1. 3 महीने बाद जब लॉकआऊट हटेगा, तब 50% – 60% प्रतिशत रेस्टॉरेंट बंद हो चुके होंगे. किराया अफोर्ड नहीं कर पायेंगे, मैनपावर छोड़ कर चला गया होगा और दोबारा शुरू करने के लिये पूंजी नहीं बचेगी.
2. पालकों के पास स्कूल फीस देने के पैसे नहीं होंगे. बड़े स्कूल तो जैसे तैसे सरवाईव कर जायेंगे, मगर छोटे स्कूलों को वर्किंग कैपिटल नहीं मिल पाने से स्कूल बंद होने की स्थिति में आ जायेंगे. वो टीचर्स को सैलेरी देने की स्थिति में नहीं रहेंगे. ऐसे में सरकार को चाहिये कि देश भर के स्कूलों को 100% RTE फाईनेंसिंग करे. ऐसा नहीं करने की स्थिति में आधे स्कूल बंद हो जायेंगे.
3. एडवर्टाईजिंग बिज़नेस पिछले तीन सालों में लगभग खत्म हो चुका है. प्रिंट एडवर्टाईजिंग बिज़नेस पूरी तरह खत्म हो जायेगा. उसे दोबारा खड़ा होने में कम से कम एक बरस लगेगा, मगर इस बीच में बहुत सारे अखबार बंद हो जायेंगे.
4. लेबर वापस गांव चली गई है. लॉकडाऊन खत्म होने के बाद उद्योगों को शुरू होने में एक महीना लग जायेगा. इसके अलावा कच्चा माल, वर्किंग कैपिटल, मशीनों की ओवरहॉलिंग करते हुए एक महीना और निकल जायेगा. मंझोले और छोटे उद्योगों में से बहुत सारे बंद हो जायेंगे.
5. महिलाओं को दो तरफ मोर्चे संभालने होंगे. घर संभालने के साथ साथ पति के साथ पैसा कमाने में भी लगना पड़ेगा. लाखों नौकरियां जायेंगी और दोबारा रोजगार ढूंढ़ना बहुत मुश्किल हो जायेगा.
6. बैंकों का खत्म होना अब अवश्यंभावी है. इसके बाद मंदी का वो भयानक दौर आयेगा, जहां रिअल एस्टेट पूरी तरह टूट जायेगा. आपके मकानों और जमीनों की कीमत आधी हो जायेगी, शायद चौथाई. इसके बाद देश का फायनेंशियल स्ट्रक्चर पूरी तरह चरमरा जायेगा. सरकार के पास घुटने टेकने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं रहेगा और हम 1991 के पूर्व की स्थिति में पहुंच जायेंगे. मोदी जी ने गलत कहा कि हम 21 साल पीछे जायेंगे. हम वस्तुत: 31 साल पीछे जाने की तैयारी में हैं.
ब्राईट साईड
1. तमाम ऑनलाईन टूल्स उपलब्ध होने के बावजूद बिज़नेस उन्हें अडॉप्ट नहीं कर रहे हैं. तीन महीने का लॉकडाऊन उन्हें मजबूर कर देगा कि वो नये जमाने के टूल्स को अडॉप्ट करें.
2. ई/कॉमर्स बहुत अधिक तेजी से बढ़ेगा. लोग खुद के छोटे-छोटे स्टोर्स तैयार कर अपना माल ऑनलाईन बेचना शुरू कर देंगे. जैसी कि हमारी तबीयत है, हम अमेज़न और फ्लिपकार्ट को 30% देने की बजाये खुद के स्टोर से कम प्रॉफिट में बेचना पसंद करेंगे.
3. लॉजिस्टिक्स बड़ी बिज़नेस अपर्च्युनिटी है, ये समय उसे पकड़ने के लिये सबसे अच्छा रहेगा. ऑर्गनाईज्ड लॉजिस्टिक्स बहुत तेजी से बढ़ेगा. वेयरहाऊसिंग, फॉर्वर्डिंग में जाने वाले फायदे में रहेंगे.
4. प्रोफेशनल्स के लिये यह परीक्षा का समय है, खासकर सीए एवं मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स के लिये, उन्हें अपने क्लाईंट्स का हाथ पकड़कर इस वैतरणी को पार कराना है और इसके लिये अभी पैसे नहीं मिलेंगे क्योंकि क्लाईंट के पास होंगे ही नहीं. आपको अपने ज्ञान को देश के कल्याण में लगाना होगा और एक्टिवली जमीन पर आकर काम करना होगा.
6. बड़े पैमाने पर कॉलेज बंद होंगे. उच्च शिक्षा के छात्र रहेंगे नहीं और इसकी सबसे ज्यादा मार पड़ेगी इंजीनियरिंग और मैनेजमैंट के कॉलेजेस पर. इसका सीधा फायदा ऑनलाईल लर्निंग कंपनीज़ को मिलेगा.
एक मौका है देश के पास खुद को रिसेट करने का. मुश्किल बस यही है कि बिज़नेस और शिक्षा के मोर्चों पर उन्हें इंस्पायर करने के लिये कोई नहीं है.
अब खतरे और सावधानी
1. जो सबसे बड़ा डर है वो है रामायण / महाभारत का यह मिला जुला तड़का, ऊपर से विराट हिंदुओं द्वारा व्हाट्सऐप पर फैलाया जा रहा जहर. जब यह लॉकडाऊन हटेगा तो एक बहुत बड़ा युवा वर्ग लेटेंट इनर्जी के साथ फ्रस्ट्रेटेड बैठा होगा. लॉकडाऊन हटते ही यह स्ट्राईक करने के लिये तैयार रहेगा.
2. बेरोजगारी से उभरी फ्रस्ट्रेशन, खाली जेब और दुनिया भर का गुस्सा इस युवा वर्ग को सड़कों पर उतार सकता है. इस इनर्जी का मेनिफेस्टेशन सांप्रदायिक दंगों में भी हो सकता है, आरक्षण विरोधी भी हो सकता है, लूटपाट में भी हो सकता है, सिविल वार में हो सकता है और भगवान ना करे – मगर बहुत बड़े पैमाने पर बलात्कार की घटनाएं हो सकती हैं क्योंकि तीन महीने से सेक्शुअली फ्रस्ट्रेटेड भीड़ सड़कों पर उतरेगी.
यह यदि मैं देख पा रहा हूं तो समाजशास्त्री भी देख पा रहे होंगे, नौकरशाह भी देख पा रहे होंगे और हमारे नीति नियंता भी देख पा रहे होंगे. सवाल यह है कि हमारी सरकार ऐसे में क्या करेगी.
3. मोदी सरकार की नीतियां और नीयत यह तय करेगी कि 2020 हमारे लिये भविष्य के रिसेट बटन का काम करेगा, क्योंकि अब धंधे पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं और रास्ता ऊपर की ही ओर जायेगा या यह बरस 1947 के बाद का सबसे दुर्भाग्यशाली साल होगा, जब हमें देशव्यापी मारकाट, दंगे और अराजकता देखने को मिलेगी.
इसे अतिरेक समझ रहे हैं तो आप जिंदगी को बहुत हल्के में ले रहे हैं. सावधान रहियेगा, आग इस बार हम सभी तक पहुंचेगी.
- आनन्द जैन
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