‘पुलिस द्वारा बर्बरता की शिकार बुटाना गांव, सोनीपत की दलित लड़कियों के साथ खड़े हों’, शीर्षक से ‘परिवर्तनकामी छात्र संगठन’ द्वारा जारी किया गया पर्चा पुलिस की बलात्कारी और हैवानियत भरी कार्रवाई को उजागर करने के लिए पर्याप्त है. पुलिस और जांच एजेंसियों की इस बलात्कारी और हैवानियत भरी कार्रवाई इसलिए भी भयानक है क्योंकि यह उस प्रदेश में किया गया है, जो भारत की सचेत मुख्य भूमि कही जाती है. इसी एक घटना से सहज ही इस बात की कल्पना की जा सकती है कि आखिर भारत के संघर्षरत इलाके, यानी उत्तर पूर्व, कश्मीर, दण्डकारण्य आदि जहां की जनता ने भारत की सेना पुलिस के खिलाफ हथियार क्यों उठा ली है.
स्त्री की सुरक्षा हर समाज का उत्तरदायित्व होता है. कोई भी समाज जिसमें मानवीय संवेदना होती है, स्त्री के खिलाफ किये गये किसी भी आपराधिक मामलों को बर्दाश्त नहीं कर सकती, चाहे वह भारत सरकार के आदेश पर कत्लेआम और बलात्कार करने वाली सेना और पुलिस ही क्यों न हो ! किसी भी समाज का यह उत्तरदायित्व है कि वह स्त्री के खिलाफ उठे हर उस हाथ को निर्ममतापूर्वक नष्ट कर दे चाहे वह सेना और पुलिस ही क्यों न हो.
हरियाणा के सोनीपत में अपनी महिला मित्र के खिलाफ उठे पुलिसिया हैवान को मार डालने वाले दोनों युवा धन्यवाद के पात्र हैं. आइये, परिवर्तनकामी छात्र संगठन द्वारा जारी पर्चे में इस घटना के बारे में दी गई जानकारी पर नजर डालते हैं.
29 – 30 जून की मध्य रात्रि को दो पुलिसकर्मियों की मौत की खबर क्षेत्रीय अखबारों में आई थी जिसमें बताया गया था कि 2 लड़कों ने चाकू से हमला करके दो पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया. उसके 2-3 दिन बाद खबर आती है कि लड़कों के साथ 2 लड़कियां भी थी लेकिन जब सच्चाई खुलकर आती है तो पुलिस और अखबारों द्वारा सुनाई जा रही कहानी झूठी निकलती है. वो दोनों लड़कियां आज भी जेल में हैं. उन लड़कियों और उनके परिवार से जो बातें सामने आई वो दिल दहलाने वाली है.
29 जून की रात को बुटाना गांंव में 2 बहन अपने दोस्तों से मिल रही थी तभी वहां 2 पुलिसवाले आए और उनसे पूछताछ करने लगे. इसी बीच पुलिसवाले उनको डराने-धमकाने लगे. लड़कों ने पुलिसवालों को हटाने के लिए कुछ पैसों का ऑफर भी दिया लेकिन पुलिसवाले इतने में मानने वाले नहीं थे. उन्होंने लडकों से कहा कि ‘तुम चले जाओ और गाड़ी और लड़कियों को हमारे पास एक रात के लिए छोड़ जाओ.’ इसी बीच उनमें लड़ाई के दौरान उन 2 पुलिसवालो की मौत हो गयी. शुरू में सबकी संवेदना पुलिसवालों के साथ थी और आम आदमी पार्टी ने सबसे पहले ‘पुलिसवालों को शहीद का दर्जा’ देने की मांग की थी. बताया जा रहा है कि उनमें से एक लड़के को जिसका नाम अमित था, पुलिस ने कस्टडी में रखा और फिर तथाकथित एनकाउंटर में उसे मार दिया गया. दूसरे लड़के को गिरफ्तार कर लिया गया.
पुलिस ने कुछ समय बाद उन 2 दलित लड़कियों को उठाया. 2 दिन की अवैध कस्टडी के दौरान पुलिस द्वारा उनका गैंगरेप किया गया जिसमें से एक लड़की नाबालिग है. उसके बाद CIA ने दो दिन तक उन लड़कियों को कस्टडी में रखा, जहां 10-12 पुलिसवालों ने उनके साथ गैंगरेप किया. पुलिसवालों की हैवानियत यही तक नहीं रुकी. बताया जा रहा है की उनके प्राइवेट पार्ट्स मे शराब की बोतल और डंडे डाले गए. इस पाश्विकता के कारण दोनों लड़कियों की स्तिथि बहुत खराब है. इस घटना के जख्म इतने खतरनाक हैं कि इतने महीनों बाद भी छोटी लड़की सही से चल नहीं पा रही है.
कुछ प्रगतिशील संगठनों द्वारा मामला उठाए जाने पर मानवाधिकार आयोग ने भी इस मामले को संज्ञान में लिया, तब जाकर सोनीपत महिला थाने में पुलिसवालों के खिलाफ मामूली धाराओं में FIR दर्ज की गयी. जो मारे गए पुलिसवाले थे उनको तो हरियाणा सरकार ने शहीद का दर्जा भी दे दिया. ये पुलिसवाले मासूम लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बनाना चाहते थे. ऐसे में सरकार या फिर विपक्ष कोई भी इस मुद्दे पर बोलने को तैयार नहीं है क्योंकि पूरा मामला व्यवस्था के महिला विरोधी चरित्र को नंगा कर रहा है.
लड़कियों पर दो पुलिसवालों की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाकर जेल में रखा गया है. कोर्ट ने भी उन्हें जमानत देने से मना कर दिया है. उनके खिलाफ कई झूठ फैलाए जा रहे हैं, जैसे कि वो इतनी रात को लड़कों के साथ गई ही क्यों थी ? आदि आदि. ऐसे सवाल हर बलात्कार पीड़िता के खिलाफ उठाए जाते हैं, चाहे वो हाथरस हो, कठुआ हो या फिर उन्नाव. लेकिन क्या लड़कियों का अपनी मर्जी से अपने दोस्तों के साथ बाहर निकलने से पुलिसवालों को उन्हें छेड़ने का हक मिल जाता है ? नहीं दोस्तों, बल्कि इस जैसे सभी सवाल पुरुष प्रधान मानसिकता की वजह से पैदा होते हैं जिसमें मान लिया जाता है कि लड़कियों को घर में ही रहना चाहिए। यदि वो रात में बाहर निकलती हैं और उनके साथ बलात्कार भी हो जाता है तो गलती तो लड़कियों की है। ऐसी पुरुष प्रधान मानसिकता के खिलाफ भी हमें लड़ना होगा.
दोनों लड़कियां गरीब दलित परिवार से हैं इसलिए भी पुलिसवालों को इतनी क्रूरता करने का साहस पैदा हुआ. उन्हें मालूम है कि उन लड़कियों का साथ कोई नहीं देगा. ना कोई चुनावबाज पार्टी आयेगी और ना ही कोई अखबार सच्चाई छापेगा. दो पुलिसवालों की मौत से जनता के बीच पैदा हुई संवेदना ने भी पुलिसवालों को नृशंसता करने की ताकत दे दी है. ऐसे में आज जरूरत है कि हम मामले की तह में जाकर सच्चाई के साथ खड़े हों. इन बलात्कारी-हत्यारे पुलिसवालों का गुनाह इसलिए भी बड़ा हो जाता है क्योंकि इन पर ही न्याय करने की जिम्मेदारी है. अगर ये ही अन्याय कर रहे हैं तो इनका पुरजोर विरोध होना चाहिए.
उपरोक्त पर्चे के शब्द.यह बताने के लिए पर्याप्त है कि जो पुलिस और जांच एजेंसियां भारत की मुख्य भूमि पर अपनी बलात्कारी हैवानियत का नंगा नाच कर सकती है वह देश के अन्य इलाकों में क्या-क्या कर रही होगी, जहां न मीडिया पहुंचती है और न ही भारत की कानून. ऐसे वक्त में इस पूरी घटना के खिलाफ आवाज उठाते हुए निम्न मांगों को जोरदार आवाज में उठाया जाना चाहिए –
1. जेल में बंद बलात्कार पीड़ित लड़कियों को तत्काल रिहा करो.
2. पुलिस की नृशंसता का शिकार दोनों लड़कियों को सरकारी नौकरी और उचित मुआवजा दो.
3. मामले की न्यायिक जांच कराकर बलात्कार और हत्या में शामिल सभी पुलिसकर्मियों और अधिकारियों को गिरफ्तार करो.
4. मृत दोनों पुलिसकर्मियों की हत्या की जांच कराई जाए और उनके दोषी पाए जाने पर शहीद का दर्जा वापस लिया जाए.
5. बलात्कारी मानसिकता वाले पुलिस द्वारा फर्जी इंकाउंटर में मारे गये युवा योद्धा अमित को शहीद का दर्जा दिया जाये.
6. बलात्कारी मानसिकता वाले पुलिस को मार डालने वाले दोनों युवाओं को वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया जाना जायें.
भारत सरकार जब तक इन मांगों को पूरा नहीं करती भारत में सेना और पुलिसिया छवि को ठीक नहीं किया जा सकता, उल्टे भारत सरकार की महिला विरोधी बलात्कारी मानसिकता की ही पुष्टि होगी, जिसके खिलाफ देश की जनता द्वारा चलाया जाने वाला हर आंदोलन जायज माना जायेगा, चाहे वह शांतिपूर्ण हो अथवा हथियारबंद !
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