, झारखंड, ओड़िशा, आंध्रप्रदेश सीमा इलाके एवं तेलंगाना राज्यों में दुश्मन के बलों पर कई शानदार हमले कर 35 सशस्त्र पुलिसवालों मार दिये एवं 76 पुलिस वालों को घायल किये. कश्मीर में बडे़ पैमाने पर भय की वातावरण पैदा करने के बावजूद, कुछ इलाकों में मतदान प्रतिशत 10 तक सीमित हो गयी. वहां ‘कश्मीर को आजादी चाहिए’ का नारा और एक बार गूंज उठा. उत्तर-पूर्व इलाकों में भी जनता कई जगहों पर चुनाव बहिष्कार किया.

स्थानीय समस्याओं की हल के लिए भी जनता देश के 165 जगहों पर चुनाव बहिष्कार किया. वोट नहीं देने पर उग्रवादी या माओवादी का ठप्पा लगने, सोसाईटी चावल नहीं देंगे एवं सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के लिए योग्यता खो जाने की शोषक-शासक वर्ग के राजनीतिक पार्टियों एवं सरकारी सशस्त्र बलों के धमकियों की वजह से एवं दूसरा सही विकल्प नहीं होने की परिस्थितियों में मतदाताओं ने बडे़ पैमाने पर ‘नोटा’ बटन को दबाया. इस तरह सरकारों के जनविरोधी नीतियों एवं दमन के खिलाफ क्रांतिकारी एवं राष्ट्रीयमुक्ति आंदोलन के इलाकों में तथा जनवादी व विस्थापन-विरोधी आंदोलनों का आह्वान को लेकर भी उत्पीड़ित जनता, उत्पीड़ित राष्ट्रीयताओं एवं तबकों ने उल्लेखनीय संख्या में चुनाव बहिष्कार किया.

एक मजाक के रूप में संपन्न हुई इन चुनावों में एनडीए गठजोड़ ने बडे़ पैमाने पर जीत हासिल करने की बात कहने के बावजूद, दरअसल उसे जो वोट मिली हैं, कुल मतदाताओं की संख्या में सिर्फ एक तिहाई तक ही है. इससे स्पष्ट होता है कि सभी तबकों के यानी धर्म, जाति, क्षेत्र, लिंग एवं अस्तित्वों से ऊपर उठकर वोट हासिल करने की भाजपा की दावे में कितना दम है. यह ‘सबसे बडे़ लोकतांत्रिक व्यवस्था’ की दिवालियापन को सूचित करती है. मोदी अपनी जीत के बाद ‘विजय भारत’, ‘सबका साथ, सबका विकास एवं सबका विश्वास’ के साथ जीत हासिल करना दावा करते हुए जनता के लिए जो संदेश दिया – जो सामाजिक समुदाय उन्हें वोट नहीं दिये, उनके साथ भी मिल कर काम करूंगा, अगले पांच सालों में गलत मंशा से कोई भी कार्रवाई नहीं करूंगा, यह मेरा संकल्प कहें, समर्पण कहें, प्रतिबद्धता कहें जो भी हो – वह सिर्फ धोखा है एवं फासीवाद से रंगी हुई है.

साम्राज्यवाद-परस्त, सामंती-परस्त, संघीय-विरोधी, विस्तारवाद नीतियों से लैस मोदी नेतृत्ववाली भाजपा सरकार संसद में मिली बहुमत को इस्तेमाल कर अपनी फासीवादी नग्न चेहरा को पहले के मुकाबले और क्रूरता से उजागर करने में बहुत देरी नहीं लगेगी. मोदी की नेतृत्ववाली एनडीए सरकार लोकसभा में अत्यधिक बहुमति हासिल करना, मजबूत संसदीय विपक्ष नहीं होना, इससे भी मुख्य पहलू – देश में तेज होती जारी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक संकट ने तेज होने वाली ब्राह्मणीय हिंदू फासीवादी हमले को एवं नया भारत निर्माण के नाम पर सभी क्षेत्रें में जनता पर होने वाली भारी हमले की खतरे को सूचित करती हैं.

प्रिय कामरेडो, साम्राज्यवाद अंतराष्ट्रीय स्तर पर लंबे समय से जो आर्थिक व वित्तीय संकट का सामना कर रही है, उससे बहाली होने की स्थिति दिखायी नहीं पड़ रही है. साम्राज्यवादी देशों के बीच आर्थिक क्षेत्र में होड़ व्यापार युद्धों के रूप में प्रकट हो रही हैं, इसने पश्चिमी एशिया एवं हिंद-प्रशांत इलाके में सामरिक क्षेत्र में उनके बीच स्पर्धा को तेज कर दी है. अमेरिका ने उसके द्वारा हिंद-पशांत इलाके में बनायी गयी पसिफिक कमान एवं ‘क्वाड’ (चतुर्मुखी सुरक्षा समझौता) गठबंधन को मजबूत कर रही है. इस इलाके में चीन की दबदबे को रोकने के लिए भारत को ‘दक्षिण एशियायी पुलिस’ के रूप में खड़ा करने एवं ‘सार्क’ संगठन की जगह पर ‘बिम्सटेक’ (बंगाल की खाड़ी की पहल-बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग, इसमें भारत, म्यांमार, थाईलांड, बांगलादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान शामिल है) को रणनीतिक रूप से आगे लाने के लिए कठपुतलियों को बहका रही है. वन रोड वन बेल्ट योजना, ‘क्वाड’ शिखर सम्मेलन, डोकलाम की घटनाक्रम, श्रीलंका में ईस्टर धमाकें, हाल ही में मालदीव व श्रीलंका में मोदी की दौरा आदि ने हिंद-प्रशांत इलाके में साम्राज्यवादियों के बीच अंतरविरोध गहराते हुए तनातनी बढ़ी है.

साम्राज्यवादी आर्थिक संकट की प्रभाव से दिन-ब-दिन जनता की जिंदगियां दूभर होती जा रही हैं. बेहतर जवीन परिस्थितियों के लिए विभिन्न मांगों पर उत्पीड़ित राष्ट्रीयताओं एवं जनता के प्रतिरोध आंदोलन विश्वभर में तेज हो जाने के बावजूद, राजनीतिक रूप से कम्युनिस्ट एवं राष्ट्रीय-मुक्ति आंदोलनें कमजार हाने की वजह से साम्राज्यवादी वित्तीय पूंजी की हमला क्रूर फासीवादी रूप ले रही है. कई पूंजीवादी-साम्राज्यवादी देशों एवं पिछडे़ देशों में भी दक्षिणपंथी पार्टियां सत्ता में आ रही हैं. फासीवाद विश्वभर में विस्तारित हो रही है. फलतः विश्वभर में तीन मौलिक अंतरविरोध दिन-ब-दिन तेज होती जा रही है.

हमारा देश में दूसरी बार सत्ता पर काबिज मोदी गुट ने कैबिनेट में, आठ कैबिनेट कमेटियों में अमित शाह जैसे लोगों को शामिल कर सरकारी नौकरशाही तंत्र को और मजबूत कर रही है. वह विभिन्न क्षेत्रें एवं समस्याओं पर अपनी ध्यान केंद्रित करने का बात जो कह रही है, ये सब जनता को ठगने एवं साम्राज्यवादियों विशेषकर अमेरिकी साम्राज्यवादियों एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसियों एवं टीएनसीयों) के भूमंडलीकरण एजेंडे को आक्रामक रूप से लागू करने के बजाय और कुछ नहीं. दोबारा सत्ता पर काबिज होने के बाद मोदी सरकार अमेरिकी साम्राज्यवादियों की मांगों को पूरा करने एवं उनकी आदेशों के मातहत उन्हें अमल करने के लिए किसी भी कीमत चुकाने के लिए तैयार है. साम्राज्यवाद प्रायोजित आर्थिक उदारीकरण नीतियों को आक्रामक रूप से एवं तेजगति से अमल कर रही है. इन नीतियां देशीय उद्योगों एवं वाणिज्य को निगल रही हैं.

  1. पहले, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय पूंजी ने भारत जैसे पिछड़ी दश में मुनाफें की होड़ के तहत प्रवेश करती है. इसके द्वारा कमाने वाली मुनाफें न्यूयार्क, लंडन, टोक्यो, बेर्लिन आदि जगहों में अपनी मातृ-संस्थानों के लिए बह जाती हैं. हमारा देश के लिए कुछ भी फायदा नहीं होगी.
  2. दूसरा, हमारा देश में निवेश करने वाली साम्राज्यवादी पूंजी पर जो मुनाफें दर प्राप्त होती है वह अपनी मातृदेश में पाने वाली दर से तीन-चार गुणा अधिक होती है. यहां की मजदूरों को निर्दयता से शोषण करना, कच्चे माल को सस्ते दर पर लूटना एवं नाम के वास्ते या शन्य पर्यावरण पाबंदियां की वजह से बडे़ पैमाने पर यहां पर्यावरण की विनाश हो जाती है, उसी समय उन्हें अप्रत्याशित अधिक मुनाफें मिलती हैं.
  3. तीसरा, दलाल शासक कहते हैं कि बुनियादी सुविधा, ऊर्जा के संसाधन आदि क्षेत्रें में निवेश करने के लिए देश में पूंजी नहीं है. लेकिन यह सरासर झूठ है. अगर साम्राज्यवदियों के मुनाफें को रोक पाते हैं, भारत के दलाल नौकरशाही पूंजीपति वर्ग द्वारा स्विस बैंकों में छिपायी गयी 100 बिलियन डालर राशि को बाहर निकल पाते हैं, लुटेरों के हाथों से व्यापक कालेधन की अर्थव्यवस्था पर कब्जा कर पाते हैं, चुपके से देश-विदेशी कारपोरेट संस्थानों द्वारा वंचित 12 लाख करोड़ रूपये की बट्टे खाते को जब्त कर लेते हैं, मंत्रियों, अधिकारियों, संसद, विधायक, पुलिस एवं रक्षा क्षेत्रें में लगाने वाली भारी अनुत्पादक फिजूली खर्चों को यथासंभव कम कर पाते हैं, तब अभी विदेशों से प्राप्त होने वाली निवेश से 10 गुणा अधिक पूंजी देश में ही पैदा कर सकते हैं.
  4. चौथा, दलाल शासक कहते हैं कि आधुनिक तकनीक के लिए विदेशी सहयोग एवं समझौते जरूरी है. यह भी झूठ है. इतिहास ने साबित कर दिखाया कि पूर्व सोवियत संघ, चीन जैसी समाजवादी देश स्वदेशी तकनीक पर ही निर्भर होकर कई छलांग लगायी, उनके द्वारा जो वृद्धि हासिल की गयी वह कोई भी साम्राज्यवादियों की पाबंदियों से प्रभावित नहीं हुई. ऐसे तो हमारा देश में व्यापक पिछड़ी ग्रामीण इलाके में उत्पादन शक्तियों को विकसित करने के लिए पर्याप्त तकनीक मौजूद है. दरअसल, साम्राज्यवादी संस्थानों एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा निर्देशित नीतियों की वजह से देश में कृषि एवं औद्योगिक क्षेत्र संकटग्रस्त हो जाने के परिणामस्वरूप भारतीय अर्धऔपनिवेशिक एवं अर्धसामंती व्यवस्था में अवसर नहीं मिलने की वजह से किसानों की आजीविका खत्म हो गयी, उन्होंने बडे़ पैमाने पर ग्रामीण इलाकें छोड़कर शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं, बेरोजगार उच्च स्तर तक पहुंच गयी है, रोजी-रोटी के लिए कुशल-अकुशल मजदूर एवं उच्च शिक्षा प्राप्त युवा विदेश जा रहे हैं.

साम्राज्यवादी वित्तीय पूंजी द्वारा होने वाली औद्योगिकीकरण जनविरोधी एवं देशद्रोही है. इन कंपनियों में जनता की जीवन के लिए जरूरी चीजें नहीं, बल्कि अधिकाधिक मुनाफें देने वाले विलासी चीजों को ही उत्पादन करते हैं. इस विदेशी पूंजी में सामाजिक दृष्टिकोण नहीं होती है. इससे सिर्फ अमीरों एवं कुछ ऊंची मध्यम वर्ग के लोग ही फायदा उठाते हैं, वह व्यापक जनसमुदायों को और गरीबी में धकेलती है तथा अमीर एवं गरीब के बीच खायी तेजी से बढ़ती है. फलतः देशीय बाजार एवं औद्योगिक वृद्धि लड़खड़ाती है. देश की अर्थव्यवस्था और पतन हो जाती है.

वास्तव में देश में आने वाली विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) में 70 प्रतिशत मौजूदा सरकारी एवं निजी संस्थानों एवं व्यापारों के हिस्से खरीदने के लिए लगायी जाती है. सिर्फ एक छोटी-सी राशि ही नये संस्थानों की स्थापना के लिए इस्तेमाल किया जाता है. एक शब्द में कहा जाये तो, उस तरह की पूंजी ने आजीविका को पैदा नहीं कर सकती. दरअसल आधुनिक यंत्र के साथ ही वह देश में प्रवेश करती है. वह न सिर्फ देश में महंगे दरों से आयात की जाती है, बल्कि बडे़ पैमाने पर नौकरियों को नष्ट करती है. बेरोजगारी और बढ़ जाती है. देश के सभी क्षेत्र एफडीआई के जहरी दंश झेल रही हैं. पिछले मोदी सरकार बीमा, बैंकिंग, खदान, रक्षा उत्पादन, मीडिया, आखिर छोटे औद्योगिक क्षेत्र, कृषि, कारीगर, खुदरा बाजार जैसे मुख्य क्षेत्रें में एफडीआई के लिए अनुमति दी. 100 फीसदी एफडीआई उसकी लक्ष्य रही है. जगजाहिर है कि वह एक तरफ देशभक्ति की लफ्रफाजा करते हुए ही देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह विदेशी कारपोरेट कंपनियों के हाथों हवाला करते हुए जनविरोधी एवं देशद्रोही नीतियां लागू कर रही है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए ही केंद्र में कमजोर संकीर्ण सरकार के बजाय मजबूत फासीवादी सरकार को गठित करने की तरफ ही तुले हुए साम्राज्यवादी बहुराष्ट्रीय कंपनियों, भारतीय दलाल नौकरशाही पूंजिपतियों, सामंतियों, मीडिश घरानों ने लोकसभा चुनावों में ब्राह्मणीय हिंदू फासीवादी पार्टी भाजपा को फिर से सत्ता में लाये हैं. मोदी के नेतृत्व में भाजपा की जीत देश में तेज होने वाली ब्राह्मणीय हिंदू फासीवाद एवं संसदीय फासीवाद का ही संकेत है.

औद्योगिक एवं कृषि संकट की वजह से भारतीय अर्धऔपनिवेशिक एवं अर्धसामंती अर्थव्यवस्था मंदी में फंसी हुई है. उसकी वाणिज्यक घाटा बढ़ रही है. जीडीपी वृद्धि दर पिछले पांच सालों से सबसे न्यूनतम स्तर तक पहुंच गयी है. भारतीय एनएसएस की आंकडे़ के मुताबिक बेरोजगारी शहरी इलाके में 7-8 प्रतिशत एवं ग्रामीण इलाके में 5-3 प्रतिशत तक बढ़ी है. लेकिन साम्राज्यवादी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हितों को एवं देश की दलाल नौकरशाही पूंजीपतियों व सामंतियों के हितों को पूरा करने, देश में ‘ब्राह्मणीय हिंदू राष्ट्र’ की स्थापना ही मोदी सरकार की मुख्य एजेंडा है. इसलिए देशभर में तमाम उत्पीड़ित वर्गों (मजदूर, किसान, मध्यम वर्ग, देशीय पूंजीपति वर्ग), उत्पीड़ित सामाजिक तबकों (महिला, दलित, आदिवासी एवं धार्मिक अल्पसंख्यक) एवं उत्पीड़ित राष्ट्रीयताओं (कश्मीर एवं उत्तर-पूर्व राष्ट्रीयताओं) पर उसकी शोषण एवं उत्पीड़न तथा अत्याचार व फासीवादी हमले और तेज हो जाती हैं. इन फासीवादी शक्तियां पिछले पांच सालों में ‘गोरक्षा’, ‘घर वापसी’, ‘लव-जिहाद’ के नाम पर एवं ‘भीड़ की हत्यों’ (मोब-लिंचिंग) की तरीका अपनायीं. अब वे इन पुराने तरीकों के साथ और क्रूर तरीकें अपनाती हैं.

मोदी कहता है कि आतंकवाद ही अपनी मुख्य निशाना है एवं आतंवाद पर विश्वव्यापी सम्मेलन होनी चाहिए. भाजपा ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ना ही देशभक्ति कहते हुए, अपनी चुनावी घोषणापत्र में अपनी ब्राह्मणीय हिंदू फासीवादी राष्ट्र की एजेंडे को खुलेआम सामने लाकर घोषणा की कि संविधान में संशोधन कर ‘धारा 370’ एवं ‘धारा 35ए’ को समाप्त करेंगे, नक्सलवाद को पूरा तरह उखाड़ देंगे, देशभर में एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिकता संशोधन बिल) को लागू कर पड़ोसी देशों से शरणार्थी के रूप में आयी मुस्लिम जनता को देश से भगा देंगे एवं हिंदू व बौद्ध धर्म के लोगों को आश्रय देंगे. मतलब विशेषकर हमारी पार्टी की नेतृत्व में जारी क्रांतिकारी आंदोलन पर, कश्मीर व उत्तर-पूर्व इलाकों में जारी राष्ट्रीय-मुक्ति आंदोलनों पर हमला तेज हो जाती है. इसकी बहाने देश में जनवादी आंदोलनों पर, छात्रें एवं बुद्धिजीवियों पर, महिला, दलित, आदिवासी एवं अल्पसंख्यकों पर अत्याचार, महिलओं पर लैंगिक अत्याचार, हमले, संपत्ति का विध्वंस, नरसंहार बढ़ जाती हैं. देश में गृहयुद्ध की स्थिति पैदा होती है. इस फासीवादी हमले की वजह से देशभर में उत्पीड़ित जनता की जीवन स्तर और बदतर हो जाती है.

चुनावों में ‘भारी जीत’ के साथ मोदी की नेतृत्व वाली भाजपा ने विपक्षी पार्टियों सहित अपनी एनडीए गठजोड़ के सह-पार्टियों को भी निगल रही है, इससे शोषक-शासक वर्गों के पार्टियों के बीच अंतरविरोध और तेज हो जाती हैं. फलतः देश में चार मौलिक अंतरविरोध दिन-ब-दिन तेज होते हुए उत्पीड़ित वर्गों, तबकों एवं राष्ट्रीयताओं के आंदोलन व्यापक होते हुए क्रांति के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा हो जाती हैं. फासीवाद विश्वभर में साम्राज्यवादी देशों में हो रहे मजदूर वर्ग के आंदोलनों एवं पिछडे़ देशों में हो रहे क्रांतिकारी जनवादी आंदोलनों की प्रगति को रोक नहीं सकती. उल्टे इन आंदोलनों की प्रगति ही कागजी बाघ साम्राज्यवाद एवं फासीवाद को चकनाचूर कर सकती है. यह एक ऐतिहासिक तथ्य है.

अभी और बार एक सत्ता में आयी भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की स्थिति कुल मिलाकर देखें तो ऐसी होने की अंदेशा है कि वह और आक्रामक रूप से साम्राज्यवाद-परस्त नीतियां जारी रखेयी एवं करोड़ों श्रमजीवी जनता को और क्रूरता से शोषण कर एवं और निर्ममता से क्रांतिकारी व जनवादी आंदोलनों को कुचल देगी. याद रखे कि संगठित आंदोलनों एवं मजदूर, किसान व मध्यम वर्ग की जनता के आंदोलनों को कुचलने के लिए और क्रूर कानूनें बनाकर, और फासीवादी कार्रवाइयां लेने के लिए इन चुनावों के परिणाम एनडीए सरकार को अधिक अवसर दिया है. लेकिन इस अवसर पर हमने यह भी याद रखना होगा कि दलाल शासक वर्ग की पार्टियां जो भी हो, उनके साम्राज्यवादी आका जो भी हो अपनी हितों के लिए कभी भी, कहीं भी कम्युनिस्ट क्रांतियों को कुचल ही दिये, इसके विपरीत वे व्यवहार नहीं करते। यह पारिस कम्युन से लेकर अनुभव में है. एलसाल्वडार एवं श्रीलंका के अनुभव भी हमारे आंखों के सामने हैं.

शासक वर्गों के प्रति जनता के अंदर पैदा होने वाली भ्रम जो किसी भी तरह की हो हमें ढूंढ निकालना होगा. केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से ‘समाधान’ या दूसरे नाम पर संचालित किए जाने वाले नयी रणनीतिक चौतरफा हमले को हराने के लिए एवं हमारी जनयुद्ध द्वारा हासिल सफलताओं को बचाने के लिए देशभर में जनसमुदायों को जागरूक कर व्यापक आंदोलन खड़ा करने की बहुत ही आवश्यकता है. इसलिए, ब्राह्मणीय हिंदू फासीवाद एवं सभी तरह के प्रतिक्रियावादी, फासीवादी व प्रतिक्रांतिकारी तत्वों को उनकी जड़ों से उखाड़ कर सच्ची जनतांत्रिक संघीय गणतंत्र की स्थापना के लक्ष्य से देशभर में निम्नलिखित कार्यक्रम के साथ जनांदोलन एवं जनयुद्ध को तेज करना होगा –

  • ब्राह्मणीय हिंदू फासीवाद के खिलाफ देश की जनता को राजनीतिक रूप से गोलबंद करने के लिए सबसे अधिक प्राथमिकता देनी चाहिए. इसके लिए तेज होती जा रही साम्राज्यवाद, दलाल नौकरशाह पूंजीपति एवं सामंती वर्गों के शोषण, उत्पीड़न एवं दमन का जुझारू रूप से प्रतिरोध करने के लिए व्यापक जनसमुदायों को एकत्रित करना हमारी तरीका होनी चाहिए.
  • हमें गैर-जरूरी नुकसानों से दूर रहते हुए नेतृत्व को, कार्यकर्ताओं एवं जनता को बचाना चाहिए. नये सदस्यों को भर्ती करते हुए पार्टी को विस्तारित करना चाहिए. सभी स्तरों के कामरेडों को शिक्षा देकर नये नेतृत्व को तैयार करनी चाहिए. बोल्शेविक अभियान के अनुभवों से पार्टी को ग्राम स्तर से लेकर ऊपर तक मजबूत करना चाहिए.
  • दुश्मन की फासीवादी हमले का सामना करने के लिए पार्टी, पीएलजीए, क्रांतिकारी जननिर्माणों एवं जनता को राजनीतिक रूप से तैयार करनी चाहिए. दुश्मन की फासीवादी हमले की तीव्रता, हमले की स्तर, उसकी क्रूर स्वभाव के बारे में, उसका जवाबी हमला करने के तहत बडे़ पैमाने पर आत्मबलिदान देने की जरूरत के बारे में प्रेरित करना चाहिए. हर एक समस्या पर यथासंभव सभी स्तरों में व्यापक व मजबूत संयुक्तमोर्चों को गठित करने एवं अन्य संघर्षरत संगठनों व शक्तियों के साथ एकता कायम करने के लिए पहल करना चाहिए. जनता को व्यापक बुनियाद पर गोलबंद कर जनांदोलनों को तेज करना चाहिए. देश के अलग-अलग इलाकों में हमारे बलों द्वारा संचालित साहसिक गुरिल्ला कार्रवाइयों से जनता को उत्साहित करना चाहिए. जनयुद्ध में जनता की सक्रिय भूमिका बढ़ाते हुए उन्हें तैयार करनी चाहिए. इसमें पार्टी की नेतृत्वकारी भूमिका सक्रिय रूप से अदा करनी चाहिए.
  • हमने जनता की दैनंदिन व मौलिक समस्याओं को, दिन-ब-दिन तेज होती जा रही पर्यावरण की समस्याओं को लेकर उन्हें जझारू आंदोलनों में गोलबंद करना चाहिए. क्रूर कानूनों के खिलाफ, हमारे आंदोलन के इलाकों में पुलिस व केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की तैनाती एवं कारपेट सुरक्षा की विस्तार तथा उन इलाकों की सैनिकीकरण के खिलाफ, हमारे आंदोलन के इलाकों में गिरफ्रतारियों, प्रताड़ना, संपत्ति-फसल एवं गांवों का विध्वंस, महिलाओं पर अत्याचार, झूठी मुठभेड़ों, जनता पर हत्याकाण्डों आदि के रूप में जारी राज्य आतंक एवं राज्य प्रायोजित हत्यारे गिरोहों को भण्डाफोड़ करते हुए व्यापक प्रचार को लेकर, राज्य की पाशविक हमले को विरोध करने वाले सभी शक्तियों के साथ व्यापक संयुक्तमोर्चों को गठित कर जनप्रतिरोध आंदोलनों का निर्माण करना चाहिए. केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा क्रांतिकारी आंदोलन का पूरी तरह सफाया करने के लक्ष्य से जारी जनता पर युद्ध-‘समाधान’ या दूसरी नयी हमले को हराने के लक्ष्य से ताकत के मुताबिक गुरिल्ला युद्ध को पहलकदमी से एवं सक्रिय रूप से चलाना चाहिए. जनप्रतिरोध एवं गुरिल्ला युद्ध को समन्वय के साथ संचालित करना चाहिए.
  • ‘जोतनेवाले के लिए जमीन’ के आधार पर जमीनदारों के जमीन खेतिहर-गरीब किसानों के बीच वितरण करने की मांग को केंद्र बनाकर, किसानों के तात्कालिक मांगों पर उन्हें गोलबंद करना चाहिए. कृषि क्रांतिकारी वर्गसंघर्ष को तेज करना चाहिए. साम्राज्यवाद-विरोधी व सामंत-विरोधी आंदोलनों में किसान को अखिल भारतीय स्तर पर व्यापक बुनियाद पर गोलबंद कर मजबूत किसान आंदोलन का निर्माण करना चाहिए. हमें उनके वर्तमान संघर्षों में शामिल होना और उनके आंदोलनों का नेतृत्व प्रदान करना चाहिए. किसानों के आंदोलन के समर्थन में तमाम जनवादी और जनपक्षदर शक्तियों को गोलबंद करना चाहिए और उनके साथ एकताबद्ध होकर संघर्षों का निर्माण करना और उन्हें तेज करना चाहिए.
  • मजदूर वर्ग में मजबूत होती जा रही ब्राह्मणीय हिंदू फासीवादी गुटों के खिलाफ, निजीकरण, आधुनीकरण के नाम पर किए जाने वाली छंटनी (नौकरी से निकालने) के खिलाफ, मजदूर कानूनों में प्रतिक्रियावादी संशोधनों के खिलाफ, उनपर मनमानी से प्रयोग की जाने वाली क्रूर कानूनों के खिलाफ, कार्यस्थलों की स्थिति में बेहतरी, वेतन बढ़ाने आदि मजदूरों की जीवन-मरण समस्याओं पर मजदूरों को संगठित कर मजबूत सर्वहारा आंदोलन का निर्माण करना चाहिए.
  • शिक्षा, संस्कृति व इतिहास की भगवाकरण एवं निजीकरण के खिलाफ, शिक्षा की संरक्षण व वैज्ञानिक शिक्षा प्रणाली के लिए छात्र-युवाओं एवं बुद्धिजीवियों को संगठित करना चाहिए. देश में दिन-ब-दिन तीव्र रूप से बढ़ती जा रही बेरोजगारी समस्या पर व्यापक बुनियाद पर बेरोजगारी युवाओं को गोलबंद करने की कार्यक्रम लेना चाहिए.
  • महिलाओं पर तेज होती जा रही ब्राह्मणीय हिंदू फासीवादी हमले एवं पितृसत्तात्मक उत्पीड़न के खिलाफ, लैंगिक अत्याचारों खिलाफ, भद्दा सामंती-साम्राज्यवादी जहरीली संस्कृति के खिलाफ महिला आंदोलनों को व्यापक बुनियाद पर संगठित करना चाहिए. देशभर में मजबूत महिला आंदोलन का निर्माण करना चाहिए.
  • देशभर में दलितों पर बढ़ती ब्राह्मणीय हिंदू फासीवादी हमले के खिलाफ व्यापक आधार पर मजबूत आंदोलना का निर्माण करना चाहिए. इसमें अन्य जातियों के प्रगतिशील शक्तियों को गोलबंद करने का प्रयास करना चाहिए.
  • देशभर में गंभीर रूप से जारी विस्थापन समस्या पर आदिवासियों, किसानों एवं शहरी गरीबों को संगठित कर देश-विदेशी (साम्राज्यवादी) कारपोरेट कंपनियों के खिलाफ जुझारू संघर्ष का निर्माण करना चाहिए. इन्हें अखिल भारतीय स्तर पर सभी राज्यों में विस्तारित करना चाहिए. इन्हें ‘जोतने वालों के लिए जमीन’ के आधार में जारी कृषि क्रांतिकारी आंदोलन से जोड़ना चाहिए. आदिवासी इलाकों में पांचवी अनुसूची को लागू करने की मांग करते हुए तमाम आदिवासी जनसमुदायों को गोलबंद कर व्यापक जनांदोलन का निर्माण करना चाहिए.
  • धार्मिक अल्पसंख्यकों में विशेषकर मुस्लिम जनता में ब्राह्मणीय हिंदू फासीवाद के खिलाफ टूट पड़ रही आक्रोश को संगठित करने के लिए पहल करना चाहिए. उन्हें बाकी उत्पीड़ित तबकों साथ संगठित कर मजबूत फासीवादी विरोधी आंदोलन को व्यापक आधार पर निर्माण करना चाहिए.
  • अलग होने का अधिकार सहित आत्मनिर्णयाधिकार के लिए लड़ने वाली कश्मीर एवं उत्तर-पूर्व इलाकों के राष्ट्रीय-मुक्ति आंदोलनों एवं गोरखालैंड आदि पृतक राज्य आंदोलनों के समर्थन में भाईचारा आंदोलनों का निर्माण करना चाहिए. कश्मीर में धारा 370 एवं धारा 35ए को समाप्त करना, उत्तर-पूर्व राज्यों में राष्ट्रीय नागरिकता संशोधन बिल को अमल करने के लिए ब्राह्मणीय हिंदू फासीवादी साजिशों के खिलाफ बडे़ पैमाने पर जनांदोलनों का निर्माण करना चाहिए.
  • हमारी पार्टी की राजनीतिक लाइन पर दृढ़ता से अडिग रहते हुए शासक वर्गों के बीच अंतरविरोधों को इस्तेमाल करने में हमें पहल करना चाहिए व बहुंत ही चलाकी से रहना चाहिए। इस अवसर फायदा उठाते हुए ही, संयुक्तमोर्चा की गतिविधियों पर हमारे अनुभवों को ध्यान में रखकर शासक वर्गों के पार्टियों का प्रभाव में रही उत्पीड़ित वर्गों व तबकों की जनता एवं राष्ट्रीयताओं एकजुट होने तथा जनांदोलनों की तरफ आकर्षित होने की तरफ जनांदोलनों का निर्माण करना चाहिए. इसके लिए पार्टी कैडरों की सैद्धांतिक, राजनीतिक व सांगठिक स्तर बढ़ाना चाहिए. कम्युनिस्ट शैली से काम करते हुए हमारे पैरों पर खडे़ होकर हमारी शक्ति को बढ़ाना चाहिए एवं साझा दुश्मन का सामना करना चाहिए. दुनिया के क्रांतिकारी आंदोलनों एवं हमारी देश के क्रांतिकारी आंदोलनों के अनुभव से सीखना चाहिए.
  • पार्टी की नेतृत्व ने इसे ध्यान में रखना होगा कि चुनावों में ब्राह्मणीय हिंदू फासीवाद की जीत से सभी क्षेत्रें में क्रांतिकारी व जनवादी आंदोलनों पर सरकार के हमले तेज होने की सोच पार्टी, पीएलजीए, जननिर्माणों एवं जनता के अंदर व्यक्त हो सकती है. इसमें कोई शक नहीं है कि सरकारी सशस्त्र बलों के साथ आरएसएस-भाजपाई शक्तियां फासीवादी हमले में उतारू हो जाती हैं. पहले से ही कम्युनिस्टों का सफाया करना आरएसएस का मुख्य कर्तव्य रहा था. इसलिए मोदी सरकार को कार्यनीतिक रूप से असली बाघ के रूप में देखना चाहिए. लेकिन वह रणनीतिक रूप से 90 प्रतिशत जनता की विरोधी है एवं इसे हमने नहीं भुलाना चाहिए कि दिन-ब-दिन उसको अपनी दुश्मन के रूप में जनता पहचान रही है. ऐसी स्थिति में किसी भी तरह की निराशा-हताशा का शिकार होने के बजाय, अनुकूल परिस्थिति का फायदा उठाते हुए व्यापक रूप से जनता को राजनीतिक रूप से गोलबद व संगठित कर, दृढ़ता व वर्गघृणा के साथ अधिक शक्ति जुटाते हुए लड़ने पर हमारी शक्तियों को प्रेरित करना चाहिए.

प्रिय कामरेडो!

मोदी सरकार ने संकल्प लिया कि ‘नया भारत’ के नाम पर देश में ‘हिंदू फासीवादी राष्ट्र’ की स्थापना की प्रतिक्रियावादी योजना लागू की जाए. यानी, यह तो स्पष्ट है कि देश में मोदी की नेतृत्व वाली फासीवादी शक्तियां एक दीर्घकालीन योजना के साथ अपने लक्ष्य हासिल करने एवं अपनी विरोधी शक्तियों पर हमले जारी रखने के लिए काम करेंगे. इस प्रतिक्रियावादी योजना एवं इस फासीवादी हमला अनिवार्य रूप से जनता का प्रतिरोध एवं उसकी हार की मार्ग प्रशस्त करती है. ब्राह्मणीय हिंदू फासीवाद के खिलाफ अलग-अलग तरीकों से देशभर विभिन्न स्तरों पर मजदूर, किसान, छात्र, बुद्धिजीवी, महिला, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक एवं कश्मीर व उत्तर-पूर्व राष्ट्रीयता की जनता लड़ रही हैं. हमारे आंदोलन के इलाकों में साढे़ पांच लाख से अधिक पुलिस एवं अर्धसैनिक बलों को तैनात करने के बावजूद हमारी पार्टी के नेतृत्व में जनता जनयुद्ध को आगे ले जा रही हैं. आंदोलनों पर जितने भी फासीवादी दमन हो, उसे धिक्कार करते हुए जनता संघर्ष की रास्ते पर आगे बढ़ रही हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यही रूझान दिखायी पड़ रही है. क्रांति के लिए अनुकूल परिस्थितियां रोज व्यापक होती जा रही हैं. इस अनुकूल परिस्थिति का फायदा उठाते हुए हमने उत्पीड़ित जनता के साथ व्यापक रूप से एवं मजबूती से आत्मसात होते हुए उन्हें संगठित करना चाहिए.

‘हिंदू फासीवादी राष्ट्र’ की स्थापना के लक्ष्य से देश में बढ़ती ब्राह्मणीय हिंदू फासीवाद का सामना करना हमारी अर्धऔपनिवेशिक एवं अर्धसामंती भारत के क्रांतिकारी एवं जनवादी शक्तियों तथा जनता के लिए एक चुनौती है. उसी समय में उनकी एकता एवं संयुक्त संघर्ष के लिए यह एक महान अवसर भी. आवें ! इस तरह की परिस्थिति में उक्त कार्यक्रम को पहलकदमी एवं सक्रिय रूप से लागू करते हुए देशभर में दीर्घकालीन लोकयुद्ध को तेज करें ! नवजनवादी क्रांति, अंत में समाजवाद-साम्यवाद को सफल बनाने की लक्ष्य से और एक कदम आगे बढे़ं !

लोकसभा चुनावों में मोदी के नेतृत्व में भाजपा की जीत देश में तेज होने वाली ब्राह्मणीय हिंदू फासीवाद एवं संसदीय फासीवाद का ही संकेत है ! तेज होती जा रही साम्राज्यवादी, दलाल नौकरशाही बुर्जुआ एवं बड़े सामंती वर्गों के शोषण, उत्पीड़न एवं दमन को जुझारू रूप से प्रतिरोध करने के लिए पार्टी, पीएलजीए एवं क्रांतिकारी जननिर्माणों को तैयार करें !

Read Also –

 

[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…